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प्रकार्य की अवधारणा एवं विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए

प्रकार्य की अवधारणा एवं विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए

सामान्यतः प्रकार्य (Function) का अर्थ हम समाज या समूह द्वारा किए जाने वाले कार्य या उसके योगदान से लगाते हैं । किंतु समाज में प्रकार्य का अर्थ सम्पूर्ण सामाजिक संरचना को व्यवस्थित बनाए रखने एवं अनुकूलन करने में उसकी इकाइयों द्वारा जो सकारात्मक योगदान दिया जाता है, से लगाया जाता है । प्रकार्य की अवधारणा को हम शरीर के उदाहरण से स्पष्टतः समझ सकते हैं । शरीर की संरचना का निर्माण विभिन्न इकाइयों या अंगों जैसे हाथ, पाँव, नाक,कान,पेट,हृदय,फेफड़े आदि से मिलकर होता है । शरीर के वे विभिन्न अंग शरीर व्यवस्था को बनाए रखने और अनुकूलन में अपना जो योगदान देते हैं,जो कार्य करते हैं, उसे ही इन इकाइयों का प्रकार्य कहा जायेगा । 

परिभाषा (Definition) - प्रकार्य को इसी अर्थ में परिभाषित करते हुए रैडक्लिफ ब्राउन लिखते हैं, " किसी सामाजिक इकाई का प्रकार्य उस इकाई का वह योगदान है जो वह सामाजिक व्यवस्था को क्रियाशीलता के रूप में सामाजिक जीवन को देती है । वे पुनः लिखते हैं, " प्रकार्य एक आंशिक क्रिया द्वारा उसे संपूर्ण क्रिया को दिया जाने वाला योगदान है जिसका कि वह एक भाग है । 
जॉनसन के अनुसार - किसी भी आंशिक संरचना जैसे एक उप समूह, एक भूमिका, सामाजिक क्रिया अथवा एक सांस्कृतिक मूल्य का योगदान जो वह एक सामाजिक व्यवस्था या उप व्यवस्था की एक या अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु करें, प्रकार्य कहा जाता है । इस परिभाषा से स्पष्ट है कि प्रकार्य सामाजिक संरचना की इकाई का वह योगदान है जो सामाजिक व्यवस्था की आवश्यकता की पूर्ति के लिए दिया जाता है । 

क्लूख़ौन लिखते हैं, " संस्कृति का कोई भी भाग तभी प्रकार्यात्मक होता है जब वह इस प्रकार की अनुक्रिया ( Response) करें कि उसे सामाजिक रुप में ग्रहण किया जा सके तथा व्यक्ति समाज से अपना अनुकूलन करने के लिए उसे सुविधापूर्ण समझे। इस परिभाषा से स्पष्ट है कि प्रकार्य इकाई का वह कार्य है जो व्यक्ति के सामाजिक अनुकूलन में सहयोग दें और इसे समाज के अन्य व्यक्ति भी ग्रहण कर सकें । 

मर्टन के अनुसार - प्रकार्य वे अवलोकित परिणाम है जो कि सामाजिक व्यवस्था के अनुकूलन या सामंजस्य को बढ़ाते हैं । 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रकार्य समाज व संस्कृति की इकाई का वह योगदान है जो इनकी निरंतरता और व्यवस्था बनाए रखने में सहायक होता है । प्रकार्य द्वारा सामाजिक इकाई समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने तथा उससे सामंजस्य एवं अनुकूलन करने में सहायक होती है । 

प्रकार्य की विशेषताएँ : -

विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर प्रकार्य की निम्नांकित विशेषताएं प्रकट होती है :- 

