Skip to main content

जादू क्या है और जादू के प्रकारों का उल्लेख कीजिए

जादू क्या है और जादू के प्रकारों का उल्लेख कीजिए 

फ्रेजर ने जादू के संबंध में विवेचना करते हुए लिखा है कि जादू में दो आधारभूत सिद्धांतों का समावेश है - प्रथम तो यह कि समान कारण से समान कार्य उत्पन्न होता है, अर्थात एक कार्य अपने कारण के सदृश्य होता है । और दूसरा यह कि जो वस्तु एक बार किसी के संपर्क में आ जाती है वह सदैव उसके संपर्क में रहकर उस समय भी एक दूसरे पर क्रिया व प्रतिक्रिया करती रहती है जबकि उनका शारीरिक संबंध टूट गया हो अर्थात वे एक दूसरे से दूर या पृथक हो । फ्रेजर ने अपने इन दो सिद्धांतों को नियमों का रूप दिया है और इन्हीं के आधार पर जादू के दो भेदों का उल्लेख किया है । प्रथम सिद्धांत को आपने समानता का नियम कहकर पुकारा है । समानता के नियम पर जो जादू आधारित है उसे होम्योपैथिक ( Homoeopathic ) या अनुकरणात्मक ( Imitative ) जादू कहते हैं । दूसरे सिद्धांत को फ्रेजर ने संपर्क या संसर्ग का नियम कह कर पुकारा है । संसर्ग के नियम पर जो जादू आधारित है उसे संक्रामक जादू ( Contagious magic ) कहते हैं ।
इस प्रकार फ्रेजर के अनुसार जादू के दो प्रकार हैं -

1. - अनुकरणात्मक जादू और।
2. - संक्रामक जादू ।

अनुकरणात्मक जादू इस नियम पर आधारित है कि जब एक प्रकार की क्रिया की जाती है तो परिणाम भी उसी प्रकार का होता है अर्थात समान कारण से समान कार्य उत्पन्न होते हैं । उदाहरणार्थः, आस्ट्रिया मैं यह विश्वास किया जाता है कि यदि प्रसवा माँ को किसी वृक्ष का प्रथम फल खाने को दिया जाए तो उस वृक्ष पर अगले वर्ष काफी फल आएंगे । गेलेलारी समाज में जब कभी युवक प्रेमी अपनी प्रेयसी से मिलने रात्रि में उसके घर जाता है तो वह शमशान से कुछ मिट्टी अपने साथ ले जाता है जिसे वह अपनी प्रेयसी के घर की छत पर डाल देता हैं । इस जादू का यह उद्देश्य होता है कि गुप्त भेंट के समय प्रेयसी के माता पिता गहरी नींद में सोते रहे और उन प्रेमी प्रेमिका के मिलन में कोई बाधा ना पहुंचे ।
      इसके विपरीत संक्रामक जादू इस नियम पर आधारित है कि जो वस्तु एक बार किसी के संपर्क में आ जाती है, वह हमेशा संपर्क में रहती है । उदाहरणार्थः , एक व्यक्ति के बाल या नाखून उसके शरीर के संपर्क में है । अगर उन बालों या नाखूनों को काट डाला जाए तो बाहरी तौर पर उनका संपर्क उस व्यक्ति के शरीर से समाप्त हो जाता है । परंतु संक्रामक जादू के नियम के अनुसार यह विश्वास किया जाता है कि बाहरी तौर पर उन बालों या नाखूनों का संपर्क व्यक्ति के शरीर से समाप्त हो जाने पर भी उन दोनों का संपर्क बना रहता है । इसीलिए यदि किसी व्यक्ति के कटे हुए बालों या नाखूनों को कोई भी नुकसान पहुंचाया जाए तो उस व्यक्ति को भी कष्ट पहुंचेगा ।
              इन दोनों प्रकार के जादुओं को फ्रेजर ने सहानुभूत जादू ( sympathetic magic ) कहा है , क्योंकि इन दोनों प्रकार के जादुओं में कारण और कार्य का आंतरिक संबंध होता है । यह संबंध संपर्क के द्वारा या समानता के कारण उत्पन्न होता है । इसी संबंध के कारण जादुई क्रिया के प्रति उसके लक्ष्य की सहानुभूति होती है । इसीलिए इन्हें सहानुभूत जादू कहा गया है ।

