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उपकल्पना का अर्थ और सामुदायिक जीवन की उपकल्पनाएं -


सामुदायिक जीवन की उपकल्पनाएं -  

सामुदायिक जीवन की कुछ प्रमुख उपकल्पनाएं -सामुदायिक जीवन की प्रमुख उपकल्पना ओं का चित्रण  न केवल व्यवसायिक समाज कार्यकर्ता के लिए ही उपयोगी है बल्कि अन्य व्यवसायों में प्रशिक्षित सामुदायिक कार्य में संलग्न  कार्यकर्ताओं के लिए भी उपयोगी है।  यह ज्ञान संबंधित कर्मचारियों एवं समाज वैज्ञानिकों को सामुदायिक योजना तथा अन्य विकास कार्यक्रम बनाने तथा सिद्धांतों के निर्धारण के लिए उपयोगी है।  यह समाज कार्यकर्ता को सामुदायिक संगठन कार्य में निष्कंटक  एवं सुगम रास्ता प्रदान करता है।  इस पर चलकर सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल सिद्ध होता है।  जिस प्रकार एक वैयक्तिक सेवा कार्यकर्त्ता को समस्या  युक्त सेवार्थी की समस्याओं का गहराई से अध्ययन करना, निदान करना, तथा उपचार में सेवार्थी की मनोवैज्ञानिक गतिविधियों की जानकारी हासिल करना आवश्यक है उसी प्रकार सामुदायिक संगठन कार्य की सफलता के लिए आवश्यक है कि  सामुदायिक संगठन कार्यकर्त्ता समुदाय की संस्कृति ,परम्परा , रूढ़िवादिता एवं मूल्यों को जानकर उनकी आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों को भी जाने।
                समाज विज्ञान में समाज कार्य विषय अपने व्यावहारिक कार्य के लिए सुविख्यात है। इस व्यवहारिक ज्ञान के प्रयोग की आवश्यकता हमारे देश में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसलिए आवश्यक है कि समाज कार्यकर्ताओं को सामुदायिक संगठन कार्य की सफलता के लिए अनुसंधान पर आधारित नए एवं बदलते हुए सामुदायिक मूल्यों , संस्कृतियों एवं परंपराओं से अवगत कराया जाए।

उपकल्पना का अर्थ -
उपकल्पना शब्द से हमारा तात्पर्य यहाँ  किसी विषय या वस्तु के चित्रण से है।  प्रायः देखा गया है कि किसी समस्या का अध्ययन करने या किसी अन्य व्यक्ति या स्थान तक पहुंचने से पहले बहुधा लोग उस समस्या , व्यक्ति या स्थान के विषय में एक काल्पनिक अवधारणा अपने सामने रखते हैं।  यह काल्पनिक अवधारणा अध्ययनकर्ता को लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होती है।  विभिन्न विद्वानों ने उपकल्पना को विभिन्न रूप से परिभाषित किया है जिनके कुछ विचार निम्नलिखित है -

G.A. Lundberg  के अनुसार -   उपकल्पना एक परीक्षात्मक निष्कर्ष है, जिसकी सत्यता की परीक्षा करनी है।  अत्यधिक प्रारंभिक स्तर पर उपकल्पना एक अनुमान एक पूर्व मान्यता अथवा एक आशंका मात्र होती है जो अनुसंधान को एक दिशा देती है।

Goode  and Hatt  के अनुसार - उपकल्पना  को परिभाषित करते हुए बताया है कि यह एक औपचारिक प्रसंग के समान है जिसे सत्यता के परीक्षण के लिए रखा जा सकता है।

उपकल्पना के स्रोत
उपकल्पना एक ऐसा क्षणिक  निष्कर्ष है जिसकी प्राप्ति मनुष्य अपने ज्ञान , अनुभव अध्ययन , व्यक्तिगत अवलोकन और लोगों के विचार विमर्श के माध्यम से प्राप्त करता है।  इसके प्रमुख स्रोत निम्नलिखित है

