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आदिकालीन अर्थव्यवस्था की परिभाषा तथा आर्थिक विकास के प्रमुख स्तरों की विवेचना कीजिए

आदिकालीन अर्थव्यवस्था की परिभाषा तथा आर्थिक विकास के प्रमुख स्तरों की विवेचना कीजिए आदिकालीन अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष रूप से आदिम लोगों की जीविका पालन या जीवन धारण से संबंधित है । जीवन धारण के लिए आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन करना, उनका वितरण तथा उपभोग करना है उनकी आर्थिक क्रियाओं का आधार और लक्ष्य होता है । और यह क्रियाएं एक आदिम समाज के संपूर्ण पर्यावरण, विशेषकर भौगोलिक पर्यावरण के द्वारा बहुत प्रभावित होती है । इसलिए जीवन धारण या जीवित रहने के साधनों को जुटाने के लिए हातिम लोगों को कठोर परिश्रम करना पड़ता है । आर्थिक जीवन अत्यधिक संघर्षमय तथा कठिन होने के कारण आर्थिक क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की भांति प्रगति की गति बहुत ही धीमी है । संक्षेप में आदिकालीन अर्थव्यवस्था एक ओर प्रकृति की शक्तियों और प्राकृतिक साधनों, फल मूल, पशु पक्षी, पहाड़ और घाटी, नदियों और जंगलों आदि पर निर्भर है और दूसरी ओर परिवार से घनिष्ठ रूप से संयुक्त है । आदिकालीन मानव प्रकृति द्वारा प्रदत्त सामग्री से अपने उपकरणों का निर्माण करता है और उनकी सहायता से परिवार के सब लोग उदर पूर्ति के लिए कठोर परिश्रम करते हैं । इस पर
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जादू क्या है और जादू के प्रकारों का उल्लेख कीजिए

जादू क्या है और जादू के प्रकारों का उल्लेख कीजिए  फ्रेजर ने जादू के संबंध में विवेचना करते हुए लिखा है कि जादू में दो आधारभूत सिद्धांतों का समावेश है - प्रथम तो यह कि समान कारण से समान कार्य उत्पन्न होता है, अर्थात एक कार्य अपने कारण के सदृश्य होता है । और दूसरा यह कि जो वस्तु एक बार किसी के संपर्क में आ जाती है वह सदैव उसके संपर्क में रहकर उस समय भी एक दूसरे पर क्रिया व प्रतिक्रिया करती रहती है जबकि उनका शारीरिक संबंध टूट गया हो अर्थात वे एक दूसरे से दूर या पृथक हो । फ्रेजर ने अपने इन दो सिद्धांतों को नियमों का रूप दिया है और इन्हीं के आधार पर जादू के दो भेदों का उल्लेख किया है । प्रथम सिद्धांत को आपने समानता का नियम कहकर पुकारा है । समानता के नियम पर जो जादू आधारित है उसे होम्योपैथिक ( Homoeopathic ) या अनुकरणात्मक ( Imitative ) जादू कहते हैं । दूसरे सिद्धांत को फ्रेजर ने संपर्क या संसर्ग का नियम कह कर पुकारा है । संसर्ग के नियम पर जो जादू आधारित है उसे संक्रामक जादू ( Contagious magic ) कहते हैं । इस प्रकार फ्रेजर के अनुसार जादू के दो प्रकार हैं - 1. - अनुकरणात्मक जादू और। 2. - सं

जादू क्या है ? और जादुई क्रियाओं के तत्वों का उल्लेख कीजिए

जादू क्या है ? और जादुई क्रियाओं के तत्वों का उल्लेख कीजिए जैसा कि हम पहले ही लिख चुके हैं, मनुष्य ने अतिमानवीय जगत पर या अलौकिक शक्ति के नियंत्रण करने हेतु दो उपायों को अपनाया - प्रथम तरीका उस शक्ति की विनती या आराधना करके उसे प्रसन्न करना और फिर उस प्रसन्नता से लाभ उठाना या शक्ति के द्वारा की जाने वाली हानियों से बचना है । इसी से धर्म का विकास हुआ । और दूसरा तरीका और शक्ति को दबाकर अपने अधिकार में करके उस शक्ति को अपने उद्देश्य पूर्ति के हेतु प्रयोग करना है । यहीं जादू हैं । डा. दुबे के अनुसार , " जादू उस व्यक्ति विशेष का नाम है, जिससे अति मानवीय जगत पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सके और उसकी क्रियाओं को अपनी इच्छा अनुसार भले या बुरे, शुभ अशुभ उपयोग में लाया जा सके ।"    उपरोक्त परिभाषा में डा. दुबे ने " जादू की तीन विशेषताओं का उल्लेख किया है । प्रथम तो यह है कि जादू का संबंध अति मानवीय जगत से होता है । दूसरा यह कि जादू एक शक्ति है । जादूगर इस शक्ति को अपने अधिकार में अति मानवीय जगत पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से रखना चाहता है और तीसरी बात यह है कि इस शक्ति का प्रयोग

धर्म की उत्पत्ति के सिद्धांतों और विशेषताओं को विस्तारपूर्वक लिखिए ?

