सामुदायिक संगठन कार्य के सिद्धांत एवं प्रकार
सामुदायिक संगठन कार्य के सिद्धांत -
सिद्धांत का अर्थ प्रकृति एवं विषय क्षेत्र -
सामुदायिक संगठन के सिद्धांतों का वर्णन करने से पहले आवश्यक है कि हम सिद्धांत के अर्थ को समझें तथा सामुदायिक संगठन में इसका क्या महत्व है उस पर विचार करें . सिद्धांत एक ऐसा ज्ञान है जो विभिन्न समाज वैज्ञानिकों के चिंतन अनुभव अवलोकन एवं अध्ययन से प्राप्त होता है और जिसके द्वारा समाज कार्यकर्ता या सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक संगठन कार्य के निर्धारित लक्ष्यों को प्रभावपूर्ण ढंग से प्राप्त कर सकता है।
लियोनार्ड डी ह्वाइट के अनुसार - एक सिद्धांत एक ऐसी उपकल्पना है जिसका निरीक्षण तथा प्रयोग से परीक्षण किया गया है और जिसको एक बुद्धिमानी पूर्ण क्रिया के पथ प्रदर्शक के रूप में या ज्ञान के साधन के रूप में देखा जा सकता है।
समुदाय के साथ कार्य करने के विभिन्न सिद्धांतों का ज्ञान सामुदायिक संगठन कार्य के अनुभव पर आधारित है अतः इन सिद्धांतों के आधार पर कार्य करते हुए हम सामुदायिक संगठन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। यह हमें सही दिशा का ज्ञान करा सकता है एवं हमारे मार्ग को आसान बना सकता है। इसीलिए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सामुदायिक संगठन के सिद्धांतों की जानकारी अत्यंत आवश्यक है। इन के ज्ञान के बिना कार्यकर्ता को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है तथा लक्ष्य पूर्ति में असफल सिद्ध होने की संभावना भी बनी रहती है।
सामुदायिक संगठन कार्य के सिद्धांत--------
सामुदायिक संगठन कार्य के कुछ प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित है --
1. स्वीकृति का सिद्धांत -
सामुदायिक संगठन कार्य का यह प्रथम एवं महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिसका ज्ञान कार्यकर्ता के लिए अत्यंत आवश्यक है। कार्यकर्ता को चाहिए कि 1. वह समुदाय को उसी रूप में स्वीकार करें जिस रूप में समुदाय दिखाई देता है। 2. अपने को समुदाय से स्वीकार कराएं अर्थात कार्यकर्ता को अपने कार्य के प्राथमिक चरण में सामुदायिक सदस्यों द्वारा बताई गई समस्या को ही नहीं बल्कि समुदाय की रूढ़ियों परंपराओं सभ्यता- संस्कृति एवं सामुदायिक मूल्यों को गहराई से समझना चाहिए और सराहना चाहिए। क्योंकि प्रत्येक समुदाय की न केवल अपनी अलग संस्कृति होती है वरन उस समुदाय के लोगों के लिए वह अन्य समुदाय की संस्कृति एवं सभ्यता से उत्तम होती है। इसलिए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को समुदाय विशेष के प्रत्येक कार्य व्यवहार को भावनात्मक धरातल पर देखना चाहिए। इसके साथ-साथ कार्यकर्ता को अपने विचार व्यवहार क्रिया प्रतिक्रिया को समुदाय के व्यवहार से जोड़ते हुए दोनों में तालमेल स्थापित करना चाहिए और समुदाय के साथ अपने आप को इस प्रकार जोड़ना चाहिए ताकि समुदाय उसे अपना ले।
इसके लिए आवश्यक है कि सामुदायिक संगठन कर्ता न केवल समुदाय के कुछ प्रमुख व्यक्तियों नेताओं सदस्यों संगठनों समूह से ही मिले बल्कि प्रत्येक जाति प्रजाति धर्म वर्ग समूह उप समूह संगठन विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्तर एवं विभिन्न भाग में रहने वाले सदस्यों से मिले।अपने विचार व्यवहार में और समुदाय की संस्कृति में तालमेल स्थापित करते हुए उसे समुदाय में अपना लोकप्रिय स्थान बनाना चाहिए। उदाहरणार्थ यदि वह गांव में कार्य कर रहा है तो ग्रामीणों जैसी जीवनशैली अपनाये और यदि शहर में कार्य कर रहा है तो शहरी जैसी।
