नगरीय अवधारणा तथा विशेषताएं और यह महानगर कब कहलाता है
नगर से व्यक्ति परिचित होता है । उसके चहल-पहल, भीड़ भाड़, प्रचुर मात्रा में यातायात और संदेश वाहन के साधनों का जाल बिछा होता है । व्यवसायिक, वाणिज्य और मनोरंजन के केंद्र होते हैं । शिक्षा, धर्म, व्यवसाय की अनेक संस्थाएं होती है । एक बहुत बड़ी जनसंख्या नगरों में निवास करती है व्यक्तियों के मध्य औपचारिक संबंध होते हैं । बल्कि बड़े नगरों में तो व्यक्ति एक दूसरे को पड़ोस में रहकर भी जान नहीं पाता है । एक अनेक विशेषताओं के होते हुए भी नगर को परिभाषित करना सरल कार्य नहीं है । इसीलिए बर्गल ने लिखा है कि यद्यपि प्रत्येक यह जानता है कि नगर क्या है ? किंतु कोई भी इसकी संतोषप्रद परिभाषा नहीं दे सका है । अस्तु नगरीय समाजशास्त्र में नगर की व्याख्या अनेक दृष्टियों से की जाती है । ये अग्रलिखित हैं :-कानूनी दृष्टिकोण के अनुसार नगर व स्थान है जहां एक निश्चित संख्या से अधिक व्यक्ति निवास करते हो और जहां एक निश्चित सीमा के अंतर्गत, नगरपालिका, सरकार द्वारा प्राप्त अधिकारों का प्रयोग करती हो । इस तरह नगर एक शासकीय इकाई है । परिस्थितिकीय आधार पर नगर को एक प्राकृतिक तथा सामाजिक इकाई कहते हैं ।
परिस्थितिकीय व्याख्या के अनुसार, नगर का अर्थ उस स्थान से है जहां एक विशेष प्रकार का प्राकृतिक परिवेश विद्यमान हो । परिस्थितिकीय व्याख्या शिकागो स्कूल के नाम से जानी जाती है । पार्क और मेकेन्जी का मत है कि नगर का अर्थ किसी स्थान पर स्थित ऐसी संगठित इकाई से है जिसके विकास के अनेक प्रथम नियम हैं ।
जनसंख्यात्मक दृष्टिकोण से भी नगर को परिभाषित करने का प्रयास किया जाता है । किसी स्थान विशेष को नगर कहने के लिए निर्धारित जनसंख्या का आधार लिया जाता है जैसे कस्बे के लिए कम से कम 5000 की जनसंख्या आवश्यक है । इस तरह अमेरिका में 2500 और इससे अधिक जनसंख्या वाले स्थान को नगर की श्रेणी में रखने की अनुशंसा की जाती है । इसी तरह भारत में एक लाख या इससे अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों को नगर का नाम दिया जाता है । जनसंख्या के आधार पर की गई परिभाषाएं भी सभी देशों और क्षेत्रों पर समान रूप से लागू नहीं होती । अस्तु यह सार्वभौमिक परिभाषा होने का दावा नहीं कर सकती है । फिर भी जनसंख्या का किसी स्थान पर जमाव, नगर की एक महत्वपूर्ण विशेषता है और इस जनसंख्या में विभिन्न जाति, धर्म, संप्रदाय, प्रजाति के व्यक्ति होते हैं जिनकी अपनी भाषा, धर्म, रहन सहन, खानपान, परंपराएं, रीति रिवाज, मूल्य होते हैं, अस्तु नगर की प्रकृति में विभेदीकरण की विशेषता समाहित होती है ।
ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक दृष्टिकोण के अनुसार भी नगर को परिभाषित करने की चेष्टा की गई है । ऐतिहासिक दृष्टि से नगर की व्याख्या सभ्यता के विकास के संदर्भ में की जाती है । तुलनात्मक दृष्टि के अनुसार नगर की व्याख्या बृहत्त परंपरा के सामाजिक संगठन के रूप में की जाती है । स्पेंगलर, मम्फोर्ड, घुरिये ने नगर की व्याख्या ऐतिहासिक दृष्टि से की है जबकि विर्थ ने सभ्यता के विकास पर अधिक बल दिया है । उसका मत है कि सभ्यता के इतिहास को नगरों के संदर्भ में लिखा जाना चाहिए ।
