नगरीय उद्विकास की विभिन्न अवस्थाओं का उल्लेख करें
नगरों के उद्विकास की अवस्थाएं - ममफोर्ड ने नगर के उत्थान और पतन की 6 अवस्थाएं बताई है । ये नगर की उत्पत्ति के सामान्य तथ्य हो सकते हैं पर यह सभी देशों के नगरों के विकास पर सामान्य रूप से लागू होते हैं, इसे स्वीकारा नहीं जा सकता है ।प्रथम अवस्था - यह वह अवस्था है जिसमें ग्राम समुदाय की स्थापना होती है । ऐसी अवस्था में पशुपालन और कृषि का विकास भी होता है । इस अवस्था में समाज में अनेक प्रकार की विभिन्नतायें देखी जाती हैं जैसे व्यवसायिक समूहों में अंतर, छोटे बड़े गांव की स्थापना, गांव व्यवसाय पर केंद्रित होने लगे जैसे कृषि व्यवसाय, मछली व्यवसाय आदि । प्राथमिक समूह के महत्त्व में वृद्धि हुई । कालांतर में बड़े गांव की स्थापनाये होने लगी जहां शिक्षा और कारीगरी में भी पर्याप्त विकास हुआ । इस अवस्था में पाषाण युगीन संस्कृति का प्रभाव देखा जाता है ।
द्वितीय चरण - प्रथम चरण में बड़े गांव की स्थापना हो गई थी और द्वितीय चरण में गांव में सामान्य संगठनों की स्थापना हुई जो रक्त समूह पर आधारित थे । यह संगठन एक सामान्य स्थान पर बने जो सामूहिक रूप से आक्रमण से अपनी रक्षा करते थे । उनके अपने देवी देवता, मंदिर और पंचायतें थी । इस युग में व्यवसाय में विविधता उत्पन्न हो गई थी । छोटे बड़े उद्योगों की स्थापना हो गई थी । कारीगरी और श्रम विभाजन विकसित हो चुका था । मशीनीकरण का विकास हो गया था। शिक्षा के क्षेत्र में गणित, दर्शन शास्त्र तथा ज्योतिष शास्त्र का विकास होने लगा था। संगीत और चित्रकला की सृष्टि हुई । प्रशासनिक कार्यों में विकास हुआ वही नागरिक विचारों को भी देखा गया । वास्तव में पोलिस निवासी संगठन विचारों के विशाल संगठन थे । यह वह अवस्था थी जिसने नगर को स्थापित करने के लिए मजबूत नींव रखी । इस युग के कृषि, व्यापार, शिक्षा, कला, यंत्रीकरण, प्रशासन, मार्ग यातायात, और सड़कों का निर्माण आदि ऐसे कार्य हुए जिसने नगरों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
तृतीय अवस्था : मेट्रोपोलिस - जनसंख्या को जीवन की अधिकतम सुविधाएं जहां प्राप्त हुई वहीं जनसंख्या का घनत्व बढ़ता गया । इस दृष्टि से जल की सुविधा और कृषि योग्य भूमि जहां पर उपलब्ध थे वहीं नगर बसने लगे । इन स्थानों पर यातायात की सुविधाएं विकसित हुई । इन नगरों में जब जनसंख्या के घनत्व का दबाव अधिक पड़ा तो खाद्य सामग्री भी उत्पन्न हुई जिसकी पूर्ति निकट के गांव और कस्बों से की जाती थी । इससे दूसरे स्थानों से संपर्क बड़ा और संस्कृति का परस्पर आदान-प्रदान भी होने लगा । इस संपर्क से अनेक चीजों का जन्म हुआ । अन्तर नगरीय व्यापार , शिक्षा, अविष्कार आदि में वृद्धि हुई । विद्यालय और विशेषीकृत व्यापार संगठनों की स्थापनाएँ हुई । इस युग में कृषि और उद्योग पतियों में संघर्ष होना आरंभ हो गया । भूमिहीन कृषकों में वृद्धि हुई । अभिजात वर्ग में वृद्धि हुई । अन्तर नगरीय संपर्कों में द्वितीयक अन्तर क्रियाओं और अन्तर संबंधों में वृद्धि हुई । तर्क और अभिव्यक्ति के साधनों में वृद्धि हुई । इस तार्किक युग ने विज्ञान की नींव रखी । व्यक्ति चीजों पर विचार करता और उसका पुनर्मूल्यांकन करता ।
इस संस्कृति ने अनेक दुर्बलताओं को भी जन्म दिया । व्यक्तिवाद के विकास ने सामाजिक संबंधों की कड़ी को कमजोर बनाया । परस्पर संघर्ष उत्पन्न हुए । प्रतिस्पर्धाए जन्मी । उद्योगपतियों और श्रमिकों के मध्य संघर्ष प्रारंभ हुए । नए मूल्यों की स्थापना हुई और प्राचीन व्यवस्था को आघात पहुंचाने से सामाजिक विघटन आरंभ हुआ ।