1. - प्रकार्य का सम्बन्ध सामाजिक संरचना का निर्माण करने वाली इकाइयों से है । 
2. - सामाजिक संरचना की इकाइयों द्वारा किए जाने वाले सभी कार्यों को प्रकार्य नहीं कहते वरन केवल उन्हीं कार्यों को जो समाज द्वारा अपेक्षित होते हैं । उदाहरण के लिए हम शिक्षण संस्थाओं से अपेक्षा करते हैं कि वे शिक्षा प्रदान करें तथा समाजीकरण में योगदान दे । इस अपेक्षा के अनुसार किया गया कार्य ही शिक्षण संस्था का प्रकार्य कहलायेगा । 
3. - प्रत्येक प्रकार्य का कोई ना कोई उद्देश्य आवश्यक होता है ।पर प्रकार्य का प्रमुख उद्देश्य सामाजिक एवं मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना है । 
4. - प्रकार्य सामाजिक संगठन एवं व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक होते हैं । ये समाज में अनुकूलन और सामंजस्य में योग देते हैं । 
5. - प्रकार्य इकाइयों द्वारा किए जाने वाले उन्हें कार्यों को कहेंगे जो समाज द्वारा स्वीकृत और मान्य हो । 
6. - प्रकार्य इस बात को स्पष्ट करते हैं कि समाज के सभी कार्यों का समाज की विभिन्न इकाइयों में विभाजन कर दिया जाता है । ये सभी इकाइयां अपना अपना कार्य करती हुई परस्पर सहयोग करती हैं एवं संबंधित रहती हैं जिससे समाज में एकता व संगठन बना रहता है । प्रकार्यों से इकाइयों में परस्पर प्रकार्यात्मक संबंध एवं प्रकार्यात्मक एकता पैदा होती है । 
7. - कुछ विद्वान यह मानते हैं कि सामाजिक संरचना की इकाइयों के प्रकार्यों पर ही समाज का अस्तित्व टिका हुआ है । यदि ये इकाया अपना योगदान देना बंद कर दे तो समाज समाज नष्ट हो जाएगा । उदाहरण के लिए शरीर के विभिन्न अंग अपना अपना कार्य बंद कर दे तो शरीर का बने रहना संभव नहीं होगा । 
8. - प्रकार्य का सम्बन्ध इकाइयों द्वारा समाज को दिए जाने वाले सकारात्मक योगदान से है । सकारात्मक योगदान का तात्पर्य यह है कि इकाइयों के कार्यों द्वारा समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है । इन प्रकार्यों से समाज में व्यवस्था और संगठन बना रहता है तथा ये प्रकार्य सामाजिक हित एवं प्रगति में सहायक होते हैं । 
9. - प्रकार्य कभी-कभी तो स्पष्ट और प्रकट होते हैं किंतु कभी-कभी अप्रकट भी । जब समाज द्वारा मान्य और इच्छित उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है तो उन्हें प्रकार्य कहते हैं । किंतु कभी-कभी ऐसे परिणाम भी अस्तित्व में आते हैं जिनके बारे में कभी सोचा ही नहीं गया था, इन्हें अप्रकट प्रकार्य कहते हैं । 
10. - सामाजिक संरचना की इकाइयों द्वारा किए जाने वाले सभी प्रकार्य समाज के लिए पूरी तरह लाभदायक नहीं होते । कुछ पूर्णतः लाभदायक होते हैं कुछ आंशिक तो कुछ कभी-कभी समाज की उन्नति में गतिरोध भी पैदा कर देते हैं । 
11. - प्रकार्य एक गतिशील अवधारणा है । एक समय में जो कार्य समाज के लिए उपयोगी हो सकता है, वही प्रकार्य कहलाता है किंतु वह कार्य दूसरे समय में अनुपयोगी होने पर प्रकार्य की श्रेणी में नहीं आएगा । 
12. - समाज में प्रकार्यों की संख्या तय नहीं है । इनकी गणना करना व सूची बनाना असंभव है फिर भी मोटे तौर पर उन्हें बड़े शीर्षकों जैसे धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक,राजनीतिक आदि के अंतर्गत रखा जा सकता है । 

