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सामाजिक संरचना की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए

सामाजिक संरचना की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए

सामाजिक संरचना को और अधिक स्पष्टतः समझने के लिए हम यहां उसकी विशेषताओं का उल्लेख करेंगे :- 

1. - सामाजिक संरचना समाज के बाह्म स्वरूप का बोध कराती है -
सामाजिक संरचना का निर्माण विभिन्न इकाइयों से होता है । ये इकाइयां जब एक क्रमबद्ध व्यवस्था में जुड़ जाती है तो एक ढांचे का निर्माण होता है । इसमें हम इकाइयों के कार्यों को सम्मिलित नहीं करते हैं । जिस प्रकार से शरीर के विभिन्न अंग जैसे हाथ,पाँव, नाक, कान, आँख, सिर, पेट आदि एक व्यवस्थित क्रम में परस्पर जुड़ते हैं तो शरीर रूपी ढांचे का निर्माण होता है, जिसके बाह्म रूप को स्पष्टतः देखा जा सकता है । इसी प्रकार से समाज का निर्माण करने वाली इकाइयां भी क्रमबद्ध रूप से जुड़ने पर एक बाह्म ढांचे का निर्माण करती है,जिसे सामाजिक संरचना कहते हैं । सामाजिक संरचना का सम्बन्ध सामाजिक इकाइयों की कार्यविधि से नहीं है ।

2. - सामाजिक संरचना अखण्ड व्यवस्था नहीं है -
प्रत्येक सामाजिक संरचना का निर्माण विभिन्न इकाइयों से होता है । ये इकाइयां व्यक्ति, समूह, संस्थाएं, समितियां आदि है । इस प्रकार प्रत्येक संरचना कई खण्डों से मिलकर बनी होती है,अतः वह अखण्ड नहीं हैं । फिर भी ये इकाइयाँ जब परस्पर पर एक क्रम में जुड़ जाती है तो एक बनावट या प्रतिमान को प्रकट करती है । उदाहरण के लिए, एक कमरे का निर्माण ईंट,चूना, पत्थर, खिड़की व दरवाजे आदि से मिलकर होता हैं । इन्हें एक विशिष्ट क्रम में जोड़ने पर कमरे का प्रतिमान या स्वरुप प्रकट होता हैं ।

3. - सामाजिक संरचना अन्तःसम्बन्धित इकाइयों का एक व्यवस्थित स्वरूप हैं -
सामाजिक संरचना का निर्माण विभिन्न इकाइयों से होता है,ये इकाइयाँ अस्त व्यस्त और बिखरी हुई नहीं होतीं वरन उनमें परस्पर सम्बन्ध पाया जाता हैं । उदाहरण के लिए, घड़ी का निर्माण करने वाली सभी इकाइयों को परस्पर जोड़ने पर ही घड़ी की संरचना बनती है ।

4. - सामाजिक संरचना की इकाइयों में एक क्रमबद्धता पायी जाती है - किसी भी सामाजिक संरचना का निर्माण मात्र इकाइयों के झुण्ड या योग्य से ही नहीं होता वरन उन्हें एक विशिष्ट क्रम में जोड़ना पड़ता है । क्रम के अभाव में संरचना नहीं बन सकती । जैसे ईंट, चूना व पत्थर के ढेर से मकान नहीं बन सकता जब तक कि उन्हें एक क्रम में न जोड़ा जाए ।

5. - सामाजिक संरचना अपेक्षाकृत एक स्थायी अवधारणा है -
सामाजिक संरचना अपेक्षाकृत एक स्थायी अवधारणा है । इसके दो अर्थ हैं :- 1. - सामाजिक संरचना का निर्माण करने वाली इकाइयां अपेक्षतया स्थायी होती है । उदाहरण के लिए, समाज का निर्माण करने वाले विभिन्न समूह, समितियां एवं संस्थाएं जैसे परिवार,धर्म, आर्थिक व शैक्षणिक संगठन एवं विवाह आज समाज में अपेक्षतया स्थायी रूप से पाये जाते हैं । इनमें छोटा-मोटा परिवर्तन होने से संपूर्ण संरचना प्रभावित नहीं होती ।

2. -
सामाजिक संरचना इस अर्थ में भी स्थायी होती है कि इसका निर्माण करने वाली विभिन्न इकाइयों के पारस्परिक सम्बन्धों में भी स्थायित्व पाया जाता है। इस प्रकार सामाजिक संरचना में स्थायित्व दो अर्थों में पाया जाता है एक तो इकाइयां स्वयं स्थायी होती है तथा दूसरे इकाइयों के पारस्परिक सम्बन्धों में भी स्थिरता पाई जाती है।

