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अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार पत्र और अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थायें कौन कौन सी है ?

अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार पत्र और अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थायें कौन कौन सी है ?

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय ही अंतर्राष्ट्रीय बिल ऑफ ह्यूमन राइट्स की बात जोर पकड़े हुई थी । सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में एकत्रित कई प्रतिनिधियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अधिकार पत्र के निर्माण की बात की गई, तथापि इसे नहीं किया जा सका । फिर भी सदस्यों द्वारा अनुभव किया गया कि इस दिशा में कदम उठाया जाना चाहिए । संयुक्त राष्ट्र के समक्ष अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्य मानव अधिकारों तथा मूल स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान के सिद्धांत का कार्यान्वयन था । अतः इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय अधिकार पत्र को तैयार करने का निश्चय किया गया । तीस वर्षों के अथक प्रयास के परिणाम स्वरूप वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार पत्र अस्तित्व में आ गया । मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 सिविल तथा राजनैतिक अधिकार प्रसंविदा 1960, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकार प्रसंविदा,1966 और वैकल्पिक प्रोटोकॉल मिलकर अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार पत्र कहलाते हैं । 

अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थायें : -
1. - मानव अधिकार आयोग - संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 68 में उपबन्ध किया गया है कि आर्थिक और सामाजिक परिषद आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में तथा मानव अधिकारों की अभिवृद्धि के लिए आयोग और ऐसे अन्य आयोग स्थापित करेगी जिनकी परिषद के कृत्यों के पालन के लिए आवश्यकता है । इनके अनुसरण में आर्थिक और सामाजिक परिषद ने सात कृत्यिक आयोगों की स्थापना की है -

1. - मानव अधिकार आयोग ।

2. - सांख्यिकी आयोग ।

3. - जनसंख्या आयोग ।

4. - सामाजिक विकास आयोग ।

5. - स्त्री प्रास्थिति आयोग ।

6. - नार्कोटिक औषधि आयोग, और ।

7. - अपराध निवारण और दंड न्याय आयोग ।

मानव अधिकार आयोग की संरचना एवं कार्यकरण

मानव अधिकार आयोग की स्थापना 16 फरवरी 1946 को आर्थिक और सामाजिक परिषद के एक प्रस्ताव द्वारा की गई जिसका उसी माह में महासभा द्वारा अनुमोदन भी कर दिया गया । आयोग का गठन सामाजिक आर्थिक परिषद द्वारा किया गया जिसमें 18 सदस्य थे । प्रत्येक राज्य सदस्य ने ही अपने प्रतिनिधियों का चयन किया था । किंतु समयानुक्रम में इसके सदस्यों की संख्या बढ़ती गई और वर्तमान समय में इसमें 32 सदस्य सरकारें हैं ।
              इसके निबन्धन और निर्देश के अनुसार आयोग को निम्नलिखित विषयों पर सिफारिशें और रिपोर्ट तैयार करना है -
1. - अंतर्राष्ट्रीय अधिकार पत्र ।
2. - सिविल स्वतंत्रता प्रसंविदाओं, स्त्रियों की प्रास्थिति, सूचना की स्वतंत्रता और तदनुरूप विषयों पर अंतर्राष्ट्रीय घोषणा ।
3. - अल्पसंख्यकों का संरक्षण और ।
4. - मूलवंश, लिंग, भाषा या धर्म के आधार पर विभेद निवारण ।
           आयोग को अध्ययन करवाने, सिफारिशें करने और नई अंतर्राष्ट्रीय सन्धियों का प्रारूप तैयार करने के लिए सशक्त किया गया है । इसके अतिरिक्त, यह मानवाधिकार उल्लंघन के अभिकथनों का अन्वेषण कर सकता हैं तथा विस्तृत उल्लंघन के साक्ष्य दिए जाने पर कार्यवाई कर सकता है । इसे उप आयोग स्थापित करने की शक्ति दी गई है ।
     आयोग ने अपना कार्य जनवरी 1947 में श्रीमती फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट की अध्यक्षता में प्रारंभ किया । अपने प्रथम सत्र में मानव अधिकार आयोग ने विभेद निवारण और अल्पसंख्यक संरक्षण आयोग की स्थापना की जो स्वतंत्र विशेषज्ञों का निकाय है । आयोग ने इसी सत्र में अंतर्राष्ट्रीय अधिकार पत्र प्रारूप, तैयारी प्रारूप व समिति का गठन किया । इसने मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा का प्रारूप तैयार किया जिसको महासभा ने 10 दिसम्बर 1948 में अंगीकृत किया । सार्वभौम घोषणा के आधार पर आयोग ने सिविल और राजनैतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा 1966 में तैयार किया । 1967 में आर्थिक और सामाजिक परिषद ने इसको मानव अधिकारों के उल्लंघनों को निपटाने के लिए सशक्त कर दिया ।
       तब से आयोग ने राज्यों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार विधि के अनुपालन किए जाने और मानव अधिकारों के अभिकठित उल्लंघनों के अन्वेषण के लिए विस्तृत तंत्र की स्थापना की है । इसको प्रमुख रूप से विश्व के सभी देशों में तथ्य अन्वेषण संदेश भेजकर किया जाता है चाहे वे धनी या गरीब, विकासशील या विकसित कोई भी देश हो ।
        आयोग ने 1990 से अपना ध्यान जरूरतमंद राज्यों को सलाहकारी सेवा और तकनीकी सहायता देने की दिशा में लगाया है ताकि वे सब मानव अधिकारों के उपभोग में आने वाली अड़चनों को निपटा सकें । इसके साथ ही आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक अधिकारों की अभिवृद्धि पर अधिक जोर दिया गया है । इनमें विकास का अधिकार और पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार सम्मिलित है । अधिक ध्यान समाज के भेद्य समूहों के अधिकारों के संरक्षण की तरफ दिया जा रहा है जिनमें अल्पसंख्यक और देशी लोग सम्मिलित हैं । बालक और स्त्रियों के मानव अधिकारों के संरक्षण की तरफ़ भी आयोग द्वारा ध्यान दिया जा रहा है ।