प्रकार्य एवं प्रकार्यवाद की अवधारणा का समाजशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान है । प्रो. डेविस कहते हैं कि समाजशास्त्र में आज जो कुछ भी है उसका तीन चौथाई भाग प्रकार्यवाद है । प्रकार्य एवं प्रकार्यवाद के बारे में विचार प्रकट करने वालों में स्पेन्सर, दुर्खीम, रेडक्लिफ ब्राउन, मैलिनोवस्की, मर्टन, मेरियन जे. लेवी तथा डेविस आदि प्रमुख है । हम कुछ प्रमुख विद्वानों के विचारों का यहां उल्लेख करेंगे । 

स्पेन्सर का योगदान : - 

प्रकार्यवाद का सर्वप्रथम उल्लेख अंग्रेज उद्विकासवादी विद्वान हरबर्ट स्पेंसर की रचना ' Principles of Sociology ' में मिलता हैं । आपने सावयव ( Organism ) तथा समाज में कुछ आधारभूत समानताओं का उल्लेख किया है । आप समाज को सावयव की भाँति ही एक अखण्ड व्यवस्था मानते हैं । शरीर का निर्माण कई अंगों से मिलकर होता है और ये अंग परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं प्रत्येक अंग का शरीर में एक विशिष्ट कार्य है विशिष्ट अंगों द्वारा किए जाने वाले कार्यों से ही शरीर व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है। यही बात समाज में देखी भी जा सकती है । समाज का निर्माण भी विभिन्न इकाइयों से हुआ है जो परस्पर व्यवस्थित रूप से सम्बद्ध हैं और ये इकाइयां समाज व्यवस्था को चलाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है । स्पेन्सर का मत हैं कि जिस प्रकार से शरीर का उद्विकास सरलता से जटिलता की ओर तथा समानता से विभिन्नता की ओर हुआ है उसी प्रकार से समाज भी उद्विकासीय प्रक्रिया से गुजरा है। इस प्रकार इस सेंसर ने प्रकार्यवाद को उद्विकासीय प्रकार्यात्मक प्रक्रिया ( Evolutionary Functional Process ) के रूप में देखा क्योंकि वे डार्विन के उद्विकासवाद से बहुत प्रभावित थे । 

दुर्खीम का प्रकार्यवाद : - 


वैज्ञानिक रूप से प्रकार्यवाद को प्रतिष्ठित करने का श्रेय दुर्खीम को है । आपने अपनी रचना ' The Division of Labour in Society ' तथा ' The Rules of Sociological Method ' में प्रकार्यवाद का विशद विश्लेषण किया । दुर्खीम ने भी समाज को एक जीवधारी की भाँति ही माना । जिस प्रकार से शरीर को जीवित रखने के लिए कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति आवश्यक है वैसे ही समाज को जीवित रखने के लिए भी कुछ आवश्यकता ओं की पूर्ति जरूरी है । समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति जिन गतिविधियों द्वारा होती है उन्हें ही आप प्रकार्य कहते है । परिवार, धर्म,नातेदारी, राजनीतिक तथा आर्थिक संगठन समाज व्यवस्था को चलाने में अपना जो योगदान देते हैं वही उनका प्रकार्य हैं । दुर्खीम ने ऑस्ट्रेलिया की जनजातियों का अध्ययन कर धर्म का प्रकार्य ढूंढा । वे कहते हैं कि धर्म का प्रकार्य समाज में एकता स्थापित करना है । दुर्खीम ने सामाजिक संस्थाओं के सामान्य तथा व्याधिकीय प्रकार्यों का भी उल्लेख किया । 