2. अनुभूत आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के ज्ञान का सिद्धांत
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय में सदस्यों के साथ एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है इसलिए समुदाय को स्वीकार करने एवं अपने को समुदाय द्वारा स्वीकृत करने के पश्चात उसे समुदाय की उन तमाम आवश्यकताओं का पता लगाना चाहिए जो समुदाय के सदस्यों की नजर में महत्वपूर्ण हो।
कार्यकर्ता को कभी भी अपने समुदाय की आवश्यकता या जिस जिस समुदाय में वह कार्य कर चुका है की आवश्यकता को प्रत्येक समुदाय की आवश्यकता नहीं मानना चाहिए। बल्कि जिस समुदाय में वह अब कार्य कर रहा है उसके द्वारा महसूस की गई आवश्यकताओं का पता लगाना चाहिए। हो सकता है की एक समुदाय के लिए सार्वजनिक टेलीफोन उसकी आवश्यकता हो और दूसरे के लिए उच्च शिक्षण संस्था।
सामाजिक कार्यकर्ता का मुख्य उद्देश्य सामुदायिक आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों में तालमेल स्थापित करना है। इसलिए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को स्वयं समुदाय में एवं समुदाय के आसपास कार्यरत सरकारी एवं गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा उपलब्ध विभिन्न साधनों का पता लगाना चाहिए तथा सामुदायिक कल्याण के विकास के लिए उन्हें संचालित करना चाहिए।
3. व्यक्तिकरण का सिद्धांत -
एक बड़े सामुदायिक भू भाग में विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक स्तर के लोग निवास करते है। विभिन्न सामाजिक आर्थिक विशेषताओं के कारण इनकी समस्याएं है। सामुदायिक संगठन कार्य कर्ता को समस्यागत विशेषताओं की भिन्नता को स्वीकार हुए उनमे व्याप्त विभिन्न समस्याओं का अध्ययन करना चाहिए तथा सभी की समस्याओं को सुनना चाहिए कि वह सभी समूहों एवं उप समूहों के सदस्यों से मिलकर समस्याओ का अध्ययन करे। विभिन्न एकत्रित समस्याओं के अध्ययनोपरान्त सामान्य एवं सार्वजानिक लाभ प्रदान करने वाली समस्याओं को प्राथमिकता दे।
4. आत्म संकल्प का सिद्धान्त -
सामुदायिक संगठन कार्यकर्त्ता सामुदायिक सदस्यों के साथ कार्य कर उनकी योग्यता एवं ज्ञान का विकास उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में करता है। उसे सामुदायिक संगठन कार्य के प्रत्येक चरण में सदस्यों की शक्तियों एवं योग्यताओ का विकास आवश्यक दिशा में करते रहना चाहिए। उसे सदस्यों में अपनी समस्याओं एवं आवश्यकताओं को पहचानने ,उपलब्ध विभिन्न साधनो का पता लगाने तथा दोनों के बीच आवश्यक तालमेल स्थापित करने के लिए आवश्यक निर्णय लेने का पूरा पूरा खुला अवसर प्रदान करना चाहिए। उन्हें निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता देनी चाहिए। इससे वे अपने को जिम्मेदार महसूस करेंगे और अपने द्वारा लिए गए निर्णय के कार्यान्वयन उसके उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहेंगे।
5. सीमाओं के बीच स्वतंत्रता का सिद्धांत -