6. - सामाजिक संरचना अमूर्त होती है - मैकाइबर और पारसन्स सामाजिक संरचना को एक अमूर्त धारणा मानते हैं । उनका मत है कि सामाजिक संरचना का निर्माण विभिन्न संस्थाओं,एजेंसियों, प्रतिमानों, प्रस्थितियों एवं भूमिकाओं से मिलकर होता है। ये सभी इकाइयाँ अमूर्त है । इनका भौतिक वस्तु की भांति कोई ठोस आकार या रूप नही है, इन्हें देखा या छुआ नहीं जा सकता है । अतः इन से निर्मित सामाजिक संरचना भी अमूर्त होती है । समाज का निर्माण सामाजिक सम्बन्धों से होता है,ये सम्बन्ध अमूर्त है, अतः सामाजिक संरचना भी अमूर्त होती है । यद्यपि रैडक्लिफ ब्राउन सामाजिक संरचना की इकाई व्यक्ति को मानते हैं लेकिन अधिकांश समाजशास्त्र सामाजिक संरचना की व्याख्या एक अमूर्त धारणा के रूप में ही करते हैं ।

7. - सामाजिक संरचना का निर्माण अनेक उपसंरचनाओं से होता है -
प्रत्येक सामाजिक संरचना का निर्माण कई उप संरचनाओं से मिलकर होता हैं । जिस प्रकार से शरीर रूपी संरचना का निर्माण मस्तिष्क,पाचन व श्वसन संस्थाओं आदि से होता है जिसमें अनेक अंग होते हैं उसी प्रकार सामाजिक संरचना का निर्माण भी विभिन्न उप संरचनाओं जैसे परिवार, जाति, वर्ग,चर्च, शिक्षण संस्था,धार्मिक संस्था,आर्थिक संस्था आदि के द्वारा होता है जिनकी स्वयं की अपनी एक संरचना होती है । इस प्रकार अनेक उप संरचनायें मिलकर सामाजिक संरचना का निर्माण करती है जिनकी अपनी भी एक संरचना होती है ।

8. - सामाजिक संरचना स्थानीय विशेषताओं से प्रभावित होती है -
प्रत्येक समाज की एक संरचना होती है और वह दूसरे समाज से भिन्न होती है । क्योंकि प्रत्येक सामाजिक संरचना किसी न किसी सांस्कृतिक व्यवस्था से प्रभावित होती है, वहां की भौगोलिक परिस्थितियों का भी उस पर प्रभाव पड़ता है । विभिन्न स्थानों की संस्कृति, राजनीतिक दशा एवं भौगोलिक परिस्थितियों में अंतर पाया जाता है । अतः सामाजिक संरचनाएं भी इनसे प्रभावित होने के कारण भिन्न भिन्न प्रकार की होती है । रेडक्लिफ ब्राउन ने सामाजिक संरचना की धारणा में स्थानीय विशेषताओं को भी उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण माना है ।

9. - सामाजिक संरचना में प्रत्येक इकाई का एक पूर्व निश्चित स्थान व पद होता है -
सामाजिक संरचना में प्रत्येक इकाई का पद एवं स्थान निर्धारित होता है उस स्थान पर रहकर ही वह सामाजिक संरचना का निर्माण करती है । अन्य स्थान पर होने पर संरचना बिगड़ जाती है । जिस प्रकार से शरीर संरचना में हाथ,पाँव, नाक, कान, आंख का एक स्थान तय है । यदि हाथ का स्थान पाँव, नाक का स्थान कान, व आंख का स्थान जीभ ले ले तो शरीर संरचना विकृत हो जाएगी, उसी प्रकार सामाजिक संरचना में राज्य,चर्च, परिवार, विवाह, धर्म, न्याय व्यवस्था, शिक्षण संस्था आदि सभी का स्थान पूर्व निर्धारित होता है, यदि ये एक दूसरे का स्थान ग्रहण कर लेते हैं तो सामाजिक संरचना में विकृति आ जाती हैं ।
10. - सामाजिक संरचना में सामाजिक प्रक्रियाएं भी महत्वपूर्ण होती है - सामाजिक संरचना के निर्माण में सहयोगी एवं असहयोगी प्रक्रियाओं जैसे सहयोग, अनुकूलन,व्यवस्थापन, एकीकरण, सात्मीकरण, प्रतिस्पर्धा एवं सहयोग आदि की भूमिका भी महत्वपूर्ण हैं । ये सामाजिक प्रक्रियाएं ही सामाजिक संरचना के स्वरूप को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । सामाजिक प्रक्रियाओं का बाह्म रूप सामाजिक संरचना को तय करता है । 

11. - सामाजिक संरचना में विघटन के तत्व भी पाए जाते हैं - सामाजिक संरचना मानव की अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है । किंतु कोई भी सामाजिक संरचना अपने आप में श्रेष्ठ नहीं होती और न ही उसमें पूर्ण संगठन पाया जाता है । कई बार यह समाज में विघटन भी पैदा करती है । मर्टन तथा दुर्खीम का मत हैं कि कई बार सामाजिक संरचना स्वयं समाज में नियमहीनता पैदा करती है । सामाजिक संरचना में संगठन एवं विघटन दोनों ही पैदा करने वाले तत्व पाए जाते हैं ।

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