समाज कार्य के प्रमुख अंगों एवं प्रविधियों का उल्लेख करें
समाज कार्यकर्ता समाज के विशिष्ट यंत्रों, प्रविधियों का उपयोग अपनी विविधतापूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हुए सामाजिक संबंधों की उन्नति एवं विकास के लिए करते हैं वही समाज में वांछित एवं अभिष्ट परिवर्तन लाने के लिए भी कार्य करते हैं।
समाज कार्य के प्रमुख अंग
समाज कार्य व्यवसाय ज्ञान एवं सिद्धांतों पर आधारित सहायता प्रदान करने का कार्य है इसके अंतर्गत एक प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता के द्वारा समस्या ग्रस्त सेवार्थी को उसकी समस्या का समाधान करने की प्रक्रिया में सहायता दी जाती है इस प्रकार समाज कार्य व्यवसाय के तीन प्रमुख अंग है1. - कार्यकर्ता
2. - सेवार्थी
3. - संस्था
कार्यकर्ता
समाज कार्य में शिक्षित एवं प्रशिक्षित एक ऐसा व्यवसायिक व्यक्ति होता है।जिसमें समाज कार्य के सिद्धांतों का ज्ञान होता है जिसके पास व्यवसाय कौशल और निपुणता होती है और जिसे मानव व्यवहार तथा गतिविधियों की भी जानकारी होती है यह कार्यकर्ता वैयक्तिक सामाजिक कार्यकर्ता सामूहिक सामाजिक कार्यकर्ता एवं सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता भी हो सकता है।सामाजिक कार्यकर्ता सामाजिक मामलों का जानकार होता है इसमें व्यक्ति समूह तथा समुदाय की आवश्यकताओं समस्याओं की समझ एवं योग्यता होती है यह सेवार्थी की समस्या को समझने में उसकी सहायता करता है तथा उसमें आत्मबोध का विकास करता है उसके व्यक्तित्व का विकास करते हुए समस्या समाधान का समुचित अवसर प्रदान करता है दूसरे व्यवसायिक संबंधों की भांति सेवार्थी और कार्यकर्ता के आपसी संबंध उद्देश्य परक होते हैं यह संबंध एक निश्चित समय अवधि के लिए होता है और लक्ष्य प्राप्ति के पश्चात यह संबंध व्यवसायिक रूप से समाप्त कर दिया जाता है।कार्यकर्ता और सेवार्थी के बीच का व्यवसायिक संबंध एक विशिष्ट संबंध होता है इस संबंध के अंतर्गत सहायता देने वाला व्यक्ति व्यवसायिक संबंधी ज्ञान और निपुणताओं से युक्त होता है। वह संबंध समापन प्रक्रिया के माध्यम से ही सेवार्थी कीसमस्या का समाधान करता है क्योंकि समाज कार्य में संबंध ही समस्या समाधान का सबसे महत्वपूर्ण साधन है समाज कार्य अभ्यास के अंतर्गत कार्यकर्ता बिना किसी प्रारंभिक निर्णय और वस्तु गत दृष्टिकोण के साथ संबंध स्थापित करता है और स्वयं को किसी भावनात्मक एवं संवेगिक जुड़ाव से पृथक रखता है। यह कार्यकर्ता की व्यवसायिक विशेषता है।
सामान्यतः कार्यकर्ता जब व्यक्ति के समाज कार्य के अंतर्गत कार्य करता है उसे सेवार्थी की उन सांबेग एक समस्याओं का समाधान करना पड़ता है तो अंतर वैयक्तिक संबंधों से उत्पन्न कठिनाइयों के द्वारा उत्पन्न होती हैं।वैयक्तिक कार्यकर्ता संबंध के माध्यम से इस प्रकार की समस्याओं का समाधान करता है कार्यकर्ता सेवार्थी के वास्तविक एवं आवास्तविक मनु संघर्षों को समझने का प्रयत्न करता है और उन्हें स्पष्ट करता है प्रायः समस्या समाधान की प्रक्रिया के दौरान सेवार्थी इसने है विरोध गिरना और आक्रोश आदि भावनाओं का प्रदर्शन करता है सेवार्थी की इन भावनाओं का संबंध सेवार्थी की विगत जीवन की किसी अन्य परिस्थितियों से होता है यह भावनाएं सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की हो सकती हैं सामान्यतः व्यक्ति अपने विगत जीवन के अनुभव के आधार पर नवीन परिस्थितियों में भी प्रतिक्रिया करते हैं कार्यकर्ता को इन प्रतिक्रियाओं को पहचान कर सावधानीपूर्वक इनका हल निकालना चाहिए।
सामाजिक कार्यकर्ता समूह कार्य की प्रक्रिया में भी अपनी भूमिका का निर्वाह करता है।समूह कार्य के अंतर्गत कार्यकर्ता समूह की आवश्यकताओं का पता लगाकर चेतना पूर्वक एक समूह के निर्माण के लिए कार्य करता है। यहां भी कार्यकर्ता का समूह के साथ संबंध महत्वपूर्ण होता है। वह समूह के कार्यक्रम के माध्यम से समूह की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।साथ ही वह कार्यक्रम का उपयोग चेतना पूर्व करते हुए समूह की अभिलाषाओं के स्तर में परिवर्तन लाता है।हुआ कार्यक्रम के माध्यम से सामूहिक जीवन में अंतः क्रिया की क्षमता में वृद्धि करता है और समूह की शिक्षा और मनोरंजन संबंधी आवश्यकताओं की भी पूर्ति करता है।
इसी प्रकार सामुदायिक संगठन के अंतर्गत भी सामाजिक कार्यकर्ता के द्वारा समुदाय की आवश्यकताओं की पहचान की जाती है उनके क्रम का निर्धारण किया जाता है और समुदाय में एक संगठन को विकसित किया जाता है।सामाजिक कार्यकर्ता अपने ज्ञान और कौशल का उपयोग करते हुए समुदाय के संसाधनों के अनुरूप कार्यक्रम विकसित करने में समुदाय के लोगों की मदद करता है। वह समुदाय की आवश्यकताओं और संसाधनों के मध्य एक गतिशील समायोजन स्थापित करता है और समुदाय की समस्याओं को दूर करने में उसकी मदद करता है।
इसी प्रकार समाज कार्य व्यवसाय में सामाजिक कार्यकर्ता ही वह प्रमुख व्यक्ति होता है जो अपने सेवार्थी व्यक्ति समूह और समुदाय के लिए सेवा प्रदाता की भूमिका का निर्वाह करता है।
सेवार्थी
समाज कार्य व्यवसाय में सेवा का प्रमुख केंद्र सेवार्थी ही होता है सेवार्थी अर्थात सेवा का उपभोक्ता सेवा का उपयोग करने वाला या जिसे सेवा यह सहायता प्रदान की जाती है।सेवार्थी कोई व्यक्ति समूह और समुदाय हो सकता है सेवार्थी के रूप में व्यक्त की कुछ विशिष्ट आवश्यकता है और समस्याएं हो सकती हैं जिनके समाधान में जब वह अपने आप को अक्षम पाता है तो संस्था के पास सहायता मांगने आता है।सेवार्थी की समस्याएं शारीरिक मानसिक और सामाजिक किसी भी प्रकार की हो सकती है व्यक्ति समस्याओं से गिरने के पश्चात ही संस्था में आता है और समस्याओं का संबंध उसके पूरे व्यक्तित्व से होता है अतः कार्यकर्ता का यह लक्ष्य होता है कि जब कोई समस्या ग्रस्त व्यक्ति संस्था में आता है तब कार्यकर्ता उसकी समस्याओं को ध्यान पूर्वक व सहानुभूति पूर्वक सुने। बल्कि उस समस्या का समाधान करते हुए उसके व्यक्तित्व का इस प्रकार से विकास करें कि वह व्यक्तिगत संतुष्ट एवं शांति का अनुभव करें और एक सुखी जीवन यापन कर सके।
कार्यकर्ता सेवार्थी के व्यवहारों को परिवर्तित करने का भी कार्य करता है प्रायः सेवार्थी अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं करते हुए समायोजन प्राप्त करने का प्रयास करते हैं व्यक्ति की आन्तरिक और बाह्य उत्प्रेरको, आवश्यकताओं और परिस्थितियों का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता रहता है। जिनके कारण उसके मनोस्नायुविक प्रणाली पर कुछ दबाव पड़ता है और उसमें कुछ परिवर्तन आता है। जिससे सेवार्थी को तनाव का अनुभव होता है।उस तनाव को कम करने और मनोस्नायविक प्रणाली में स्थिरता लाने में ही कार्यकर्ता द्वारा सेवार्थी की सहायता की जाती है।
