Skip to main content

नगरों के प्रकारों की विवेचना कीजिए

नगरों के प्रकारों की विवेचना कीजिए

नगरों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित करना एक कठिन कार्य है क्योंकि एक नगर किसी एक कारण से स्थापित नहीं होता बल्कि अनेक ऐसे महत्वपूर्ण सहयोगी कारक होते हैं जो नगर को बनाने और बसाने में सहायक होते हैं । उदाहरण के लिए रेगिस्तान में बड़ी जनसंख्या का जमाव और ठहराव नहीं हो सकता । वहां नगर स्थापित होना सरल कार्य नहीं है । इसके विपरीत एक ऐसे स्थान पर जनसंख्या बढ़ने लगे जहां की भूमि उपजाऊ हो, जल की सुविधा हो, उद्योग पनपने के अवसर हो ऐसे स्थान शीघ्र ही बड़े नगरों की श्रेणी में आ जाते हैं । कुछ ऐसे ही स्थान जो किसी चीज के लिए प्रसिद्ध हो जाते हैं वे अपनी विशेषताओं के द्वारा छोटे नगर बन जाते हैं किंतु महानगर नहीं बन पाते हैं जैसे प्रयागराज, मथुरा, अजमेर, नैनीताल, मसूरी आदि । इस तरह नगरों के प्रकारों के निर्धारण की दृष्टि से जनसंख्या, क्षेत्र की जलवायु और पारिस्थितिकीय विशेषताओं पर ध्यान रखना आवश्यक है ।

   अनेक विद्वानों ने नगर को अलग-अलग आधारों पर विभाजित करने का प्रयास किया है । नोइल जिस्ट और एल ए हरबर्ट ने निम्नलिखित रूप में नगरों के प्रकार बताएं हैं । इन्होंने नगरों को विशेषीकरण के आधार पर विभाजित किया है ।

1. - उत्पादन के केंद्र

2. - व्यापार तथा वाणिज्य के केंद्र

3. - राजनीतिक राजधानियां

4. - सांस्कृतिक केंद्र

5. - दर्शनीय तथा अवकाश कालीन नगर

6. - विभिन्नता के नगर

राइजर ने कार्यो के आधार पर नगरों के प्रकार बताएं हैं -

1. - उपभोग के नगर

2. - उत्पादन के नगर

3. - मिश्रित कार्यों के नगर

4. - संचय और वितरण के नगर

5. - नदी तथा समुद्रतटीय नगर

6. - वित्त तथा साख के नगर

7. - श्रमिकों या कारीगरों के नगर

8. - सैनिक नगर

9. - स्नान के नगर

10. - जलवायु तथा स्वास्थ्य लाभ के नगर

11. - संग्रहालय के नगर

12 . - विश्वविद्यालयों के नगर

केमिल रोइजर ने नगरों का वर्गीकरण व्यापारिक कार्यों के आधार पर किया है -

1. - प्राकृतिक नगर

2. - निर्मित नगर

पिअर जार्ज का मत है कि नगरों का अस्तित्व प्राचीन काल से ही है । वे वीडियो का इतिहास अपने में समाहित किए हुए हैं । इन्होंने विकास क्रम और अर्थ के आधार पर नगरों का वर्गीकरण किया है -

1. - पूर्व पूंजीवादी नगर

2. - औपनिवेशिक नगर

3. समाजवादी नगर

मम्फोर्ड नगरीय समाजशास्त्र के अधिकारी विद्वान के रूप में प्रसिद्ध है । उनकी दो पुस्तकें इस संदर्भ में काफी लोकप्रिय हुई है । कल्चर ऑफ सिटीज और सिटीज इन हिस्ट्री । मम्फोर्ड ने नगरों को नेम लिखित रूप में प्रस्तुत किया है -

1. - मध्यकालीन नगर

2. - अनवस्थित नगर

3. - औद्योगिक नगर

4. - विराटनगर

1. - यह नगर दीवार दार परकोटो में सीमित थे । नगर के चारों तरफ दीवारों की सीमाएं सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनी थी । कालांतर में यह नगर व्यापार और वाणिज्य के केंद्र बन गए । आगे चलकर नगरीकरण और जनसंख्या का दबाव इन नगरों पर अधिक पड़ने लगा और ये विघटन के कगार पर पहुंच गए ।