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को समुदाय में लिए जा रहे प्रत्येक निर्णय में सदस्यों की इस प्रकार सहायता करनी चाहिए जिससे वह ऐसे निर्णय ले सकें जिसमें समुदाय के अधिकाधिक जरूरतमंद लोगों का कल्याण हो सके . यदि कार्यकर्ता को लगे कि सामुदायिक सदस्य ऐसा निर्णय लेने जा रहे हैं जिससे समुदाय के किसी विशेष पक्ष या वर्ग के लोगों को ही लाभ होगा तो उस समय कार्यकर्ता को सामुदायिक शक्तियों को हाथ में रखने वाले प्रमुख सदस्यों के सहयोग एवं अपने चातुर्य से इसे रोकना चाहिए . एक समझदार कार्यकर्ता समुदाय में लिए जा रहे निर्णयों को आवश्यक मार्गदर्शन देता है समुदाय अधिकाधिक लोगों के लिए उसे लाभकर बनाने का प्रयत्न करता है सदस्यों का यथासंभव ज्ञानवर्धन करता है तथा समुदाय की समस्याओं एवं आवश्यकताओं के संबंध में दिए जा रहे निर्णयों में आवश्यक परिवर्तन एवं नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास करता है।
6. नियन्त्रित संवेगात्मक सम्बन्ध का सिद्धान्त -
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सदस्यों की समस्याओं को सूक्ष्मता से ग्रहण करना चाहिए और अपने व्यवसायिक ज्ञान के आधार पर उनका प्रत्युत्तर देना चाहिए। समुदाय की समस्याओं परिस्थितियों की सत्यता महसूस करते हुए उसे अपने प्रभावपूर्ण एवं कुशल ज्ञान से प्रभावपूर्ण एवं आवश्यक निर्णय लेना चाहिए। कार्यकर्ता की सामुदायिक सदस्यों की समस्याओं को सुनने में अपने ध्यान ज्ञान विचार एवं एकाग्रता को सदस्यों के ध्यान ज्ञान विचार एवं एकाग्रता के साथ जोड़ना चाहिए लेकिन चिंतन एवं निर्णय के समय उसको अपने व्यवसायिक पक्षों को ध्यान में रखकर समस्या उन्मूलन प्रभावपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।
7. लचीले कार्यात्मक संगठन का सिद्धान्त -
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को चाहिए कि वह सभी सदस्यों को इकट्ठा कर एक ऐसे प्रभावपूर्ण संगठन का निर्माण कराए जिसमें समुदाय के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले विभिन्न जाति धर्म एवं सामाजिक आर्थिक वर्ग वाले सदस्य शामिल हो, कार्यकर्ता को इस प्रकार के संगठन के निर्माण में इसके आकार पर भी ध्यान देना चाहिए . आकार ऐसा होना चाहिए जो ना ही अधिक बड़ा हो और ना ही अधिक छोटा संगठन के नेता का चुनाव कराने में भी सदस्यों की इस प्रकार सहायता करनी चाहिए जिससे वह ऐसे नेता का चुनाव कर सके जो संगठन की जिम्मेदारी निभाने समुदाय की आवश्यकताओं एवं समस्याओं को पहचानने तथा समुदाय की स्वीकृति हासिल करने में निपुण हो साथ ही साथ वह ऐसा भी हो जो विरोधी समूहों एवं उपसमूहों के तनावों को प्रभावकारी ढंग से रोक सके।
8. उद्देश्यपूर्ण सम्बन्ध का सिद्धांत -
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय में एक व्यवसायिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करता है इसलिए उसे अपने व्यवसायिक उद्देश्य के विषय में सचेत रहना चाहिए। उसे सदस्यों में भी अपने उद्देश्य के विषय में पूर्ण चेतना पैदा करनी चाहिए। उद्देश्यपूर्ण संबंधों की मजबूती के लिए आवश्यक है कि वह समुदाय के उन शक्तिशाली संगठनों समूहों एवं उप समूहों के सदस्यों से भी अपना प्रगाढ़ संबंध बनाए जिनसे किसी ना किसी रूप से समुदाय प्रभावित हो सके। अपने व्यवसायिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि कार्यकर्ता अपने कार्य में अनियमितता बरते। इस नियमितता को तब तक बनाए रखना चाहिए जब तक उसे विश्वास ना हो जाए कि सामुदायिक सदस्यों में अब अपनी समस्याओं एवं आवश्यकताओं को पहचानने और आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच तालमेल स्थापित करने की आत्मशक्ति का विकास हो गया है।