इसी प्रकार जब व्यक्ति के सामाजिक अंतः क्रियाओं का क्षेत्र आता है और उनमें पर्यावरण में लोगों के साथ ठीक ढंग से अंतः क्रिया करने में स्वयं को सक्षम पाता है। तब वह अपने पर्यावरण में स्वयं को समायोजित अनुभव करता है। किंतु जब वह तनाव अवसाद आदि मानसिक समस्याओं या सामाजिक आर्थिक समस्याओं आदि के कारण कुष्ठाग्रस्त वह निराश हो जाता है तो वह अंतः क्रिया करने में स्वयं को असमर्थ पाता है और अपने पर्यावरण में कुसमायोजन का अनुभव करता है।इस कुसमायोजन का व्यक्ति के ऊपर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है इससे व्यक्ति स्वयं को हीन एवं निराश समझने लगता है। यही पर सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका महत्वपूर्ण होने लगती है जबकि वह अनेक सेवार्थी को निराशा की स्थिति से बाहर निकालने का प्रयत्न करता है। चूंकि सेवार्थी निराशा कुंठा और अवसाद से ग्रसित होता है इसलिए उसकी स्थिति में गिरावट और क्षीड़ता को रोकना कार्यकर्ता का प्रमुख दायित्व होता है। वह सेवर्थी के कुसमायोजित व्यवहार को परिवर्तित कर उसमें आशा का संचार करता है और उसे अपनी समस्या से बाहर निकालकर समायोजन की स्थिति प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके लिए कार्यकर्ता कुछ प्रवृत्तियों का भी प्रयोग करता है। सर्वप्रथम वह सेवार्थी को मनोवैज्ञानिक आलंबन प्रदान करता है जिससे उसकी स्थिति में होने वाली क्षीड़ता को रोका जा सके। कार्यकर्ता सेवार्थी को परामर्श भी प्रदान करता है वह उसे समस्या और उसके समाधान के बारे में नई नई जानकारी प्रदान करते हुए सेवार्थी को लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर करता है और उसका आंतरिक और वाह्य समायोजन बेहतर बनाता है।
संस्था
समाज कार्य के आवश्यक अंगों में संस्था का भी महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि समाज कार्य में समस्या के समाधान की प्रक्रिया प्रत्येक स्थान में संपन्न नहीं हो सकती।उसके लिए एक स्थान की आवश्यकता होती है जहां पर सेवार्थी की समस्याओं को सुलझाने में मदद की जा सके संस्था वह स्थान होता है जहां पर कार्यकर्ता एक कर्मचारी के तौर पर अपनी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए तत्पर रहता है संस्था के तत्वाधान में ही समस्या समाधान के लिए आवश्यक भौतिक और प्राविधिक उपकरण तथा विशेषज्ञों की सेवाओं के रूप में सहायता की व्यवस्था की जाती है।
सामान्यतः संस्थाएं कई प्रकार की होती है सहायता प्राप्त की दृष्टि से इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है। प्रथम वे संस्थाएं हैं जिनका वित्तीय भार राज्य के द्वारा वाहन किया जाता है इन संस्थाओं को सार्वजनिक संस्थाएं कहा जाता है। जबकि वे संस्थाएं जिनका वित्तीय भार वाहन स्वयं संस्था के प्रयासों एवं निजी दान एवं सहायता के आधार पर किया जाता है उन्हें निजी संस्थाएं कहा जाता है। संचालन एवं अधिकार की दृष्टि से भी संस्थाओं के दो रूप होते हैं प्राथमिक एवं द्वितीयक वे संस्थाएं जिनका नीति निर्धारण किसी अन्य संस्था या संगठन द्वारा किया जाता है किंतु क्रियान्वयन संस्था के द्वारा किया जाता है द्वितीयक संस्थाएं कहलाती हैं।
प्रायः संस्थाओं की स्थापना कुछ विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसके लिए संस्था में एक प्रशासकीय ढांचे का विकास किया जाता है। जिसमें कर्मचारियों के दायित्व और अधिकार सुनिश्चित होते हैं। संस्था के इस कार्य को समुदाय के लिए उपयोगी बनाने के लिए कुछ लोगों द्वारा नीतियों का निर्धारण किया जाता है और उन नीतियों का परिपालन संस्था में अन्य लोगों के द्वारा किया जाता है संस्था का संगठन और नीतियां, कार्यकर्ता और सेवार्थी दोनों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
एक सामाजिक संस्था अपने समुदाय के आदर्शों और मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए समुदाय की बदलती हुई आवश्यकताओं और मूल्यों के अनुसार स्वयं में भी परिवर्तन करके समुदाय के लिए अपनी उपयोगिता को बनाए रखती है।
संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की जाती है यह कार्यकर्ता आवश्यक ज्ञान और कुशलताओं से युक्त होते हैं। कार्यकर्ता का संस्था सेवार्थी और समुदाय के प्रति कुछ उत्तरदायित्व होते हैं। कार्यकर्ता को संस्था के इतिहास, उद्देश्य,आय व्यय के स्रोत,कार्यक्षेत्र और नीतियों की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। जिनके आधार पर वह सेवार्थी को समुचित सेवा प्रदान करता है वह संस्था का एक प्रतिनिधि भी होता है। कार्यकर्ता को प्रशासकीय कार्यों में भी निपुण होना चाहिए उसे सेवार्थी से संपर्क स्थापित करने अभिलेख अन पत्राचार और दूसरी संस्थाओं से सहयोग स्थापित करने में भी दक्ष होना चाहिए।
संस्था के साथ-साथ समुदाय के प्रति भी कार्यकर्ता का दायित्व होता है उसे समुदाय की बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुरूप संस्था की नीतियों और कार्यक्रमों में परिवर्तन लाने का कार्य भी करना चाहिए उसे समुदाय की अन्य संस्थाओं के साथ संबंध स्थापित करने से लेकर समुदाय में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के संसाधनों का उपयोग सेवार्थी की सहायता के लिए करना चाहिए।
इस प्रकार संस्था वह प्रमुख माध्यम है जो यह पता लगाने का प्रयास करती है कि सेवार्थी के आंतरिक और वाह्य पर्यावरण में किस हद तक समायोजन की आवश्यकता है। उसके लिए किस प्रकार के संसाधनों की आवश्यकता होगी और कहां तक संस्था समस्या का समाधान प्रदान करके सेवार्थी के भावी जीवन में परिवर्तन लाकर समायोजन स्थापित करने में उसकी मदद कर सकती है।
2. - रचनात्मक संबंधों का प्रयोग ।
3. - मौखिक अंतः क्रिया ।
4. - कार्यक्रम नियोजन एवं इसका प्रयोग ।
स्वयं की चेतना का प्रयोग
