सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूपों का उल्लेख कीजिए और स्तरीकरण तथा विभेदीकरण में अंतर कीजिए :-
बोटोमोर ने मानव इतिहास में प्रचलित सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख चार स्वरूपों - दास प्रथा , जागीरें , जाति और सामाजिक वर्ग का उल्लेख किया है ।
1. - बंद स्तरीकरण - जाति प्रथा - बंद स्तरीकरण वाली समाज व्यवस्था मैं समाज ऐसे स्थितियां स्तर समूहों में बांटा होता है जो पूरी तरह से बंद होते हैं । इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति के स्तर समूह का निर्धारण जन्म या अनुवांशिकता के आधार पर होता है और जिसे वह आजीवन नहीं बदल सकता क्योंकि ऐसे समूहों की सदस्यता जन्म पर आधारित होती है, अतः एक समूह को छोड़कर किसी अन्य समूह की सदस्यता ग्रहण करने का प्रश्न ही नहीं उठता । इस प्रकार के स्तरीकरण का श्रेष्ठ उदाहरण भारत की जाति व्यवस्था है । इस व्यवस्था के अंतर्गत व्यक्ति की जाति का निर्धारण जन्म के समय ही हो जाता है । व्यक्ति आजीवन उसी जाति का सदस्य बना रहता है जिसमें उसका जन्म हुआ है । बंद स्तरीकरण को कुछ लोग जातिगत स्तरीकरण के नाम से भी पुकारते हैं । इस प्रकार का स्तरीकरण मुसलमानी, ईसाइयों एवं अमेरिका के कई जनजातीय लोगों में भी पाया जाता है । बंद स्तरीकरण वाले सवालों में विभिन्न स्तर समूहों या जातियों में उतार चढ़ाव की एक प्रणाली पाई जाती है । एक समूह या जाति दूसरों की तुलना में ऊंची या नीची मानी जाती है । ऐसे ही स्तरीकरण वाले समाजों में विभिन्न समूहों के अधिकार दायित्व एवं कार्य सामान्यतः एक दूसरे से भिन्न होते हैं । बंद स्तरीकरण के प्रमुख स्वरूप जाति व्यवस्था ।
2. - खुला स्तरीकरण - वर्ग व्यवस्था - इस प्रकार की स्तरीकरण वाले समाजों में विभिन्न स्तर समूहों की सदस्यता का आधार जन्म या अनुवांशिकता ना होकर व्यक्ति के गुण, योग्यता एवं उपलब्धियां होती हैं । परिणाम स्वरूप व्यक्ति की किसी भी स्तर समूह की सदस्यता का निर्धारण जीवन भर के लिए नहीं होता । आज व्यक्ति एक स्थिति समूह या स्तर समूह का सदस्य है, आगे आने वाले समय में वह अपनी योग्यता, गुणों एवं परिश्रम के आधार पर उपलब्धियों को बढ़ाकर किसी अन्य पहले से अधिक उच्च स्तर समूह का सदस्य बन सकता है । यही कारण है कि इसे खुले स्तरीकरण के नाम से पुकारते हैं । ऐसे स्तर समूहों की सदस्यता में खुलापन पाया जाता है । वर्ग व्यवस्था खुली स्तरीकरण वाली समाज व्यवस्था का श्रेष्ठ उदाहरण है । स्तरीकरण की इस प्रकार की खुली व्यवस्था को वर्गगत स्तरीकरण के नाम से भी पुकारते हैं । वर्ग सदस्यता का निर्धारण प्रमुखतः व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के आधार पर होता है । राजनीतिक सप्ताह या शक्ति तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में प्राप्त विशिष्ट उपलब्धियां भी व्यक्ति की वर्गीय स्थिति को ऊंचा उठाने में योग देती है । यूरोप के अधिकतर समाज खुले स्तरीकरण वाली समाज व्यवस्था का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं । ऐसे समाजों में बंद समाजों की तुलना में सामाजिक गतिशीलता अधिक पाई जाती है । वर्ग व्यवस्था पर जो कि खुले स्तरीकरण का प्रमुख स्वरूप है ।
सामाजिक स्तरीकरण तथा सामाजिक विभेदीकरण में अंतर कीजिए :-
सामाजिक स्तरीकरण एवं विभेदीकरण दोनों ही समाज को विभिन्न समूहों में विभाजित करने की प्रक्रियाएँ हैं । ये एक दूसरे की पूरक होते हुए भी परस्पर भी भिन्नता लिए हुए हैं । इन दोनों में निम्नांकित अंतर है :
