सामाजिक संरचना का अर्थ एवं परिभाषाएं लिखिए
सामाजिक संरचना एवं प्रकार्य की अवधारणाएं समाजशास्त्र में महत्वपूर्ण अवधारणाएं है । इन्हें समझे बिना हम समाज, सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक विघटन एवं सामाजिक प्रकार्य जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाओं को नहीं समझ सकते । समाजशास्त्र में सामाजिक संरचना की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग हरबर्ट स्पेंसर ने अपनी पुस्तक 'Principles of Sociology' में किया । दुर्खीम ने अपनी कृति 'The Rules of Sociological Method ' में इस अवधारणा का प्रयोग किया । किंतु दोनों ही विद्वानों ने सामाजिक संरचना की स्पष्ट व्याख्या नहीं की । इस अवधारणा पर विस्तृत विचार प्रकट करने वालों में रैडक्लिफ ब्राउन, कार्ल मानहीम, नैडेल, मर्टन, पारसन्स,जॉनसन तथा मैकाइबर आदि प्रमुख विद्वान हैं । यहां हम सर्वप्रथम सामाजिक संरचना पर और फिर प्रकार्य पर विचार करेंगे ।संरचना किसे कहते हैं ? :-
सामाजिक संरचना को समझने से पूर्व संरचना या ढांचा किसे कहते हैं यह जान लेना आवश्यक है । प्रत्येक भौतिक वस्तु की एक संरचना होती है जो कई इकाइयों या तत्वों से मिलकर बनी होती है । ये इकाइयाँ परस्पर व्यवस्थित रूप से संबंधित होती हैं तथा इन इकाइयों में स्थिरता पाई जाती है । इसे हम मानव शरीर की संरचना के उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं । शरीर की संरचना हाथ-पांव,नाक, कान, आंख एवं मुँह आदि कई अंगों (इकाइयों) से मिलकर बनी होती है । ये सभी अंग अपने अपने स्थान पर स्थिर भी है और परस्पर एक दूसरे से व्यवस्थित रूप से जुड़े हुए भी । इस प्रकार प्रत्येक संरचना में चार विशेषताएं देखने को मिलती है :
1. - प्रत्येक संरचना का निर्माण कई अंगों, तत्त्वों या इकाइयों से होता हैं । उदाहरण के लिए मकान की संरचना ईट, पत्थर, चूना, सीमेंट आदि कई इकाइयों से मिलकर बनी होती है ।
2. - इन इकाइयों में परस्पर स्थाई एवं व्यवस्थित संबंध पाए जाते हैं, जैसे ईट, चूना, पत्थर, आदि को व्यवस्थित रूप से जमाने पर ही मकान की संरचना बनती है । केवल ईट ,चूना व पत्थर के ढेर से मकान की संरचना नहीं बनती ।
3. - ये इकाइयां अपने अपने स्थान पर स्थिर रहती हैं यदि इनमें स्थायित्व न हो तो संरचना बनती बिगड़ती रहेगी ।
4. - संरचना का सम्बन्ध वस्तु की बाहरी आकृति या स्वरूप से होता है न कि उस की आंतरिक संरचना से । शरीर और मकान की संरचना से हमें इनकी बाह्म आकृति दिखाई देती है आंतरिक नहीं । जिस प्रकार से किसी शरीर या भौतिक वस्तु की संरचना होती है उसी प्रकार से समाज की भी एक संरचना होती है जिसे हम सामाजिक संरचना कहते हैं । समाज की संरचना भी कई इकाइयों जैसे परिवार, संस्थाओं, संघों, प्रतिमानित सम्बन्धो, मूल्यों एवं पदों आदि से मिलकर बनी होती है । ये सभी इकाइयां परस्पर व्यवस्थित रूप से व्यवस्थित होती हैं और अपने अपने स्थान पर अपेक्षतया स्थिर रहती हैं । इन सभी के सहयोग से समाज का एक बाह्म स्वरूप प्रकट होता है जिसे हम सामाजिक संरचना कहते हैं । सामाजिक संरचना को स्पष्टतः समझने के लिए हम यहां इसकी परिभाषा एवं विभिन्न विद्वानों द्वारा उसके बारे में प्रकट किए गए विचारों का उल्लेख करेंगे ।
सामाजिक संरचना : अर्थ एवं परिभाषा :-
