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सामाजिक स्तरीकरण के आधारों का उल्लेख कीजिए

सामाजिक स्तरीकरण के आधारों का उल्लेख कीजिए

पारसन्स ने व्यक्ति की प्रास्थिति निर्धारित करने वाले 6 कारकों का उल्लेख किया है जो स्तरीकरण को भी तय करते हैं । वे हैं नातेदारी समूह की सदस्यता, व्यक्तिगत विशेषताएं, अर्जित उपलब्धियां, द्रव्य जात, सत्ता तथा शक्ति । सोरोकिन तथा बेबर स्तरीकरण के प्रमुख तीन आधारों आर्थिक, राजनीतिक एवं व्यवसायिक का उल्लेख करते हैं जबकि कार्ल मार्क्स केवल आर्थिक आधार को ही महत्वपूर्ण मानते हैं । आर्थिक आधार पर समाज में दो प्रकार के वर्ग पनपते हैं - पूंजीपति एवं श्रमिक वर्ग । स्तरीकरण के सभी आधारों को हम प्रमुख रूप से दो भागों में बांट सकते हैं -

1. - प्राणी शास्त्रीय आधार एवं ।

2. - सामाजिक सांस्कृतिक आधार ।


प्राणीशास्त्रीय आधार :-

 समाज में व्यक्तियों एवं समूहों की उच्चता एवं निम्नता का निर्धारण प्राणीशास्त्रीय आधारों पर भी किया जाता है । प्रमुख प्राणीशास्त्रीय आधारों से हम लिंग, आयु, प्रजाति एवं जन्म आदि को ले सकते हैं :

1. - लिंग - लिंग के आधार पर स्त्री और पुरुषों के रूप में समाज का स्तरीकरण सबसे प्राचीन है । लगभग सभी समाजों में पुरुषों की स्थिति स्त्रियों से ऊंची मानी जाती रही है । कई पद ऐसे हैं जो केवल पुरुषों के लिए ही निर्धारित है ।

2. - आयु - प्रत्येक समाज में कई पद ऐसे होते हैं जो एक निश्चित आयु के व्यक्तियों को ही प्रदान किए जाते हैं । आयु के आधार पर समाज में प्रमुख चार स्तर - शिशु, किशोर, प्रौढ़, और वृद्ध आदि पाए जाते हैं । सामान्यतः महत्वपूर्ण पद अधिक आयु के लोगों को प्रदान किए जाते हैं । भारत में परिवार, जाति एवं ग्राम पंचायत के मुखिया का पद वयोवृद्ध व्यक्ति को ही दिया जाता रहा है । यह माना जाता है कि आयु और अनुभव का घनिष्ठ संबंध है । इसीलिए अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य अनुभवी एवं वायोवृद्ध व्यक्तियों को सौंपी जाते हैं ।

3. - प्रजाति - जाति के आधार पर सामाजिक स्तरीकरण वहां देखा जा सकता है जहां एकाधिक प्रजातियां साथ साथ रहती है । किस प्रजाति के लोग शासन एवं सत्ता में होते हैं तथा साथ ही संपन्न भी होते हैं वह प्रजाति अपने को दूसरी प्रजातियों से श्रेष्ठ मानती है । अमेरिका व अफ्रीका में गोरी प्रजाति ने काली प्रजाति से अपने को श्रेष्ठ घोषित किया है ।

4. - जन्म - जन्म भी सामाजिक स्तरीकरण उत्पन्न करता है । जो लोग उच्च कुल,वंश , एवं जाति में जन्म लेते हैं , वे अपने को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं ।

5. - शारीरिक व बौद्धिक कुशलता - वर्तमान समय में व्यक्ति की प्रस्थिति एवं स्तर का निर्धारण उसकी शारीरिक एवं मानसिक कुशलता, योग्यता एवं क्षमता के आधार पर होने लगा हैं । जो लोग अकुशल, पागल,क्षीणकाय, आलसी एवं अयोग्य होते हैं, उनका स्तर उन लोगों से नीचा होता है जो बुद्धिमान, परिश्रमी, हष्ट पुष्ट एवं कुशल होते हैं । साम्यवादी देशों में भी इन गुणों के आधार पर स्तरीकरण देखा जा सकता है ।

सामाजिक सांस्कृतिक आधार


सामाजिक स्तरीकरण प्राणीशास्त्रीय आधारों पर ही नहीं वरन अनेक सामाजिक सांस्कृतिक आधारों पर भी पाया जाता है । उनमें से कुछ प्रमुख आधार इस प्रकार है :

1. - सम्पत्ति - सम्पत्ति के आधार पर भी समाज में स्तरीकरण किया जाता है । आधुनिक समाजों में ही नहीं वरन आदिम समाजों में भी संपत्ति के आधार पर ऊंच-नीच का भेद पाया जाता है । समाज में वे लोग ऊंचे माने जाते हैं जिनके पास अधिक संपत्ति होती है । वे सभी प्रकार की विलासिता एवं सुख सुविधाओं की वस्तुएं खरीदने की क्षमता रखते हैं । इसके विपरीत गरीब तथा संपत्तिहीन की स्थिति निम्न होती है । संपत्ति के घटने एवं बढ़ने के साथ-साथ समाज में व्यक्ति का स्तर भी घटता बढ़ता रहता है ।

2. - व्यवसाय - व्यवसाय भी सामाजिक स्तरीकरण का प्रमुख आधार है । समाज में कुछ व्यवसाय सम्मानजनक एवं ऊंचे माने जाते हैं तो कुछ निम्न एवं घृणित । डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासक, प्राध्यापक आदि का पेशा बाल काटने, कपड़े धोने और चमड़े का काम करने वालों के पेशो से श्रेष्ठ एवं सम्माननीय माना जाता है ।

अतः इन पेशो को करने वालों की स्थिति भी सामाजिक संस्तरण की प्रणाली में ऊंची होती है ।

3. - धर्म
-  धर्म समाज में धर्म भी स्तरीकरण उत्पन्न करता है । जो लोग धार्मिक कर्मकाण्डों में संलग्न होते हैं, धार्मिक उपदेश देते हैं एवं धर्म के अध्ययन में रत रहते हैं उन्हें सामान्य लोगों से ऊंचा माना जाता है । भारत में पण्डों , पुजारियों , धार्मिक गुरुओं , साधु-संतों एवं ब्राह्मणों की सामाजिक स्थिति उनके धार्मिक ज्ञान और धर्म से संबंधित होने के कारण ही ऊंची रही है । वर्तमान में धर्म के महत्व के घटने के साथ-साथ स्तर निर्धारण में इसका प्रभाव भी कम होता जा रहा है ।

4. - राजनीतिक शक्ति - सत्ता एवं अधिकारों के आधार पर भी समाज में संस्तरण पाया जाता है । जिन लोगों के पास सैनिक शक्ति, सत्ता और शासन की बागडोर होती है, उनकी स्थिति उन लोगों से ऊंची होती है जो सत्ता एवं शक्ति से रहित होते हैं । शासक और शासित का भेद सभी समाजों में पाया जाता है ।

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