9.प्रगतिशील कार्यक्रम संबंधी अनुभव का सिद्धांत -
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को कार्यक्रम के निर्धारण के समय उसके आधार बिंदुओं को स्पष्ट करते हुए कार्यक्रम विकास की प्रक्रिया में सदस्यों की अभिरुचियों आवश्यकताओं और योग्यताओं का पता लगाना चाहिए . सामुदायिक कार्यक्रम किसी बाहरी संस्था द्वारा निश्चित नहीं होना चाहिए . कार्यकर्ता को उपलब्ध समुदाय कल्याण के स्तर को देखकर विभिन्न प्रकार के आवश्यक कार्यक्रमों की तरफ संकेत करना चाहिए , आरंभ में संचालित कार्यक्रम समुदाय की योग्यता एवं क्षमता के अनुसार छोटे आसान और अल्पकालीन होने चाहिए . इस प्रकार आसान कार्यक्रमों से आरम्भ कर जटिल एवं उपयोगी कार्यक्रमों को बनाने में सदस्यों की मदत करनी चाहिए। कार्यकर्ता को सदस्यों की सामूहिक योजना बनाने कार्यक्रम तैयार करने एवं उनका क्रियान्वयन करने संचालित कार्यक्रमों के मूल्यांकन करने एवं मूल्यांकन के आधार पर कार्यक्रमों में सुधार करने में सदस्यों का मार्गदर्शन करना चाहिए।
10. जन सहभागिता का सिद्धान्त -
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सामुदायिक संगठन कार्य सामुदायिक सदस्यों के लिए सदस्यों के द्वारा और सदस्यों के साथ किया जाना है . किसी भी कार्यक्रम की सफलता के लिए सदस्यों की सहभागिता अत्यंत आवश्यक है . इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्यकर्ता को न केवल कार्यक्रम की योजना तैयार करने और उसके कार्यान्वयन में ही सदस्यों की सहभागिता पर बल देना चाहिए बल्कि समुदाय के अंदर एवं आसपास उपलब्ध साधनों को पहचानने और प्रत्येक चरण पर इसके लिए जाने वाले निर्णयों में भी उनकी सहभागिता को प्रोत्साहित करना चाहिए ,.इसमें ऐसे सभी लोगों को भी शामिल करना चाहिए जो औपचारिक रूप से समुदाय के कल्याण के लिए कार्यरत हों।
सामुदायिक कार्यकर्ता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सामुदायिक सदस्य सामुदायिक कल्याण योजनाओं एवं कार्यक्रमों को किसी बाहरी संस्था या संगठन का कार्यक्रम ना समझ बैठे।
11. साधन संचालन का सिद्धांत -
सामुदायिक कार्यकर्ता की सफलता के लिए आवश्यक है कि समुदाय के अंदर एवं आसपास उपलब्ध विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी साधनों के अध्ययनोपरान्त इस बात का निर्णय लें कि समुदाय की आवश्यकता की प्राथमिकता के अनुसार वर्तमान परिस्थितियों में पहले किस साधन को किसके द्वारा और किस प्रकार संचालित किया जाए। कार्यकर्ता को विभिन्न उपलब्ध साधनों के संचालित कराते समय समुदाय के विभिन्न संगठनों में आवश्यक समन्वय स्थापित करते हुए साधन संचालन में उनकी शक्तियों को प्रयोग में लाना चाहिए। ऐसा करने में आने वाली समस्याओं से बचने तथा कार्यक्रम को बाधा हींन बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए।
12.मूल्यांकन का सिद्धांत -
कार्यक्रम आयोजन एवं संचालन के पश्चात कार्यकर्ता को कार्यक्रम में रही कमियों एवं त्रुटियों का मूल्यांकन करना चाहिए . मूल्यांकन ना केवल पिछले कार्यक्रमों में आई हुई त्रुटियों को जानने के लिए उपयोगी है बल्कि नए कार्यक्रमों के आयोजन एवं कार्यान्वयन के लिए भी मूल्यांकन से प्राप्त ज्ञान का उचित सदुपयोग नियोजित की जाने वाली कार्यक्रमों में करने से कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं की संभावनाएं हट जाती हैं।