  1. सामान्य संस्कृति - सामुदायिक संस्कृति का ज्ञान व्यवसायिक कार्यकर्ता को न केवल सामुदायिक उपकल्पना के निर्धारण में ही सहायक होता है बल्कि समुदाय के तौर-तरीकों के विषय में भी अवगत कराता है।  हर समुदाय की संस्कृति में ज्ञान की गंगा बहती है।  उसमें अनुभव के आधार पर अनेकों  सूझे, अनेकों  कहावतें , अनेकों सूक्तियां संकलित होती हैं जो अनेकों उप कल्पनाओं को जन्म दे सकती है।

              इस प्रकार किसी भी समुदाय की संस्कृति उपकल्पनाओं का अगाध भंडार होती हैं।  संवेदनशील अनुसंधानकर्ता को उससे अनेकों उपकल्पनाएं मिल सकती हैं।

  2. वैज्ञानिक सिद्धांत -  प्रत्येक क्षेत्र एवं विषय के सिद्धांत उस क्षेत्र एवं विषय के व्यवहारिक ज्ञान पर आधारित होते हैं। इसका प्राथमिक ज्ञान कार्यकर्ता को कार्यक्रम के लिए निर्णय लेने, कार्यक्रम योजना बनाने एवं कार्यान्वयन में सहायक सिद्ध होता है। इसके साथ-साथ वैज्ञानिक ज्ञान पर आधारित सिद्धांत हमें किसी क्षेत्र , विषय या  समुदाय की उपकल्पना तैयार करने में निर्देशन प्रदान करते हैं जिस पर चलकर वैज्ञानिक या व्यवसाय कार्यकर्ता अपने उद्देश्य प्राप्ति में सफल सिद्ध होता है।

   3. अनुरूपताएँ -  कभी-कभी उपकल्पनाओं का निर्माण इस आधार पर किया जाता है कि एक भूभाग की सामान्य विशेषताएं दूसरे भूभाग की कुछ विशेषताओं से मिलती-जुलती होंगी।  इसके साथ-साथ यह भी अनुमान लगाया जाता है कि एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले कुछ व्यक्तियों के विचार एवं भावनाएं यदि किसी विशेष प्रकार की हैं तो उस निश्चित भूभाग के सभी व्यक्तियों के विचारों भावों में समानता होगी।  इन आधारों पर तैयार की गई उपकल्पनायें  अनुसंधानकर्ता को उसके कार्य सिद्धि में सहायक होती है।

   4. व्यक्तिगत अनुभव - 
विभिन्न वैज्ञानिकों एवं कार्यकर्ताओं की व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित उपकल्पनायें उनके लिए अत्यन्त उपयोगी होती है। वैज्ञानिकों को एक विशेष क्षेत्र का ज्ञान उस विशेष क्षेत्र में रहकर या वहां के लोगों के साथ नियमित संबंध बनाए रखने के बाद प्राप्त होता है।  इससे अनेकों नए अनुभव और विचार मिल सकते हैं जो उपकल्पनाओं का आधार बन सकते है।

सामुदायिक जीवन की उपकल्पनाएं-
उपकल्पना के विभिन्न स्रोतों का अध्ययन करने के पश्चात ज्ञात होता है कि सामुदायिक जीवन उपकल्पनाओं का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।  इस पर आधारित कुछ प्रमुख उप कल्पनाएं निम्नलिखित है-