चतुर्थ अवस्था : मेगा लोपोलिस - यह युग पूंजीवादी व्यवस्था का प्रतीक बन गया । अधिक से अधिक धन कैसे अर्जित किया जाए व्यक्ति इस में लिप्त हो गया । प्रतिस्पर्धा संघर्ष इस युग की देन है । धन संचय इस युग की विशेषता है । नैतिकता का पतन इस युग का विशेष लक्षण है । इस तरह इस युग में पूंजीपति और अधिक शक्तिशाली बनने की कामना रखने लगा । शोषण किया जाने लगा । महानगर विभिन्न संस्कृतियों के केंद्र बन गए । तर्क और वैज्ञानिकता का महत्व बढ़ने लगा । भौतिकवादी संस्कृति के विकास ने व्यक्ति को भावनाहीन बना दिया । व्यक्ति निजी स्वार्थों की पूर्ति में फंस गए और सामूहिक भावना को तिलांजलि देने लगे और इससे सामाजिक विघटन आरंभ हो गया । अभिजात वर्ग और पूंजीपति वर्ग कभी-कभी समाज सुधार करने का दिखावा भी करते थे पर मूल उद्देश्य उनका वैयक्तिक स्वार्थों की पूर्ति करना था । यह युग महानगरों की नींव रखने लगे और छोटे नगरों का अस्तित्व ना के समान होने लगा ।
पंचम अवस्था : टाईरेन्नौ पोलिस - इस अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते पूंजीवादी व्यवस्था की स्थापना हो चुकी थी । वर्गीय समाज स्थापित हो गए थे । धन का महत्व सर्वोपरि था । प्रतिस्पर्धा और संघर्ष जीवन के अंग बन गए थे । व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से दूसरों पर निर्भर रहने लगा था । समाज में भ्रष्टाचार बढ़ रहा था । नैतिक दृष्टि से समाज भ्रष्ट हो चुका था । मनुष्य सुविधा भोगी बन गया है । वर्गों में पद और स्थिति स्पष्ट हो गई थी । अस्तु इनके सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक संबंधों में खाई उत्पन्न हो गई । शासकीय और व्यवसायिक संगठन भ्रष्ट हो गए । वर्गीय समाज की स्थापना और पूंजी पतियों की शक्ति में वृद्धि से समाज में बेकारी भुखमरी और निर्धनता जैसी सामाजिक समस्याओं में वृद्धि हुई । अंततः जनता में जहां असंतोष फैला वही अपराधों में वृद्धि भी हुई । इसे दबाने के लिए तानाशाही प्रवृत्तिया उभर कर सामने आने लगी । यह युग वास्तव में पूंजीवादी व्यवस्था से उत्पन्न अनेक समस्याओं का था ।
षष्ठम अवस्था : नेक्रोपोलिस - ममफोर्ड के अनुसार नगर विकास के अंतिम चरण में नगर के व्यक्ति और पूंजीपति निजी स्वार्थों को लेकर इतने पतित हो गए थे कि नगर में उनके रोग उत्पन्न हो गए । संपूर्ण समाज अर्थहीन बन गया । समाज के आर्थिक सामाजिक संगठन मूल्यहीन बन गए । गांव और कस्बे उखड़ने लगे । परंपरागत व्यवसाय ढांचा नष्ट होने लगा । व्यक्ति लूटपाट के कार्यों में लिप्त हो गए । इस तरह समाज में अराजकता और बर्बरता व्याप्त हो गई और संपूर्ण समाज नष्टता के अंधकार में डूब गया ।
नगर उत्पत्ति के 6 स्तर विकास और पतन के चक्र को बताते हैं किंतु यह चक्र सभी देशों के नगरों के विकास पर समान रूप से लागू नहीं हो सकते । यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक नगर का विकास इन्हीं इस तरह से होकर निकले । यह भी आवश्यक नहीं है कि अंतिम स्तर तक पहुंचते-पहुंचते महानगर और नगर नष्ट हो जाए । आज भी विश्व में अनेक पूंजीवादी देश है । वे अभी तक नष्ट क्यों नहीं हुए ? यह स्वाभाविक प्रश्न हम सबके सामने हैं । इसमें कोई दो मत नहीं है कि भौतिकवादी और पूंजीवादी व्यवस्था में नैतिक मूल्यों का पतन होता है । शोषण व्यक्ति की नियति बन जाती है । किंतु इन सब का अर्थ यह तो नहीं है कि देश ही समाप्त हो जाता है । इस तरह ममफोर्ड के नगरों के उत्थान और पतन की कहानी वैज्ञानिक आधार पर खरी नहीं उतरती है ।
कारपेन्टर ने प्राचीन काल के नगरों के विकास में निम्नलिखित कारणों को महत्व दिया है -
1. - अनुकूल और हल्की जलवायु ।
2. - खाद्य सामग्री की उत्पत्ति ।
3. - आक्रमणों की तुलनात्मक दृष्टि से मुक्ति ।
4. - उपजाऊ भूमि ।
ग्रास ने उपर्युक्त कारणों को स्वीकारते हुए कुछ अन्य कारणों को नगरों की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण माना है । ये निम्नलिखित हैं -
1. - भूमि और जल प्राप्ति के साधन ।
2. - शत्रुओं से दूरी ।
3. - व्यापार की दृष्टि से युक्त और स्वतंत्र क्षेत्र ।
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