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Showing posts from December, 2020

आदिकालीन अर्थव्यवस्था की परिभाषा तथा आर्थिक विकास के प्रमुख स्तरों की विवेचना कीजिए

आदिकालीन अर्थव्यवस्था की परिभाषा तथा आर्थिक विकास के प्रमुख स्तरों की विवेचना कीजिए आदिकालीन अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष रूप से आदिम लोगों की जीविका पालन या जीवन धारण से संबंधित है । जीवन धारण के लिए आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन करना, उनका वितरण तथा उपभोग करना है उनकी आर्थिक क्रियाओं का आधार और लक्ष्य होता है । और यह क्रियाएं एक आदिम समाज के संपूर्ण पर्यावरण, विशेषकर भौगोलिक पर्यावरण के द्वारा बहुत प्रभावित होती है । इसलिए जीवन धारण या जीवित रहने के साधनों को जुटाने के लिए हातिम लोगों को कठोर परिश्रम करना पड़ता है । आर्थिक जीवन अत्यधिक संघर्षमय तथा कठिन होने के कारण आर्थिक क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की भांति प्रगति की गति बहुत ही धीमी है । संक्षेप में आदिकालीन अर्थव्यवस्था एक ओर प्रकृति की शक्तियों और प्राकृतिक साधनों, फल मूल, पशु पक्षी, पहाड़ और घाटी, नदियों और जंगलों आदि पर निर्भर है और दूसरी ओर परिवार से घनिष्ठ रूप से संयुक्त है । आदिकालीन मानव प्रकृति द्वारा प्रदत्त सामग्री से अपने उपकरणों का निर्माण करता है और उनकी सहायता से परिवार के सब लोग उदर पूर्ति के लिए कठोर परिश्रम करते हैं । इस पर

जादू क्या है और जादू के प्रकारों का उल्लेख कीजिए

जादू क्या है और जादू के प्रकारों का उल्लेख कीजिए  फ्रेजर ने जादू के संबंध में विवेचना करते हुए लिखा है कि जादू में दो आधारभूत सिद्धांतों का समावेश है - प्रथम तो यह कि समान कारण से समान कार्य उत्पन्न होता है, अर्थात एक कार्य अपने कारण के सदृश्य होता है । और दूसरा यह कि जो वस्तु एक बार किसी के संपर्क में आ जाती है वह सदैव उसके संपर्क में रहकर उस समय भी एक दूसरे पर क्रिया व प्रतिक्रिया करती रहती है जबकि उनका शारीरिक संबंध टूट गया हो अर्थात वे एक दूसरे से दूर या पृथक हो । फ्रेजर ने अपने इन दो सिद्धांतों को नियमों का रूप दिया है और इन्हीं के आधार पर जादू के दो भेदों का उल्लेख किया है । प्रथम सिद्धांत को आपने समानता का नियम कहकर पुकारा है । समानता के नियम पर जो जादू आधारित है उसे होम्योपैथिक ( Homoeopathic ) या अनुकरणात्मक ( Imitative ) जादू कहते हैं । दूसरे सिद्धांत को फ्रेजर ने संपर्क या संसर्ग का नियम कह कर पुकारा है । संसर्ग के नियम पर जो जादू आधारित है उसे संक्रामक जादू ( Contagious magic ) कहते हैं । इस प्रकार फ्रेजर के अनुसार जादू के दो प्रकार हैं - 1. - अनुकरणात्मक जादू और। 2. - सं