समाज कार्य अभ्यास में कार्यकर्ता की भूमिका समस्या समाधान की प्रक्रिया में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है वह सेवार्थी के साथ समस्या समाधान की प्रक्रिया में समान रूप से सम्मिलित होता है वह सर्वप्रथम सेवार्थी की समस्या का अध्ययन करता है और व्यक्ति करण के माध्यम से सेवार्थी के विषय में जानकारी प्राप्त करता है किंतु यह भी देखा गया है कि सभी कार्यकर्ता सभी प्रकार के सेवार्थी यों की स्वीकृति नहीं प्राप्त कर पाते क्योंकि कार्यकर्ताओं के व्यक्तित्व में भिन्नता होती है। चूंकि समाज कार्य का उद्देश्य लोगों की सहायता करना है इसलिए कार्यकर्ताओं का सेवार्थी के साथ व्यवसायिक संबंधों के समुचित प्रयोग के लिए कार्यकर्ताओं में आत्मबोध का होना आवश्यक है इसलिए कार्यकर्ता तथा सेवार्थी के मध्य संबंधों में कार्यकर्ता को स्वयं की चेतना का प्रयोग करना चाहिए उसे आत्मचेतना पूर्वाग्रहों पक्षपातों एवं विशेष रूचिओं का ज्ञान होना चाहिए। उन्हें अपनी संवेगों संभावनाओं एवं प्रेरणाओं का समुचित ज्ञान होना चाहिए। जिससे जब सेवार्थी अपनी समस्याओं और भावनाओं तथा संवेगो को प्रकट करे तो कार्यकर्ता उन्हें वास्तविक रूप में समझ सके। कार्यकर्ता को सेवार्थी के असामाजिक व्यवहार की निंदा करने की अपेक्षा उसे समझने का प्रयास करना चाहिए।इसलिए कार्यकर्ता को सेवार्थी की भावनाओं के साथ-साथ स्वयं की भावनाओं का भी ज्ञान होना चाहिए।कार्यकर्ता को दोनों की भावनाओं के अंतर को समझकर ही समस्या समाधान के लिए कार्य करना चाहिए। उसे स्वयं की भावनाओं का सचेत रूप से प्रयोग करना चाहिए तथा सेवार्थी के साथ सहानुभूति एवं मित्रता पूर्ण संबंधों का प्रदर्शन करने के बावजूद भी व्यवसायिक तटस्थता बनाए रखते हुए भावनात्मक जुड़ाव से बचना चाहिए ।
रचनात्मक संबंधों का प्रयोग
समाज कार्य में संबंधों का उपयोग प्रारंभ से लेकर अंत तक होता है इस प्रक्रिया में कार्यकर्ता और सेवार्थी उभयनिष्ठ होते हैं तथा समस्या समाधान का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण कार्यकर्ता और सेवार्थी के मध्य का संबंध होता है। समाज कार्य में संबंध स्थापना ही सहायता कार्य का आधार होता है संबंध को साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है संबंध एक ऐसा प्रत्यय है। जो मौखिक और लिखित वार्तालाप में प्रकट होता है। जिसमें कार्यकर्ता और सेवार्थी कुछ लघु कालीन और और दीर्घकालीन सामान्य रुचियां एवं भावनाओं के साथ अंतः क्रिया करते हैं। कार्यकर्ता सेवार्थी की समस्या को तभी अच्छे ढंग से जान पाता है जब सेवार्थी के साथ उसके संबंध प्रगाढ़ होते हैं। जैसे-जैसे संबंध घनिष्ठ होते जाते हैं समस्या समाधान के उद्देश्य प्राप्त होते उप बीजाते हैं। इसलिए कार्यकर्ता को सेवार्थी के साथ अपने संबंधों के प्रयोग में जागरूक होना चाहिए तथा रचनात्मक संबंधों का प्रयोग करना चाहिए संबंधों की घनिष्ठता का सर्वाधिक प्रयोग वैयक्तिक समाज कार्य प्रक्रिया में किया जाता है।
वैयक्तिक सेवा कार्य का मूलाधार साक्षात्कार में निपुणता कार्यकर्ता सेवार्थी संबंध का रचनात्मक प्रयोग तथा मानव व्यवहार की गतिशीलता के कार्यात्मक ज्ञान पर निर्भर करता है। सेवार्थी की आंतरिक भावनाओं कठिनाइयों तथा वैयक्तिक इतिहास का जितना अधिक ज्ञान कार्यकर्ता को होता है उतना ही अधिक वह उपचार कार्य में सफलता प्राप्त करता है। किंतु इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए रचनात्मक घनिष्ठ संबंधों की आवश्यकता होती है इसलिए समस्या समाधान को प्रक्रिया में सदैव कार्यकर्ता के द्वारा रचनात्मक संबंधों का प्रयोग करना चाहिए। जब कार्यकर्ता सेवार्थी के मूल्यों का आदर करता है तथा स्नेह प्रेम सहिष्णुता प्रदर्शित करता है तब सेवार्थी तथा उसके मध्य सकारात्मक संबंधों का विकास होता है। चूंकि सेवार्थी अपने मनो संघर्षों को किसी के समक्ष प्रकट नहीं करता है किंतु कार्यकर्ता द्वारा जब अपने रचनात्मक संबंधों का प्रयोग करते हुए सहिष्णुता लगाव व स्नेह प्रदान किया जाता है तब सेवार्थी का कार्यकर्ता पर पूर्ण विश्वास हो जाता है। और वह समस्या समाधान में उसे सहयोग करने लगता है।
मौखिक अंतः क्रिया
कार्यकर्ता तथा सेवार्थी के मध्य संबंधों में घनिष्ठता के लिए यह आवश्यक है कि दोनों में प्रत्यक्ष एवं स्पष्ट रूप से साक्षात्कार अर्थात मौखिक अंतः क्रिया हो क्योंकि वही कार्यकर्ता सफल माना जाता है जो सेवार्थी के साथ मौखिक अंतः क्रिया करने में सक्षम होता है।इसके लिए कार्यकर्ता को अपने तथा सेवार्थी के बीच होने वाली संचार प्रक्रिया की प्रविधि का ज्ञान होना आवश्यक है।संचार की यह प्रक्रिया सेवार्थी के,सांवेगिक, सांस्कृतिक तथा बौद्धिक स्तर पर की जाती है।
सांवेगिक स्तर पर संचार को स्थापित करते हुए कार्यकर्ता को सेवार्थी के प्रति भावनात्मक लगाव व सहनशीलता का परिचय देते हुए उसकी समस्या को ध्यानपूर्वक सुनना व समझना चाहिए। कार्यकर्ता द्वारा बातचीत की प्रक्रिया का संचालन इस प्रकार से करना चाहिए कि सेवार्थी उस पर सहज रुप से विश्वास करते हुए अपने व्यक्तिगत तथ्यों को भी आसानी से प्रकट कर सके।दोनों के आपसी संबंध तभी घनिष्ट बनते हैं जब सेवार्थी को भी अपनी बात सहज एवं स्पष्ट रूप से कहने का अवसर प्राप्त होता है।
कार्यकर्ता एवं सेवार्थी के बीच मौखिक अंतः क्रिया अर्थात बातचीत तभी अच्छे ढंग से संपन्न हो पाती है जब कार्यकर्ता को सेवार्थी की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का अच्छा ज्ञान हो।उसे सेवार्थी की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि भाषा बोली रीत रिवाज लोकाचार तथा रूढ़ियों आदि के विषय में ज्ञात कर लेना चाहिए,किससे संचार को समान स्तर पर संपन्न किया जा सके कार्यकर्ता को सेवार्थी से जुड़े उक्त तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि सांस्कृतिक कारक समस्या को जटिल बनाने में उत्तरदाई हो सकते हैं अतः यदि कार्यकर्ता सेवार्थी के सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुकूल व्यवहार करता है तो संबंधों को घनिष्ठता बढ़ती है।
सेवार्थी के साथ मौखिक अंतः क्रिया करते हुए कार्यकर्ता को इस महत्वपूर्ण बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि उसे सेवार्थी के बौद्धिक स्तर के अनुरूप ही बातचीत करनी चाहिए ना कि स्वयं के स्तर के अनुरूप। क्योंकि यदि कार्यकर्ता सेवार्थी के बौद्धिक स्तर के अनुरूप बातचीत नहीं करेगा तो सेवार्थी को इसमें अरुचि उत्पन्न हो सकती है और वह सहयोग देने से इनकार भी कर सकता है अतः कार्यकर्ता को बातचीत व संचार में उन्ही संकेतों चिन्हों भाषा और बोली का उपयोग करना चाहिए जो सेवार्थी के सांस्कृतिक व बौद्धिक स्तर के अनुकूल हो।
कार्यक्रम नियोजन एवं इसका प्रयोग