2. - मध्यकालीन नगरों में व्यापार और प्रशासन प्रणाली का अत्यधिक विकास हुआ । इन नगरों में खुले बाजार और प्रशासनिक कार्यालयों में वृद्धि हुई । यहां राजधानियां भी बनी । यूरोप में इस प्रकार के नगरों का बाहुल्य 19वीं शताब्दी तक रहा ।

3. - औद्योगिक नगर आधुनिक नगरों की नींव रखते हैं । उद्योग का विकास मशीनों के नित्य आविष्कार के साथ होता है । इसके साथ ही श्रमिकों का केंद्रीकरण भी औद्योगिक नगरों में बढ़ने लगता है । औद्योगिक नगरों में अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई जैसे आवास की समस्या, मलिन बस्तियां, विभिन्न प्रकार के रोग, आवागमन के साधन, जनसंख्या का दबाव आदि ।

4. - विराटनगर और महानगरों के विकास में पूंजीवादी व्यवस्था का महत्वपूर्ण स्थान है । ये नगर अनेक चीजों के केंद्र बन गए । ये व्यापार, शिक्षा, प्रशासन, सुरक्षा सुविधा आज के केंद्र बन गए । भारत के महानगर कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई इनके उदाहरण है । इन नगरों का विकास महानगर के रूप में 20वीं शताब्दी से मुख्यता होता है ।

    उपर्युक्त नगरों के जितने भी प्रकार विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं वे सामान्यतः नगर की प्रमुख विशेषता के आधार पर है । इससे हम सहमत नहीं है कि किसी विशेष नगर का विकास उसकी किसी एक विशेषता के आधार पर होता है । नगर के विकास में एक साथ अनेक कारक कार्य करते हैं जैसे जलवायु, आवागमन के साधन, व्यवसाय की सुविधाएं, सुरक्षा की भावना, पर्याप्त जनसंख्या आदि । कुछ सैनिक, कारीगरों, व्यापारियों व घरेलू उद्योग से कस्बे की स्थापना हो सकती है । छोटे छोटे नगरों की स्थापना हो सकती है । विराट और महानगरों की स्थापना नहीं हो सकती । ये तथ्य प्राचीन काल के नगरों पर लागू हो सकता है कि राजधानी और असैनिक शिविरों से नगर बन गए किंतु आधुनिक युग के नगरों पर लागू नहीं होता है ।

   आधुनिक औद्योगिक, तकनीकी और वैज्ञानिक युग में नगरों की स्थापना उद्योग के आधार पर हो रही है । वे स्थान जहां बड़े-बड़े कारखाने, फैक्ट्री और मिल लगाए जा रहे हैं वे स्वतः नगर बनते जा रहे हैं । लाखों की संख्या में श्रमिक यहां कार्य करता है । अनेक कार्यालयों की स्थापना हो जाती है । बाजार व्यापार के केंद्र बन जाते हैं । शिक्षा संस्थाओं में वृद्धि होती है । तकनीकी ज्ञान के केंद्र बन जाते हैं । किस तरह औद्योगिकरण की प्रक्रिया जिस स्थान और क्षेत्र में तीव्र गति से आगे बढ़ती है । वे सभी स्थान नगर और महानगर बन जाते हैं ।

    पूर्व औद्योगिक नगरों की जनसंख्या कुछ हजारों अथवा एक से लेकर पांच लाख के बीच में होती थी । ये शिक्षा संस्कृति, सैनिक शिविरों अथवा राजधानियों के केंद्र होते थे किंतु आज किसी भी महानगर में एक साथ इनमें से अधिकांश विशेषताओं को देखा जा सकता है ।

   आधुनिक तकनीकी और वैज्ञानिक युग में नगरों के बढ़ने की प्रक्रिया प्राचीन काल से पूर्णतया भिन्न है । आज नगरों के निर्माण में औद्योगिकरण का एक मुख्य कारक है वहीं पंचवर्षीय योजनाओं की आम भूमिका । सरकार जिन स्थानों पर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों, विश्वविद्यालय, तकनीकी शिक्षा के केंद्र, मेडिकल कॉलेज आदि खोल रही है, के स्थान स्वतः नगर और महानगर बनते जा रहे हैं ।