मैलिनोवस्की ने एक दूसरे तरीके से जादू का वर्गीकरण किया है । आपके अनुसार समस्त प्रकार के जादू को दो प्रमुख श्रेणियों में रखा जा सकता है -

1. - सफेद जादू और
2. - काला जादू


सफेद जादू के दो भेद है । पहले भेद में वे जादू आते हैं जिन्हें की जीवन की अनिश्चितता और खतरों से मनुष्य की रक्षा करने हेतु काम में लाया जाता है । उदाहरणार्थः, ट्रोब्रियांड द्वीप समूह के निवासी गहरे समुद्र में मछली का शिकार करने जाते हैं तब वहां उन्हें प्रायः नाना प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है । इन खतरों से बचने के लिए वे जादू की सहायता लेते हैं । सफेद जादू के दूसरे भेद में विचित्र घटनाएं आती हैं । जब कोई व्यक्ति जादू की शक्ति से कोई ऐसा चमत्कार दिखाता है जिसकी कि कोई भी आशा नहीं कर सकता, तो उसे इस श्रेणी के अंतर्गत लाते हैं । इन दोनों प्रकार के जादुओं को सफेद जादू इसलिए कहा जाता है कि इनका उद्देश्य सामाजिक दृष्टिकोण से कल्याणकारी होता है । इस कारण ऐसे जादू को समाज की स्वीकृति प्राप्त होती है ।
    इसके विपरीत काला जादू का उद्देश्य दूसरों को हानि पहुंचाना होता है । इसीलिए इन्हें काला जादू कहा जाता है और इन्हें समाज की स्वीकृति प्राप्त नहीं होती है । इन जादुओं को जादूगर अपने शत्रु के प्रति प्रयोग करता है जिससे कि उसे जान माल की हानि हो या वह बीमार पड़ जाए या उसे अन्य प्रकार से कष्ट पहुंचे । मैलिनोवस्की काले जादू के अंतर्गत टोना तथा भूत-प्रेतों की सिद्धि को भी सम्मिलित करते हैं ।

डा. दुबे ने जादुई क्रिया के उद्देश्य के आधार पर जादू को तीन भागों में बांटा है -

1. - संवर्द्धक जादू :- इसके अंतर्गत आखेट का जादू, उर्वरता का जादू, वर्षा के लिए जादू, मछली पकड़ने का जादू, नोका चलाने का जादू, वाणिज्य-लाभ का जादू और प्रणय के लिए जादू आते हैं ।

2. - संरक्षक जादू :- इसके अंतर्गत संपत्ति रक्षा के लिए जादू, दिए हुए ऋण को पुनः प्राप्त करने के लिए जादू, दुर्भाग्य से बचाव के लिए जादू, रोग उपचार के लिए जादू, यात्रा में सुरक्षा के लिए जादू, विनाशक जादू का प्रभाव रोकने के लिए अवरोधक जादू आदि सम्मिलित है ।

3. - विनाशक जादू :- इसके अंतर्गत तूफान लाने के लिए जादू, संपत्ति नष्ट करने के लिए जादू, बीमार करने के लिए जादू, मृत्यु बुलाने के लिए जादू आदि आते हैं ।

जादू और विज्ञान :-

फ्रेजर ने अपनी जादू की परिभाषा में लिखा है कि जादू एक आभासी विज्ञान है । एक अन्य स्थान पर आपने जादू को विज्ञान की "अवैध बहन" कहा है । इस अर्थ में, फ्रेजर के अनुसार, जादू आदिमानव का विज्ञान है । स्वभावतः ही इन दोनों में कई समानताएं हैं -