समाज कार्य वैज्ञानिक ज्ञान एवं पद्धतियों पर आधारित एक व्यवसाय है जिसके अंतर्गत प्रत्येक कार्य पूर्व नियोजित कार्यक्रमों के आधार पर किया जाता है समाज कार्य में कार्यकर्ताओं के द्वारा से भारतीयों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कार्यक्रमों के निर्माण का कार्य किया जाता है। कार्यक्रम का प्रयोग बहुधा समूह समाज कार्य प्रणाली एवं सामुदायिक संगठन के अंतर्गत किया जाता है इन प्रणालियों में कार्यकर्ता समूह और समुदाय की आवश्यकता एवं इच्छाओं के अनुरूप कार्यक्रम की गतिविधियों का नियोजन करते हैं।जिनमें समूह के उद्देश्य तथा संस्था एवं समुदाय के संसाधनों के अनुरूप कार्यक्रम बनाए जाते हैं कार्यक्रम ही हुआ महत्वपूर्ण उपकरण है जिनके माध्यम से अभीष्ट एवं वांछित परिवर्तनों को प्राप्त करने के लिए कार्य किया जाता है अतः कार्यकर्ता के द्वारा कार्यक्रम का नियोजन इस प्रकार से करना चाहिए जो समूह के आवश्यकता ओं की पूर्ति करने वाला हो तथा उसका संचालन समूह के सदस्यों की क्षमताओं के अनुसार भी हो कार्यक्रम की गतिविधियों का नियोजन इस प्रकार से भी करना चाहिए जिससे वह भविष्य की चुनौतियों एवं परिवर्तनों के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके और समूह भी उतार-चढ़ाव का सामना आसानी से कर सके कार्यक्रम में सभी सदस्यों की भूमिका स्पष्ट एवं नेतृत्व परिभाषित होना चाहिए।कार्यकर्ता को अपनी भूमिका भी स्पष्ट कर देनी चाहिए तथा उसे कार्यक्रम का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिए जिससे समूह की अभिलाषा ओं के स्तर में परिवर्तन लाया जा सके उनकी उम्मीदें पूरी की जा सके और साक्ष्य प्राप्त किए जा सकें।
सहयोग
इस प्रविधि के अंतर्गत दो या दो से अधिक कार्यकर्ताओं के संयुक्त प्रयास सम्मिलित होते हैं इस प्रवृति का उपयोग तब किया जाता है जब सेवार्थी की समस्या के एक से अधिक पक्ष होते हैं यह समस्या का संबंध उसके पारिवारिक और सामाजिक पर्यावरण से होता है पारिवारिक समस्याओं के संदर्भ में प्रायः ऐसा देखा जाता है कि जब अलग-अलग सेवार्थी यों के साथ अलग-अलग कार्यकर्ता कार्य करते हैं और कार्यकर्ता समय-समय पर एक दूसरे के साथ मिलकर सेवार्थी यों की समस्याओं और भावनाओं से एक दूसरे को अवगत करवाते हैं तो इससे समस्या समाधान के लिए प्रभावी ढंग से कार्य कर पाना संभव हो जाता है।
शिक्षण
सेवार्थी जब संस्था के पास आता है तब उसे अपनी समस्या का समुचित ज्ञान नहीं होता है। वह हीन भावना से ग्रसित होता है और अपने आप को एक हीन प्राणी समझता है। उसके अहम का क्षरण हो चुका होता है। और वह अपने मनो संघर्षों के प्रति अनभिज्ञ होता है अतः कार्यकर्ता समय एवं आवश्यकतानुसार सेवार्थी को शिक्षण प्रदान करता है जिससे समस्या के विषय में उसे ज्ञान होता है कार्यकर्ता सेवार्थी का व्यतिकरण करता है और उसके मनो संघर्षों को स्पष्ट करता है वह भाव विवेचन करते हुए भावनाओं के प्रकटीकरण का मार्ग प्रशस्त करता है तथा यथा स्थान सेवार्थी के समस्या के कारणों पर प्रकाश डालते हुए उसे समस्या के विषय में अवगत कराता है।
स्वीकृति
कार्यकर्ता सेवार्थी को उसके वास्तविक स्वरूप में ही स्वीकार करता है अर्थात सेवार्थी जिस अवस्था में कार्यकर्ता के पास सहायता मांगने आया है उसे उसी रूप में सहायता देने के लिए स्वीकृति प्रदान करता है वह सेवार्थी में किसी प्रकार के परिवर्तन के लिए नहीं कहता है वह उसका सम्मान करता है जिसका परिणाम यह होता है कि सेवार्थी स्पष्ट रूप से सच्चाई बता कर राहत प्राप्त करता है।
प्रोत्साहन
कार्यकर्ता सेवार्थी को उसके समस्या समाधान का दायित्व सौंपा है वह जहां एक तरफ समस्या के कारणों को स्पष्ट करता है वही समस्या समाधान के लिए उसकी क्षमता में वृद्धि करता है और उसे प्रोत्साहन प्रदान करता है।
पुष्टिकरण
कार्यकर्ता सेवार्थी के यथार्थ एवं वास्तविक विचारों का पुष्टिकरण करता है जिससे सेवार्थी को अपनी समस्या भी स्पष्ट होती है और उसमें एक विश्वास जागृत होता है।
व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की दुश्चिंता तथा दबाव से सुरक्षित रखने के लिए व्यक्ति का अहम (इगो) किसी उपाय या क्रियाविधि के उपयोग को सुनिश्चित करता है इसे प्रतिरक्षा तंत्र या रक्षा रूढ़ि युक्तियों के नाम से जाना जाता है यह तथ्यात्मक नहीं होता है इसे भौतिक रूप में तथा अचेतन रूप से प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है तथा यह अचेतन स्तर पर कार्य करता है इसके उपयोग के प्रति व्यक्ति जागरूक नहीं होता प्रतिरक्षा तंत्र विभिन्न मानसिक दबाव दुश्चिंता आदि के समाधान का स्वस्थ तरीका नहीं है इसके बार-बार उपयोग करने से गंभीर प्रकार के मनोविकार उत्पन्न हो जाते हैं व्यक्ति में सामान्यतः निम्न प्रतिरक्षा तंत्र देखे जा सकते हैं।
दमन
दमन एक ऐसी शक्ति है जिसका उपयोग व्यक्ति चयनित विस्मरण के लिए करता है अर्थात जब कोई कष्टदायक विचार या अप्रिय स्थिति उत्पन्न होती है तो व्यक्ति से अपने चेतन स्तर से निकाल देना चाहता है और इसके लिए जिस क्रियाविधि का इस्तेमाल करता है उसे दमन कहते हैं। व्यक्ति जिस बात का दमन करता है या फिर चेतन रूप से स्वीकार करता है। वह वास्तव में दमित या विस्मरित नहीं होता।दमन व्यक्ति के सचेत प्रयास हों या जागरूकता से होता है इसमें कष्टदाई विचारों को निष्क्रिय करने का प्रयास किया जाता है।
अस्विकृति
जब किसी व्यक्ति अनुभव को यह प्रत्यक्षीकरण को स्वीकार नहीं करता तब इसे अस्विकृति कहा जाता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अप्रिय वास्तविकताओं को स्वीकार नहीं करता तथा इसके लिए वह प्रायः दूसरों को जिम्मेदार ठहराता है।
पृथक्करण
पृथक्करण तब घटित होता है जब ईगो के द्वारा दुश्चिंता को पृथक किया जाता है। इसमें व्यक्ति अपनी भावना को किसी विचार या घटना से पृथक कर के देखता है।
प्रक्षेपण
प्रक्षेपण के अंतर्गत व्यक्ति के द्वारा अपनी निराशा कुंठा असामान्य विचारों असफलताओं आज के लिए किसी वास्तविक या काल्पनिक व्यक्ति या घटना को उत्तरदाई ठहराया जाता है अपने अहम की रक्षा के लिए मानव व्यवहार में सबसे अधिक यह प्रवृत्ति पाई जाती है एक सीमा तक यह प्रवृत्ति व्यक्ति में संतुलन बनाए रखती है किंतु सीमा से अधिक हो जाने पर यह विभिन्न प्रकार के मनोविकारों को उत्पन्न करती है और इससे विभिन्न प्रकार की भ्रांतियां पैदा होती है।
स्थानांतरण
इसमें व्यक्ति असफलताओं, अप्रिय घटनाओं आदि को दूसरों पर स्थानांतरित कर देना ।
तार्किकीकरण
तार्किकीकरण में प्रायः व्यक्ति अपने आसमायोजित या कुसमायोजित व्यवहार को तार्किक या न्यायोचित सिद्ध करता है। और वह कुछ तर्को या प्रेरणाओ का अर्जन करता है। इसके प्रायः दो परिणाम या लाभ उत्पन्न होते हैं। यह किसी निश्चित या विशिष्ट व्यवहार को तार्किक किया न्यायोचित सिद्ध करने में सहायता करता है। यह व्यक्ति की असफलताओं, निराशाओ, और कुंठाओ, अप्राप्त उद्देश्यों, प्रभावों आदि को कम करने में सहायता करता है।
फैंटेसी ( कल्पना ) करना
