विवाह के प्रमुख प्रकारों को समझाइए
विवाह की उत्पत्ति एवं इतिहास परिवार से भिन्न नहीं है । विवाह एवं परिवार का विकास अलग-अलग ना होकर साथ साथ ही हुआ है। यह दोनों संस्कृति के भी समवयस्क हैं, क्योंकि बिना परिवार के मानव जाति और संस्कृति को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता और बिना विवाह के परिवार की रचना संभव नहीं हो सकती। अतः विवाह और परिवार मानव के साथ प्रारंभ से ही रहे हैं। विवाह की उत्पत्ति को प्रकट करने वाले सिद्धांत वे ही है जो परिवार की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हैं, जैसे मार्गन का यौन साम्यवाद का सिद्धांत एवं मॉर्गन तथा बेकोफन का उद्विकासीय सिद्धांत ,वेस्टरमार्क का एक विवाह का सिद्धान्त , ब्रिफाल्ट का मातृ सत्तात्मक सिद्धान्त आदि ।
विवाह के प्रकार ( स्वरूप )
मानव समाज के विकास के साथ-साथ विवाह के विभिन्न प्रकार अस्तित्व में आए हैं ।मॉर्गन एवं उद्विकासवादियों की मान्यता है कि सभ्यता के अति प्राचीन काल में विवाह जैसी संस्था नहीं थी उस समय समाज में कामाचार का प्रचलन था। धीरे-धीरे समूह विवाह प्रारंभ हुए और विभिन्न स्तरों से गुजरने के बाद एकविवाह प्रथा अस्तित्व में आई । पति-पत्नी की संख्या के आधार पर भारत में पाए जाने वाले विवाहों के प्रमुख प्रकारों को हम निम्नांकित प्रकार से रेखांकित कर सकते हैं :-
विवाह के प्रकार
(A) एक-विवाह:-
बहुत पत्नी विवाह के परिणाम :-
बहुपत्नी विवाह के परिणाम स्वरुप समाज को कुछ लाभ एवं हानियां दोनों ही होती हैं। उनका हम यहां उल्लेख करेंगे :-
लाभ :- बहुपत्नित्व के कारण का में पुरुषों की यौन इच्छाएं परिवार में पूरी हो जाती है। अतः समाज में भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता में वृद्धि नहीं हो पाती है। परिवार में अनेक स्त्रियां होने पर बच्चों का लालन-पालन एवं घर की देखरेख सरलता से हो जाती है। इससे परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति सुगमता से हो जाती है। किसी समाज में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की अधिकता हो और एक विवाह प्रथा का पालन किया जाता हो तो ऐसी दशा में कई स्त्रियों को विवाह से वंचित रहना पड़ेगा। विवाह के अभाव में उनमें कई विकार पैदा हो सकते हैं। बहुपत्नी विवाह के कारण ऐसे समाजों में स्त्रियों को विवाह से वंचित नहीं रहना पड़ता। बहु पत्नी विवाह समाज के अधिकांशतः धनी एवं समृद्ध लोगों में पाए जाते हैं। अतः ऐसे विवाह से उत्पन्न संतानें शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से उत्तम होती हैं ।
हानियां :- बहुपत्नी विवाह के कारण परिवार में संघर्ष, ईर्ष्या एवं वैमनस्य का वातावरण उत्पन्न होता है। स्त्रियां परस्पर छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़ टी रहती है। इससे परिवार की सुख-शांति समाप्त हो जाती है। कई पत्नियां होने पर परिवार में संतानों की संख्या बढ़ जाती है। अधिक संतानों की शिक्षा दीक्षा एवं देखभाल करना प्रायः कठिन होता है। ऐसे विवाहों के कारण स्त्रियों के सामाजिक प्रतिष्ठा गिर जाती है और उनका शोषण होता है। एकाधिक पत्नियां होने पर एक पुरुष उन सभी की योजनाओं को संतुष्ट नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में समाज में यौन अनाचार पनपता है। एकाधिक पत्नियां रखने वाले व्यक्ति की मृत्यु होने पर समाज में विधवाओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है। इन हानियों को देखते हुए ही वर्तमान में बहुपत्नित्व के स्थान पर एक विवाह के नियम को स्वीकार किया गया है ।
