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कस्बा या उपनगर किसे कहते हैं

कस्बा या उपनगर किसे कहते हैं ,  

भारत में कस्बे का जनसंख्यात्मक आधार क्या रखा गया है

कस्बा या उपनगर मानवीय अविस्थापन्नता का ऐसा स्वरूप है जिसमें ग्रामीण और नगरीय दोनों प्रकार की विशेषताएं साथ-साथ देखी जाती है । इस क्षेत्र को हम पूरी तरह से ना तो गांव कह सकते हैं और ना ही नगर कह सकते हैं । बड़े गांव में जब नगरीय प्रवृत्तियों और गतिविधियों का समावेश होता और इनके क्रियाकलापों का स्वरूप व्यापक होने लगता है तब हम ऐसे गांव को कस्बे की संज्ञा देते हैं । ग्रामीण क्षेत्रों की विभिन्न आवश्यकताओं को यह क्षेत्र पूर्ण करते हैं ।
     कस्बे को परिभाषित करते हुए बर्गल ने लिखा है, "कस्बे को एक नगरीय अविस्थापना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो पर्याप्त आयामों के ग्रामीण क्षेत्र पर प्रभाव रखता हो " ।

  नगरीयता की मुख्य प्रवृत्तियों में औद्योगिकरण और व्यापीकरण है । इन प्रवृत्तियों में बैंक, बीमा, श्रमिक संगठन, शिक्षा, मनोरंजन, यातायात, संचार साधन आदि समाहित है । किसी ग्रामीण क्षेत्र पर जब जनसंख्या स्थाई रूप से रहने लगती है और इस क्षेत्र में विविध प्रकार की गतिविधियों जैसे धर्म, साहित्य, व्यापार, शिक्षा आदि में तीव्रता आने लगती है तो इस क्षेत्र को कस्बा कह सकते हैं ।

एच एम मेयर और सी एफ कोहन ने कस्बा निर्माण की प्रक्रिया के संबंध में लिखा है, जब कभी ये गतिविधियां, परस्पर संबंधित रहते हुए एक स्थाई और घनिष्ठ स्थानापन्नता और साथ ही सामुदायिक संगठन के लिए कुछ प्रयत्न किए हुए हो, तो वह स्थान कस्बे की विशेषताओं को धारण कर लेता है ।
    गांव से कस्बे बनाने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है । देश में औद्योगिकरण, व्यापीकरण और नगरीयकरण की प्रक्रिया नगर के निकटवर्ती गांव में प्रविष्ट करती है तो वह क्षेत्र भी औधोगिक संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते । नगरीय विशेषताएं इन क्षेत्रों को प्रभावित ही नहीं वरन उनका आधिपत्य स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगता है । यह प्रक्रिया निरंतर गांव से कस्बे , कस्बे से नगर और नगर से महानगर को स्थापित करती चलती है । निर्माण की यह प्रक्रिया भौतिक सभ्यता की प्रगति के साथ निरंतर तीव्र होती जाती है ।

कस्बे का जनसंख्यात्मक आधार -

कस्बे की अवधारणा को जनगणना में प्रमुख स्थान दिया गया है । वास्तव में यह निश्चित करना एक कठिन कार्य है कि कस्बा किसे कहा जाए और नगर किसे । इस दृष्टि से जनगणना का अपना महत्व है ।

जनगणनाएं - सन 1901 की जनगणना में कस्बे की अवधारणा को ' इम्पीरियल सेन्सस कोर्ड ' के अनुसार निर्धारित किया गया । इसके अनुसार कस्बा उसे कहते हैं :

1 - जहां किसी प्रकार की नगरपालिका हो ,

2 - सिविल लाइन के क्षेत्र नगरपालिका के अंदर ना हो

3 - स्थाई रूप से सभी प्रकार के निवासी हो

4 - स्थाई रूप से आवास व्यवस्था हो

5 - जनसंख्या 5000 से कम ना हो

1921 की जनगणना में कस्बे की अवधारणा को कुछ अधिक व्यापक बनाया गया । इसमें जनसंख्या के नगरीय लक्षणों के बजाय स्थाई निवास, व्यापार और जनसंख्या के घनत्व को प्रधानता दी गई । 1931 की जनगणना में 10000 की आबादी वाले क्षेत्रों को नगर और इससे कम वाले क्षेत्रों को कस्बा कहा गया । सन 1941 और 1951 में पुनः परिवर्तन देखने को मिलता है । 1941 मैं कस्बे की अवधारणा को और अधिक व्यापक बनाया गया । 2000 की जनसंख्या वाले क्षेत्रों को कस्बे की श्रेणी में सम्मिलित किया विशेष रूप से जहां व्यापार और नगरीय विशेषताओं में वृद्धि हुई थी ।

  उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि जनगणना के आधार पर कस्बे की अवधारणा में निरंतर परिवर्तन होते रहे हैं । सन 1961 और 1971 की जनगणना में सन 1951 की जनगणना के आधारों को ही स्वीकार किया गया । सन 1971 की जनगणना में जिन क्षेत्रों को कस्बे में सम्मिलित किया गया उसमें मुख्य है :

1. - नगर पालिका

2. - नोटीफाइड एरिया

3. - टाउन एरिया

4. - छावनी क्षेत्र और

5. - 5000 से अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र ।

कस्बे की विशेषताएं :-

उपर्युक्त विवेचना के आधार पर कस्बे की कुछ विशेषताएं उभरकर सामने आती है । ये निम्नलिखित है

1. - ऐसे क्षेत्र जहां ग्रामीण और नगरीय विशेषताएं साथ साथ देखने को मिलती हो ।

2. - औद्योगिकरण और व्यापीकरण की प्रक्रिया तीव्रता से क्षेत्र में आरंभ हो गई हो ।

3. - निकटवर्ती गांव के व्यक्तियों की आवश्यकताएं इस क्षेत्र में पूर्ण होने लगी हो ।

4. - एक बहुत बड़ी जनसंख्या उस क्षेत्र में स्थाई रूप से निवास स्थानों में रहने लगी हो ।

5. - 5000 से अधिक जनसंख्या हो गई हो ।

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