समुदाय से आप क्या समझते हैं समुदाय के क्या आधार या आवश्यक तत्व हैं
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । समाज से अलग उसका विकास असंभव है । मनुष्य जीवन की अनेक मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति व्यक्तियों के सहयोग के बिना असंभव है । समाज के सभी सदस्य अपनी विशेष योग्यताओं एवं आवश्यकताओं के कारण एक दूसरे पर निर्भर है । इसलिए समाज में अनेकता में एकता दिखाई देती है । स्पष्ट है कि समाज का अकेला सदस्य अपनी एवं अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति अपने स्वयं के प्रयास से नहीं कर पाता । इसलिए उसका अन्य लोगों पर आश्रित रहना संभावित है । आज समाज के बदलते हुए परिवेश में जहां विशेषीकरण पर विशेष बल दिया जा रहा है, वहां लोग व्यवसाय विशेष पर विशेषज्ञ हो रहे हैं, न कि सभी व्यवसायों में । फल स्वरुप अन्य व्यवसायों से लाभान्वित होने के लिए उन्हें किसी न किसी रूप से अन्य व्यक्तियों पर आश्रित रहना पड़ता है ।
मानव जीवन में एक साथ, एक निश्चित भूभाग में रहने की प्रवृत्ति का विकास सामूहिक शक्तियों की उपयोगिता महसूस होने के बाद से ही प्रारंभ हुआ । जब व्यक्तियों को यह विश्वास हुआ कि व्यक्तिगत रूप से आवश्यकताओं की पूर्ति असंभव है तो लोग अलग अलग रहने के स्थान पर समूह में निवास करना अच्छा समझने लगे । उन्हें विश्वास हुआ कि एक निश्चित भूभाग में रहने से एक तो बाहरी शक्तियों से सामूहिक रुप से मुकाबला करने में सफलता मिलेगी और दूसरे सामुदायिक भावना होने के कारण पारस्परिक जिम्मेदारी को बढ़ावा मिलेगा ।
समुदाय का अर्थ एवं परिभाषा :-
यदि शाब्दिक दृष्टि से समुदाय के अर्थ पर विचार करें तो हम पाते हैं कि अंग्रेजी का ' Community' ( समुदाय ) शब्द दो लैटिन शब्दों - 'Com' तथा 'Munis' से बना हैं । 'Com' शब्द का अर्थ 'Together' अर्थात ' एक साथ से और 'Munis' का अर्थ 'Serving' अर्थात 'सेवा करने' से हैं । इन शब्दों के आधार पर समुदाय का तात्पर्य साथ साथ मिलकर सेवा करने से है । अन्य शब्दों में समुदाय का अर्थ व्यक्तियों के ऐसे समूह से है जो निश्चित भूभाग पर साथ साथ रहते हैं और वे किसी एक उद्देश्य के लिए नहीं बल्कि सामान्य उद्देश्यों के लिए इकट्ठे रहते हैं उनका संपूर्ण जीवन सामान्यतः यही व्यतीत होता है ।समुदाय को परिभाषित करते हुए प्रो. डेविस लिखते हैं, समुदाय सबसे छोटा ऐसा क्षेत्रीय समूह है जिसमें सामाजिक जीवन के समस्त पहलु आ जाते हैं । इस परिभाषा में समुदाय के तीन तत्वों का उल्लेख किया गया है -
1. - व्यक्तियों का समूह ।
2. - निश्चित भौगोलिक क्षेत्र एवं ।
3. - सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं का समावेश ।
मैकाइबर तथा पेज के अनुसार - जब किसी छोटे या बड़े समूह के सदस्य साथ साथ इस प्रकार रहते हैं कि वे किसी विशेष हित में ही भागीदार नहीं होकर सामान्य जीवन की मूलभूत दशाओं या परिस्थितियों में भाग लेते हो तो ऐसे समूह को समुदाय कहा जाता है । इन्हीं विद्वानों ने अन्यत्र लिखा है , समुदाय सामाजिक जीवन के उस क्षेत्र को कहते हैं जिसमें सामाजिक सम्बन्धता अथवा सामंजस्य की कुछ मात्रा द्वारा पहचाना जा सके । स्पष्ट है कि आपने समुदाय को एक ऐसा क्षेत्रीय समूह माना जो एक सामान्य जीवन जीता है ।
बोगार्डस के अनुसार - एक समुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसमें कुछ अंशों में हम की भावना पाई जाती है तथा जो एक निश्चित क्षेत्र में रहता है ।
आगबर्न एवं निमकॉफ के अनुसार - एक सीमित क्षेत्र में सामाजिक जीवन के संपूर्ण संगठन को समुदाय कहा जाता है ।
आसबर्न एवं न्यूमेयर के अनुसार - समुदाय व्यक्तियों का एक समूह है जो एक सन्निकट भौगोलिक क्षेत्र में रहता हो, जिस की गतिविधियों एवं हितों के समान केंद्र हो तथा जो जीवन के प्रमुख कार्यों में इकट्ठे मिलकर कार्य करते हो ।