1.- जादू और विज्ञान दोनों ही यह स्वीकार करते हैं कि घटनाएं कुछ प्राकृतिक नियमों के कारण ही घटित होती है और इन नियमों में एक निश्चित व्यवस्था और नियम बद्धता होती है ।

2. - " सहानुभुत जादू यह विश्वास करता है, एक घटना का अनिवार्यता अन्य घटनाओं पर प्रभाव पड़ता है, क्रिया की प्रतिक्रिया होती है ।" विज्ञान में भी यह विशेषता पाई जाती है ।

3. - वैज्ञानिक और जादूगर दोनों ही यह मानते हैं कि प्राकृतिक घटनाओं के कार्य कारण संबंधों को समझकर कारणों को उत्पन्न कर कार्य को भी पैदा किया जा सकता है । दूसरे शब्दों में दोनों ही यह विश्वास करते हैं कि यदि कुछ कार्यक्रमों को नियमानुसार और सूक्ष्म रूप से काम में लाया जाए तो इच्छित परिणाम अवश्य निकलेंगे ।

4. - जादू और विज्ञान में एक और समानता यह है कि दोनों में ही कुछ ना कुछ सीमा तक भविष्यवाणी करने की क्षमता होती है ।

मैलिनोवस्की ने भी जादू और विज्ञान में कई समानताओं का उल्लेख किया है । पहली समानता तो यह है कि दोनों का ही मनुष्य की प्रवृत्तियों और आवश्यकताओं से संबंधित कोई न कोई निश्चित उद्देश्य होता ही है । दूसरी समानता यह है कि जादू और विज्ञान दोनों ही कुछ निश्चित नियमों पर आधारित है । मनमाने ढंग से ना तो जादू में कार्य होता है और ना ही विज्ञान में । तीसरी समानता यह है जादू और विज्ञान दोनों में एक विशेष प्रविधि का प्रयोग किया जाता है ।
    उक्त समानताओं के होते हुए भी जादू और विज्ञान को एक समझने की गलती नहीं करनी चाहिए क्योंकि बाहरी तौर पर यह समानताएं प्रकट होने पर भी वे वास्तविक नहीं है । वास्तव में जादू तथा विज्ञान दो अलग-अलग वस्तुएं हैं । इन दोनों में कुछ आधारभूत भिन्नताएं हैं जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख हैं -

1. - जादू और विज्ञान में सर्व प्रमुख भिन्नता यह है कि जादू का संबंध अधिप्राकृतिक जगत से है, जबकि विज्ञान केवल प्राकृतिक जगह से संबंध रखता है । अधिप्राकृतिक जगत विज्ञान के क्षेत्र के अंतर्गत कदापि नहीं आता है जबकि जादू की समस्त रुचि इसी में होती है ।

2. - Ruth Benedict के अनुसार विज्ञान के परिणामों की परीक्षा और पुनर्परीक्षा की जा सकती है क्योंकि इसमें वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग होता है और इन पद्धतियों का एक वास्तविक आधार भी होता है । परंतु चूँकि जादू का संपर्क अधिप्राकृतिक जगत से होता है, इस कारण जादू की विधियां मानव मस्तिष्क की कल्पना मात्र होती है ।

3. - विज्ञान की असफलता अपर्याप्त ज्ञान के कारण होती है और इसका संशोधन शोध के द्वारा हो सकता है । परंतु जादू में असफल होने का कारण यह सोचा जाता है कि जादूगर ने मंत्रों के शब्द क्रम अथवा उसके साथ की जाने वाली क्रियाओं में कोई त्रुटि की अथवा उसने इस विशिष्ट स्थिति के अनिवार्य निषेधों का उल्लंघन किया ।