     1. यह देखा जाता है कि शिक्षित समुदाय के सदस्यों में अपनी समस्याओं शिक्षा स्वास्थ्य एवं सफाई से संबंधित आवश्यकताओ  तथा आर्थिक विकास के उपलब्ध साधनों के विषय में जानकारी होती है। इसलिए ऐसे समुदाय के लोगों के साथ कार्य करते समय कार्यकर्ता को उनकी शिक्षा को महत्व देते हुए उनके विचारों को महत्व देना चाहिए।  शिक्षित समुदाय में सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सामुदायिक सदस्यों को उनकी समस्याओं एवं उनके विभिन्न उपलब्ध साधनों के विषय में उन्हें अवगत कराने में कम से कम श्रम एवं समय की आवश्यकता होती है। ऐसे समुदायों  कुछ व्यक्ति अपनी सामुदायिक जिम्मेदारियों के विषय में स्वयं जागृत है। इसलिए  थोडे  प्रयास से वे  लोग अपनी जिम्मेदारी समझ कर इसे  सामुदायिक कल्याण कार्य  में लगाने लगते हैं। अशिक्षित समुदायों के सदस्यों में जागृति की कमी के कारण कार्यकर्ता को कठिन परिश्रम करने की आवश्यकता पड़ती है।
      2.  एक छोटे समुदाय के विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक स्तर के निवास करने वाले सदस्यों के आपसी तनाव या लगाव को दूर कर उन्हें समझा-बुझाकर उनमें आपसी सहयोग, सहकारिता एवं पारस्परिक संबंध को आसानी से बढ़ाया जा सकता है।  यदि सदस्यों के आपसी तनाव पिछली कई पुश्तों  से और किसी गंभीर समस्या को लेकर चले आ रहे हैं तो ऐसी परिस्थिति में लोगों में एकता का विकास करने तथा उन्हें सामूहिक रास्ते पर लाने में परिश्रम एवं समय की आवश्यकता है। यदि सदस्यों के आपसी तनाव किसी सामान्य बात के लिए और हाल में ही पैदा हुए है तो उनका निबटारा उनके आपसी  विचार विमर्श द्वारा किया जा सकता है।  इसलिए कार्यकर्ता को इन बातों को ध्यान में रख कर सामुदायिक संगठन कार्य को संचालित करना चाहिए।

      3. सामुदायिक सदस्यों के पारस्परिक सहयोग एवं सामूहिक निर्णय पर आधारित कार्यक्रम सदस्यों की आवश्यकताओं एवं समस्याओं के निराकरण में सामान्यतः सफल सिद्ध होते हैं। यदि कार्यक्रम सामुदायिक सदस्यों द्वारा सदस्यों के लिए और सदस्यों के साथ बनाया गया हो तो सामुदायिक सदस्य इसमें अपनापन देखते  हैं।  अपनापन महसूस होते ही वे कार्यक्रम के कार्यान्वयन में अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से निभाते हैं।  वे  दूसरों को भी उनकी जिम्मेदारियों को निभाने में मदद करते हैं तथा लक्ष्य प्राप्ति को सरल बनाते है। धीरे-धीरे सदस्यों की पारस्परिक निर्णय लेने तथा सामुदायिक कल्याण कार्यक्रम निर्धारित करने की प्रवति जनकल्याण जैसे बड़े बड़े कार्यक्रमों के निर्धारण की तरफ बढ़ती  है और जनकल्याण को बढ़ावा मिलता है।

     4. एक बड़े समुदाय में किसी विशेष जाति या वर्ग के कल्याण के लिए बनाई गई योजना एवं कार्यक्रम में उस विशेष जाति एवं वर्ग के लोगों का विशेष सहयोग प्राप्त होता है।  समुदाय में रहने वाले अन्य जाति एवं वर्ग के सदस्य महसूस कर सकते हैं कि इस कार्यक्रम से हमें कोई लाभ नहीं होने वाला है।  इसलिए इस प्रकार की कल्याण योजनाओं के कार्यान्वयन में वे अपना लगाव नहीं दिखाते अर्थात सहयोग नहीं देते है। दूसरी तरफ लाभांवित होने वाला वर्ग कार्यक्रम की उपयोगिता समझकर कार्यक्रम की योजना बनाने, इसे कार्यान्वित करने  इसकी कमियों को सामने लाने तथा आवश्यक परिवर्तन लाने में अपना पूर्ण सहयोग देता है।  संबंधित वर्ग के लोग अपने सहयोग के साथ-साथ समुदाय के अन्य वर्गो के सदस्यों को भी प्रोत्साहित करते हैं।

   5. यदि सामुदायिक सदस्यों में पुरानी परंपराओं, रूढ़ियों एवं मूल्यों में अत्यधिक विश्वास है अर्थात सामुदायिक सदस्यों में पिछड़ेपन की स्पष्ट छाप है तो लोगों को एक साथ होने में ज्यादा समय लगता है।  यदि सदस्यों में पुराने विचारों के स्थान पर उनके विचारों एवं कार्यो में परिवर्तन शीलता है तो उन्हें आसानी से इकट्ठा किया जा सकता है।  सामुदायिक कल्याण योजनाओं पर विचार विमर्श करने योजना बनाने तथा उसे कार्यान्वित करने के लिए आसानी से प्रेरित किया जा सकता है।  लेकिन पुराने और शंकालु  विचार वाले सदस्यों के साथ कार्य करना , उनके साथ पारस्परिक निर्णय लेना अत्यंत कठिन होता है।