विलकाक्स का मत है कि, गांव और नगर का मौलिक अंतर कृषि और अन्य उद्योगों के समूहों में अंतर है ।
सोमबार्ट का विचार है कि नगर एक वह स्थान है जो इतना बड़ा है कि उसके निवासी परस्पर एक दूसरे को नहीं जानते हैं ।
बर्गल ने राजकीय दृष्टि से नगर को परिभाषित किया है " किसी स्थान को जिस एक चारटर जो एक उच्च अधिकारी द्वारा स्वीकृत किया गया है के द्वारा न्यायिक रूप से नगर परिभाषित किया गया है ।
बर्गल ने इस रूप में भी नगर की परिभाषा की है जो बहुत कुछ विलकाक्स से मिलती है, हम उस स्थान को नगर कहेंगे जहां के अधिकांश निवासी कृषि कार्यों से भिन्न उद्योगों में व्यस्त हो ।
नगर की विशेषताएं :-
प्रत्येक नगर की अपनी एक पहचान और कुछ विशेषताएं होती है जिनके द्वारा अमुक नगर पहचाना जाता है जैसे आगरा, लखनऊ, इलाहाबाद, बनारस आदि । यह सभी नगर है फिर भी इनकी प्रथक प्रथक विशेषताएं हैं । फिर भी नगरों की कुछ सामान्य विशेषताएं हैं जो प्रत्येक नगर में सरलता से देखी जा सकती है । ये निम्नलिखित है -
1. - गैर काश्तकारी व्यवसाय - नगर की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यहां कृषि व्यवसाय नहीं होता है । इसी के आधार पर गांव और नगर मुख्यतः विभाजित होते हैं । कृषि व्यवसाय ग्रामीण जीवन का मुख्य आधार है । संपूर्ण ग्रामीण अर्थव्यवस्था इसी पर आधारित है । नगरीय व्यक्ति के जीविकोपार्जन के साथ नौकरी, व्यवसाय अथवा निजी उत्पादन के कार्यक्षेत्र होते हैं । इस प्रकार नगरीय जीवन का आधार गैर काश्तकारी पेशा हैं ।
2. - जनसंख्या का घनत्व - नगरों में प्रतिमील वर्ग जनसंख्या का घनत्व ग्रामीण क्षेत्रों से कहीं अधिक होता है । नगरिया व्यवसाय को जितने सीमित स्थान में संपन्न किया जाता है उतने कम स्थान पर कृषि करना असंभव है । इसके अतिरिक्त गांव दूर दूर बसे होते हैं जिनकी आबादी भी बहुत कम होती है जबकि नगर में मोहल्ले और कॉलोनी पास पास होती है जिनमें लाखों व्यक्ति साथ साथ रहते हैं ।
3. - जनसंख्या और नगर का विस्तार - समय के साथ नगरों में औद्योगिकरण और व्यवसायीकरण में निरंतर वृद्धि होती है जिससे नगरों की जनसंख्या में निरंतर वृद्धि होती है । मुख्य नगर में आवास की सुविधा इतनी नहीं होती है की बढ़ती हुई जनसंख्या को अपने में खपा सके । अस्तु नगर के बाहर नई-नई कॉलोनी का निर्माण किया जाता है । इसे नगर का निरंतर विस्तार होता जाता है ।
4. - जनसंख्या में विविधता - नगर में जहां विभिन्न जाति, धर्म, संप्रदाय और प्रजाति के व्यक्ति रहते हैं वहां निम्न, मध्य, उच्च वर्ग के व्यक्ति भी रहते हैं । इसीलिए नगर को विभिन्न संस्कृतियों का पुंज और वर्गीय समाज कहा जाता है ।
5. - सामाजिक संबंधों का नगरीय स्वरूप - नगरीय समाज में सामाजिक संबंध का स्वरूप ग्रामीण समाज से पूर्णतया प्रथक रूप में दृष्टिगोचर होता है । यहां के संबंधों में घनिष्ठता का अभाव होता है ।
नगरीय सामाजिक संबंध के निम्नलिखित मुख्य विशेषताएं हैं :-
A. - औपचारिक और अवैयक्तिक संबंध - नगर में विभिन्न जाति, धर्म संप्रदाय और प्रजाति के व्यक्ति रहते हैं जिनकी अपनी संस्कृति होती है । इसलिए भी व्यक्ति परस्पर जुड़ नहीं पाते हैं और ना इनमें घनिष्ठता ही स्थापित हो पाती है । इसलिए इनमें औपचारिक संबंध मात्र ही होते हैं ।