(स) द्वि-पत्नी विवाह:-
विवाह के प्रकार ( स्वरूप )
मानव समाज के विकास के साथ-साथ विवाह के विभिन्न प्रकार अस्तित्व में आए हैं ।मॉर्गन एवं उद्विकासवादियों की मान्यता है कि सभ्यता के अति प्राचीन काल में विवाह जैसी संस्था नहीं थी उस समय समाज में कामाचार का प्रचलन था। धीरे-धीरे समूह विवाह प्रारंभ हुए और विभिन्न स्तरों से गुजरने के बाद एकविवाह प्रथा अस्तित्व में आई । पति-पत्नी की संख्या के आधार पर भारत में पाए जाने वाले विवाहों के प्रमुख प्रकारों को हम निम्नांकित प्रकार से रेखांकित कर सकते हैं :-
विवाह के प्रकार
(A) एक-विवाह:-
(B) बहुविवाह:- बहुपत्नी विवाह, बहुपति विवाह, द्वि पत्नी विवाह, समूह विवाह,।
( A ) एक विवाह :-
श्री बुकेनोविक के अनुसार उस विवाह को एक विवाह कहना चाहिए जिसमें न केवल एक पुरुष की एक पत्नी एक स्त्री का एक ही पति हो बल्कि दोनों में से किसी की मृत्यु हो जाने पर भी दूसरा पक्ष या अन्य विवाह ना करें। एक विवाह में एक समय में एक पुरुष एक ही स्त्री से विवाह करता है। इसके भी कई रूप पाए जाते हैं। ₹1 है जिसमें 1 पुरुष का एक स्त्री से विवाह होता है और किसी एक पक्ष की मृत्यु हो जाने पर भी दूसरा पक्ष विवाह नहीं करता। दूसरा रूप हुआ है जिसमें एक पुरुष एक स्त्री से विवाह करता है किंतु रखैल के रूप में कई स्त्रियां रखता है। तीसरा रूप वह है जिसमें ताला किया मृत्यु हो जाने पर दूसरा विवाह कर लिया जाता है। एक विवाह और बहु विवाह का संबंध व्यक्ति से ना होकर समाज से है अर्थात कोई व्यक्ति नहीं वरन समाज ही एक विवाही या बहु विवाही होता है। इस संदर्भ में लूसी मेयर लिखते हैं, एक विवाही और बहु विवाही शब्द विवाह या समाज के लिए प्रयुक्त होते हैं व्यक्तियों के लिए नहीं। निष्ठा हीन पति या कामाचारी व्यक्ति को बहु विवाही चाइना भाषा के साथ खिलवाड़ करना है, यद्यपि कुछ लोग ऐसा करते हैं।
हिंदू समाज में एक विवाह को आदर्श माना गया है। कई बैटिक देवता भी एक विवाही थे । दम्पत्ति शब्द का प्रयोग भी घर के दो संयुक्त स्वामी पति पत्नी के लिए ही हुआ है। भारतीय धर्म शास्त्रों में भी पति से पत्नी व्रत धर्म एवं पत्नी से पतिव्रत धर्म के पालन की अपेक्षा की गई है। हिंदू विवाह का एक उद्देश्य धार्मिक कार्यों की पूर्ति करना भी है जिसे पति व पत्नी के साथ निभाना चाहिए । पुत्र प्राप्ति भी धार्मिक कार्यों के निर्वाह के लिए एक आवश्यक उद्देश्य माना गया है।
वर्तमान में एक विवाह को विवाह का सर्वश्रेष्ठ रूप समझा जाता है । वेस्टरमार्क ने एक विवाह को ही विवाह का आदि स्वरूप माना है। मैलिनोवस्की की भी मान्यता है कि एक विवाह ही विवाह का सच्चा स्वरूप है रहा था और रहेगा । वर्तमान में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के द्वारा एक विवाह को आवश्यक कर दिया गया है । शिक्षा एवं सभ्यता के विकास के साथ-साथ एक विवाह का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है ।