जब कोई व्यक्ति कुंठा या निराशा की स्थिति से मुक्ति पाने का प्रयास करता है।तब वह कल्पना के माध्यम से अपने अहम को हुई क्षति या पीड़ा को कम करने का प्रयास करता है। जैसे किसी एक क्षेत्र में निराश कोई व्यक्ति अपने आप को किसी दूसरे क्षेत्र में सफल व्यक्ति के रूप में कल्पना कर सकता है इसके माध्यम से व्यक्ति अपने आपको अधिक शक्तिशाली सक्षम और सम्मानित समझने का अनुभव करता है।
तादात्मिकरण
व्यक्ति कि वे मूलभूत भावनाएं या इच्छाएं जिन्हें समाज स्वीकृति ढंग से पूरा कर पाना संभव नहीं होता उन्हें सामाजिक ढंग से पूरा करने का प्रयास तादात्मिकरण कहलाता है।बेतिया विशेषकर अपनी आक्रामक या यौन इच्छाओं की पूर्ति चेतन स्तर पर नहीं कर पाता है तब इससे संबद्ध मानसिक ऊर्जा तनाव और दुश्चिंता उत्पन्न करती है इसलिए व्यक्ति इन मूलभूत वृत्तियों को सही दिशा प्रदान करने के लिए अपने नक्शों में परिवर्तन कर लेता है और उन्हें सामाजिक ढंग से पूरा करने का प्रयास करता है जैसे आक्रामक भावनाओं का तादात्मिकरण ऐसे खेलों के माध्यम से किया जाता है जिनमें अत्यधिक शक्ति और साहस की आवश्यकता होती है इसी प्रकार यौन भावनाओं को कला साहित्य और वैज्ञानिक गतिविधियों के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है
सामान्यतः कार्यकर्ता जब व्यक्ति के समाज कार्य के अंतर्गत कार्य करता है उसे सेवार्थी की उन सांबेग एक समस्याओं का समाधान करना पड़ता है तो अंतर वैयक्तिक संबंधों से उत्पन्न कठिनाइयों के द्वारा उत्पन्न होती हैं।वैयक्तिक कार्यकर्ता संबंध के माध्यम से इस प्रकार की समस्याओं का समाधान करता है कार्यकर्ता सेवार्थी के वास्तविक एवं आवास्तविक मनु संघर्षों को समझने का प्रयत्न करता है और उन्हें स्पष्ट करता है प्रायः समस्या समाधान की प्रक्रिया के दौरान सेवार्थी इसने है विरोध गिरना और आक्रोश आदि भावनाओं का प्रदर्शन करता है सेवार्थी की इन भावनाओं का संबंध सेवार्थी की विगत जीवन की किसी अन्य परिस्थितियों से होता है यह भावनाएं सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की हो सकती हैं सामान्यतः व्यक्ति अपने विगत जीवन के अनुभव के आधार पर नवीन परिस्थितियों में भी प्रतिक्रिया करते हैं कार्यकर्ता को इन प्रतिक्रियाओं को पहचान कर सावधानीपूर्वक इनका हल निकालना चाहिए।
सामाजिक कार्यकर्ता समूह कार्य की प्रक्रिया में भी अपनी भूमिका का निर्वाह करता है।समूह कार्य के अंतर्गत कार्यकर्ता समूह की आवश्यकताओं का पता लगाकर चेतना पूर्वक एक समूह के निर्माण के लिए कार्य करता है। यहां भी कार्यकर्ता का समूह के साथ संबंध महत्वपूर्ण होता है। वह समूह के कार्यक्रम के माध्यम से समूह की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।साथ ही वह कार्यक्रम का उपयोग चेतना पूर्व करते हुए समूह की अभिलाषाओं के स्तर में परिवर्तन लाता है।हुआ कार्यक्रम के माध्यम से सामूहिक जीवन में अंतः क्रिया की क्षमता में वृद्धि करता है और समूह की शिक्षा और मनोरंजन संबंधी आवश्यकताओं की भी पूर्ति करता है।
इसी प्रकार सामुदायिक संगठन के अंतर्गत भी सामाजिक कार्यकर्ता के द्वारा समुदाय की आवश्यकताओं की पहचान की जाती है उनके क्रम का निर्धारण किया जाता है और समुदाय में एक संगठन को विकसित किया जाता है।सामाजिक कार्यकर्ता अपने ज्ञान और कौशल का उपयोग करते हुए समुदाय के संसाधनों के अनुरूप कार्यक्रम विकसित करने में समुदाय के लोगों की मदद करता है। वह समुदाय की आवश्यकताओं और संसाधनों के मध्य एक गतिशील समायोजन स्थापित करता है और समुदाय की समस्याओं को दूर करने में उसकी मदद करता है।
इसी प्रकार समाज कार्य व्यवसाय में सामाजिक कार्यकर्ता ही वह प्रमुख व्यक्ति होता है जो अपने सेवार्थी व्यक्ति समूह और समुदाय के लिए सेवा प्रदाता की भूमिका का निर्वाह करता है।
सेवार्थी
समाज कार्य व्यवसाय में सेवा का प्रमुख केंद्र सेवार्थी ही होता है सेवार्थी अर्थात सेवा का उपभोक्ता सेवा का उपयोग करने वाला या जिसे सेवा यह सहायता प्रदान की जाती है।सेवार्थी कोई व्यक्ति समूह और समुदाय हो सकता है सेवार्थी के रूप में व्यक्त की कुछ विशिष्ट आवश्यकता है और समस्याएं हो सकती हैं जिनके समाधान में जब वह अपने आप को अक्षम पाता है तो संस्था के पास सहायता मांगने आता है।सेवार्थी की समस्याएं शारीरिक मानसिक और सामाजिक किसी भी प्रकार की हो सकती है व्यक्ति समस्याओं से गिरने के पश्चात ही संस्था में आता है और समस्याओं का संबंध उसके पूरे व्यक्तित्व से होता है अतः कार्यकर्ता का यह लक्ष्य होता है कि जब कोई समस्या ग्रस्त व्यक्ति संस्था में आता है तब कार्यकर्ता उसकी समस्याओं को ध्यान पूर्वक व सहानुभूति पूर्वक सुने। बल्कि उस समस्या का समाधान करते हुए उसके व्यक्तित्व का इस प्रकार से विकास करें कि वह व्यक्तिगत संतुष्ट एवं शांति का अनुभव करें और एक सुखी जीवन यापन कर सके।
कार्यकर्ता सेवार्थी के व्यवहारों को परिवर्तित करने का भी कार्य करता है प्रायः सेवार्थी अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं करते हुए समायोजन प्राप्त करने का प्रयास करते हैं व्यक्ति की आन्तरिक और बाह्य उत्प्रेरको, आवश्यकताओं और परिस्थितियों का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता रहता है। जिनके कारण उसके मनोस्नायुविक प्रणाली पर कुछ दबाव पड़ता है और उसमें कुछ परिवर्तन आता है। जिससे सेवार्थी को तनाव का अनुभव होता है।उस तनाव को कम करने और मनोस्नायविक प्रणाली में स्थिरता लाने में ही कार्यकर्ता द्वारा सेवार्थी की सहायता की जाती है।
इसी प्रकार जब व्यक्ति के सामाजिक अंतः क्रियाओं का क्षेत्र आता है और उनमें पर्यावरण में लोगों के साथ ठीक ढंग से अंतः क्रिया करने में स्वयं को सक्षम पाता है। तब वह अपने पर्यावरण में स्वयं को समायोजित अनुभव करता है। किंतु जब वह तनाव अवसाद आदि मानसिक समस्याओं या सामाजिक आर्थिक समस्याओं आदि के कारण कुष्ठाग्रस्त वह निराश हो जाता है तो वह अंतः क्रिया करने में स्वयं को असमर्थ पाता है और अपने पर्यावरण में कुसमायोजन का अनुभव करता है।इस कुसमायोजन का व्यक्ति के ऊपर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है इससे व्यक्ति स्वयं को हीन एवं निराश समझने लगता है। यही पर सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका महत्वपूर्ण होने लगती है जबकि वह अनेक सेवार्थी को निराशा की स्थिति से बाहर निकालने का प्रयत्न करता है। चूंकि सेवार्थी निराशा कुंठा और अवसाद से ग्रसित होता है इसलिए उसकी स्थिति में गिरावट और क्षीड़ता को रोकना कार्यकर्ता का प्रमुख दायित्व होता है। वह सेवर्थी के कुसमायोजित व्यवहार को परिवर्तित कर उसमें आशा का संचार करता है और उसे अपनी समस्या से बाहर निकालकर समायोजन की स्थिति प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके लिए कार्यकर्ता कुछ प्रवृत्तियों का भी प्रयोग करता है। सर्वप्रथम वह सेवार्थी को मनोवैज्ञानिक आलंबन प्रदान करता है जिससे उसकी स्थिति में होने वाली क्षीड़ता को रोका जा सके। कार्यकर्ता सेवार्थी को परामर्श भी प्रदान करता है वह उसे समस्या और उसके समाधान के बारे में नई नई जानकारी प्रदान करते हुए सेवार्थी को लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर करता है और उसका आंतरिक और वाह्य समायोजन बेहतर बनाता है।