4. गोल्डनवीजर के अनुसार एक जादूगर जिन उपकरणों का प्रयोग करता है उनमें रूढ़िवादिता या परंपरा की नीव रहती हैं और इसी कारण वे अनुभवों से परे होते हैं । परंतु वैज्ञानिक के उपकरण परिवर्तनशील होते हैं और अनुभव के आधार पर उन्हें किसी भी समय बदला जा सकता है ।

5. - मैलिनोवस्की के अनुसार विज्ञान यहां तक कि आदिमानव का विज्ञान भी निरीक्षण के आधार पर तर्क द्वारा निर्धारित रोज के जीवन के उन स्वाभाविक तथा सार्वभौम अनुभवों पर आधारित है जो कि अपनी जीविका और सुरक्षा के लिए प्रकृति के साथ संघर्ष करने के दौरान मनुष्य प्राप्त करता है । इसके विपरीत जादू मनुष्य की उद्वेगात्मक अवस्थाओं के विशिष्ट अनुभवों पर आधारित होता हैं । जिसमें कि मनुष्य प्रकृति को नहीं बल्कि अपने को निरीक्षण करता है, जिसमें कि सत्य का निर्णय तर्क द्वारा नहीं बल्कि मानव शरीर पर उद्वेगों की क्रियाशीलता द्वारा होता है ।

6. - विज्ञान इस विश्वास पर आधारित है कि अनुभव, प्रयत्न तथा तर्क सही है, पर जादू इस विश्वास पर आधारित है कि आशा व्यर्थ नहीं हो सकती, ना ही इच्छा कभी धोखा दे सकती है ।

जादू और धर्म :-

समानताएं :- आदिम संस्कृति में धर्म और जादू एक दूसरे से इतना अधिक घुले मिले हुए हैं कि इन्हें अलग करना एक प्रकार से असंभव ही है ।

1. - गोल्डनवीजर ने लिखा है कि जादू तथा धर्म में जो सामान्य तत्व ( common element ) है वह यह कि दोनों का ही संबंध अधिप्राकृतिक शक्ति से है ।

2. - साथ ही, इन दोनों में ज्ञान परंपरागत होते हैं ।

3. - धार्मिक तथा जादुई क्रियाओं में उद्वेगों की उपस्थिति भी होती है जो कि इन दोनों को और भी घनिष्ठ रूप से संबंधित करती है । मैलिनोवस्की ने लिखा है कि धर्म तथा जादू दोनों ही उद्वेगात्मक तनाव की परिस्थितियों में उत्पन्न होते हैं, जैसे जीवन के संकट, असफल प्रेम और घृणा की परिस्थितियां ।

4. - इन दोनों में एक दूसरी समानता यह है कि दोनों उन संकटमय परिस्थितियों से बचने के साधन के रूप में प्रयोग किए जाते हैं जिनसे की अन्य किसी साधन के माध्यम से पार नहीं पाया जा सकता है । लोग यह विश्वास करते हैं कि धर्म या जादू में चमत्कार दिखाने की शक्ति है क्योंकि यह अधिप्राकृतिक शक्ति पर आधारित है । इसलिए जिन उद्देश्यों की पूर्ति अन्य उपायों से संभव नहीं, वह धर्म तथा जादू की सहायता से सहज ही संभव हो सकती है ।

5. - जादू तथा धर्म संबंधी क्रियाओं को करने के लिए कुछ परंपरागत विधियां होती हैं । जिनका की अनुसरण करना आवश्यक समझा जाता है । अगर जादू या धर्म संबंधी क्रियाओं में अभीष्ट की सिद्धि नहीं होती है तो यह मान लिया जाता है कि उन परंपरागत विधियों का ठीक-ठीक अनुसरण नहीं किया गया है ।

6. - धर्म तथा जादू की क्रियाओं को करने के लिए नित्यप्रति से भिन्न प्रकार का जीवन बिताना पड़ता है । दूसरे शब्दों में इन दोनों में ही कुछ अनिवार्य निषेधों का पालन करना पड़ता है वरना यह सोचा जाता है कि इच्छित उद्देश्य की पूर्ति असंभव है ।