एक विवाह के कारण:-
विश्व में एक विवाह के प्रचलन के कई कारण है उनमें से प्रमुख कारण इस प्रकार है ।
उन समाजों में भी जहां बहुपति अथवा बहु पत्नी विवाह प्रचलित है।सामान्यतः तो एक विवाह ही अधिक पाया जाता है क्योंकि एकाधिक जीवनसाथी का खर्च उठाना कठिन होता है। एक विवाह प्रथा के लाभ एवं दोष निम्नलिखित हैं
एक विवाह के लाभ:-
एक विवाह के दोष:-
(B) बहु-विवाह:-
जब एक आदि पुरुष अथवा स्त्रिया विवाह बंधन में बहते हैं तो ऐसे विवाह को बहुविवाह कहते हैं। बाल विवाह के प्रमुख चार रूप पाए जाते हैं - बहुपति विवाह, बहुपत्नी विवाह,द्वि-पत्नी विवाह एवं समूह विवाह। हम यहाँ इनका संक्षेप में उल्लेख करेंगे
(1) बहुपति विवाह:- बहुपति विवाह को परिभाषित करते हुए डॉ रिवर्स लिखते हैं " एक स्त्री का कई पतियों के साथ विवाह बहुपति विवाह कहलाता है। मिचेल लिखते हैं, एक स्त्री द्वारा एक पति के जीवित होते हुए अन्य पुरुषों से भी विवाह करना या एक समय पर ही दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करना बहुपति विवाह है।
डॉ कापड़िया के अनुसार , बहुपति विवाह एक प्रकार का संबंध है जिसमें एक स्त्री के एक समय में एक से अधिक पति होते हैं या जिसमें सब भाई एक पत्नियां पत्नियों का सम्मिलित रूप से उपभोग करते है ।
स्पष्ट है कि बहुपति विवाह में एक स्त्री का एकाधिक पुरुषों से वैवाहिक संबंध स्थापित होता है। अति प्राचीन काल से ही भारत में बहुपति प्रथा का प्रचलन रहा है यद्यपि यह प्रचलन सीमित मात्रा में ही रहा है। वैदिक साहित्य में बहुपति प्रथा की सख्त मनाही थी किंतु महाभारत काल में ऐसे विवाहों के कुछ उदाहरण पाए जाते हैं। द्रोपदी का विवाह 5 पांडव भाइयों से हुआ था। किंतु इसे नियम न मानकर एक असाधारण घटना ही माना जाता है। द्रविड़ संस्कृति के मालावाही लोगों में बहुपति विवाह का प्रचलन रहा है। डॉ सक्सेना का मत है कि दक्षिण में कुछ प्राग द्रविड़ सांस्कृतिक समूहों में भी बहुपतितत्व की प्रथा रही है। यह प्रथा देहरादून के जौनसार बाबर परगना, टिहरी गढ़वाल तथा शिमला की पहाड़ियों में रहने वाले खस राजपूतों,नीलगिरी की पहाड़ियों में रहने वाले टोडा एवं कोटा लोगों, लद्दाखी बोटा, मद्रास के तियान एवं इरावा , मालाबार के नायर ,हरावान तथा कम्पाला, कम्बेल ,कूर्गवासियों एवं कुछ समय पूर्व तक छोटानागपुर की संथाल एवं मध्य भारत की उरांव जनजाति में प्रचलित रही है । किंतु वर्तमान में धीरे-धीरे इस प्रकार के विवाह का प्रचलन समाप्त होता जा रहा है।
बहुपति विवाह के भी दो रूप पाए जाते हैं
( A ) एक विवाह :-
श्री बुकेनोविक के अनुसार उस विवाह को एक विवाह कहना चाहिए जिसमें न केवल एक पुरुष की एक पत्नी एक स्त्री का एक ही पति हो बल्कि दोनों में से किसी की मृत्यु हो जाने पर भी दूसरा पक्ष या अन्य विवाह ना करें। एक विवाह में एक समय में एक पुरुष एक ही स्त्री से विवाह करता है। इसके भी कई रूप पाए जाते हैं। ₹1 है जिसमें 1 पुरुष का एक स्त्री से विवाह होता है और किसी एक पक्ष की मृत्यु हो जाने पर भी दूसरा पक्ष विवाह नहीं करता। दूसरा रूप हुआ है जिसमें एक पुरुष एक स्त्री से विवाह करता है किंतु रखैल के रूप में कई स्त्रियां रखता है। तीसरा रूप वह है जिसमें ताला किया मृत्यु हो जाने पर दूसरा विवाह कर लिया जाता है। एक विवाह और बहु विवाह का संबंध व्यक्ति से ना होकर समाज से है अर्थात कोई व्यक्ति नहीं वरन समाज ही एक विवाही या बहु विवाही होता है। इस संदर्भ में लूसी मेयर लिखते हैं, एक विवाही और बहु विवाही शब्द विवाह या समाज के लिए प्रयुक्त होते हैं व्यक्तियों के लिए नहीं। निष्ठा हीन पति या कामाचारी व्यक्ति को बहु विवाही चाइना भाषा के साथ खिलवाड़ करना है, यद्यपि कुछ लोग ऐसा करते हैं।