सामुदायिक संगठन कार्य के प्रकार
सामुदायिक संगठन के विभिन्न उद्देश्यों के आधार पर सामुदायिक संगठन के कुछ प्रकारों को निम्नलिखित रुप से व्यक्त किया जा सकता है :
सूचना निर्माण का प्रकार-
सामुदायिक संगठन कार्य का प्रथम एवं महत्वपूर्ण प्रकार समुदाय की स्थिति का अध्ययन करना है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सामुदायिक सदस्यों के साथ उनके कल्याण कार्य के लिए सर्वप्रथम उनकी वर्तमान स्थितियों अर्थात उनकी आवश्यकताओं एवं समस्याओं को जानना चाहिए। साथ ही उनकी सामाजिक स्थिति उनकी समस्याओं के विषय में चेतना और समस्याओं को दूर करने के लिए किए गए प्रयासों का अध्ययन करना चाहिए इसके साथ-साथ समुदाय कल्याण एवं विकास कार्य में लगी हुई विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य, मनोरंजन, संचार, खेती, व्यापार व्यवसाय, उद्योग एवं समाज कल्याणकारी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं का अध्ययन करना चाहिए अध्ययन कार्य में कार्यकर्ता को न केवल विभिन्न प्रकार की कल्याण कार्य कर रही सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं का पता लगाना है बल्कि उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न सेवाओं को भी जानने का प्रयास करना है कि यह सेवाएं किन लोगों को और किस प्रकार दी जाती है। इन सूचनाओं के ज्ञान से उद्देश्यों के निर्धारण तथा कार्यक्रम योजना के निर्माण में सहायता मिलती है।
समस्याओं के समाधान का प्रकार-
सामुदायिक संगठन कार्य का दूसरा प्रकार है समस्याओं के समाधान के लिए सामुदायिक सदस्यों को एकत्रित कर विचार करना फिर सदस्यों को उन साधनों के प्रति सचेत करना जो समुदाय में उपलब्ध है और जो समुदाय के बाहर से प्राप्त किए जा सकते हैं इन साधनों को ध्यान में रखते हुए प्रभावपूर्ण एवं व्यवहारिक योजनाओं पर विचार करना।
जनकल्याण का प्रकार -
एक समुदाय में शिक्षित, अशिक्षित एवं विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षित लोग निवास करते हैं। इनमें अपनी समस्या जानने समझने और इसके निराकरण की योग्यता होती है। इसलिए सामुदायिक संगठन कार्य का तीसरा प्रकार यह होना चाहिए कि सामुदायिक सदस्य अपनी व्यक्तिगत कल्याण एवं विकास की भावनाओं को जोड़ें।इससे प्रत्येक धर्म जाति एवं वर्ग के लोग स्वेच्छा से एवं उपलब्ध सरकारी एवं गैर सरकारी कल्याण सेवा प्रदान करने वाली संस्थाओं के सहयोग से जनकल्याण को बढ़ावा दे सकते हैं।
जनहित प्रोत्साहन का प्रकार-
एक समुदाय कई समूहों एवं उप समूहों का योग होता है।इन समूहों एवं उप समूहों का बंटवारा व्यक्तियों के सामाजिक आर्थिक एवं वैचारिक विविधताओं के आधार पर होता है।एक समूह के व्यक्ति विशेष कर अपने समूह या उप समूह के सदस्यों के साथ अपना तालमेल रखना चाहते हैं अतः सामुदायिक संगठन कार्य में सामुदायिक कार्यकर्ता को इन विभिन्न समूहों एवं उप समूहों के सदस्यों के मनोबल को बढ़ाते हुए इनमें जनहित की भावना का विकास करना चाहिए। उसे ऐसी योजनाओं का निर्माण करना चाहिए जो सभी समूहों व उप समूहों को लाभ कर हो तभी सभी का सहयोग मिल सकता है।
जन संगठन का प्रकार-
इसके लिए एक संगठन स्थापित करने की आवश्यकता होती है। यह संगठन ऐसा होना चाहिए जो विभिन्न लोगों को मान्य हो। इसकी प्रकृति प्रजातांत्रिक होनी चाहिए। इसमें सभी वर्गों के लोगों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए इसका नेतृत्व सुयोग्य पदाधिकारियों के हाथ होना चाहिए।