जादू क्या है ? और जादुई क्रियाओं के तत्वों का उल्लेख कीजिए

जादू क्या है ? और जादुई क्रियाओं के तत्वों का उल्लेख कीजिए जैसा कि हम पहले ही लिख चुके हैं, मनुष्य ने अतिमानवीय जगत पर या अलौकिक शक्ति के नियंत्रण करने हेतु दो उपायों को अपनाया - प्रथम तरीका उस शक्ति की विनती या आराधना करके उसे प्रसन्न करना और फिर उस प्रसन्नता से लाभ उठाना या शक्ति के द्वारा की जाने वाली हानियों से बचना है । इसी से धर्म का विकास हुआ । और दूसरा तरीका और शक्ति को दबाकर अपने अधिकार में करके उस शक्ति को अपने उद्देश्य पूर्ति के हेतु प्रयोग करना है । यहीं जादू हैं । डा. दुबे के अनुसार , " जादू उस व्यक्ति विशेष का नाम है, जिससे अति मानवीय जगत पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सके और उसकी क्रियाओं को अपनी इच्छा अनुसार भले या बुरे, शुभ अशुभ उपयोग में लाया जा सके ।"    उपरोक्त परिभाषा में डा. दुबे ने " जादू की तीन विशेषताओं का उल्लेख किया है । प्रथम तो यह है कि जादू का संबंध अति मानवीय जगत से होता है । दूसरा यह कि जादू एक शक्ति है । जादूगर इस शक्ति को अपने अधिकार में अति मानवीय जगत पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से रखना चाहता है और तीसरी बात यह है कि इस शक्ति का प्रयोग

धर्म की उत्पत्ति के सिद्धांतों और विशेषताओं को विस्तारपूर्वक लिखिए ?

धर्म की उत्पत्ति के सिद्धांतों और विशेषताओं को विस्तारपूर्वक लिखिए ? मानव समाज में धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई और उसका प्रारंभिक रूप क्या था इस संबंध में मानव शास्त्रियों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं । विकासवादी लेखकों के अनुसार आधुनिक सभ्य समाज जनजातीय या आदिकालीन समाजों का ही क्रमिक विकसित रूप है, इस कारण धर्म की उत्पत्ति भी सर्वप्रथम जनजातीय समाजों में ही हुई होगी । अतः अनेक मानव शास्त्री जनजातियों के जीवन का विश्लेषण करके धर्म की उत्पत्ति और उसके प्रारंभिक रूप को ढूंढने का प्रयत्न करते हैं । यहां हम धर्म की उत्पत्ति के कुछ प्रमुख सिद्धांतों की विवेचना करेंगे । आ. - आत्मावाद या जीववाद :- श्री एडवर्ड टॉयलर इस सिद्धांत के प्रवर्तक हैं । आपके अनुसार आत्मा की धारणा ही " आदिम मनुष्यों से लेकर सभ्य मनुष्यों तक के धर्म के दर्शन का आधार है । यह आत्मावाद दो वृहत विश्वासों में विभाजित है - प्रथम तो यह कि मनुष्य की आत्मा का अस्तित्व मृत्यु या शरीर के नष्ट होने के पश्चात भी बना रहता है और दूसरा यह है कि मनुष्यों की आत्माओं के अतिरिक्त शक्तिशाली देवताओं की अन्य आत्माएं भी होती है । श्री

धर्म का अर्थ एवं धर्म की परिभाषा बताइए

धर्म का अर्थ एवं धर्म की परिभाषा बताइए ? मानव संसार की समस्त घटनाओं या सृष्टि के रहस्यों को नहीं समझ पाता है । अपने जीवन के रोज के अनुभवों से वह यह सीखता है कि अनेक ऐसी घटनाएं है जिन पर उसका कोई वश नहीं है । स्वभावतः ही उसमें यह धारणा पनपती है कि कोई एक ऐसी भी शक्ति है जो कि दिखाई नहीं देती, परंतु वह किसी भी मनुष्य से कहीं अधिक शक्तिशाली है । यह शक्ति अलौकिक शक्ति है ; इसे डरा धमका कर या ऐसे अन्य किसी उपाय से अपने वश में नहीं किया जा सकता है । इस शक्ति को अपने पक्ष में लाने का एकमात्र उपाय इस के सम्मुख सिर झुका कर पूजा, प्रार्थना या आराधना करना है । इस अलौकिक शक्ति से संबंधित विश्वासों और क्रियाओं को ही धर्म कहते हैं ।     इसके विपरीत कुछ ऐसी शक्तियां भी है जो कि मनुष्य की अपनी शक्ति से अधिक शक्तिशाली है ; परंतु इन पर कुछ निश्चित तरीकों से अधिकार किया जा सकता है । इसीलिए मानव इस शक्ति के सामने झुकने के बजाय इस पर अपना अधिकार स्थापित करके उससे अपने उद्देश्यों की पूर्ति करवाता है । इसी को जादू कहते हैं । उपरोक्त दो प्रकार की शक्तियों को और अच्छी तरह समझने के लिए हम अब धर्म और जादू की अलग