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नातेदारी की रीतियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए

नातेदारी की रीतियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए

नातेदारी के नियामक व्यवहार ( रीतियाँ )

जब हमारा किसी व्यक्ति से संबंध बन जाता है तो वह यहीं तक सीमित नहीं रहता है वरन उस रिश्ते से संबंधित एक विशिष्ट प्रकार का व्यवहार भी पनपता है । विभिन्न प्रकार के संबंधियों के प्रति हमारे व्यवहार भिन्न-भिन्न तरह के होते हैं । किसी के साथ हमारे संबंध श्रद्धा पर आधारित है तो किसी के साथ आदर, प्रेम, मधुरता, परिहास या हंसी मजाक पर आधारित । संतानों का माता-पिता के साथ व्यवहार श्रद्धा और सम्मान का है । पति पत्नी के बीच प्रेम का तो जीजा साली के बीच मधुरता का है । अतः समाज में दो संबंधियों के बीच किस प्रकार के व्यवहार होंगे इसके नियम बने होते हैं जिन्हें हम नातेदारी के नियामक व्यवहार या नातेदारी की रीतियाँ कहते हैं ।

परिहार या विमुखता :- 

इसका अर्थ है कि कुछ संबंधी आपस में विमुखता बरते , एक दूसरे से कुछ दूरी बनाए रखने का प्रयत्न करें और पारस्परिक सामाजिक अंतः क्रिया को डालने का प्रयास करें । इस रीति के अनुसार कई संबंधियों के नाम लेना वर्जित है या किसी न किसी प्रकार से संबंधियों के साथ परिचित रीति से बात करना वर्जित है । कभी-कभी तो वे संबंधी एक दूसरे को देख भी नहीं सकते, बातचीत नहीं कर सकते, आमने सामने नहीं आ सकते ।
परिहार के संबंध विभिन्न संबंधियों में देखने को मिलते हैं । उन्हें हम इस प्रकार प्रकट कर सकते हैं ।
1 . भाई-बहन परिहार
2. सास दामाद परिहार
3. सास बहू परिहार
4. ससुर पुत्र बधू परिहार
5. ससुर दामाद परिहार
6 . ज्येष्ठ एवं छोटे भाई की पत्नी के बीच परिहार
7. स्त्री के पति का पत्नी की बड़ी बहन से परिहार

कई समाजों में भाई-बहन परस्पर परिहार का पालन करते हैं । श्री लंका की बेडडायड जनजाति में भाई-बहन के बीच परिहार प्रचलित है ; यहां तक कि वे एक ही छत के नीचे नहीं सो सकते एक साथ साथ भोजन भी नहीं कर सकते । कहीं-कहीं पर तो इस प्रकार के परिहार पराकाष्ठा तक पहुंच गए हैं । रिवर्स ने ऐसे उदाहरण भी दिए हैं जबकि भाई-बहन जीवन भर परिहार रखते हैं यहां तक की मृत्यु के बाद भी उस घर में भाई को प्रवेश की इजाजत नहीं होती जिसमें बहन का शव पड़ा हो । ट्रोब्रियांडा द्वीपवासियों मैं यदि भाई अपनी बहन को प्रेम आचार करते देख ले तो तीनों को आत्महत्या करनी पड़ती है ।

पुत्र वधू और सास-ससुर परस्पर परिहार लगभग सभी समाज में पाया जाता है । योकाधिर जनजाति में बहू अपने ससुर एवं जेठ के चेहरे को नहीं देख सकती है । और दामाद को भी अपनी सास एवं ससुर के चेहरे को नहीं देखना चाहिए । ओस्टयाक जनजाति में जब तक कोई संतान पैदा ना हो बहू को ससुर के सामने जाने की मनाही है । यदि उनका कहीं सामना हो जाता है तो वे मुंह को छिपा लेते हैं । न्यूगिनी की बुकाऊ जनजाति में दामाद और सास ससुर एक दूसरे के नाम नहीं ले सकते , परस्पर छू नहीं सकते और ना साथ भोजन ही कर सकते हैं । ससुर को दामाद के सामने भोजन करना होता है तो मुंह ढककर करता है । यदि दामाद ससुर का खुला हुआ मुंह देख ले तो वह वहां से उठकर भाग जाता है । कई जनजातियों में सास अपने दामाद का नाम तक नहीं ले सकती । ऑस्ट्रेलिया की जनजातियों में शायद जंगल में लकड़ियां चुन रही हो और उधर से दामाद आ जाए तो उसे पेड़ के पीछे छुप जाना होता है ।

भारतीय समाज में भी सास-ससुर एवं ज्येष्ठ से पुत्र बधू परिहार रखती है । यही नहीं पति के पिता के भाई व उनकी पत्नियों से भी बहू परिहार रखती है । इसी तरह से छोटी बहन का पति, पत्नी की बहन से परिहार रखता है । पत्नी अपने पति का नाम नहीं लेती है । प्रश्न उठता है कि विभिन्न संबंधियों में इस प्रकार के परिहार क्यों प्रचलित है इसको स्पष्ट करने के लिए अलग-अलग मत प्रकट किए गए हैं :