कार्ल मानहीम के अनुसार - " सामाजिक संरचना परस्पर क्रिया करती हुई सामाजिक शक्तियों का जाल है जिससे अवलोकन और चिंतन की विभिन्न प्रणालियों का जन्म होता है । मानहीम सामाजिक संरचना को सामाजिक शक्तियों का जाल मानते हैं । ' जाल' से उनका तात्पर्य व्यवस्थित प्रतिमानों से है । एक जाल का निर्माण कई धागों से होता है,ये धागे जाल की इकाइयां है, इनके क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप से जमने पर ही जाल बनता है । सामाजिक संरचना का जाल भी सामाजिक शक्तियों रोटी धागों से बना होता है । सामाजिक शक्तियों से उनका तात्पर्य नियंत्रण के उन साधनों से है जो सामाजिक जीवन को स्थिरता प्रदान करते हैं । ये शक्तियां परस्पर अंतः क्रिया करती रहती है और समाज में निरीक्षण एवं चिंतन की पद्धतियों को भी जन्म देती है । मानहीम कि यह परिभाषा अपूर्ण है क्योंकि मात्र सामाजिक शक्तियों से ही सामाजिक संरचना का निर्माण नहीं होता । यह परिभाषा संरचना की अन्य विशेषताओं को प्रकट करने में भी असफल रही है ।पारसन्स के अनुसार - " सामाजिक संरचना परस्पर संबंधित संस्थाओं एजेंसियों और सामाजिक प्रतिमानो तथा साथ ही समूह में प्रत्येक सदस्य द्वारा ग्रहण किए गए पदों तथा कार्यों की विशिष्ट क्रमबद्धता को कहते हैं। पारसन्स की इस परिभाषा से तीन बातें स्पष्ट होती हैं -
1. - सामाजिक संरचना का निर्माण सामाजिक संस्थाओं एजेंसियों प्रतिमानो एवं व्यक्तियों द्वारा ग्रहण किए गए पदों एवं भूमिकाओं रूपी इकाइयों से होता है ।
2. - ये सभी इकाइयां परस्पर एक दूसरे से संबंधित होती हैं ।
3. - सामाजिक संरचना में एक विशिष्ट क्रमबद्धता पाई जाती है । इन विशेषताओं से यह भी स्पष्ट है कि सामाजिक संरचना एक अमूर्त धारणा है क्योंकि समाज की संरचना सामाजिक सम्बन्धो, संस्थाओं, प्रतिमानो, पदों एवं भूमिकाओं से मिलकर बनी होती है और ये सभी अमूर्त है ।
गिन्सबर्ग के अनुसार - " सामाजिक संरचना का अध्ययन सामाजिक संगठन के प्रमुख स्वरूपों अर्थात समूहों, समितियों तथा संस्थाओं के प्रकार एवं इन सबसे संकुल (Complex) जिनमें कि समाज का निर्माण होता है,से सम्बन्धित हैं । गिन्सबर्ग ने अपनी परिभाषा में सामाजिक संरचना एवं सामाजिक संगठन में कोई भेद नहीं किया है । उनका मत है कि सामाजिक संरचना का निर्माण समूहों,समितियों एवं संस्थाओं से मिलकर होता हैं ।
मैकाइबर तथा पेज के अनुसार, - " समूह निर्माण के विभिन्न तरीके संयुक्त रूप में सामाजिक संरचना के जटिल प्रतिमान का निर्माण करते हैं ..... सामाजिक संरचना के विश्लेषण में सामाजिक प्राणियों की विविध प्रकार की मनोवृत्तियों तथा रुचियों के कार्य प्रकट होते हैं । इस प्रकार मैकाइवर तथा पेज ने समूह निर्माण के विभिन्न तरीकों को ही सामाजिक संरचना का आधार माना है । वे सामाजिक संरचना को अमूर्त मानते हैं क्योंकि समाज का ताना-बाना सामाजिक सम्बन्धों से बना होता है और सामाजिक सम्बन्ध अमूर्त होते हैं । वे इसे स्पष्ट करते हुए पुनः लिखते हैं ना तो हम सामाजिक संरचना को देखते हैं, और न ही देख सकते हैं । हम समाज को देख नहीं सकते, उसके बाह्म पक्षों को भले ही देख लें क्योंकि समाज मानवीय सम्बन्धों का संगठन है जो मनुष्यों द्वारा ही बनाया जाता है, स्थिर रहता है और उनके द्वारा ही सदैव परिवर्तित किया जाता है ।