संस्था
समाज कार्य के आवश्यक अंगों में संस्था का भी महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि समाज कार्य में समस्या के समाधान की प्रक्रिया प्रत्येक स्थान में संपन्न नहीं हो सकती।उसके लिए एक स्थान की आवश्यकता होती है जहां पर सेवार्थी की समस्याओं को सुलझाने में मदद की जा सके संस्था वह स्थान होता है जहां पर कार्यकर्ता एक कर्मचारी के तौर पर अपनी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए तत्पर रहता है संस्था के तत्वाधान में ही समस्या समाधान के लिए आवश्यक भौतिक और प्राविधिक उपकरण तथा विशेषज्ञों की सेवाओं के रूप में सहायता की व्यवस्था की जाती है।
सामान्यतः संस्थाएं कई प्रकार की होती है सहायता प्राप्त की दृष्टि से इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है। प्रथम वे संस्थाएं हैं जिनका वित्तीय भार राज्य के द्वारा वाहन किया जाता है इन संस्थाओं को सार्वजनिक संस्थाएं कहा जाता है। जबकि वे संस्थाएं जिनका वित्तीय भार वाहन स्वयं संस्था के प्रयासों एवं निजी दान एवं सहायता के आधार पर किया जाता है उन्हें निजी संस्थाएं कहा जाता है। संचालन एवं अधिकार की दृष्टि से भी संस्थाओं के दो रूप होते हैं प्राथमिक एवं द्वितीयक वे संस्थाएं जिनका नीति निर्धारण किसी अन्य संस्था या संगठन द्वारा किया जाता है किंतु क्रियान्वयन संस्था के द्वारा किया जाता है द्वितीयक संस्थाएं कहलाती हैं।
प्रायः संस्थाओं की स्थापना कुछ विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसके लिए संस्था में एक प्रशासकीय ढांचे का विकास किया जाता है। जिसमें कर्मचारियों के दायित्व और अधिकार सुनिश्चित होते हैं। संस्था के इस कार्य को समुदाय के लिए उपयोगी बनाने के लिए कुछ लोगों द्वारा नीतियों का निर्धारण किया जाता है और उन नीतियों का परिपालन संस्था में अन्य लोगों के द्वारा किया जाता है संस्था का संगठन और नीतियां, कार्यकर्ता और सेवार्थी दोनों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
एक सामाजिक संस्था अपने समुदाय के आदर्शों और मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए समुदाय की बदलती हुई आवश्यकताओं और मूल्यों के अनुसार स्वयं में भी परिवर्तन करके समुदाय के लिए अपनी उपयोगिता को बनाए रखती है।
संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की जाती है यह कार्यकर्ता आवश्यक ज्ञान और कुशलताओं से युक्त होते हैं। कार्यकर्ता का संस्था सेवार्थी और समुदाय के प्रति कुछ उत्तरदायित्व होते हैं। कार्यकर्ता को संस्था के इतिहास, उद्देश्य,आय व्यय के स्रोत,कार्यक्षेत्र और नीतियों की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। जिनके आधार पर वह सेवार्थी को समुचित सेवा प्रदान करता है वह संस्था का एक प्रतिनिधि भी होता है। कार्यकर्ता को प्रशासकीय कार्यों में भी निपुण होना चाहिए उसे सेवार्थी से संपर्क स्थापित करने अभिलेख अन पत्राचार और दूसरी संस्थाओं से सहयोग स्थापित करने में भी दक्ष होना चाहिए।
संस्था के साथ-साथ समुदाय के प्रति भी कार्यकर्ता का दायित्व होता है उसे समुदाय की बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुरूप संस्था की नीतियों और कार्यक्रमों में परिवर्तन लाने का कार्य भी करना चाहिए उसे समुदाय की अन्य संस्थाओं के साथ संबंध स्थापित करने से लेकर समुदाय में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के संसाधनों का उपयोग सेवार्थी की सहायता के लिए करना चाहिए।
इस प्रकार संस्था वह प्रमुख माध्यम है जो यह पता लगाने का प्रयास करती है कि सेवार्थी के आंतरिक और वाह्य पर्यावरण में किस हद तक समायोजन की आवश्यकता है। उसके लिए किस प्रकार के संसाधनों की आवश्यकता होगी और कहां तक संस्था समस्या का समाधान प्रदान करके सेवार्थी के भावी जीवन में परिवर्तन लाकर समायोजन स्थापित करने में उसकी मदद कर सकती है।
समाज कार्य के अभिकल्प
1. - स्वयं की चेतना का प्रयोग ।2. - रचनात्मक संबंधों का प्रयोग ।
3. - मौखिक अंतः क्रिया ।
4. - कार्यक्रम नियोजन एवं इसका प्रयोग ।
स्वयं की चेतना का प्रयोग
समाज कार्य अभ्यास में कार्यकर्ता की भूमिका समस्या समाधान की प्रक्रिया में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है वह सेवार्थी के साथ समस्या समाधान की प्रक्रिया में समान रूप से सम्मिलित होता है वह सर्वप्रथम सेवार्थी की समस्या का अध्ययन करता है और व्यक्ति करण के माध्यम से सेवार्थी के विषय में जानकारी प्राप्त करता है किंतु यह भी देखा गया है कि सभी कार्यकर्ता सभी प्रकार के सेवार्थी यों की स्वीकृति नहीं प्राप्त कर पाते क्योंकि कार्यकर्ताओं के व्यक्तित्व में भिन्नता होती है। चूंकि समाज कार्य का उद्देश्य लोगों की सहायता करना है इसलिए कार्यकर्ताओं का सेवार्थी के साथ व्यवसायिक संबंधों के समुचित प्रयोग के लिए कार्यकर्ताओं में आत्मबोध का होना आवश्यक है इसलिए कार्यकर्ता तथा सेवार्थी के मध्य संबंधों में कार्यकर्ता को स्वयं की चेतना का प्रयोग करना चाहिए उसे आत्मचेतना पूर्वाग्रहों पक्षपातों एवं विशेष रूचिओं का ज्ञान होना चाहिए। उन्हें अपनी संवेगों संभावनाओं एवं प्रेरणाओं का समुचित ज्ञान होना चाहिए। जिससे जब सेवार्थी अपनी समस्याओं और भावनाओं तथा संवेगो को प्रकट करे तो कार्यकर्ता उन्हें वास्तविक रूप में समझ सके। कार्यकर्ता को सेवार्थी के असामाजिक व्यवहार की निंदा करने की अपेक्षा उसे समझने का प्रयास करना चाहिए।इसलिए कार्यकर्ता को सेवार्थी की भावनाओं के साथ-साथ स्वयं की भावनाओं का भी ज्ञान होना चाहिए।कार्यकर्ता को दोनों की भावनाओं के अंतर को समझकर ही समस्या समाधान के लिए कार्य करना चाहिए। उसे स्वयं की भावनाओं का सचेत रूप से प्रयोग करना चाहिए तथा सेवार्थी के साथ सहानुभूति एवं मित्रता पूर्ण संबंधों का प्रदर्शन करने के बावजूद भी व्यवसायिक तटस्थता बनाए रखते हुए भावनात्मक जुड़ाव से बचना चाहिए ।
रचनात्मक संबंधों का प्रयोग