B. - व्यक्तिवादी प्रवृत्ति - नगरों का व्यक्ति व्यक्तिवादी प्रवृत्ति का होता है । वह अपने स्वार्थों, महत्वाकांक्षाओं और अहम के संसार में स्वयं रहता है । वह अपनी खुशी, वैभव और संपन्नता के लिए स्वयं प्रयत्न करता है । वह अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए कुछ भी कर सकता है । उसे अपने सिवा किसी की चिंता नहीं होती । इसीलिए यहां मानवीय संबंध और मूल्य न होकर वैयक्तिक मूल्य ही अधिक देखे जाते हैं ।
C. - जटिल सामाजिक संबंध - नगरों में सामाजिक संबंधों का जाल बिछा होता है । व्यक्ति के व्यवहारों को यहां समझना टेढ़ी खीर है । एक व्यक्ति एक समय पर क्या कहता और क्या करता है और दूसरे क्षण वह क्या कहेगा और क्या करेगा इसका अनुमान लगाना मुश्किल कार्य है । इसके अतिरिक्त एक व्यक्ति के अनेक पद और स्थितियां हैं । वह परिवार का स्वामी है तो कहीं का प्रेसीडेंट, चेयरमैन तो किसी दूसरी संस्था का प्रबंधक है तो कहीं कुछ और । इस तरह नगरों में व्यक्ति का जीवन विभिन्न क्षेत्रों के कार्यों से जुड़ा है । यह सभी स्थितियां व्यक्ति के सामाजिक संबंधों को जटिल बनाती है ।
6. - आंतरिक संगठन - प्रत्येक नगर का एक आंतरिक संगठन भी होता है जो नगर के स्वरूप को उजागर करता है । ये आंतरिक संगठन नगर के ढांचे को दर्शाते हैं ।
निम्नलिखित दो पक्ष नगर के आंतरिक संगठन के संबंध में उल्लेखनीय हैं :-
A. - स्थान संबंधी - एक नगर अनेक छोटे-बड़े क्षेत्रों में विभाजित होता है । प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशेषता होती है जैसे औद्योगिक क्षेत्र, क्रय विक्रय के क्षेत्र, व्यवसायिक क्षेत्र, मनोरंजनात्मक क्षेत्र, शिक्षा संबंधी क्षेत्र, विभिन्न कार्यालयों के क्षेत्र आदि । इन विभिन्न क्षेत्रों को यातायात के साधनों से एक दूसरे से जोड़ा जाता है । प्रत्येक क्षेत्र आपने विशेषता के लिए पहचाना जाता है । कुछ क्षेत्रों के मध्य निरंतर प्रतियोगिता चलती रहती है । अस्तु इनमें से कुछ क्षेत्र भीड़ और घनी आबादी के केंद्र स्थल बन जाते हैं ।
B. - सामान्य जीवन पद्धति - नगर विभिन्नताओं का केंद्र होते हुए भी कुछ ऐसी सामान्य चीजें हैं जो सभी नागरिकों पर सामान्य रूप से लागू होती है । जैसे नौकरी पर जाने और लौटने का एक निश्चित समय है । बाजार के खुलने और बंद होने का एक निर्धारित समय है । उसी समय के मध्य व्यक्ति क्रय और विक्रय करता है । बाजार में सभी के लिए सभी चीजें समान रूप से उपलब्ध हैं । यह सभी उदाहरण नगर की विभिन्न संस्थाओं के मध्य क्रियात्मक एकता को दर्शाती है । यह क्रियात्मक एकता नगरीय जीवन की एक सामान्य जीवन पद्धति की भी हो घोतक है ।
7. - आवासीय स्थायित्व - नगर बाजारों का केंद्र स्थल नहीं है । यहां के व्यक्तियों का स्थाई आवास अथवा मकान होता है । यदि कोई व्यक्ति मकान को छोड़कर जाता है तो दूसरा उसमें आता है । इसी प्रकार नगर में मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, स्कूल, कॉलेज, चिकित्सालय, विभिन्न उद्योग और व्यवसायिक कार्यालय , सरकारी और गैर सरकारी कार्यालय आदि होते हैं । इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता से स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है । इस तरह नगरीय समुदाय एक स्थान में निवास करता है ।