Comments

Popular posts from this blog

समुदाय की विशेषताएं क्या हैं

समुदाय की विशेषताएं क्या हैं समुदाय की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर उसकी कुछ मूल विशेषताएं बताई जा सकती हैं जो निम्नलिखित हैं :- 1. - निश्चित भूभाग - निश्चित भूभाग का तात्पर्य यहाँ उस सीमा एवं घेरे से है जो किसी विशेष सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं वाले नागरिकों को अपनी परिधि में सम्मिलित करता है । मानव जाति की एक परंपरागत विशेषता रही है कि जब मानव परिवार किसी एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर बसने के लिए प्रस्थान करता है तो वह उस स्थान को प्राथमिकता देता है जहां उसके समान सामाजिक आर्थिक एवं धार्मिक विचारों वाले लोग निवास करते हैं । इस प्रकार धीरे-धीरे काफी परिवार उस समान विशेषता वाले परिवार के समीप आकर बस जाते हैं । इन सभी ए क्षेत्र में बसे परिवारों की समानता एवं समीपता के आधार पर इसे एक नाम दिया जाता है जो इस पूरे समुदाय क्षेत्र का परिचायक होता है । समुदाय के इस निश्चित भूभाग में बसने के आधार पर ही उसका प्रशासन एवं सामाजिक आर्थिक विकास की योजना निर्धारित की जाती है । 2. - व्यक्तियों का समूह - समुदाय से यहां तात्पर्य मानव जाति के समुदाय से है जो अपनी सामाज...

समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास

समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास बाटोमोर के अनुसार समाजशास्त्र एक आधुनिक विज्ञान है जो एक शताब्दी से अधिक पुराना नहीं है । वास्तव में अन्य सामाजिक विज्ञानों की तुलना में समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है । एक विशिष्ट एवं पृथक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की उत्पत्ति का श्रेय फ्रांस के दार्शनिक आगस्त काम्टे को है जिन्होंने सन 1838 में समाज के इस नवीन विज्ञान को समाजशास्त्र नाम दिया । तब से समाजशास्त्र का निरंतर विकास होता जा रहा है । लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि क्या आगस्त काम्टे के पहले समाज का व्यवस्थित अध्ययन किसी के द्वारा भी नहीं किया गया । इस प्रश्न के उत्तर के रूप में यह कहा जा सकता है कि आगस्त काम्टे के पूर्व भी अनेक विद्वानों ने समाज का व्यवस्थित अध्ययन करने का प्रयत्न किया लेकिन एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र अस्तित्व में नहीं आ सका । समाज के अध्ययन की परंपरा उतनी ही प्राचीन है जितना मानव का सामाजिक जीवन । मनुष्य में प्रारंभ से ही अपने चारों ओर के पर्यावरण को समझने की जिज्ञासा रही है । उसे समय-समय पर विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ा है । इन समस...

सामुदायिक संगठन कार्य के सिद्धांत एवं प्रकार

सामुदायिक संगठन कार्य के सिद्धांत  एवं  प्रकार सामुदायिक संगठन कार्य के सिद्धांत -   सामुदायिक संगठन कार्य समाज कार्य की प्राथमिक पद्धतियों मैं एक है . समाज कार्य की समानता के साथ साथ समाज कार्य के समान इसके भी कुछ सिद्धांत है जिनका पालन सामाजिक कार्यकर्ता के लिए आवश्यक है . इन सिद्धांतों के प्रयोग के बिना सामुदायिक संगठन कार्य के लक्ष्य की प्राप्ति असंभव है, इसलिए इन सिद्धांतों का ज्ञान सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता के लिए आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य है . ये  सिद्धांत सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को लक्ष्य प्राप्ति के लिए सुलभ एवं आसान तरीके बताते हैं।  तथा अनुभव शील एवं सिद्ध ज्ञान से कार्यकर्ता का मार्गदर्शन करते हैं।  विभिन्न विद्वानों ने भिन्न भिन्न सिद्धांतों का उल्लेख किया है लेकिन यहाँ उन कुछ प्रमुख सिद्धांतों की ही चर्चा की जाएगी जो सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता के लिए आवश्यक है। सिद्धांत का अर्थ प्रकृति एवं विषय क्षेत्र - सामुदायिक संगठन के सिद्धांतों का वर्णन करने से पहले आवश्यक है कि हम सिद्धांत के अर्थ को समझें तथा साम...