    6. सामुदायिक सदस्यों के व्यक्तिगत स्वार्थ सामुदायिक संगठन कार्य की लक्ष्य प्राप्ति में बाधक होते हैं।  अर्थात स्वार्थी सदस्य समुदायिक योजना बनाने और इसके कार्यान्वयन में बाधक सिद्ध होते हैं।

   7. सदस्यों की प्रजातांत्रिक निर्णय प्रणाली कार्यक्रम की सफलता में सहायक सिद्ध होती है।  प्रजातांत्रिक भावना होने से सभी सदस्य एक दूसरे के कर्तव्यों एवं भूमिकाओं से पूर्ण अवगत होते हैं और सामूहिक निर्णय को बढ़ावा देते हैं।  पारस्परिक सहयोग पर आधारित निर्णय सर्वोत्तम निर्णय होते हैं।  इस प्रकार के निर्णयों से सदस्यगण एक दूसरे के साथ सहयोग करते हैं और सामुदायिक एकता को बढ़ावा देते हैं। प्रजातांत्रिक निर्णय में सभी सदस्यों को बराबर का अवसर दिया जाता है।  इसलिए संबंधित सदस्यों द्वारा लिया गया निर्णय उत्तम निर्णय होता है। उसकी सफलता के लिए सभी सदस्य एक दूसरे की सहायता करते हुए सामुदायिक भावना का विकास करते हैं।
           सामुदायिक संगठन योजना का निर्धारण करते समय, कार्यक्रम की योजना बनाते समय और कार्यक्रम को कार्यान्वित करते समय सामुदायिक कार्यकर्ताओं को उपर्युक्त बातों का ख्याल रखते हुए सुविधाजनक रास्ता अपनाना चाहिए।  इन उपकल्पनाओं के अतिरिक्त कुछ अन्य महत्वपूर्ण उपकल्पना निम्नलिखित हैं जिन पर सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को अमल करना चाहिए------

     1. सामुदायिक सदस्यों में समस्या समाधान की शक्ति
मानव एक ऐसा जीव है जो संसार में रहकर सब कुछ कर सकता है लेकिन उसकी शक्ति के प्रयोग के लिए सुयोग्य स्थान, समय और साधन की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है।  विभिन्न सामाजिक संस्थाओं का निर्माण मानवीय मूल्यों की रचना तथा देश की सामाजिक आर्थिक एवं राजनैतिक नीतियों का निर्माण भी मानव ही करता है। स्पष्ट है कि मानव एक ऐसा जीव है जिसमें प्रत्येक कार्य की योजना बनाने निर्धारित उद्देश्य को हासिल करने की क्षमता है लेकिन उसे एक योग्य सलाहकार एवं मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है जो समयानुसार उनकी आवश्यक बातों को समझते हुए प्रत्येक आवश्यक पक्ष को सरल एवं समझने योग्य बनाते हुए लक्ष्य  निर्धारित करा सकें तथा लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उचित रास्ता अपनाने में उनका सहयोग कर सके।

अपनी समस्याओं को जानने तथा उसकी पूर्ति करने की शक्ति न केवल आर्थिक एवं सामाजिक रूप से समर्थ समुदायों में ही देखी जा सकती है, बल्कि ऐसी कार्यक्षमता अशिक्षित एवं कमजोर सामाजिक एवं आर्थिक स्तर वाले समुदायों में भी देखी जा सकती है।  एक अमेरिकन अध्ययनकर्ता  ने कहा है कि स्थानीय स्तर पर भी समुदाय के सदस्यों की सहभागिता कम होने पर लोगों को सामूहिक चर्चा के लिए बुलाया जाता है जिसमें विभिन्न विषयों जैसे मकान, सफाई, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन जैसे विषयों पर चर्चा करके लोगों की इच्छा को बढ़ाया जाता है।  यह तरीका कमजोर पिछड़े एवं परम्परावादी व्यक्तियों  में भी उनकी शक्ति एवं महत्ता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता  है।