मजूमदार एवं मदान लिखते हैं, " पुनरावृत्तीय सामाजिक संबंधों के तुलनात्मक स्थाई पक्षों से सामाजिक संरचना बनती है । इस परिभाषा से स्पष्ट है कि वे सामाजिक सम्बन्ध जो बार बार दोहराए जाते हैं और तुलनात्मक रूप से स्थाई होते हैं, समाज की संरचना का निर्माण करते हैं ।
कोजर एवं रोजनबर्ग लिखते हैं, " संरचना का तात्पर्य सामाजिक इकाइयों के तुलनात्मक स्थिर एवं प्रतिमानित सम्बन्धों से है । इस परिभाषा मैं भी इस बात पर जोर दिया गया है कि सामाजिक संरचना का निर्माण सामाजिक इकाइयों से होता है । ये इकाइयाँ एक व्यवस्थित रूप से जमी होती है और उनमें स्थिरता पाई जाती है । समूह,संस्थाएं, पद, भूमिकायें आदि सामाजिक इकाइयां कही जा सकती हैं ।
हैरी जॉनसन के अनुसार, " किसी वस्तु का ढांचा उसके अंगों की अपेक्षाकृत स्थायी अन्तर्सम्बन्धों से निर्मित होता हैं, स्वयं ' अंग ' शब्द से ही कुछ स्थायित्व के अंग का पता चलता है । सामाजिक प्रणाली क्योंकि लोगों के अन्तर्सम्बन्धों कृत्यों से निर्मित होती है, इसका ढांचा भी इन कृत्यों (Acts) में पाई जाने वाली नियमितता या पुनरावृत्ति के अंशों में ढूंढा जाना चाहिए ।
जॉनसन की इस परिभाषा से स्पष्ट है कि प्रत्येक संरचना कई इकाइयों या अंगों से मिलकर बनती है और इन अंगों में परस्पर स्थाई संबंध पाए जाते हैं। स्थायित्व के अभाव में ना तो संरचना लंबे समय तक बनी रहे सकेगी और ना ही अंग परस्पर सहयोग दे पाएंगे । सामाजिक संरचना का निर्माण भी लोगों द्वारा परस्पर संबंधित क्रियाओं या कृत्यों द्वारा होता है, ये क्रियाएं बार-बार दोहराई जाती है और इनमें एक नियम बद्धता पाई जाती है ।
नैडेल का मत है कि समाजशास्त्रीय साहित्य में सामाजिक संरचना शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में हुआ है । इसका प्रयोग व्यवस्था, संगठन, संकुल (Complex), प्रतिमान (Partern), प्रारूप (Type) एवं समाज आदि के पर्यायवाची के रूप में किया गया है वे सामाजिक संरचना की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं, सामाजिक संरचना अनेक अंगों की एक क्रमबद्धता को स्पष्ट करती है यह तुलनात्मक रूप से यद्यपि स्थिर होती है लेकिन इसका निर्माण करने वाले अंग स्वयं परिवर्तनशील होते हैं ।
रैडक्लिफ ब्राउन के अनुसार - " सामाजिक संरचना संस्था द्वारा परिभाषित और नियमित सम्बन्धों में लगे हुए व्यक्तियों की एक क्रमबद्धता हैं । वे कहते हैं वास्तविक जीवन में हम देखते हैं कि मनुष्य परस्पर सामाजिक सम्बन्धों द्वारा बंधे हुए हैं । वास्तविक रूप से पाए जाने वाले इन संबंधों के द्वारा ही सामाजिक संरचना का निर्माण होता है । मनुष्यों के पारस्परिक सम्बन्ध स्वतंत्र नहीं होते वरन वे संस्थाओं एवं नियमों द्वारा परिभाषित, नियमित एवं नियंत्रित होते हैं ।
इग्गन ( Eggan ) तथा फोर्टेस ( Fortes ) - अंतर्वैयक्तिक सम्बन्धों को ही सामाजिक संरचना के अंग मानते हैं जबकि इवान्स प्रिचार्ड समूह के अन्तर्सम्बन्धों को ।
उपर्युक्त सारी भाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सामाजिक संरचना समाज की विभिन्न इकाइयों,समूहों, संस्थाओं, समितियों तथा सामाजिक सम्बन्धों से निर्मित एक प्रतिमानित एवं क्रमबद्ध ढाँचा हैं । सामाजिक संरचना अपेक्षतया एक स्थिर अवधारणा हैं जिसमें अपवाद स्वरूप ही परिवर्तन होते हैं ।
nice
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Nice
ReplyDeletehttps://www.studyuseful.com/2022/01/findlay-shirras-and-rene-storn-budget.html