भेद :- उपरोक्त समानता ओं के होते हुए भी धर्म और जादू में निम्नलिखित भेद स्पष्ट है -


1. - धार्मिक सामाजिक कृत्य है, जबकि जादू एक वैयक्तिक कृत्य हैं । धर्म और जादू के इस भेद पर दुर्खीम ने अत्यधिक बल दिया है । आपने लिखा है कि जादू मैं भी धर्म की भांति अनेक विश्वास, संस्कार कृत्य आदि होते हैं । फिर भी मूल रूप में जादू वैयक्तिक होता हैं । जादू का संबंध व्यक्ति विशेष से होता है । इसी कारण जादू उस पर विश्वास करने वालों को एक समूह में संयुक्त नहीं कर पाता है । इसके विपरीत धर्म का संबंध किसी व्यक्ति विशेष से नहीं होता है । यह तो एक सामाजिक तथ्य है । इसी कारण धर्म उस पर विश्वास करने वालों को एक नैतिक समुदाय में संयुक्त करता है ।

2. - जादू और धर्म दोनों में ही अधिप्राकृतिक या अलौकिक शक्ति में विश्वास किया जाता है । परंतु धर्म में उस शक्ति की विनती, पूजा, प्रार्थना या आराधना करके उसे प्रसन्न करने और फिर उस प्रसन्नता से लाभ उठाने या उस शक्ति के द्वारा की जाने वाली हानियों से बचने का प्रयत्न किया जाता है । इसके विपरीत जादू में उस शक्ति को दबाकर अपने अधिकार में करके उस शक्ति को अपने उद्देश्य की पूर्ति में प्रयोग किया जाता है । इस भेद को गोल्डनवीजर ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है - धर्म में आत्मसमर्पण या अधीनता निहित है, जबकि जादू में दृढ़ आत्म संकल्प तथा नियंत्रण ।

3. - इन दोनों में एक अंतर यह है कि धर्म में अलौकिक शक्ति के प्रति धार्मिक व्यक्ति के मन में भय, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की भावना होती है । परंतु जादू में जादूगर प्राकृतिक शक्तियों को श्रद्धा और सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता है क्योंकि वह उनका भेद जानता है और उन पर काबू पा सकता है ।

4. - मैलिनोवस्की ने लिखा है कि जादू सबके लिए नहीं होता है अर्थात जादुई क्रियाएं केवल वे लोग ही कर सकते हैं जो कि इन क्रियाओं में निपुण है । इन क्रियाओं को ये निपुण व्यक्ति अपने शिष्यों को ही सिखाते हैं । इसके विपरीत धार्मिक क्रियाएं सबके द्वारा और सबके लिए की जाती है ।

5. -
धर्म समूह के कल्याण की चिंता करता है, और जादू बहुधा व्यक्ति का कल्याण सोचता है ।

6. -
धर्म में प्रार्थना सफल और असफल दोनों ही हो सकती है परंतु जादुई क्रिया इस विश्वास के साथ की जाती है कि उचित उद्देश्य की पूर्ति या अभीष्ट की सिद्धि अवश्य ही होगी ।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास

समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास बाटोमोर के अनुसार समाजशास्त्र एक आधुनिक विज्ञान है जो एक शताब्दी से अधिक पुराना नहीं है । वास्तव में अन्य सामाजिक विज्ञानों की तुलना में समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है । एक विशिष्ट एवं पृथक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की उत्पत्ति का श्रेय फ्रांस के दार्शनिक आगस्त काम्टे को है जिन्होंने सन 1838 में समाज के इस नवीन विज्ञान को समाजशास्त्र नाम दिया । तब से समाजशास्त्र का निरंतर विकास होता जा रहा है । लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि क्या आगस्त काम्टे के पहले समाज का व्यवस्थित अध्ययन किसी के द्वारा भी नहीं किया गया । इस प्रश्न के उत्तर के रूप में यह कहा जा सकता है कि आगस्त काम्टे के पूर्व भी अनेक विद्वानों ने समाज का व्यवस्थित अध्ययन करने का प्रयत्न किया लेकिन एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र अस्तित्व में नहीं आ सका । समाज के अध्ययन की परंपरा उतनी ही प्राचीन है जितना मानव का सामाजिक जीवन । मनुष्य में प्रारंभ से ही अपने चारों ओर के पर्यावरण को समझने की जिज्ञासा रही है । उसे समय-समय पर विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ा है । इन समस