एच. टी. मजूमदार - समुदाय किसी निश्चित भू क्षेत्र, क्षेत्र की सीमा कुछ भी हो पर रहने वाले व्यक्तियों का समूह है जो सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं ।
ग्रीन के अनुसार - समुदाय व्यक्तियों का समूह है जो समीपस्थ छोटे क्षेत्र में निवास करते हैं तथा सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं ।
जिन्सबर्ग के अनुसार - समुदाय सामाजिक प्राणियों का एक समूह है जो सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं, जिसमें अनंत प्रकार के एवं जटिल संबंध संबंधित हैं, जो उसे सामान्य जीवन के कारण उत्पन्न होते हैं अथवा जो इसका निर्माण करते हैं ।
सदरलैण्ड के अनुसार - समुदाय एक सामाजिक क्षेत्र है जिस पर रहने वाले लोग समान भाषा का प्रयोग करते हैं, सामान रूढ़ियों का पालन करते हैं, न्यूनाधिक समान भावनाएं रखते हैं तथा समान प्रवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं ।
जी. डी. एच. कोल के अनुसार - समुदाय से मेरा अभिप्राय सामाजिक जीवन के एक जटिल संरूप से हैं ,ऐसे संरूप से जिसमें अनेक मानव प्राणी सम्मिलित है, जो सामाजिक संबंधों की परिस्थितियों के अंतर्गत रहते हैं, जो सामान्य यद्यपि परिवर्तनशील रीतियों, प्रथाओं एवं प्रचलनों द्वारा परस्पर संबद्ध हैं तथा कुछ सीमा तक सामान्य सामाजिक उद्देश्यों एवं हितों के प्रति जागरूक हैं ।
विभिन्न विद्वानों द्वारा व्यक्त उपर्युक्त परिभाषाओं को सरल एवं समझने योग्य बनाने के लिए इन विद्वानों के मतों को दो भागों में बांट कर रख सकते हैं । प्रथम भाग में मैकाइबर आसबर्न एवं बोगार्डस जैसे विद्वानों के विचारों को सम्मिलित किया जा सकता है जो समुदाय को एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र एवं उस क्षेत्र के सदस्यों के आपसी तालमेल, लगाव एवं हम की भावना से जोड़ते हैं । दूसरे भाग में आगबर्न और निमकॉफ ,मजूमदार ग्रीन, जिन्सबर्ग एवं कोल जैसे विद्वानों के विचारों को सम्मिलित किया जा सकता है । जो समुदाय को एक विशेष क्षेत्र के व्यक्तियों के सामाजिक जीवन निर्वाहों , उनकी सामान भावनाओं, प्रवृत्तियों, प्रथाओं, रीति रिवाजों, एवं प्रचलनों से जोड़ते हैं ।
इस प्रकार उपर्युक्त विद्वानों द्वारा व्यक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि समुदाय एक ऐसे क्षेत्र का नाम है जहां के मानव प्राणियों के कार्य व्यवसाय संस्कृति एवं सभ्यता में समानता के साथ-साथ उनमें आपसी जिम्मेदारियों को महसूस करने तथा वहन करने की सामूहिक चिंता होती है ।
समुदाय के आधार या आवश्यक तत्व
किसी भी समूह के समुदाय कहलाने अथवा समुदाय के निर्माण के लिए तीन आधारों का होना प्रमुखतः आवश्यक माना गया है , जो इस प्रकार है : -1. - व्यक्तियों का समूह
2. - भौगोलिक क्षेत्र
3. - सामुदायिक भावना
1. - व्यक्तियों का समूह - किसी भी समुदाय के लिए व्यक्तियों का समूह प्रथम आवश्यकता है । व्यक्तियों के बिना ना तो सामान्य सामाजिक जीवन की कल्पना की जा सकती है और ना ही सामुदायिक भावना की । अतः व्यक्तियों का समूह समुदाय के निर्माण के लिए प्रथम प्रमुख आधार है ।
2. - निश्चित भौगोलिक क्षेत्र - प्रत्येक समुदाय के लिए एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का होना भी आवश्यक है । जब तक कोई समूह निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास नहीं करता है, तब तक उसे समुदाय नहीं कहा जा सकता । किसी भी गांव, नगर या राष्ट्र को इसलिए समुदाय कहा जाता है कि इनमें से प्रत्येक का अपना-अपना निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होता है । एक क्षेत्र विशेष में लंबे समय तक साथ साथ रहने और जीवन की सामान्य गतिविधियों में भाग लेने से लोगों में अपनत्व की भावना पनपती है । वे इस समूह विशेष को अपना समूह समझते हैं । निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में एक दूसरे के निकट रहने के कारण ही लोगों में अंतः क्रिया की मात्रा बढ़ती है जो सामाजिक संबंधों के निर्माण की दृष्टि से आवश्यक है ।