टॉयलर का मत है कि परिवार का प्रारंभिक स्वरूप मातृसत्तात्मक था और ऐसे परिवारों में दामाद बाहर का व्यक्ति होने से एक अपरिचित व्यक्ति था ।अतः जब वह अपनी पत्नी के साथ रहने को आता था तो उसे सास के साथ प्रतिबंधित त्योहारों का पालन करना पड़ता था । टॉयलर सास दामाद परिहार का कारण प्राचीन काल के मातृसत्तात्मक परिवारों को मानते हैं । पितृसत्तात्मक परिवारों में ससुर वधू परिहार भी इसी तरह पनपे । किंतु टॉयलर कि इस बात की कई विद्वानों ने आलोचना की है । यदि मातृसत्तात्मक परिवारों के कारण ही ऐसे परिवार पनपे तो होपी व जूनी जनजातियों में जो मातृसत्तात्मक है सास दामाद परिहार क्यों नहीं है ? ऑस्ट्रेलिया की कई जनजातियां जो पितृस्थानीय है : दामाद से परिहार का संबंध रखती हैं परंतु बहू का नहीं ।

फ़्रेजर परिहार कारण निषिद्ध यौन सम्बन्धों को मानते हैं । फोन का मत है कि कहीं उन लोगों में यौन संबंध ना हो जाए जो निकट के रसेदार हैं और जिन से यौन संबंधों की मनाही है इसलिए ही भाई-बहन एवं सास दामाद परिहार पनपे । फ़्रेजर का मत विपरीत यौन संबंधों के परिहार तक तो उचित है लेकिन या एक ही लिंग के संबंधियों में जैसे सास वधू , ससुर दामाद , में परिहार को स्पष्ट नहीं करता है । फ़्रेजर ऐसे परिहार को बाद में विकसित हुआ मानते हैं । 
 फ्रॉयड की व्याख्या भी यौन निषेधों से संबंधित है । उसके अनुसार लड़के और लड़की में विपरीत लिंगीय माता पिता के प्रति यौन कामना बचपन से ही विद्यमान होतीं है । इस भावना को विकसित होने से रोकने के लिए परिहार प्रथा का प्रचलन हुआ । परिहार का पालन कैसे किया जाता है कि बच्चे युवा होने पर वह कहीं कोई त्रुटि नहीं कर बैठे । सास एवं दामाद तथा ससुर एवं बहू में परिहार का मुख्य कारण यह है कि उनके बीच यौन आकर्षण को रोका जाए । लेकिन यात्रा के भी बढ़ा चढ़ा कर ही दिया गया है । यदि इस बात को स्वीकार भी कर ले तो ऐसी प्रथाएं सभी समाज में क्यों नहीं प्रचलित हैं । गारो जनजाति एवं सेमानागाओं में तो एक दामाद अपनी विधवा सास से भी विवाह कर लेता है । अतः दामाद वा सास का परिहार यौन आकर्षण को रोकना कैसे हो सकता है । एक ही लिंग के लोगों में परिहार की व्याख्या भी फ्रॉयड के सिद्धांत के आधार पर नहीं की जा सकती ।

लोवी ने परिहार को सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ में देखा है । उनका कहना है कि पुत्र वधू के अन्य परिवारों से आने के कारण पति के परिवार से भिन्न प्रकार के सामाजिक सांस्कृतिक एवं नैतिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है । उसकी वेशभूषा शिष्टाचार संबंधी धारणाएं पति के परिवार से भिन्न होती हैं । परिवार में अन्य सदस्यों को उसके प्रभाव से बचाने के लिए ही पुत्र वधू और सास-ससुर परिहार पनपा । इसी प्रकार दामाद का सांस्कृतिक प्रभाव उसके ससुराल के परिवार पर ना पड़े इसलिए दामाद के संबंधों को प्रतिबंधित किया जाता है ।

टर्नी हाई परिवार की शांति के लिए परिहार को आवश्यक मानते हैं । सास एवं पुत्र वधू की भूमिकाओं में संघर्ष की संभावना हो सकती है । सास ससुर की सत्ता एवं पति के अधिकारों के बीच टकराव हो सकता है । इससे पत्नी की स्थिति कष्टमय एवं पिता-पुत्र के संबंधों में तनाव होने की संभावना रहती है । इन न तनाव से मुक्ति पाने के लिए ही पुत्र वधू , दामाद एवं सास ससुर परिहार रखा जाता हैं ।

रैडक्लिफ ब्राउन का मत है कि परिहार एक सामाजिक तथ्य है ।
अतः उनकी व्याख्या भी सामाजिक आधार पर ही की जानी चाहिए । समाज के कुछ व्यक्तियों के बीच यदि घनिष्ठता हो तो यह दूसरे लोगों के लिए ईर्ष्या की बात होती है । समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए ऐसी शत्रुता की स्थितियों को ना पनपने देने के लिए ही परिवार प्रथा का प्रचलन हुआ । 