   2. व्यक्तियों में आगे बढ़ने की इच्छा एवं योग्यता
परिवर्तन समाज का नियम है।  परिवर्तन के कारण ही आज हमारा समाज शिक्षा स्वास्थ्य एवं विज्ञान के क्षेत्रों में विकास की तरफ बढ़ रहा है।  यह भी देखा जाता है कि मानव समाज की वर्तमान संस्कृति का जो रूप आज है वह बीते हुए काल से भिन्न है।  परिवार एवं धार्मिक संस्थाओं का आने वाला रूप  आज से भिन्न होगा अतः स्पष्ट है कि स्वयं समाज एक परिवर्तनशील इकाई है जिसका विकास,ह्रास एवं नवीनीकरण होता रहता है।
                   सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है मानव की आगे बढ़ने की इच्छा।  यह  आगे बढ़ने की इच्छा व्यक्तियों को सामाजिक अनुभवों से मिलती है।

   3. विशेषज्ञों के  सलाह की आवश्यकता
विशेषज्ञ ज्ञान एवं सलाह की आवश्यकता न केवल हमारे पुराने समाज को थी बल्कि आज भी इसकी आवश्यकता और भी अधिक है ज्ञान और अनुभव की कमी को दूर करने में विशेष ज्ञान रखने वाले लोगों ने हमेशा ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है आज के विकासशील समय में तो विशेषज्ञों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है

   4. परिवर्तन में व्यक्तियों की नियंत्रण सील समायोजन शक्ति
व्यक्तियों की सहभागी  की समायोजन प्रवृत्ति न केवल लक्ष्य प्राप्ति को सरल बनाने में सहायक होती है बल्कि व्यक्तियों के व्यक्तित्व विकास में निर्णायक साबित होती है। व्यक्तियों की आपसी तालमेल शक्ति एवं प्रभावपूर्ण अंतः क्रिया न केवल उनकी व्यक्तिगत प्रगति में सहायक रही है बल्कि सामुदायिक विकास के लिए भी अत्यावश्यक है।

   5. प्रजातंत्र में सहकारी समायोजन एवं क्रिया की आवश्यकता 
यह माना जाता है कि किसी भी संस्था या समुदाय के सदस्यों के प्रजातांत्रिक विकास के लिए उन संपूर्ण सदस्यों का कार्यक्रम निर्धारण एवं कार्यान्वयन में एक दूसरे का पारस्परिक सहयोग, सहायता के साथ सहकारी समायोजन की आवश्यकता नितान्त आवश्यक है।  इसलिए आपसी सहयोग, सहकारी समायोजन एवं सामूहिक क्रिया को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है कि सदस्यों को इस क्षेत्र में शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जाए।  प्रजातांत्रिक संबंधों को बनाए रखने तथा सामूहिक रूप से आपसी कल्याण एवं विकास के सामान्य लक्ष्यों के निर्धारण के लिए आवश्यक होगा कि व्यक्तियों एवं समुदाय की आपसी दूरी के बीच सक्रिय समायोजन लाया जाए।

    6. समस्या निराकरण में विचारों के आदान-प्रदान की आवश्यकता
जैसा कि हम जानते हैं कि एक समुदाय में विभिन्न मतों वाले व्यक्ति निवास करते हैं।  इसलिए एक - एक समस्या के प्रति विभिन्न व्यक्तियों के भिन्न-भिन्न मत हो सकते हैं।  इसके साथ साथ समस्या निराकरण के लिए हर व्यक्ति के अपने अपने तरीके हो सकते हैं।  इसलिए आवश्यक है कि समस्या विशेष के लिए विभिन्न विचारधारा वाले सदस्यों के विचारों को एकत्रित किया जाए।  जब तक सभी सदस्यों के विचारों का विवेचन नहीं होता, समस्या निराकरण के लिए सामूहिक योजना का निर्माण एवं क्रियान्वयन असंभव होगा।  समस्या किसी भी प्रकार की हो सकती है चाहे सामूहिक सड़क निर्माण, विद्यालय निर्माण या मनोरंजन कार्यक्रम से संबंधित। सभी समस्याओं के समाधान हेतु सहयोग की आवश्यकता होती है।

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