रैडक्लिफ ब्राउन का प्रकार्यवाद : - 

ब्राउन ब्रिटेन के मानवशास्त्री थे,उन पर दुर्खीम का प्रभाव था । उन्होंने भी अपने प्रकार्यवाद को स्पष्ट करने के लिए दुर्खीम की भांति ही सावयव तथा समाज की समानता का सहारा लिया । ब्राउन का मत है कि मानव समाज के अस्तित्व के लिए कुछ आवश्यक दशाएं हैं जिस प्रकार से जीवों अथवा सावयव को जीवित रखने के लिए कुछ आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति जरूरी है । उन्होंने बताया कि शरीर की एक संरचना होती है जो अंगों के निश्चित सम्बन्धों से बनती है । जब तक एक सावयव जीवित रहता है उसकी संरचना में निरंतरता बनी रहती है, उसे ही जीवन कहते हैं । शरीर को जीवन प्रदान करने में प्रत्येक कोष्ठ (Cell) या अंग की क्रिया ( Activity) होती है और हर क्रिया का कोई न कोई प्रकार्य होता हैं । 

यही बात हम समाज में भी देख सकते हैं । सामाजिक संरचना में भी किसी भी क्रिया अथवा अंग जैसे दण्ड, दाहसंस्कार, धर्म,परिवार, राजनीतिक संगठन, शिक्षण संस्था द्वारा सामाजिक जीवन की निरंतरता बनाए रखने में जो योगदान दिया जाता है वह उनका प्रकार्य हैं । वे प्रकार्य को परिभाषित करते हुए लिखते हैं, " किसी सामाजिक इकाई का प्रकार्य उस इकाई का वह योगदान है जो वह सामाजिक व्यवस्था को क्रियाशीलता के रूप में सामाजिक जीवन को देती है । इस प्रकार " प्रकार्य एक आंशिक क्रिया द्वारा कुश संपूर्ण क्रिया को दिया जाने वाला योगदान है जिसका कि वह एक भाग है । 

प्रकार्य की इस परिभाषा से स्पष्ट है कि प्रत्येक समाज व्यवस्था में एक प्रकार की एकता होती है जिसे हम प्रकार्यात्मक एकता कहते हैं । प्रकार्यात्मक एकता एक ऐसी दशा है जिसमें समाज व्यवस्था के सभी अंग साथ-साथ कार्य करते हैं और उनमें पर्याप्त मात्रा में समानता या आंतरिक एकता बनी रहती है अर्थात उनमें इस प्रकार का संघर्ष नहीं होता कि जिस पर नियंत्रण नहीं पाया जा सके । इस प्रकार समाज व्यवस्था में प्रकार्यात्मक रूप से परस्पर निर्भर इकाइयां होती हैं और प्रकार्य किसी भी इकाई का वह योगदान है जो सम्पूर्णता को बनाए रखने में उसके द्वारा दिया जाता है । ब्राउन के अनुसार प्रकार्यात्मक पद्धति का उद्देश्य किसी भी समूह समाज संगठन और संस्कृति की इकाइयों को ज्ञात कर उनके प्रकार्यों को बताना है । 