8. - गतिशीलता की तीव्र प्रकृति - नगरीय समुदाय में गतिशीलता की तीव्र प्रकृति को देखा जा सकता है । व्यक्ति को यदि इच्छानुसार नौकरी प्राप्त नहीं हुई या उसे व्यवसाय में सफलता नहीं मिली अमुक नगर से वह संतुष्ट नहीं है या वह नगर में बेरोजगार है या वह पदोन्नति का इच्छुक है तो व्यक्ति को एक नगर से दूसरे नगर में जाने में कोई हिचक नहीं होती है । इसीलिए बड़े औद्योगिक नगरों में हजारों, लाखों व्यक्ति प्रतिदिन आते और जाते रहते हैं । अस्तु गतिशीलता नगर का एक महत्वपूर्ण लक्षण है ।
9. - एकाकी जीवन - नगर की भीड़ में प्रत्येक व्यक्ति अकेला है । जिस स्थान पर अथवा कॉलोनी में रहता है , शायद वहां के लोगों से उसका परिचय भी नहीं होता । प्रत्येक व्यक्ति अपने अहम में डूबा, अपने बनाए हुए संसार में रहता है । यहां सुख और दुख व्यक्ति को अकेले ही झेलने पड़ते हैं । और यदि कुछ अवसरों पर व्यक्ति आते भी हैं तो मात्र औपचारिकतावश । नगरीय संस्कृति में दिखावा अधिक है और अपनापन कम । इसलिए नगर का व्यक्ति स्वयं अपने को ढोता है यह जानते हुए कि यहां उसका कोई नहीं ।
10 . - नगरीय आर्थिक ढांचे में विभिन्नताएं - नगर विभिन्नताओं का केंद्र है । यहां ऊंची ऊंची इमारतें नगर के वैभव की कहानी कहती हैं । पांच सितारा होटल नगर की विलासिता के घोतक है । बंगलुरु और महलों के वातानुकूलित कमरे अभिजात्य और उच्च व्यवसायिक वर्ग की प्रतिष्ठा का संदेश देते हैं । सड़कों पर दौड़ती कारें धनी नगर का परिचय देती है । इसके विपरीत मलिन बस्तियां भी है जो इस धरती के नर्क हैं , जहां लाखों व्यक्ति रहते हैं और जहां पशु भी रहना पसंद नहीं करेंगे । फुटपाथ होकर सोने वाले असंख्य व्यक्ति धूप, गर्मी, बरसात और जाड़े को अपने शरीर पर उड़ते हैं । यह गरीबी और अमीरी की तस्वीर नगरीय आर्थिक ढांचे की विभिन्नताओं का चित्र उपस्थित करती है ।
महानगर की अवधारणा :-
महानगर के प्रत्यय का उद्भव ग्रीक साहित्य से हुआ है । आरंभ में इसका अर्थ मातृ नगर से था । ग्रीक के लगभग सभी प्राचीन नगर इसी भावना पर आधारित थे । ये नगर सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक विशेषताओं के आधार पर संगठित थे । इनमें आवास की छोटी-छोटी व्यवस्थाएं थी । कालांतर में उच्च राष्ट्रीयता के विकास के पश्चात, इन नगरों की विशेषताओं का प्रसार हुआ । इस समय 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगर महानगर के अंतर्गत आते हैं । महानगरों के लिए उच्च राष्ट्रीयता के तत्वों का होना इतना आवश्यक नहीं है जितना कि बहुउद्देशीय कार्य और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व का होना । सामान्यतः महानगर की स्थापना ए वही होती है जहां अनेक प्रकार के विशाल व्यवसायिक केंद्र होते हैं जिनका संबंध मात्र देश की भौगोलिक सीमाओं तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि विश्व के अनेक देशों से इनका