समाज कार्य में संबंधों का उपयोग प्रारंभ से लेकर अंत तक होता है इस प्रक्रिया में कार्यकर्ता और सेवार्थी उभयनिष्ठ होते हैं तथा समस्या समाधान का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण कार्यकर्ता और सेवार्थी के मध्य का संबंध होता है। समाज कार्य में संबंध स्थापना ही सहायता कार्य का आधार होता है संबंध को साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है संबंध एक ऐसा प्रत्यय है। जो मौखिक और लिखित वार्तालाप में प्रकट होता है। जिसमें कार्यकर्ता और सेवार्थी कुछ लघु कालीन और और दीर्घकालीन सामान्य रुचियां एवं भावनाओं के साथ अंतः क्रिया करते हैं। कार्यकर्ता सेवार्थी की समस्या को तभी अच्छे ढंग से जान पाता है जब सेवार्थी के साथ उसके संबंध प्रगाढ़ होते हैं। जैसे-जैसे संबंध घनिष्ठ होते जाते हैं समस्या समाधान के उद्देश्य प्राप्त होते उप बीजाते हैं। इसलिए कार्यकर्ता को सेवार्थी के साथ अपने संबंधों के प्रयोग में जागरूक होना चाहिए तथा रचनात्मक संबंधों का प्रयोग करना चाहिए संबंधों की घनिष्ठता का सर्वाधिक प्रयोग वैयक्तिक समाज कार्य प्रक्रिया में किया जाता है।
वैयक्तिक सेवा कार्य का मूलाधार साक्षात्कार में निपुणता कार्यकर्ता सेवार्थी संबंध का रचनात्मक प्रयोग तथा मानव व्यवहार की गतिशीलता के कार्यात्मक ज्ञान पर निर्भर करता है। सेवार्थी की आंतरिक भावनाओं कठिनाइयों तथा वैयक्तिक इतिहास का जितना अधिक ज्ञान कार्यकर्ता को होता है उतना ही अधिक वह उपचार कार्य में सफलता प्राप्त करता है। किंतु इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए रचनात्मक घनिष्ठ संबंधों की आवश्यकता होती है इसलिए समस्या समाधान को प्रक्रिया में सदैव कार्यकर्ता के द्वारा रचनात्मक संबंधों का प्रयोग करना चाहिए। जब कार्यकर्ता सेवार्थी के मूल्यों का आदर करता है तथा स्नेह प्रेम सहिष्णुता प्रदर्शित करता है तब सेवार्थी तथा उसके मध्य सकारात्मक संबंधों का विकास होता है। चूंकि सेवार्थी अपने मनो संघर्षों को किसी के समक्ष प्रकट नहीं करता है किंतु कार्यकर्ता द्वारा जब अपने रचनात्मक संबंधों का प्रयोग करते हुए सहिष्णुता लगाव व स्नेह प्रदान किया जाता है तब सेवार्थी का कार्यकर्ता पर पूर्ण विश्वास हो जाता है। और वह समस्या समाधान में उसे सहयोग करने लगता है।
मौखिक अंतः क्रिया
कार्यकर्ता तथा सेवार्थी के मध्य संबंधों में घनिष्ठता के लिए यह आवश्यक है कि दोनों में प्रत्यक्ष एवं स्पष्ट रूप से साक्षात्कार अर्थात मौखिक अंतः क्रिया हो क्योंकि वही कार्यकर्ता सफल माना जाता है जो सेवार्थी के साथ मौखिक अंतः क्रिया करने में सक्षम होता है।इसके लिए कार्यकर्ता को अपने तथा सेवार्थी के बीच होने वाली संचार प्रक्रिया की प्रविधि का ज्ञान होना आवश्यक है।संचार की यह प्रक्रिया सेवार्थी के,सांवेगिक, सांस्कृतिक तथा बौद्धिक स्तर पर की जाती है।
सांवेगिक स्तर पर संचार को स्थापित करते हुए कार्यकर्ता को सेवार्थी के प्रति भावनात्मक लगाव व सहनशीलता का परिचय देते हुए उसकी समस्या को ध्यानपूर्वक सुनना व समझना चाहिए। कार्यकर्ता द्वारा बातचीत की प्रक्रिया का संचालन इस प्रकार से करना चाहिए कि सेवार्थी उस पर सहज रुप से विश्वास करते हुए अपने व्यक्तिगत तथ्यों को भी आसानी से प्रकट कर सके।दोनों के आपसी संबंध तभी घनिष्ट बनते हैं जब सेवार्थी को भी अपनी बात सहज एवं स्पष्ट रूप से कहने का अवसर प्राप्त होता है।
कार्यकर्ता एवं सेवार्थी के बीच मौखिक अंतः क्रिया अर्थात बातचीत तभी अच्छे ढंग से संपन्न हो पाती है जब कार्यकर्ता को सेवार्थी की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का अच्छा ज्ञान हो।उसे सेवार्थी की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि भाषा बोली रीत रिवाज लोकाचार तथा रूढ़ियों आदि के विषय में ज्ञात कर लेना चाहिए,किससे संचार को समान स्तर पर संपन्न किया जा सके कार्यकर्ता को सेवार्थी से जुड़े उक्त तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि सांस्कृतिक कारक समस्या को जटिल बनाने में उत्तरदाई हो सकते हैं अतः यदि कार्यकर्ता सेवार्थी के सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुकूल व्यवहार करता है तो संबंधों को घनिष्ठता बढ़ती है।
सेवार्थी के साथ मौखिक अंतः क्रिया करते हुए कार्यकर्ता को इस महत्वपूर्ण बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि उसे सेवार्थी के बौद्धिक स्तर के अनुरूप ही बातचीत करनी चाहिए ना कि स्वयं के स्तर के अनुरूप। क्योंकि यदि कार्यकर्ता सेवार्थी के बौद्धिक स्तर के अनुरूप बातचीत नहीं करेगा तो सेवार्थी को इसमें अरुचि उत्पन्न हो सकती है और वह सहयोग देने से इनकार भी कर सकता है अतः कार्यकर्ता को बातचीत व संचार में उन्ही संकेतों चिन्हों भाषा और बोली का उपयोग करना चाहिए जो सेवार्थी के सांस्कृतिक व बौद्धिक स्तर के अनुकूल हो।
कार्यक्रम नियोजन एवं इसका प्रयोग
समाज कार्य वैज्ञानिक ज्ञान एवं पद्धतियों पर आधारित एक व्यवसाय है जिसके अंतर्गत प्रत्येक कार्य पूर्व नियोजित कार्यक्रमों के आधार पर किया जाता है समाज कार्य में कार्यकर्ताओं के द्वारा से भारतीयों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कार्यक्रमों के निर्माण का कार्य किया जाता है। कार्यक्रम का प्रयोग बहुधा समूह समाज कार्य प्रणाली एवं सामुदायिक संगठन के अंतर्गत किया जाता है इन प्रणालियों में कार्यकर्ता समूह और समुदाय की आवश्यकता एवं इच्छाओं के अनुरूप कार्यक्रम की गतिविधियों का नियोजन करते हैं।जिनमें समूह के उद्देश्य तथा संस्था एवं समुदाय के संसाधनों के अनुरूप कार्यक्रम बनाए जाते हैं कार्यक्रम ही हुआ महत्वपूर्ण उपकरण है जिनके माध्यम से अभीष्ट एवं वांछित परिवर्तनों को प्राप्त करने के लिए कार्य किया जाता है अतः कार्यकर्ता के द्वारा कार्यक्रम का नियोजन इस प्रकार से करना चाहिए जो समूह के आवश्यकता ओं की पूर्ति करने वाला हो तथा उसका संचालन समूह के सदस्यों की क्षमताओं के अनुसार भी हो कार्यक्रम की गतिविधियों का नियोजन इस प्रकार से भी करना चाहिए जिससे वह भविष्य की चुनौतियों एवं परिवर्तनों के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके और समूह भी उतार-चढ़ाव का सामना आसानी से कर सके कार्यक्रम में सभी सदस्यों की भूमिका स्पष्ट एवं नेतृत्व परिभाषित होना चाहिए।कार्यकर्ता को अपनी भूमिका भी स्पष्ट कर देनी चाहिए तथा उसे कार्यक्रम का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिए जिससे समूह की अभिलाषा ओं के स्तर में परिवर्तन लाया जा सके उनकी उम्मीदें पूरी की जा सके और साक्ष्य प्राप्त किए जा सकें।
समाज कार्य की प्रविधियां
सहयोग