1. - सामाजिक स्तरीकरण का उद्देश्य कुछ विशेष परिस्थितियों को धारण करने वाले व्यक्तियों को अधिक अधिकार, सुविधाएं एवं सुरक्षा प्रदान करना है । इसीलिए यह एक जागरूक एवं जानबूझकर अपनाई जाने वाली प्रक्रिया है । दूसरी ओर विभेदीकरण एक स्वतः एवं स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाली प्रक्रिया है । इसका विकास जानबूझकर योजनाबद्ध रूप के लिए नहीं किया जाता है ।
2. - सामाजिक विभेदीकरण मैं तो केवल व्यक्तियों एवं समूहों के बीच भिन्नता ज्ञात होती है जबकि स्तरीकरण में भिन्नता के साथ-साथ उच्चता, निम्नता , विशेषाधिकार, सुविधाएं एवं अधीनता का ज्ञान भी होता है ।
3. - सामाजिक विभेदीकरण के लिए समूह का स्थाई होना आवश्यक नहीं जबकि स्तरीकरण में उछता और निम्नता के निर्धारण के लिए स्थाई समूहों का होना आवश्यक है ।
4. - सामाजिक विभेदीकरण चौकी स्पष्ट आधारों पर किया जाता है ( जैसे आयु एवं लिंग भेद ) अतः सरल प्रक्रिया है । दूसरी ओर स्तरीकरण का आधार पक्षपात की भावना एवं सामाजिक प्रतिष्ठा है जिन्हें ज्ञात करना सरल नहीं है, अतः यह एक जटिल प्रक्रिया है ।
5. - ओल्सन का मत है कि स्तरीकरण एक वैयक्तिक प्रक्रिया है जबकि विभेदीकरण अवैयक्तिक । स्तरीकरण में व्यक्ति एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा, विरोध एवं संघर्ष करते हैं जबकि विभेदीकरण में व्यक्तियों में परस्पर भिन्नता होते हुए भी विरोध एवं संघर्ष नहीं पाया जाता । उदाहरण के रूप में, स्त्रियां पुरुषों से इस कारण विरोध प्रकट नहीं करती कि वे स्त्रियां हैं तथा बालक युवा एवं वृद्ध लोगों से इसीलिए रोष प्रकट नहीं करते कि वे बालक क्यों हैं ?
6. - सामाजिक स्तरीकरण का संबंध उपयोगिता से है, इसके द्वारा योग्य व्यक्तियों को उच्च पद एवं अधिक सुविधाएं प्रदान की जाती हैं जबकि विभेदीकरण उपयोगिता के आधार पर नहीं किया जाता है ।
7. - स्तरीकरण की तुलना में विभेदीकरण की प्रक्रिया अधिक प्राचीन है । पहले विभेदीकरण अस्तित्व में आया और उसके बाद ही स्तरीकरण प्रारंभ हुआ ।
सामाजिक स्तरीकरण की आवश्यकता
समाज में स्तरीकरण की आवश्यकता निम्न कारणों से है :
1. - समाज अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए विभिन्न पदों की रचना करता है । विभिन्न पदों के लिए विभिन्न प्रकार की योग्यता एवं क्षमता की आवश्यकता होती है । किसी पद के लिए अधिक प्रशिक्षण देना होता है तो किसी के लिए कम । कोई पद अधिक जिम्मेदारी वाला होता है तो कोई कम । पद एवं दायित्व के अनुसार ही समाज लोगों को कम या अधिक पुरस्कार प्रदान करता है । इस कारण समाज में भेदभाव एवं उच्चता निम्नता का भ्रम पैदा होता है और समाज विभिन्न स्तरों में विभक्त हो जाता है । इस स्तरीकरण को रोका नहीं जा सकता । यहां तक कि साम्यवादी देशों में भी पदों एवं दायित्वों की भिन्नता के अनुसार पुरस्कारों में भिन्नता पाई जाती है और वहां भी सामाजिक स्तरीकरण देखने को मिलता है ।
2. - दूसरी बात यह है कि प्रत्येक पद पर ऐसे आदमी बैठाने होते हैं जो अपने पद के उत्तरदायित्व को अच्छी तरह से निभा सके, परिश्रम एवं लगन द्वारा अपने कर्तव्य का पालन कर सकें । इसलिए ही समाज विभिन्न पदों के लिए विभिन्न प्रकार के पुरस्कारों की व्यवस्था करता है और लोगों को उनकी योग्यता, बुद्धि एवं रूचि के अनुसार विभिन्न पद प्रदान करता है । इस प्रकार पदों का विभाजन एवं प्रत्येक पद के लिए एक विशिष्ट पुरस्कार समाज का आवश्यक अंग है और इसे ही स्तरीकरण कहते हैं ।
3. - जब किसी समाज में विभिन्न पद हो उनसे संबंधित अधिकार एवं पुरस्कारों में असमानता हो तो समाज में स्तरीकरण पैदा होना स्वाभाविक है । स्तरीकरण के द्वारा समाज यह विश्वास दिलाता है कि सबसे अधिक महत्वपूर्ण पदों पर योग्य व्यक्तियों को रखा जाएगा । इस प्रकार व्यक्तियों में निहित योग्यता एवं बुद्धि की भिन्नता को समाज संस्थात्मक रूप दे देता है ।
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