समाज की प्रमुख विशेषताएं बताइए

समाज की प्रमुख विशेषताएं बताइए समाज और उसकी प्रकृति को स्पष्टतः समझने के लिए यहां हम उसकी कुछ प्रमुख विशेषताओं पर विचार करेंगे जो सभी समाजों में सार्वभौमिक रूप से पाई जाती है । ये विशेषताएं निम्नलिखित हैं : 1. - पारस्परिक जागरूकता - पारस्परिक जागरूकता के अभाव में ना तो सामाजिक संबंध बन सकते हैं और ना ही समाज । जब तक लोग एक दूसरे को उपस्थिति से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिचित नहीं होंगे तब तक उनमें जागरूकता नहीं पाई जा सकती और अंतः क्रिया भी नहीं हो सकती । इस जागरूकता के अभाव में वे ना तो एक दूसरे से प्रभावित होंगे और ना ही प्रभावित करेंगे अर्थात उनमें अंतः क्रिया नहीं होगी । अतः स्पष्ट है कि सामाजिक संबंधों के लिए पारस्परिक जागरूकता का होना आवश्यक है और इस जागरूकता के आधार पर निर्मित होने वाले सामाजिक संबंधों की जटिल व्यवस्था को ही समाज कहा गया है । 2. - समाज अमूर्त है - समाज व्यक्तियों का समूह ना होकर और मैं पनपने वाले सामाजिक संबंधों का जाल है । सामाजिक संबंध अमूर्त है । इन्हें ना तो देखा और ना ही छुआ जा सकता है । इन्हें तो केवल महसूस किया जा सकता है । अतः सामाजिक संबंधों

सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए

सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए परिवर्तन प्रकृति का एक शाश्वत एवं जटिल नियम है। मानव समाज भी उसी प्रकृति का अंश होने के कारण परिवर्तनशील है। समाज की इस परिवर्तनशील प्रकृति को स्वीकार करते हुए मैकाइवर लिखते हैं " समाज परिवर्तनशील एवं गत्यात्मक है । " बहुत समय पूर्व ग्रीक विद्वान हेरेक्लिटिस ने भी कहा था सभी वस्तुएं परिवर्तन के बहाव में हैं। उसके बाद से इस बात पर बहुत विचार किया जाता रहा कि मानव की क्रियाएं क्यों और कैसे परिवर्तित होती हैं? समाज के वे क्या विशिष्ट स्वरूप हैं जो व्यवहार में परिवर्तन को प्रेरित करते हैं? समाज में अविष्कारों के द्वारा परिवर्तन कैसे लाया जाता है एवं अविष्कार करने वालों की शारीरिक विशेषताएं क्या होती है? परिवर्तन को शीघ्र ग्रहण करने एवं ग्रहण न करने वालों की शारीरिक रचना में क्या भिन्नता होती है? क्या परिवर्तन किसी निश्चित दिशा से गुजरता है? यह दिशा रेखीय हैं या चक्रीय? परिवर्तन के संदर्भ में इस प्रकार के अनेक प्रश्न उठाए गए तथा उनका उत्तर देने का प्रयास भी किया गया। मानव परिवर्तन को समझने के प्रति जिज्ञासा पैदा हुई। उसने परिवर्तन के