इस प्रविधि के अंतर्गत दो या दो से अधिक कार्यकर्ताओं के संयुक्त प्रयास सम्मिलित होते हैं इस प्रवृति का उपयोग तब किया जाता है जब सेवार्थी की समस्या के एक से अधिक पक्ष होते हैं यह समस्या का संबंध उसके पारिवारिक और सामाजिक पर्यावरण से होता है पारिवारिक समस्याओं के संदर्भ में प्रायः ऐसा देखा जाता है कि जब अलग-अलग सेवार्थी यों के साथ अलग-अलग कार्यकर्ता कार्य करते हैं और कार्यकर्ता समय-समय पर एक दूसरे के साथ मिलकर सेवार्थी यों की समस्याओं और भावनाओं से एक दूसरे को अवगत करवाते हैं तो इससे समस्या समाधान के लिए प्रभावी ढंग से कार्य कर पाना संभव हो जाता है।
शिक्षण
सेवार्थी जब संस्था के पास आता है तब उसे अपनी समस्या का समुचित ज्ञान नहीं होता है। वह हीन भावना से ग्रसित होता है और अपने आप को एक हीन प्राणी समझता है। उसके अहम का क्षरण हो चुका होता है। और वह अपने मनो संघर्षों के प्रति अनभिज्ञ होता है अतः कार्यकर्ता समय एवं आवश्यकतानुसार सेवार्थी को शिक्षण प्रदान करता है जिससे समस्या के विषय में उसे ज्ञान होता है कार्यकर्ता सेवार्थी का व्यतिकरण करता है और उसके मनो संघर्षों को स्पष्ट करता है वह भाव विवेचन करते हुए भावनाओं के प्रकटीकरण का मार्ग प्रशस्त करता है तथा यथा स्थान सेवार्थी के समस्या के कारणों पर प्रकाश डालते हुए उसे समस्या के विषय में अवगत कराता है।
स्वीकृति
कार्यकर्ता सेवार्थी को उसके वास्तविक स्वरूप में ही स्वीकार करता है अर्थात सेवार्थी जिस अवस्था में कार्यकर्ता के पास सहायता मांगने आया है उसे उसी रूप में सहायता देने के लिए स्वीकृति प्रदान करता है वह सेवार्थी में किसी प्रकार के परिवर्तन के लिए नहीं कहता है वह उसका सम्मान करता है जिसका परिणाम यह होता है कि सेवार्थी स्पष्ट रूप से सच्चाई बता कर राहत प्राप्त करता है।
प्रोत्साहन
कार्यकर्ता सेवार्थी को उसके समस्या समाधान का दायित्व सौंपा है वह जहां एक तरफ समस्या के कारणों को स्पष्ट करता है वही समस्या समाधान के लिए उसकी क्षमता में वृद्धि करता है और उसे प्रोत्साहन प्रदान करता है।
पुष्टिकरण
कार्यकर्ता सेवार्थी के यथार्थ एवं वास्तविक विचारों का पुष्टिकरण करता है जिससे सेवार्थी को अपनी समस्या भी स्पष्ट होती है और उसमें एक विश्वास जागृत होता है।
समाज कार्य के क्षेत्र में प्रयुक्त विशिष्ट तकनीकें
प्रतिरक्षा तंत्रव्यक्ति को विभिन्न प्रकार की दुश्चिंता तथा दबाव से सुरक्षित रखने के लिए व्यक्ति का अहम (इगो) किसी उपाय या क्रियाविधि के उपयोग को सुनिश्चित करता है इसे प्रतिरक्षा तंत्र या रक्षा रूढ़ि युक्तियों के नाम से जाना जाता है यह तथ्यात्मक नहीं होता है इसे भौतिक रूप में तथा अचेतन रूप से प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है तथा यह अचेतन स्तर पर कार्य करता है इसके उपयोग के प्रति व्यक्ति जागरूक नहीं होता प्रतिरक्षा तंत्र विभिन्न मानसिक दबाव दुश्चिंता आदि के समाधान का स्वस्थ तरीका नहीं है इसके बार-बार उपयोग करने से गंभीर प्रकार के मनोविकार उत्पन्न हो जाते हैं व्यक्ति में सामान्यतः निम्न प्रतिरक्षा तंत्र देखे जा सकते हैं।
दमन
दमन एक ऐसी शक्ति है जिसका उपयोग व्यक्ति चयनित विस्मरण के लिए करता है अर्थात जब कोई कष्टदायक विचार या अप्रिय स्थिति उत्पन्न होती है तो व्यक्ति से अपने चेतन स्तर से निकाल देना चाहता है और इसके लिए जिस क्रियाविधि का इस्तेमाल करता है उसे दमन कहते हैं। व्यक्ति जिस बात का दमन करता है या फिर चेतन रूप से स्वीकार करता है। वह वास्तव में दमित या विस्मरित नहीं होता।दमन व्यक्ति के सचेत प्रयास हों या जागरूकता से होता है इसमें कष्टदाई विचारों को निष्क्रिय करने का प्रयास किया जाता है।
अस्विकृति
जब किसी व्यक्ति अनुभव को यह प्रत्यक्षीकरण को स्वीकार नहीं करता तब इसे अस्विकृति कहा जाता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अप्रिय वास्तविकताओं को स्वीकार नहीं करता तथा इसके लिए वह प्रायः दूसरों को जिम्मेदार ठहराता है।
पृथक्करण
पृथक्करण तब घटित होता है जब ईगो के द्वारा दुश्चिंता को पृथक किया जाता है। इसमें व्यक्ति अपनी भावना को किसी विचार या घटना से पृथक कर के देखता है।
प्रक्षेपण
प्रक्षेपण के अंतर्गत व्यक्ति के द्वारा अपनी निराशा कुंठा असामान्य विचारों असफलताओं आज के लिए किसी वास्तविक या काल्पनिक व्यक्ति या घटना को उत्तरदाई ठहराया जाता है अपने अहम की रक्षा के लिए मानव व्यवहार में सबसे अधिक यह प्रवृत्ति पाई जाती है एक सीमा तक यह प्रवृत्ति व्यक्ति में संतुलन बनाए रखती है किंतु सीमा से अधिक हो जाने पर यह विभिन्न प्रकार के मनोविकारों को उत्पन्न करती है और इससे विभिन्न प्रकार की भ्रांतियां पैदा होती है।
स्थानांतरण
इसमें व्यक्ति असफलताओं, अप्रिय घटनाओं आदि को दूसरों पर स्थानांतरित कर देना ।
तार्किकीकरण
तार्किकीकरण में प्रायः व्यक्ति अपने आसमायोजित या कुसमायोजित व्यवहार को तार्किक या न्यायोचित सिद्ध करता है। और वह कुछ तर्को या प्रेरणाओ का अर्जन करता है। इसके प्रायः दो परिणाम या लाभ उत्पन्न होते हैं। यह किसी निश्चित या विशिष्ट व्यवहार को तार्किक किया न्यायोचित सिद्ध करने में सहायता करता है। यह व्यक्ति की असफलताओं, निराशाओ, और कुंठाओ, अप्राप्त उद्देश्यों, प्रभावों आदि को कम करने में सहायता करता है।
फैंटेसी ( कल्पना ) करना
जब कोई व्यक्ति कुंठा या निराशा की स्थिति से मुक्ति पाने का प्रयास करता है।तब वह कल्पना के माध्यम से अपने अहम को हुई क्षति या पीड़ा को कम करने का प्रयास करता है। जैसे किसी एक क्षेत्र में निराश कोई व्यक्ति अपने आप को किसी दूसरे क्षेत्र में सफल व्यक्ति के रूप में कल्पना कर सकता है इसके माध्यम से व्यक्ति अपने आपको अधिक शक्तिशाली सक्षम और सम्मानित समझने का अनुभव करता है।
तादात्मिकरण
व्यक्ति कि वे मूलभूत भावनाएं या इच्छाएं जिन्हें समाज स्वीकृति ढंग से पूरा कर पाना संभव नहीं होता उन्हें सामाजिक ढंग से पूरा करने का प्रयास तादात्मिकरण कहलाता है।बेतिया विशेषकर अपनी आक्रामक या यौन इच्छाओं की पूर्ति चेतन स्तर पर नहीं कर पाता है तब इससे संबद्ध मानसिक ऊर्जा तनाव और दुश्चिंता उत्पन्न करती है इसलिए व्यक्ति इन मूलभूत वृत्तियों को सही दिशा प्रदान करने के लिए अपने नक्शों में परिवर्तन कर लेता है और उन्हें सामाजिक ढंग से पूरा करने का प्रयास करता है जैसे आक्रामक भावनाओं का तादात्मिकरण ऐसे खेलों के माध्यम से किया जाता है जिनमें अत्यधिक शक्ति और साहस की आवश्यकता होती है इसी प्रकार यौन भावनाओं को कला साहित्य और वैज्ञानिक गतिविधियों के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है
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