हिंदू समाज में एक विवाह को आदर्श माना गया है। कई बैटिक देवता भी एक विवाही थे । दम्पत्ति शब्द का प्रयोग भी घर के दो संयुक्त स्वामी पति पत्नी के लिए ही हुआ है। भारतीय धर्म शास्त्रों में भी पति से पत्नी व्रत धर्म एवं पत्नी से पतिव्रत धर्म के पालन की अपेक्षा की गई है। हिंदू विवाह का एक उद्देश्य धार्मिक कार्यों की पूर्ति करना भी है जिसे पति व पत्नी के साथ निभाना चाहिए । पुत्र प्राप्ति भी धार्मिक कार्यों के निर्वाह के लिए एक आवश्यक उद्देश्य माना गया है।
वर्तमान में एक विवाह को विवाह का सर्वश्रेष्ठ रूप समझा जाता है । वेस्टरमार्क ने एक विवाह को ही विवाह का आदि स्वरूप माना है। मैलिनोवस्की की भी मान्यता है कि एक विवाह ही विवाह का सच्चा स्वरूप है रहा था और रहेगा । वर्तमान में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के द्वारा एक विवाह को आवश्यक कर दिया गया है । शिक्षा एवं सभ्यता के विकास के साथ-साथ एक विवाह का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है ।
एक विवाह के कारण:-
विश्व में एक विवाह के प्रचलन के कई कारण है उनमें से प्रमुख कारण इस प्रकार है ।
- विश्व में स्त्रियों व पुरुषों का अनुपात लगभग बराबर है यदि एक विवाह के स्थान पर बहुपति अथवा बहु पत्नी विवाह प्रथा का पालन किया जाता है तो इसका अर्थ होगा कुछ लोगों को विवाह से वंचित करना ।
- एकाधिक पति अथवा पत्नी होने पर परिवार में अनुकूलन की समस्या पैदा होती है तथा मानसिक तनावों मैं वृद्धि होती है। सामाजिक संगठन की स्थिरता के लिए पारिवारिक संघर्षों एवं तनावों से बचना आवश्यक है।
- कई समाजों में कन्या मूल्य की प्रथा है। एकाधिक विवाह करने पर कन्या मूल्य जुटाना बहुत कठिन होता है। अतः एक विवाह प्रथा का ही पालन किया जाता है।
- पारिवारिक सुख शांति को बनाए रखने के लिए तथा बहुपत्नी विवाह के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए एक विवाह ही सर्वोत्तम विवाह माना जाता है।
उन समाजों में भी जहां बहुपति अथवा बहु पत्नी विवाह प्रचलित है।सामान्यतः तो एक विवाह ही अधिक पाया जाता है क्योंकि एकाधिक जीवनसाथी का खर्च उठाना कठिन होता है। एक विवाह प्रथा के लाभ एवं दोष निम्नलिखित हैं
एक विवाह के लाभ:-
- एक विवाह से निर्मित परिवार अपेक्षतया अधिक स्थाई होते हैं।
- ऐसे विवाहों से निर्मित परिवारों में स्त्री की प्रतिष्ठा ऊंची होती है।
- एक विवाही परिवारों में बच्चों का लालन-पालन, सामाजिकरण एवं शिक्षा का कार्य उचित प्रकार से संपन्न होता है।
- एक विवाही परिवारों में संघर्षों के अभाव में मानसिक तनाव भी कम पाया जाता है।
- एक विवाही परिवार का जीवन स्तर ऊंचा होता है।
- एक विवाही परिवारों में संतानों की संख्या कम होती है अतः परिवार छोटा एवं सुखी होता है।