संबंध होता है । ये वे क्षेत्र है जहां जनसंख्या का घनत्व अत्यधिक होता है । नगर का निरंतर विस्तार होता जाता है । छोटे-छोटे स्थानों पर बहुखंडीय कार्यालय होते हैं । यातायात और संदेश वाहन की अत्यधिक सुविधाएं होती हैं । इस तरह महानगर अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्यों का केंद्र स्थल होता है । भारत में इस दृष्टि से अनेक महानगर है जैसे चेन्नई, मुंबई, कोलकाता, दिल्ली आदि । इस दृष्टि से ई ई बर्गल ने महानगर को परिभाषित करने का प्रयास किया है , " महानगर शब्द का अब सामान्यतः प्रयोग एक महानगरीय क्षेत्र में केंद्रीय नगर को निर्दिष्ट करने हेतु किया जाता है । यह पसंद करना प्रतीत होता है कि ऐसे नगर को महानगरीय केंद्र कहा जाए और एक अंतर्राष्ट्रीय महत्व की सबसे बड़ी अविस्थापन को महानगर का नाम दिया जाए । अनेक महानगर किसी एक विशेषता अथवा कार्य के कारण महानगर बनने का गौरव प्राप्त कर लेता है । उनके विशेषीकरण के कारण ही कोई क्षेत्र महानगर की श्रेणी में आ जाता है जैसे पालो नामक महानगर का कॉफ़ी और रुई के लिए प्रसिद्ध है । यह दोनों ही वस्तुओं के उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ है । शिकागो अपनी रेल व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है । किंतु यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक महानगर के निर्माण की प्रक्रिया में विशेषीकरण एकमात्र कारण है । असंख्य महानगर ऐसे हैं जो किसी एक कारण के फल स्वरुप महानगर नहीं बने बल्कि वह अनेक ऐसी विशेषताओं का विकास हुआ है जिसने उस क्षेत्र को महानगर बनाया है जैसे औद्योगिक और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापनाये, बढ़ता हुआ जनसंख्या का घनत्व, विभिन्न प्रकार के सरकारी गैर सरकारी तथा अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय, आवागमन और संदेश वाहन के अच्छे साधन और शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, मेडिकल कॉलेज, उच्च शिक्षा की संस्थाएं आदि । आधुनिक युग में उन्हीं नगरों को महानगर कहा जाता है जहां बहुउद्देशीय कार्य संपन्न होते हैं । इस तरह महानगर को परिभाषित करने का एक सशक्त आधार प्रकार्यात्मक है । इस दृष्टि से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, अहमदाबाद, कानपुर, टोकियो, वाशिंगटन ,आदि महानगर की श्रेणी में आते हैं । वे नगर भी इसके अंतर्गत आ सकते हैं जो कि नहीं राज्यों की राजधानी है ।
महानगर की विशेषताएं -
महानगर की उपर्युक्त व्याख्या से इन की कुछ विशेषताएं उभरकर सामने आती है जिसके अभाव में महानगर की स्थापना नहीं हो सकती । ये निम्नलिखित हैं :-
1. - जनसंख्या के घनत्व में वृद्धि
2. - उच्च राष्ट्रीय तत्वों का विद्यमान होना
3. - बहुउद्देशीय कार्यों का केंद्र
4. - अंतर्राष्ट्रीय कार्यों का महत्वपूर्ण केंद्र स्थल
5. - आवागमन और संदेश वाहन के प्रचुर और अच्छे साधन
6. - विशाल औद्योगिक और व्यवसायिक केंद्र
7. - कला, साहित्य, विज्ञान, चिकित्सा, तकनीकी ज्ञान की अनेक विशाल संस्थाएं
8. - मनोरंजन की विशिष्ट व्यवस्था आदि ।
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