3. - सामुदायिक भावना - इसे हम की भावना के नाम से भी पुकारते हैं । समुदाय के निर्माण के लिए व्यक्तियों के समूह तथा निश्चित भौगोलिक क्षेत्र के अलावा सामुदायिक भावना का होना भी अत्यंत आवश्यक है । सामुदायिक भावना का तात्पर्य हम सब एक हैं , यह समुदाय हमारा है , यह अन्य समुदायों से भिन्न है, इसके सुख दुख में हम सभी समान रूप से भागीदार हैं, हम सब दृढ़ता के सूत्र में बंधे हुए हैं आदि से है । सामान्यतः प्रत्येक समुदाय अन्य समुदायों के संदर्भ में एक संगठित इकाई के रूप में कार्य करता है । जब तक किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों में यह सामुदायिक भावना नही पनपती तब तक उसे समुदाय नहीं कहा जा सकता । जब कुछ लोग लम्बे समय से इकट्ठे साथ साथ रहते, साथ साथ कार्य करते हैं, एक दूसरे के सुख दुख में भाग लेते हैं, सामूहिक हितों के प्रति जागरूक रहते हैं और आवश्यकता पड़ने पर बड़े से बड़ा त्याग करने को तैयार रहते हैं, तो उनमें हम की भावना या सामुदायिक भावना का पनपना स्वाभाविक ही है । यदि कोई व्यक्ति किसी बड़े नगर में यकायक किसी ऐसे व्यक्ति को देखता है जो उसी के गांव अथवा नगर का रहने वाला है तो उसे बड़ी प्रसन्नता होती है । वे दोनों एक दूसरे से मिलते हैं, कुशल समाचार पूछते हैं, वहां आने का कारण मालूम करते हैं और आवश्यकतानुसार एक दूसरे की सहायता तक को तैयार हो जाते हैं, यद्यपि पहले कभी उनमें मूल गांव या नगर में उनमें आपस में कोई बातचीत तक नहीं हुई । यह सामुदायिक भावना ही है जो उन्हें एक दूसरे से संपर्क, संचार और अंतः क्रिया के लिए प्रेरित करती है ।
सामुदायिक भावना के अंतर्गत प्रमुखतः तीन बातें पाई जाती हैं :
1. - हम की भावना की अभिव्यक्ति - हम की भावना व्यक्तियों को एक दूसरे के सुख दुख में साथ देने और मिलकर काम करने को प्रोत्साहित करती है । स्थान या क्षेत्र विशेष के साथ लोगों का विशेष लगाओ पाया जाता है । वे अपने समुदाय के लोगों को अपना समझते हैं । उनमें भाईचारे के संबंध पाए जाते हैं । हम सब एक हैं, हम सबके हित सामान्य है और सब एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं, इस प्रकार की बलवती भावना समुदाय के सदस्यों को एकता के सूत्र में बांधे रखती है ।
2. - योगदान या दायित्व निर्वाह की भावना - सामुदायिक भावना का एक अन्य तत्व सदस्यों में समुदाय के कार्यों में सम्मिलित होने और योगदान देने की भावना है । समुदाय से संबंधित अनेक ऐसे सामूहिक कार्य होते हैं जिन्हें पूरे समुदाय के सहयोग के बिना पूर्ण नहीं किया जा सकता है । अतः विभिन्न सदस्य अपनी-अपनी प्रास्थिति के अनुसार भूमिका निभाते हुए समुदाय के कार्यों में योगदान देते हैं, अन्य सदस्यों की सहायता करना अपना दायित्व समझते हैं ।
3. - निर्भरता की भावना - सामुदायिक भावना के अंतर्गत निर्भरता की भावना एक आवश्यक तत्व है । व्यक्ति अपने को एक दूसरे पर और संपूर्ण समुदाय पर निर्भर समझते है । उन्हें अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य सहयोग पर निर्भर रहना पड़ता है । पारस्परिक रूप से निर्भर रहने की भावना सामुदायिक भावना को बढ़ाने में योगदान देती है ।
वर्तमान समय में औद्योगिकरण, श्रम विभाजन, विशेषीकरण, नगरीकरण, यातायात और संचार के साधनों के विकास, भौगोलिक दूरी में कमी, एक ही विश्व का दृष्टिकोण, जनसंख्या की तीव्र वृद्धि एवं जनसंख्या में विविधता, व्यक्तिगत स्वार्थ का बढ़ना तथा द्वितीयक संबंधों की प्रधानता आदि कारणों से सामुदायिक भावना में कमी आती जा रही है और ऐसा विशेषतः नगरीय समुदायों में देखने को मिलता है ।
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