मैलिनोवस्की का प्रकार्यवाद : - 

मैलिनोवस्की ने उद्विकासवाद के विरुद्ध प्रकार्यवादी सिद्धांत को जन्म दिया । आपने सांस्कृतिक व्यवस्था को समझाने के लिए प्रकार्यवाद का सहारा लिया । आपके अनुसार मानव और पशुओं में प्रमुख अंतर यह है कि मानव के पास संस्कृति है । इस संस्कृति का निर्माण उसने अपनी अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया है । मैलिनोवस्की कहते हैं कि मानव की सात आधारभूत आवश्यकताएं हैं । वे हैं - शरीर पोषण,प्रजनन, शारीरिक आराम,सुरक्षा, गति,वृद्धि तथा स्वास्थ्य । इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही मानव ने संस्कृति के विभिन्न तत्वों का निर्माण किया । इसलिए संस्कृति का कोई भी तत्व बेकार नहीं है। वह मानव की किसी न किसी आवश्यकता की पूर्ति अवश्य करता है। संस्कृति मानव की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करके ही उसका शारीरिक, मानसिक और अंततः बौद्धिक अस्तित्व कायम रखती है । सांस्कृतिक तत्वों के प्रकार, स्वरूप तथा संगठन में भिन्न-भिन्न समाजों में अंतर हो सकता है । संस्कृति की विभिन्न इकाइयों में एक प्रकार का संगठन पाया जाता है क्योंकि वे सभी अन्ततः मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के कारण परस्पर सम्बन्धित हैं । मानव की संस्थाएं संस्कृति से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है । संस्कृति के अध्ययन द्वारा हम संस्थाओं को और संस्थाओं के अध्ययन द्वारा समाज को समझ सकते हैं । आपने बताया कि कुछ संस्थाएं जैसे परिवार, विवाह, नातेदारी, धर्म ,राजनीतिक एवं आर्थिक संस्थाएं ऐसी है जो सभी समाजों में पाई जाती है क्योंकि मौलिक आवश्यकताएं सभी समाजों में पूरी करनी होती है । चूँकि मैलिनोवस्की सांस्कृतिक तत्वों के प्रकार्यो पर अधिक जोर देते हैं अतः उनके दृष्टिकोण को प्रकार्यवाद कहते हैं ।

मैलिनोवस्की के प्रकार्यवाद की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि इसमें मनुष्य को आवश्यकताओं का पुतला मात्र मान लिया गया है । इस दृष्टिकोण को स्वीकार करना मानव की उच्चतर भावनाओं और आदर्शों की अवहेलना करना है । 

प्रकार्य के बारे में मर्टन के विचार : - 

अमेरिकन समाजशास्त्री रॉबर्ट मर्टन ने अपनी पुस्तक ' Social Theory and Social Structure ' में प्रकार्यवाद को एक सुनिश्चित एवं सुपरिभाषित रूप प्रदान किया । मर्टन ने सर्वप्रथम प्रकार्य शब्द की व्याख्या की । उनका मत है कि अंग्रेजी के फंक्शन (Function) शब्द का पाँच भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है - 1. - फंक्शन का अर्थ सार्वजनिक उत्सव है जैसे हम कहते हैं , हमारा महाविद्यालय वार्षिक उत्सव मनाने जा रहा है । 

2. - फंक्शन शब्द का प्रयोग व्यवसाय के लिए भी किया गया है, जैसे ब्लांट ने जातियों के विभिन्न व्यवसायों के लिए फंक्शन शब्द का प्रयोग किया है । 

3. - फंक्शन का प्रयोग एक सामाजिक पद पर आसीन व्यक्ति के कार्यकलापों के रूप में भी हुआ है जैसे भारतीय राष्ट्रपति के कार्य हैं । 

4. - गणित में फंक्शन शब्द का प्रयोग एक चर ( Variable ) का दूसरे चर से सम्बन्ध बताने के अर्थ में किया जाता है । 

5. - जीव विज्ञान में शरीर के संचालन में उसके अंगों द्वारा दिए जाने वाले योगदान को फंक्शन कहां जाता है जैसे शरीर में हृदय का क्या फंक्शन हैं । समाजशास्त्र में फंक्शन शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में हुआ है । 

मर्टन कहते हैं कि केवल प्रकार्य शब्द का ही विभिन्न अर्थों में प्रयोग नहीं वरन प्रकार्य को प्रकट करने के लिए भी कई अन्य शब्दों ,जैसे उपयोगिता ( Utility ), उद्देश्य (Purpose), प्रेरणा (Motive), लक्ष्य ( Aim ) तथा परिणाम ( Cousequence ), आदि का प्रयोग हुआ है । मर्टन ने प्रकार्यात्मक विश्लेषण के लिए एक पैराडायम ( Paradigm ) भी प्रस्तुत किया है । प्रकार्यवाद के क्षेत्र में मर्टन ने प्रकार्य - अकार्य, प्रकट - अप्रकट , प्रकार्य आदि अवधारणाओं को जन्म दिया ।

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