धर्म की उत्पत्ति के सिद्धांतों और विशेषताओं को विस्तारपूर्वक लिखिए ? मानव समाज में धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई और उसका प्रारंभिक रूप क्या था इस संबंध में मानव शास्त्रियों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं । विकासवादी लेखकों के अनुसार आधुनिक सभ्य समाज जनजातीय या आदिकालीन समाजों का ही क्रमिक विकसित रूप है, इस कारण धर्म की उत्पत्ति भी सर्वप्रथम जनजातीय समाजों में ही हुई होगी । अतः अनेक मानव शास्त्री जनजातियों के जीवन का विश्लेषण करके धर्म की उत्पत्ति और उसके प्रारंभिक रूप को ढूंढने का प्रयत्न करते हैं । यहां हम धर्म की उत्पत्ति के कुछ प्रमुख सिद्धांतों की विवेचना करेंगे । आ. - आत्मावाद या जीववाद :- श्री एडवर्ड टॉयलर इस सिद्धांत के प्रवर्तक हैं । आपके अनुसार आत्मा की धारणा ही " आदिम मनुष्यों से लेकर सभ्य मनुष्यों तक के धर्म के दर्शन का आधार है । यह आत्मावाद दो वृहत विश्वासों में विभाजित है - प्रथम तो यह कि मनुष्य की आत्मा का अस्तित्व मृत्यु या शरीर के नष्ट होने के पश्चात भी बना रहता है और दूसरा यह है कि मनुष्यों की आत्माओं के अतिरिक्त शक्तिशाली देवताओं की अन्य आत्माएं भी होती है । श्री

धर्म का अर्थ एवं धर्म की परिभाषा बताइए

धर्म का अर्थ एवं धर्म की परिभाषा बताइए ? मानव संसार की समस्त घटनाओं या सृष्टि के रहस्यों को नहीं समझ पाता है । अपने जीवन के रोज के अनुभवों से वह यह सीखता है कि अनेक ऐसी घटनाएं है जिन पर उसका कोई वश नहीं है । स्वभावतः ही उसमें यह धारणा पनपती है कि कोई एक ऐसी भी शक्ति है जो कि दिखाई नहीं देती, परंतु वह किसी भी मनुष्य से कहीं अधिक शक्तिशाली है । यह शक्ति अलौकिक शक्ति है ; इसे डरा धमका कर या ऐसे अन्य किसी उपाय से अपने वश में नहीं किया जा सकता है । इस शक्ति को अपने पक्ष में लाने का एकमात्र उपाय इस के सम्मुख सिर झुका कर पूजा, प्रार्थना या आराधना करना है । इस अलौकिक शक्ति से संबंधित विश्वासों और क्रियाओं को ही धर्म कहते हैं ।     इसके विपरीत कुछ ऐसी शक्तियां भी है जो कि मनुष्य की अपनी शक्ति से अधिक शक्तिशाली है ; परंतु इन पर कुछ निश्चित तरीकों से अधिकार किया जा सकता है । इसीलिए मानव इस शक्ति के सामने झुकने के बजाय इस पर अपना अधिकार स्थापित करके उससे अपने उद्देश्यों की पूर्ति करवाता है । इसी को जादू कहते हैं । उपरोक्त दो प्रकार की शक्तियों को और अच्छी तरह समझने के लिए हम अब धर्म और जादू की अलग

अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार पत्र और अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थायें कौन कौन सी है ?

अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार पत्र और अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थायें कौन कौन सी है ? संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय ही अंतर्राष्ट्रीय बिल ऑफ ह्यूमन राइट्स की बात जोर पकड़े हुई थी । सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में एकत्रित कई प्रतिनिधियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अधिकार पत्र के निर्माण की बात की गई, तथापि इसे नहीं किया जा सका । फिर भी सदस्यों द्वारा अनुभव किया गया कि इस दिशा में कदम उठाया जाना चाहिए । संयुक्त राष्ट्र के समक्ष अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्य मानव अधिकारों तथा मूल स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान के सिद्धांत का कार्यान्वयन था । अतः इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय अधिकार पत्र को तैयार करने का निश्चय किया गया । तीस वर्षों के अथक प्रयास के परिणाम स्वरूप वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार पत्र अस्तित्व में आ गया । मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 सिविल तथा राजनैतिक अधिकार प्रसंविदा 1960, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकार प्रसंविदा,1966 और वैकल्पिक प्रोटोकॉल मिलकर अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार पत्र कहलाते हैं ।  अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थायें : - 1. - मानव अधि

मानव अधिकारों का अन्तर्राष्ट्रीयकारण तथा मानव अधिकारों से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र निकाय कब हुआ

मानव अधिकारों का अन्तर्राष्ट्रीयकारण तथा मानव अधिकारों से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र निकाय कब हुआ क. - साधारण दिग्दर्शन : - मानव अधिकारों के संरक्षण का मूल भारत में वैदिक काल के धर्म में पाया जाता है ' सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ' गीता में भी मानवाधिकार का उल्लेख है - कर्मण्येवाधिकारस्ते ' । प्लेटो और अन्य ग्रीक तथा रोमन दार्शनिकों के ग्रंथों में मानवाधिकारों के संरक्षण का आभास पाया जाता है यद्यपि कि उनका आधार धर्म ही था । ग्रीस नगर राज्य ने समान वाक स्वातंत्र्य, विधि के समक्ष समता, मत देने का अधिकार, लोक पद के लिए निर्वाचित होने का अधिकार, और न्याय पाने का अधिकार अपने नागरिकों को दे रखा था । रोमन विधि ने भी रोमन वालों को उसी प्रकार के अधिकार दिए थे ।         इंग्लैण्ड में मानव अधिकारों के निर्माण के लिए प्रयास मैग्नाकार्टा, 1215 और बिल आफ राइट्स,1688 में किया गया है । परन्तु इन लिखितो को लिखित संविधान की सर्वोच्चता जिसके द्वारा पार्लियामेण्ट के अधिनियम को उलट दिया जाए, नहीं मिल पाई है ।       उच्चतर विधि को लिखित संविधान में सम्मिलित करने का प्रयास किया गया