समिति का अर्थ एवं परिभाषा तथा विशेषताओं का उल्लेख कीजिए
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, और इस रूप में उसकी असंख्य आवश्यकता है । अपने अस्तित्व को बनाए रखने और समुदाय में अपने जीवन को ठीक प्रकार से चलाने के लिए इन आवश्यकताओं की पूर्ति अत्यंत आवश्यक है । आपनी इन विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति कई तरीके अपना सकता है । वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों की सहायता प्राप्त कर सकता है, उनके साथ सहयोग कर सकता है । तो वह पारस्परिक सहयोग के आधार पर अन्य लोगों के साथ मिलजुल कर अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकता है, अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल हो सकता है । एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य साधारणतः इस तरीके को अपनाकर ही अपने ही अपने हितों, उद्देश्यों या आवश्यकताओं की पूर्ति करता है । इस विधि को अपनाकर वह समिति का निर्माण करता है । यहीं से समिति की स्थापना होती है । इस विधि में सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न कर रहे लोगों में से प्रत्येक का कुछ न कुछ योगदान होता है । अपने कुछ लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अन्य लोगों के साथ मिलकर, सहयोग करके किसी संगठन की स्थापना कर कार्य करना ही समिति को जन्म देना है । इस प्रकार स्पष्ट है कि जब कुछ लोग मिलकर अपनी आवश्यकताओं या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सहयोग करते हैं संगठन बनाकर प्रयत्न करते हैं तो ऐसे संगठन को ही समिति कहा जाता है ।समिति की परिभाषा एवं अर्थ :-
मैकाइबर एवं पेज के अनुसार - " समिति मनुष्यों का एक समूह है जिसे किसी सामान्य उद्देश्य या उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संगठित किया गया है । इस परिभाषा से ज्ञात होता है कि समिति मनुष्यों का एक संगठित समूह है । इस समूह की स्थापना कुछ सामान्य हितों या लक्ष्यों की पूर्ति के लिए की जाती है ।
फेयरचाइल्ड के अनुसार - " समिति एक संगठनात्मक समूह है जिसका निर्माण सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया गया है और जिसका अपना आत्मनिर्भर प्रशासकीय ढांचा तथा कार्यकर्ता होते हैं । इस परिभाषा में संगठन के स्वयं के प्रशासकीय ढांचे तथा कार्यकर्ता की बात कही गई है । जब किसी भी संगठन का निर्माण किया जाता है तो उसकी गतिविधियों को चलाने के लिए कुछ पदाधिकारियों को चुनना अथवा नियुक्त करना होता है । साथ ही उचित तरीके से कार्य चलाने हेतु कुछ नियम भी बनाने होते हैं । इन्हीं से मिलकर प्रशासकीय ढांचा बनता है । किसी संगठन के पदाधिकारियों जैसे अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष तथा कुछ अन्य सदस्यों से मिलकर समिति की कार्यकारिणी बनती है । इस प्रकार प्रत्येक समिति का एक प्रशासकीय ढांचा होता है ।
मोरिस गिन्सबर्ग के अनुसार - " समिति एक दूसरे से सम्बद्ध सामाजिक प्राणियों का समूह है जो इस सत्य पर आधारित है कि उन्होंने किसी निश्चित हित या हितों को पूरा करने के लिए एक सामान्य संगठन बनाया है । गिन्सबर्ग ने अन्यत्र लिखा है कि समिति लोगों के समूह से मिलकर बनती है जो किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु संगठित हुए हो जैसे व्यापार संघ, राजनीतिक दल, विद्वत समाज । गिन्सबर्ग के उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि समिति का निर्माण एक व्यक्ति के द्वारा नहीं बल्कि कुछ व्यक्तियों के द्वारा मिलकर एक या कुछ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है । इसका निर्माण एक संगठन के रूप में होता है ।
आगबर्न एवं निमकॉफ के अनुसार - " समित एक ऐसा संगठन है, जो प्रायः विशेष स्वार्थों की पूर्ति के लिए बनाया जाता है । इसका उद्देश्य अपने सदस्यों की विशेष या सामान्य इच्छाओं की संतुष्टि के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । आपने शिक्षक समिति, व्यायामशाला एवं प्रार्थना समाज को समिति के उदाहरणों के रूप में बताया है । आपके अनुसार समिति की प्रकृति अस्थाई और कार्य क्षेत्र सीमित होता है । यह एक अथवा कुछ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाई जाती है । एक समिति के द्वारा मनुष्य के सभी उद्देश्यों की पूर्ति नहीं की जाती और इसी कारण उसके द्वारा भिन्न-भिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अलग-अलग समितियां बनाई जाती है ।
