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सामाजिक संरचना के प्रमुख स्वरूपों और स्तरों का उल्लेख कीजिए

सामाजिक संरचना के प्रमुख स्वरूपों और स्तरों का उल्लेख कीजिए

पारसन्स ने सामाजिक मूल्यों के आधार पर सामाजिक संरचना के चार रूपों का उल्लेख किया है । उन्होंने चार प्रकार के सामाजिक मूल्य माने हैं : -
1. - सार्वभौमिक सामाजिक मूल्य जो सारे समाज में फैले होते हैं और सभी लोगों पर लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, सच्चाई और ईमानदारी सभी समाजों में उत्तम गुणों के रूप में स्वीकार किए जाते हैं ।
2. - विशिष्ट सामाजिक मूल्य जो किसी समाज विशेष तक ही सीमित होते हैं। उदाहरण के लिए, पतिव्रत का आदर्श हिंदुओं में ही पाया जाता है ।
3. - अर्जित सामाजिक मूल्य - जिनका सम्बन्ध व्यक्ति के प्रयत्नों द्वारा प्राप्त किए गए पदों से होता है ।
4. - प्रदत्त सामाजिक मूल्य - जिनका सम्बन्ध जन्म एवं परम्परा द्वारा निर्धारित पदों से होता है । इन चार प्रकार के सामाजिक मूल्यों के आधार पर सामाजिक संरचना के विचार रूप पाए जाते हैं जो इस प्रकार है ।

1. - सार्वभौमिक प्रदत्त प्रतिमान - इस प्रकार के प्रतिमानों में दो प्रकार के प्रतिमान सार्वभौमिक एवं प्रदत्त आते हैं । कुछ समाज ऐसे हैं जिनमें प्रदत्त प्रतिमानों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया जाता है । ऐसे समाजों में परम्परात्मक आदर्शों एवं कर्तव्यों की ओर अधिक झुकाव पाया जाता है ।

2. - सार्वभौमिक अर्जित प्रतिमान - इस प्रकार के प्रतिमानों में भी व्यक्ति के प्रयत्नों एवं अर्जित इन दो प्रतिमानों का समावेश होता है । इस प्रकार के प्रतिमानो में व्यक्ति के प्रयत्नों एवं गुणों द्वारा प्राप्त पदों को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है । उदाहरण के लिए, सभी पूंजीवादी समाजों में सम्पत्ति के संचय एवं अर्जन को महत्व दिया जाता है । वर्ग व्यवस्था इस प्रकार के समाजों की विशेषता है ।

3. - विशिष्ट प्रदत्त प्रतिमान - इस प्रकार के प्रतिमान रक्त सम्बन्ध व स्थानीय समुदायों पर आधारित होते हैं । इस प्रकार की सामाजिक संरचना में व्यक्तिगत गुणों को अधिक महत्व दिया जाता है और सामाजिक संगठन को बनाए रखने के लिए नैतिकता एवं प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किसी न किसी कार्य को करना आवश्यक माना जाता है । ऐसी सामाजिक संरचना वाले समाज का उदाहरण स्पेन है ।

4. - विशिष्ट अर्जित प्रतिमान - इस प्रकार के मूल्य सार्वभौमिक के स्थान पर विशिष्ट मूल्यों पर अधिक जोर देते हैं । उदाहरण के लिए, परिवार,गोत्र एवं वंश का महत्व भारत एवं चीन में ही अधिक पाया जाता हैं ।

सामाजिक संरचना के स्तर

जॉनसन ने सामाजिक संरचना के दो स्तरों - प्रकार्यात्मक उप प्रणाली तथा संरचनात्मक उप प्रणाली का उल्लेख किया हैं : -

1. - कार्यात्मक उप-प्रणालियां - प्रत्येक समाज को अपने अस्तित्व के लिए समस्याओं का निवारण या आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होती है। वे हैं - प्रतिमानों को बनाए रखना एवं तनावों को दूर करना , अनुकूलन, उद्देश्य प्राप्ति, एकीकरण । ऐसा न होने पर वह समाज अपना अस्तित्व एवं विशिष्ट स्वरूप खो देता है । इनमें से प्रत्येक समस्या के लिए एक प्रकार्यात्मक उप प्रणाली होगी । उदाहरण के लिए, ' अर्थ - व्यवस्था वह प्रकार्यात्मक उप प्रणाली हैं जो समाज के अनुकूलन से सम्बन्धित हैं । अर्थव्यवस्था वस्तुओं एवं सेवाओं को उत्पन्न करती है और समूह एवं समितियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है ।

परिवार रूपी प्रकार्यात्मक उप प्रणाली समाज में समाजीकरण के द्वारा दिन प्रतिदिन के तनावों को दूर करने एवं सामाजिक प्रतिमानो को बनाए रखने का कार्य करती है । शिक्षण संस्थाएं, धार्मिक समूह, मनोरंजन प्रदान करने वाले समूह, अस्पताल और अन्य स्वास्थ्य संगठन भी समाज में तनावों को दूर करने एवं प्रतिमानों को बनाए रखने में योग देते हैं ।
   उद्देश्यों की पूर्ति में सरकार रूपी उप प्रणाली महत्वपूर्ण है । सरकार शक्ति के द्वारा समाज के उद्देश्यों की पूर्ति करती है । प्रजातंत्र में दबाव समूह जनमत तैयार करते हैं और संसद के लिए बिलों का मसौदा बनाते हैं और वे भी समाज के उद्देश्यों की पूर्ति में योग देते हैं । इस प्रकार राजव्यवस्था उद्देश्य प्राप्ति की महत्वपूर्ण उप प्रणाली है ।
  इन सभी में एकीकरण एवं समन्वय स्थापित करने में वकालत का व्यवसाय, धार्मिक नेता, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  सैद्धान्तिक दृष्टि से समाज के प्रत्येक उप प्रणाली को एक स्वतन्त्र सामाजिक प्रणाली के रूप में देखा जा सकता है । इनमें से प्रत्येक उप प्रणाली के लिए अन्य उप प्रणालियों को पर्यावरण के रूप में देखा जा सकता है और सभी उप प्रणालियों का एक दूसरे के साथ व्यवस्थित रूप से विनिमय होता रहता है ।

2. - संरचनात्मक उप प्रणालियां - समाज के प्रकार्यात्मक उप प्रणालियां का मुहूर्त होती है जबकि संरचनात्मक उप प्रणालियां मूर्त समूहों से बनी हुई होती है, जैसे नातेदारी तन्त्र परिवार, गोत्रों और वंश समूहों से बना होता हैं । इनके अतिरिक्त , चर्च , शिक्षा प्रणाली आदि भी संरचनात्मक उप प्रणालियाँ हैं । संरचनात्मक उप प्रणालियाँ मूर्त एवं वास्तविक होतीं हैं ।

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