चेपल तथा कून कभी मत इसी प्रकार का है । उनके अनुसार सामाजिक संरचना के विघटन को रोकने एवं कुछ व्यक्तियों के बीच अन्तः क्रिया को रोकने के लिए ही परिहार प्रथा की आवश्यकता महसूस हुई । 

डॉ . रिवर्स का मत है कि परिहार के व्यवहार द्वैध संगठनों के कारण पन पर होंगे । विषम लिंगियों में यौन संबंधों को रोकने के लिए परिहार पनपा तो समलिंगियों में ( प्रमुखतया पुरुषों में ) परिहार का कारण यह तथ्य हो सकता है कि वे विद्वेषी अर्द्धांशो ( Moieties ) के सदस्य रहे होंगे । 

परिहार के सामान्य प्रकारों में पति पत्नी के नाम का प्रयोग करना भी निषिद्ध है । इसके पीछे जादू टोने का भय ही आदिम जनजातियों में आधार रहा होगा । इस संदर्भ में एक बात और स्मरणीय है कि जिन लोगों में परिहार के संबंध पाए जाते हैं उनमें सदैव शत्रुता पूर्ण व्यवहार नहीं होते वरन आधार एवं मैत्री के भाव भी पाए जाते हैं । 

परिहास या हंसी मजाक के सम्बन्ध : - 

परिहास सम्बन्ध परिहार से ठीक विपरीत है जिसमें सम्बन्धों की घनिष्ठता पाई जाती है ।  परिहास के अंतर्गत दो रिश्तेदारों में परस्पर हंसी मजाक, गाली गलौज, यौन सम्बन्धी अश्लील और भद्दे कथन एक दूसरे की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना आदि का समावेश होता है । इस प्रकार के व्यवहार प्रमुखतया विवाह सम्बन्धियों के बीच पाए जाते हैं । ये सम्बन्ध निम्न प्रकार के रिश्तेदारों के बीच पाए जाते हैं । 
जीजा साली परिहास,जीजा साला परिहास,देवर भाभी परिहास, ननद भाभी परिहास, मामा भानजा परिहास, मामी भानजा परिहास, दादी पोती परिहास, दादी पोता परिहास, चाचा भतीजा परिहास, फूफा भतीजा परिहास आदि । 
जीजा साली परिहास, जीजा साला परिहास, देवर भाभी परिहास, ननद भाभी  के बीच हंसी मजाक के सम्बन्ध कई समाजों में प्रचलित हैं । इस प्रकार के सम्बन्धो में हंसी मजाक ही नहीं वरन कभी-कभी यौन सम्बन्ध भी स्थापित हो जाते हैं । एक दूसरे की खिल्ली उड़ाना, नीचा दिखाना,पानी छिड़कना, कपड़े फाड़ना आदि सामान्य दिनों में तो होता ही है वरन  होली एवं अन्य त्योहारों एवं विवाह आदि के अवसरों पर अधिक होता है । अरापोह समाज मे जीजा साली में से कोई भी अगर देर तक सोता रहे तो जगने वाला सोने वाले पर ठंडा पानी गिरा सकता है और आपस में चुम्बन भी ले सकते हैं । 
दक्षिण अफ्रीका में बहुत सी जनजातियों में मामा भानजे के साथ परिहास के सम्बन्ध होते हैं । भानजा मामा  की संपत्ति चुरा सकता है और उसके साथ स्वछंदता का व्यवहार कर सकता है । होपी लोगों में भी यही प्रथा है । कुछ पितृवंशीय  परिवारों में एक व्यक्ति अपनी बुआ से परिहास कर सकता हैं । उत्तरी अमेरिका में देवर भाभी, एवं जीजा साली के बीच परिहास अनिवार्य हैं । बैक्सद्वीप में फूफा एवं भतीजी के बीच परिहास पाया जाता है । अफ्रीका की सोंगा (Tsonga) जनजाति में यदि भांजा खाना बन जाने के बाद पहुंचता है तो वह पूरा खाना खा सकता है चाहे मामा के लिए कुछ भी ना बचे । न्योरो जनजाति में यदि भांजे को खाना नहीं मिले तो वह चूल्हे पर एक निशान बना देता है और ऐसा करना मामा के लिए श्राप है । ऐसी स्थिति में उस चूल्हें काबा दोबारा प्रयोग नहीं कर सकता । पोलिनेशिया तथा अफ्रीका में मामा द्वारा यज्ञ के लिए लाए गोश्त में से भांजा कुछ भाग लेकर भाग सकता है । ट्रोब्रियांडा द्वीप वासियों में मामी भानजे में परिहास सम्बन्ध पाया जाता हैं । 

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