Skip to main content

About us

Hi, Thanks For Landing on '' About Page '' at https://skillpreparation.blogspot.com 
I have Started Skill Preparation on 25 August 2019 . This Blog mainly focus on Below categories : Social, History, Religious, Education, Technology, Additional Information. The Main Goal of Starting This Blog is to Build an Active Community of Student So That They Can Read More Academic Content in A Better Way.

I Would Like if Anyone Wants Share Posts Here Voluntarily.

I Like To Read New Question In Educational Arena And This Results In The Quality Growth of Skill Preparation And My Blog As Well . 

Comments

Popular posts from this blog

समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास

समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास बाटोमोर के अनुसार समाजशास्त्र एक आधुनिक विज्ञान है जो एक शताब्दी से अधिक पुराना नहीं है । वास्तव में अन्य सामाजिक विज्ञानों की तुलना में समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है । एक विशिष्ट एवं पृथक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की उत्पत्ति का श्रेय फ्रांस के दार्शनिक आगस्त काम्टे को है जिन्होंने सन 1838 में समाज के इस नवीन विज्ञान को समाजशास्त्र नाम दिया । तब से समाजशास्त्र का निरंतर विकास होता जा रहा है । लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि क्या आगस्त काम्टे के पहले समाज का व्यवस्थित अध्ययन किसी के द्वारा भी नहीं किया गया । इस प्रश्न के उत्तर के रूप में यह कहा जा सकता है कि आगस्त काम्टे के पूर्व भी अनेक विद्वानों ने समाज का व्यवस्थित अध्ययन करने का प्रयत्न किया लेकिन एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र अस्तित्व में नहीं आ सका । समाज के अध्ययन की परंपरा उतनी ही प्राचीन है जितना मानव का सामाजिक जीवन । मनुष्य में प्रारंभ से ही अपने चारों ओर के पर्यावरण को समझने की जिज्ञासा रही है । उसे समय-समय पर विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ा है । इन समस

समाज की प्रमुख विशेषताएं बताइए

समाज की प्रमुख विशेषताएं बताइए समाज और उसकी प्रकृति को स्पष्टतः समझने के लिए यहां हम उसकी कुछ प्रमुख विशेषताओं पर विचार करेंगे जो सभी समाजों में सार्वभौमिक रूप से पाई जाती है । ये विशेषताएं निम्नलिखित हैं : 1. - पारस्परिक जागरूकता - पारस्परिक जागरूकता के अभाव में ना तो सामाजिक संबंध बन सकते हैं और ना ही समाज । जब तक लोग एक दूसरे को उपस्थिति से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिचित नहीं होंगे तब तक उनमें जागरूकता नहीं पाई जा सकती और अंतः क्रिया भी नहीं हो सकती । इस जागरूकता के अभाव में वे ना तो एक दूसरे से प्रभावित होंगे और ना ही प्रभावित करेंगे अर्थात उनमें अंतः क्रिया नहीं होगी । अतः स्पष्ट है कि सामाजिक संबंधों के लिए पारस्परिक जागरूकता का होना आवश्यक है और इस जागरूकता के आधार पर निर्मित होने वाले सामाजिक संबंधों की जटिल व्यवस्था को ही समाज कहा गया है । 2. - समाज अमूर्त है - समाज व्यक्तियों का समूह ना होकर और मैं पनपने वाले सामाजिक संबंधों का जाल है । सामाजिक संबंध अमूर्त है । इन्हें ना तो देखा और ना ही छुआ जा सकता है । इन्हें तो केवल महसूस किया जा सकता है । अतः सामाजिक संबंधों

सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए

सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए परिवर्तन प्रकृति का एक शाश्वत एवं जटिल नियम है। मानव समाज भी उसी प्रकृति का अंश होने के कारण परिवर्तनशील है। समाज की इस परिवर्तनशील प्रकृति को स्वीकार करते हुए मैकाइवर लिखते हैं " समाज परिवर्तनशील एवं गत्यात्मक है । " बहुत समय पूर्व ग्रीक विद्वान हेरेक्लिटिस ने भी कहा था सभी वस्तुएं परिवर्तन के बहाव में हैं। उसके बाद से इस बात पर बहुत विचार किया जाता रहा कि मानव की क्रियाएं क्यों और कैसे परिवर्तित होती हैं? समाज के वे क्या विशिष्ट स्वरूप हैं जो व्यवहार में परिवर्तन को प्रेरित करते हैं? समाज में अविष्कारों के द्वारा परिवर्तन कैसे लाया जाता है एवं अविष्कार करने वालों की शारीरिक विशेषताएं क्या होती है? परिवर्तन को शीघ्र ग्रहण करने एवं ग्रहण न करने वालों की शारीरिक रचना में क्या भिन्नता होती है? क्या परिवर्तन किसी निश्चित दिशा से गुजरता है? यह दिशा रेखीय हैं या चक्रीय? परिवर्तन के संदर्भ में इस प्रकार के अनेक प्रश्न उठाए गए तथा उनका उत्तर देने का प्रयास भी किया गया। मानव परिवर्तन को समझने के प्रति जिज्ञासा पैदा हुई। उसने परिवर्तन के