अतः समिति को मनुष्यों के विचार पूर्वक बनाए गए एक ऐसे संगठन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके एक या कुछ उद्देश्य होते हैं और साथ ही जिसकी अपनी एक कार्यकारिणी भी होती है ।
समिति की विशेषताएं :-
समिति की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर इसकी प्रमुख विशेषताओं या लक्षणों को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है :1. - व्यक्तियों का समूह - समिति का निर्माण कुछ व्यक्ति मिलकर करते हैं और क्योंकि व्यक्ति मूर्त प्राणी है,अतः समिति एक मूर्त संगठन हैं । व्यक्तियों के अभाव में किसी भी समिति की कल्पना नहीं की जा सकती है।
2. - निश्चित उद्देश्य - समिति के एक या कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं । कुछ व्यक्ति अपने सामान्य हितों को लेकर ही एक समिति का गठन करते हैं । निश्चित उद्देश्यों के अभाव में कोई भी समिति अपने कार्यों को ठीक से नहीं कर सकती । किसी भी उद्देश्यहीन समूह को समिति नहीं कहा जा सकता ।
3. - विचारपूर्वक स्थापना - समिति एक विचारपूर्वक स्थापित किया हुआ संगठन माना जाता है । जब कुछ लोग सामूहिक रूप से मिलकर आपने किसी उद्देश्य या कुछ उद्देश्यों को पूरा करना चाहते हैं तो वे एक संगठन का निर्माण करते हैं जिसे समिति कहा जाता है । समिति का समुदाय की भांति स्वतः विकास नहीं होता, बल्कि इसे जानबूझकर और काफी सोच विचार के बाद बनाया जाता है ।
4. - एक निश्चित संगठन - प्रत्येक समिति का एक निश्चित संगठन होता है । संगठन के अभाव में कोई भी समिति अपने उद्देश्यों को ठीक से प्राप्त नहीं कर सकती । किसी भी भीड़ को संगठन के अभाव में समिति नहीं कहा जा सकता संगठन के आधार पर ही एकता और सहयोग की भावना पनपती है ।
5. - नियमों पर आधारित - प्रत्येक समिति के अपने कुछ नियम,उपनियम आदि होते हैं जिनके माध्यम से सदस्यों के आचरण को निर्देशित एवं नियमित किया जाता है । ऐसे नियमों में सदस्यता संबंधी योग्यता, सदस्यता शुल्क, कार्यप्रणाली आदि आते हैं । नियम लिखित या अलिखित दोनों ही प्रकार के हो सकते हैं । नियमों के विरुद्ध आचरण करने वाले को समिति दंडित कर सकती है और यहां तक कि सदस्यता भी छीन सकती है ।
6. - ऐच्छिक सदस्यता - किसी भी समिति का सदस्य बनना या नहीं बनना व्यक्ति की स्वयं की इच्छा पर निर्भर करता है । वह अपने हित या रुचि के अनुसार किसी भी समिति का सदस्य बन सकता है और जब चाहे तब सदस्यता से त्यागपत्र भी दे सकता है । समिति का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति को बाध्य नहीं किया जा सकता ।
7. - अस्थायी प्रकृति - समिति साधारणतः कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विचार पूर्वक बनाई जाती है और इन उद्देश्यों के पूरा होने पर उसे समाप्त कर दिया जाता है । उदाहरण के रूप में, शिक्षण संस्थाओं में कुछ मांगों को लेकर विद्यार्थी संघर्ष समिति का गठन करते हैं और अपना आंदोलन चलाते हैं । इन मांगों के पूरा हो जाने पर संघर्ष समिति भंग कर दी जाती है । इसी दृष्टि से समिति की प्रकृति अस्थायी होती है ।
8. - औपचारिक सम्बन्ध - समिति के सदस्यों के बीच पाए जाने वाले संबंधों की प्रकृति औपचारिक होती है । व्यक्ति अपने विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भिन्न- भिन्न समितियों की सदस्यता ग्रहण करता है और इन समितियों में सभी सदस्यों के साथ वह घनिष्ठता के सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाता । इसका एक कारण तो यह है कि वह किसी उद्देश्य विशेष के कारण ही अन्य सदस्यों के संपर्क में आता है और वह भी कभी-कभी । दूसरा कारण यह है कि समय की सीमा के कारण वह सब के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित कर भी नहीं पाता है ।
9. - साध्य न होकर साधन - कोई भी समिति साधारणतः कुछ उद्देश्यों की पूर्ति का साधन मात्र होती है अपने आप में साध्य नहीं । जब कोई व्यक्ति किसी क्लब का सदस्य मनोरंजन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनता है तो क्लब उसे मनोरंजन का साधन है, न कि अपने आप में साध्य । समिति व्यक्ति के विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति का माध्यम होती है ।
Comments
Post a Comment