समाजशास्त्र की विषय वस्तु या विषय सामग्री
कुछ विद्वानों ने समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र हर विषय वस्तु में किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं किया है तथा दोनों को एक ही मान लिया है परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है इन दोनों में काफी अंतर है विषय क्षेत्र का तात्पर्य उन संभावित सीमाओं से है जहां तक किसी भी विषय का अध्ययन अधिक से अधिक किया जा सकता है विषय वस्तु का तात्पर्य उन निश्चित बातों या विषयों से है जिसका अध्ययन एक शास्त्र के अंतर्गत किया जाता है। किसी विषय का क्षेत्र अनुमानित परिधि को और विषय वस्तु अध्ययन के वास्तविक विषयों को व्यक्त करते हैं । समाजशास्त्र की विषय वस्तु के संबंध में यद्यपि विद्वानों में मत भिन्नता हैं परंतु अधिकांश समाजशास्त्री सामाजिक प्रक्रिया व सामाजिक संस्थाओं सामाजिक नियंत्रण एवं सामाजिक परिवर्तन को इसके अंतर्गत सम्मिलित करते हैं । यहां समाजशास्त्र की विषय वस्तु को समझने के लिए इससे कुछ प्रमुख विद्वानों के विचारों का उल्लेख किया जा रहा है ।
अ - गिन्सबर्ग के विचार:-
प्रो. गिन्सबर्ग ने समाजशास्त्र की विषय वस्तु के अंतर्गत अध्ययन किए जाने वाले विषयों को प्रमुखतः चार भागों में बांटा है :
1 - सामाजिक स्वरूप शास्त्र ( Social Morphology ) - इसमें समाज के आकार तथा स्वरूप को निश्चित करने वाली विशेषताओं जैसे जनसंख्या के गुण एवं आकार का अध्ययन किया जाता है जो सामाजिक संरचना के निर्माण में योग देते हैं ।
2 - सामाजिक नियंत्रण - इसके अंतर्गत उन विषयों का अध्ययन किया जाता है जो सामाजिक जीवन को नियंत्रित एवं समाज के लोगों के व्यवहारों को व्यवस्थित बनाए रखने की दृष्टि से आवश्यक है, उदाहरण के रूप में जनरीति, प्रथा,परम्परा , रूढ़ि ,कानून, धर्म ,नैतिकता ,एवं फैशन आदि का ।
3 - सामाजिक प्रक्रियाएं ( Social Processes ) - इसमें व्यक्तियों एवं समूहों के बीच होने वाले विभिन्न अंतः क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है । ये अन्तः क्रियाएं ही सामाजिक संबंधों का आधार है जो सामाजिक प्रक्रिया के रूप में सदैव मौजूद रहती है । इनके अंतर्गत सहयोग प्रतिस्पर्धा संघर्ष समायोजन सात्मीकरण आदि का अध्ययन किया जाता है ।
4 - सामाजिक व्याधिकी ( Social Pathology ) - इसमें समाज को विघटित करने वाली यह सामाजिक समस्याएं उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों या दशाओं का अध्ययन किया जाता है उदाहरण के रूप में अपराध बाल अपराध निर्धनता बेकारी व्यक्तिगत विघटन एवं सामूहिक विघटन आदि का ।
ब - कैरन्स के विचार -
कैरन्स ने समाजशास्त्र की विषय वस्तु को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया है ।
1 - मानवीय क्रियाएं :- कैरन्स ने मानवीय क्रियाओं के अंतर्गत शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं को लिखा है । इन्हें ही सामाजिक प्रक्रियाएं कहां गया है जिन का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता है ।
2- सामाजिक संगठन :- सामाजिक संगठन के अंतर्गत परिवार ,जाति आदि संगठन आते है । कैरन्स के अनुसार समाजशास्त्र में सामाजिक संगठन का अध्ययन किया जाना चाहिए ।
3 - सामाजिक संस्थाएं :- आर्थिक राजनीतिक धार्मिक आदि संस्थाओं के द्वारा समाज में व्यक्ति एवं समूह की क्रियाओं को संचालित किया जाता है । ये संस्थाएं सामाजिक संबंधों एवं व्यवहारों को प्रभावित करती हैं । कैरन्स की मान्यता है कि समाजशास्त्र को इन संस्थाओं का अध्ययन करना चाहिए ।
4 - सामाजिक नियंत्रण :- गिन्सबर्ग के समान कैरन्स भी समाज में व्यक्तियों के व्यवहारों को नियंत्रित करने वाले सामाजिक नियंत्रण के विभिन्न साधनों को समाजशास्त्र की विषय वस्तु के अंतर्गत सम्मिलित करते हैं ।
5 - सामाजिक परिवर्तन - समाज को भली-भांति समझने के लिए कैरन्स सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन को आवश्यक मानते हैं । सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न कारकों जैसे आर्थिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक आदि का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाना चाहिए ।
6 - सामाजिक संहिताएं - सामाजिक संहिताएं भी सामाजिक नियंत्रण के साधनों के अंतर्गत ही आती है। परंतु जटिल समाजों में व्यवहारों को नियंत्रित करने की दृष्टि से राजनैतिक संहिताएं अर्थात कानूनों का विशेष महत्व पाया जाता है । अतः समाजशास्त्र को इनका भी अध्ययन करना चाहिए ।
स - दुर्खीम के विचार