समाज कल्याण का प्रकार-
सामुदायिक कार्य का यह भी एक महत्वपूर्ण प्रकार है कि विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा संचालित समुदाय कल्याण सेवाओं के बारे में लोगों को बताया जाए। साथ ही यदि इस समुदाय को किसी विशेष सेवा की आवश्यकता है तो उसके बारे में उन संस्थाओं का ध्यान आकर्षित किया जाए।संचालित सेवाओं की अधिक आवश्यकता होने पर स्थापित सामुदायिक संगठन द्वारा संबंधित संस्थाओं से निवेदन कर ऐसी सेवाओं को और बढाया जाए ।जिससे सहायता प्राप्त करने वाले लोग आवश्यकता अनुसार पर्याप्त सेवाओं से लाभान्वित हो सकें साथ साथ समुदाय के ऐसे वर्ग जिन्हें इन सेवाओं की आवश्यकता है लेकिन किसी कारण से हुए इन से लाभान्वित नहीं हो पाए हैं को भी लाभान्वित होने का अवसर प्रदान करना चाहिए।
सामुदायिक संसाधनों के विकास का प्रकार
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि कुछ सदस्य अपने अज्ञान, पारिवारिक, आर्थिक एवं सामाजिक, जिम्मेदारियों तथा विशेषज्ञों की सलाह के अभाव के कारण समुदाय के उपलब्ध साधनों को नहीं पहचान पाते हैं। इसलिए वे उन साधनों से लाभान्वित नहीं हो पाते हैं अतः सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को चाहिए कि वह एक विशेषज्ञ सलाहकार के रूप में कार्य करें जिससे समुदाय या समुदाय के आसपास विभिन्न संस्थाओं द्वारा संचालित सेवाओं को सभी लोग जान सके तथा समयानुसार अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उन उपलब्ध साधनों का यथासंभव प्रयोग कर सकें।सामुदायिक कार्यकर्ता एवं संगठन के विभिन्न पदाधिकारियों कर्मचारियों एवं सदस्यों को चाहिए कि वे नियमित कल्याण सेवा प्रदान करने वाली संस्थाओं तक पहुंचकर उनकी कल्याण सेवा को नियमित बनाने में सहायता कर सकें इससे उपलब्ध साधनों की पर्याप्त मात्रा एवं आवश्यक दिशा में उपयोग हो सकता है।
सौहार्द विकास का प्रकार-
समुदाय में जहां विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्तर के लोग होते हैं उनके विचारों में भिन्नता होना स्वाभाविक ही है इसलिए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सभी के विचारों का ख्याल रखते हुए आपसी सहयोग को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
समुदाय में समन्वय स्थापना का प्रकार-
सामुदायिक संगठन कार्य न केवल व्यक्ति विशेष के लिए है, ना ही व्यक्ति विशेष के प्रयास से इसके लक्ष्य की प्राप्ति संभव है,बल्कि समुदाय के संपूर्ण व्यक्तियों के साथ व्यक्तियों के द्वारा संभव है।इसलिए सामुदायिक कार्य की वास्तविक सफलता पारस्परिक विकास एवं समृद्धि के लिए आवश्यक है कि समुदाय कल्याण कार्य के लिए निर्धारित कार्यक्रमों में समुदाय के विभिन्न व्यक्तियों समूह उप समूहों एवं विभिन्न जाति धर्म एवं वर्ग के संगठनों के साथ आवश्यक समन्वय स्थापित किया जाए।
समाज सुधार का प्रकार-
सामुदायिक कार्यकर्ता को सामुदायिक बुराइयों को दूर करने तथा समुदाय को संकट रहित बनाने का प्रयास करना चाहिए।सामुदायिक विकास के लिए परिवर्तनशील विधियों द्वारा समुदाय में उत्पन्न होने वाली समस्याओं से लोगों को आगाह करना चाहिए उसे समस्याओं को अच्छे ढंग से समझने श्रेणी करण करने और उन्हें दूर करने के लिए आवश्यक योग्यता का विकास करना चाहिए।
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