2. - अल्पसंख्यक संरक्षण और विभेद निवारण उप आयोग : -

अल्पसंख्यक संरक्षण और विभेद निवारण उप आयोग मानव अधिकार आयोग का प्रमुख सहायक अंग है । इसकी स्थापना आयोग द्वारा सन 1947 में की गई थी । इसका कार्य मूलवंश, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के विषय में भी भेद और उसके निवारण के संबंध में अध्ययन करना और मानव अधिकार आयोग को सिफारिशें करना है । उप आयोग में आयोग द्वारा चयनित 26 सदस्य होते हैं परंतु यह संबंधित सरकारों की सहमति के अध्यधीन रहता है । सभी सदस्य अपना कार्य अपनी व्यक्तिगत हैसियत में करते हैं न कि अपनी अपनी सरकारों के प्रतिनिधि के रूप में । उप आयोग में तीन स्थाई कार्यकारी समूह हैं जिनका कार्य हैं, 1. - मानव अधिकार उल्लंघन की शिकायतों का परीक्षण, 2. - दासत्व और दास व्यापार के विकास का पुनर्विलोकन और हर देशी जनसंख्या की समस्या पर विचार करना ।

उप आयोग जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विभेद के ठोस पहलुओं का अध्ययन कर रहा है, जैसे
1. - शिक्षा में विभेद, ।
2. - नियोजन और उपयोजन में विभेद ।
3. - धार्मिक अधिकारों और आचरणों में विभेद ।
4. - राजनैतिक अधिकारों के विषय में विभेद ।
5. - न्याय प्रशासन में समानता ।
6. - मूलवंश के आधार पर राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में विभेद ।
7. - अन्य कृत्यों का करना जो इसको आर्थिक और सामाजिक परिषद या मानव अधिकार आयोग द्वारा सौंपा जाए ।

3. - स्त्री प्रास्थिति आयोग :- स्त्री प्रास्थिति आयोग आर्थिक और सामाजिक परिषद का कृत्यिक आयोग हैं जिसकी स्थापना 1946 में की गई थी । इस समय इसमें 45 सदस्य हैं । इसका कार्य प्रमुख रूप से राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक क्षेत्र में स्त्रियों के अधिकारों की अभिवृद्धि के विषय में आर्थिक और सामाजिक परिषद को रिपोर्ट देकर सिफारिशें भेजना है । स्त्रियों के अधिकारों के क्षेत्र में समस्याओं के विषय में यह परिषद को रिपोर्ट देता है जिन पर ध्यान देने की अपेक्षा रहती है । क्या कार्रवाई की जानी है, इस पर परिषद ही निर्णय लेती है ।

4. - मानव अधिकार केंद्र : - यह केंद्र जेनेवा में स्थित है । इसका कार्य मानव अधिकार कार्यकलाप में समन्वय स्थापित करना है । यह केंद्र आयोग,उप आयोग, मानव अधिकार समिति,मूलवंश विभेद विलोपन समिति और अन्य नीति निर्धारण और अन्वेषण निकायों को स्टाफ2 प्रदान करता है । केंद्र मानव अधिकार के विषय में अध्ययन और अन्वेषण के कार्य का निष्पादन करता है । यह मानव अधिकार के कार्यान्वयन के लिए रिपोर्ट तैयार करता है और मानव अधिकार के क्षेत्र में सलाहकारी सेवा और तकनीकी सहायता के कार्यक्रम का प्रबंध करता है । केंद्र हमेशा मानव अधिकार के उल्लंघन से पीड़ित व्यक्तियों की व्यवस्था पर निगाह रखता है ।

5. - संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार उच्चायुक्त : -
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसम्बर 1993 को मानव अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्च आयुक्त के पद का सृजन करने के लिए प्रस्ताव पारित किया । महासचिव के निर्देशों एवं प्राधिकार के अधीन उच्च आयुक्त सभी द्वारा आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों के प्रभावशाली उपभोग की प्रोन्नति तथा संरक्षण करेगा । उसका पद उप महासचिव का होगा । उसके कार्यकाल की अवधि 4 वर्ष होगी । वह सभी के मानव अधिकारों की प्राप्ति में विद्यमान बाधाओं को दूर करने तथा चुनौतियों का सामना करने में सक्रिय भूमिका निभाएगा । 185 सदस्यीय महासभा द्वारा पारित उपर्युक्त प्रस्ताव की तिथि से 2 माह के भीतर अर्थात 14 फरवरी 1994 को महासभा ने मानव अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्च आयुक्त पद के लिए जोसे अयाला लासों के नाम का अनुमोदन कर दिया । जोसे अयाला इक्वेडर में पूर्व विदेश मंत्री हैं तथा हुआ आयुक्त पद ग्रहण करने के पूर्व संयुक्त राष्ट्र में अपने देश के स्थाई प्रतिनिधि थे । उच्च आयुक्त का मुख्यालय जेनेवा मैं होगा तथा उसकी एक शाखा न्यूयॉर्क में होगी । 20 दिसम्बर 1993 में प्रस्ताव के अनुसार उच्च आयुक्त उच्च नैतिक अवस्थिति तथा व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा वाला व्यक्ति होना चाहिए । उसको मानव अधिकारों के क्षेत्र में विशेषज्ञ होना चाहिए तथा विभिन्न संस्कृतियों का ज्ञाता होना चाहिए । इस पद के लिए संयुक्त राष्ट्र को 2 वर्षों में 147 मिलियन डॉलर व्यय करने होंगे । उच्चायुक्त का कार्य संयुक्त राष्ट्र की प्रणाली में मानव अधिकार से संबंधित कार्यकलाप में समन्वय स्थापित करना होगा ।
उच्च आयुक्त को विनिर्दिष्ट उत्तरदायित्व महासभा द्वारा दिए गए हैं जिनमें निम्नलिखित हैं -
1. - सभी के द्वारा सभी सिविल, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों जिनके अंतर्गत विकास का अधिकार सम्मिलित है, के प्रभावी उपयोग की अभिवृद्धि और संरक्षण करना ।
2. - राज्यों को जो अनुरोध करते हैं मानव अधिकारों के क्षेत्र में सलाहकारी सेवाएं और तकनीकी तथा वित्तीय सहायता प्रदान करना ।
3. - मानव अधिकारों के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र के शिक्षा और लोक सूचना के कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित करना ।
4. - समस्त विश्व में मानव अधिकारों की पूर्ण प्राप्ति में विद्यमान अड़चनों को दूर करने में और मूल अधिकारों के सतत उल्लंघनों के निवारण में सक्रिय भूमिका अदा करना ।
5. - मानव अधिकारों के प्रति सम्मान सुनिश्चित करने के लिए सरकारों से विचार विमर्श करना ।
6. - मानव अधिकारों की अभिवृद्धि और संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना ।
7. - संपूर्ण संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में मानव अधिकारों की अभिवृद्धि और संरक्षण के कार्यकलाप में समन्वय स्थापित करना ।
8. - मानव अधिकारों के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र तंत्र को समुचित रूप से सुदृढ बनाना जिससे इसकी क्षमता और प्रभाव में सुधार हो जाए ।
इन बातों के अतिरिक्त उप आयुक्त महासचिव की ओर से मानव अधिकारों के क्षेत्र में प्रयत्न करता है और इस प्रकार वह संयुक्त राष्ट्र का पदाधिकारी है जिसका प्रमुख उत्तरदायित्व मानव अधिकार कार्यकलाप के प्रति है । वह मानव अधिकारों की अभिवृद्धि और संरक्षण के प्रति उत्तरदाई है । उच्च आयुक्त द्वारा प्रस्तावित नीतियां मानव अधिकार केंद्र द्वारा कार्यान्वित की जानी है ।
6. - मानव अधिकार " हॉट लाइन " : - संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार उच्चायुक्त ने सन 1994 में मानव अधिकार हार्ट लाइन की स्थापना किया जो चौबीसों घंटे कार्य करने वाली अनुलिपि संपर्क ( Facsimile Line ) है । यह जेनेवा स्थित मानव अधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय को मानव अधिकार संबंधी आकस्मिक संकटों का अनुश्रवण ( Monitoring ) तथा उनके प्रति तीव्र गति से प्रतिक्रिया करने के लिए स्थापित की गई है । " हार्ट लाइन " मानव अधिकारों के उल्लंघनों से पीड़ितों, उनके संबंधी तथा गैर सरकारी संगठनों की उपलब्ध है । " हार्ट लाइन " उन व्यक्तियों के लिए उपयोगी है जो मानव अधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की विशिष्ट प्रक्रिया शाखा से अत्यावश्यक और संकट के समय संपर्क स्थापित करने के इच्छुक हैं ।

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