दुर्खीम ने समाजशास्त्र की विषय वस्तु में सामाजिक तथ्यों के अध्ययन पर विशेष जोर दिया है । आपने इस दृष्टि से समाजशास्त्र की विषय वस्तु में निम्नलिखित विषयों को सम्मिलित किया है।
1 - सामाजिक स्वरूप शास्त्र :- इनके अंतर्गत जीवन पर भौगोलिक कारकों के प्रभावों तथा सामाजिक संगठन के साथ उनके संबंधों का अध्ययन आता है। यहां जनसंख्या संबंधी समस्याओं जैसे जनसंख्या का आकार, घनत्व एवं स्थानीय वितरण आदि का भी अध्ययन किया जाता है ।
2 - सामाजिक शरीर शास्त्र :- इसमें समाज रूपी शरीर का निर्माण करने वाले विभिन्न अंगों जैसे धर्म, नीति, भाषा, कानून, परिवार आदि का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है। यह सभी विषय समाजशास्त्र की विभिन्न शाखाओं के रूप में विकसित हो चुके हैं । उदाहरण के रूप में, धर्म का समाजशास्त्र, भाषा का समाजशास्त्र, कानून का समाजशास्त्र, परिवार का समाजशास्त्र आदि ।
3 - सामान्य समाजशास्त्र :- इसमें सामाजिक तथ्यों के सामान्य रूप का पता लगाने एवं उन सामान्य सामाजिक नियमों को ज्ञात करने पर जोर दिया जाता है जो सामाजिक जीवन की स्थिरता एवं निरंतरता की दृष्टि से आवश्यक है तथा जिनका अन्य सामाजिक विज्ञानों के लिए भी विशेष महत्व है । दुर्खीम ने इस शाखा को समाजशास्त्र का दार्शनिक अंग कहा है ।
द - सोरोकिन के विचार :-
सोरोकिन के अनुसार समाजशास्त्र की विषय वस्तु में निम्नलिखित बातें सम्मिलित की जानी चाहिए
1 - विभिन्न सामाजिक घटनाओं के पारस्परिक संबंधों एवं सह संबंधों का अध्ययन किया जाना चाहिए, उदाहरण के रूप में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, पारिवारिक एवं आचार संबंधी घटनाओं के परस्पर संबंधों का ।
2 - सामाजिक और असामाजिक तथ्यों एवं घटनाओं के बीच पारस्परिक संबंधों तथा सह संबंधों का अध्ययन किया जाना चाहिए, उदाहरण के रूप में भौगोलिक एवं प्राणी शास्त्रीय दशाओं के सामाजिक जीवन एवं घटनाओं पर पड़ने वाले प्रभावों का।
3 - समाज की सभी सामाजिक घटनाओं की सामान्य विशेषताओं का अध्ययन किया जाना चाहिए ।
समाजशास्त्र को एक सामान्य विज्ञान मानते हुए इसकी विषय वस्तु के संबंध में सोरोकिन ने बताया है कि समाज साथ सभी प्रकार की सामाजिक घटनाओं की सामान्य विशेषताओं उनके पारस्परिक संबंधों एवं सह संबंधों का विज्ञान रहा है, और या तो वैसा ही रहेगा या फिर समाजशास्त्र का अस्तित्व ही नहीं रहेगा ।
अमेरिका में हुई एक समाजशास्त्रीय गोष्ठी में समाजशास्त्र की विषय वस्तु में सभी प्रमुख विषयों को सम्मिलित करने का प्रयत्न किया गया जिसे प्रो इंकल्स ( Inkeles ) ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है
य - समाजशास्त्र की विषय वस्तु की सामान्य रूपरेखा
A - समाजशास्त्रीय विश्लेषण
1 - मानव संस्कृति एवं समाज
2 - समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य या दृष्टिकोण
3 - सामाजिक विज्ञानों में वैज्ञानिक पद्धति
B - सामाजिक जीवन की प्राथमिक इकाइयां
1 - सामाजिक क्रिया एवं सामाजिक संबंध
2 - मानव व्यक्तित्व
3 - समूह ( प्रजाति एवं वर्ग भी सम्मिलित है )
4 - समुदाय : नगरीय एवं ग्रामीण
5 - समितियां एवं संगठन
6 - जनसंख्या
7 - समाज
C - आधारभूत सामाजिक संस्थाएं
1 - परिवार एवं नातेदारी
2 - आर्थिक संस्थाएं
3 - राजनीतिक एवं वैधानिक संस्थाएं
4 - धार्मिक संस्थाएं
5 - शैक्षणिक एवं वैधानिक संस्थाएं
6 - मनोरंजनात्मक कल्याण संस्थाएं
7 - कलात्मक एवं अभिव्यक्ति संबंधित संस्थाएं
D - मौलिक सामाजिक प्रक्रियाएं
1 - विभेदीकरण एवं में स्तरीकरण
2 - सहयोग समायोजन तथा सात्मीकरण
3 - सामाजिक संघर्ष ( क्रांति एवं युद्ध )
4 - संचार ( जनमत निर्माण अभिव्यक्ति एवं परिवर्तन )
5 - सामाजिकरण एवं सैद्धांतीकरण
6 - सामाजिक मूल्यांकन ( सामाजिक मूल्यों का अध्ययन )
7 - सामाजिक विचलन ( अपराध एवं आत्महत्या )
8 - सामाजिक नियंत्रण
9 - सामाजिक एकीकरण
10 - सामाजिक परिवर्तन
उपर्युक्त सूची में समाजशास्त्र की विषय वस्तु के अंतर्गत अध्ययन किए जाने वाले सभी महत्वपूर्ण विषयों को सम्मिलित किया गया है । इन विषयों के संबंध में सभी समाजशास्त्री सहमत है । उपर्युक्त विद्वानों के अतिरिक्त कुछ अन्य समाज शास्त्रियों ने भी समाजशास्त्र की विषय वस्तु पर प्रकाश डाला है
Kindly explain the last points of Incals
ReplyDeleteYou have nicely explained the above topic. Really it is too much good.
ReplyDeleteYou have nicely explained the above topic. Really it is too much good.
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