एक विवाह के दोष:-
- एक विवाह के कारण कभी-कभी योन अनैतिकता में वृद्धि होती है और भ्रष्टाचार बढ़ता है। इससे स्त्री पुरुष के विवाह के अतिरिक्त योन संबंध स्थापित करने के अवसर बढ़ जाते हैं।
- योन संबंधी छूट के अभाव में यौन अपराधों में वृद्धि होती है। ऐसे विवाह से उत्पन्न परिवार में एकाधिपत्य की प्रवृत्ति पाई जाती है और स्त्रियों का शोषण होता है। एक विवाह की इन कमियों की तुलना में इससे होने वाले लाभ अधिक हैं। इसलिए ही वर्तमान में विश्व के सभी देशों में एक विवाह प्रथा पर ही अधिक जोर दिया जाने लगा है।
(B) बहु-विवाह:-
जब एक आदि पुरुष अथवा स्त्रिया विवाह बंधन में बहते हैं तो ऐसे विवाह को बहुविवाह कहते हैं। बाल विवाह के प्रमुख चार रूप पाए जाते हैं - बहुपति विवाह, बहुपत्नी विवाह,द्वि-पत्नी विवाह एवं समूह विवाह। हम यहाँ इनका संक्षेप में उल्लेख करेंगे
(1) बहुपति विवाह:- बहुपति विवाह को परिभाषित करते हुए डॉ रिवर्स लिखते हैं " एक स्त्री का कई पतियों के साथ विवाह बहुपति विवाह कहलाता है। मिचेल लिखते हैं, एक स्त्री द्वारा एक पति के जीवित होते हुए अन्य पुरुषों से भी विवाह करना या एक समय पर ही दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करना बहुपति विवाह है।
डॉ कापड़िया के अनुसार , बहुपति विवाह एक प्रकार का संबंध है जिसमें एक स्त्री के एक समय में एक से अधिक पति होते हैं या जिसमें सब भाई एक पत्नियां पत्नियों का सम्मिलित रूप से उपभोग करते है ।
स्पष्ट है कि बहुपति विवाह में एक स्त्री का एकाधिक पुरुषों से वैवाहिक संबंध स्थापित होता है। अति प्राचीन काल से ही भारत में बहुपति प्रथा का प्रचलन रहा है यद्यपि यह प्रचलन सीमित मात्रा में ही रहा है। वैदिक साहित्य में बहुपति प्रथा की सख्त मनाही थी किंतु महाभारत काल में ऐसे विवाहों के कुछ उदाहरण पाए जाते हैं। द्रोपदी का विवाह 5 पांडव भाइयों से हुआ था। किंतु इसे नियम न मानकर एक असाधारण घटना ही माना जाता है। द्रविड़ संस्कृति के मालावाही लोगों में बहुपति विवाह का प्रचलन रहा है। डॉ सक्सेना का मत है कि दक्षिण में कुछ प्राग द्रविड़ सांस्कृतिक समूहों में भी बहुपतितत्व की प्रथा रही है। यह प्रथा देहरादून के जौनसार बाबर परगना, टिहरी गढ़वाल तथा शिमला की पहाड़ियों में रहने वाले खस राजपूतों,नीलगिरी की पहाड़ियों में रहने वाले टोडा एवं कोटा लोगों, लद्दाखी बोटा, मद्रास के तियान एवं इरावा , मालाबार के नायर ,हरावान तथा कम्पाला, कम्बेल ,कूर्गवासियों एवं कुछ समय पूर्व तक छोटानागपुर की संथाल एवं मध्य भारत की उरांव जनजाति में प्रचलित रही है । किंतु वर्तमान में धीरे-धीरे इस प्रकार के विवाह का प्रचलन समाप्त होता जा रहा है।
बहुपति विवाह के भी दो रूप पाए जाते हैं
(1)- भ्रातृक बहुपति विवाह एवं
(2) - अभ्रातृक बहुपति विवाह ।
भ्रातृक बहुपति विवाह :- जब दो या अधिक भाई मिलकर किसी एक स्त्री से विवाह करते हैं अथवा सबसे बड़ा भाई किसी एक स्त्री से विवाह करता है और अन्य भाई स्वतः ही उस स्त्री के पति माने जाते हैं तो इस प्रकार के विवाह को भ्रातृक बहुपति विवाह कहते हैं। भ्रातृक बहुपति विवाह का प्रचलन खस,टोडा, एवं कोटा लोगों तथा पंजाब के पहाड़ी भागो,लद्दाख़, कांगड़ा जिला के स्पीती और लाहोल परगनों में पाया जाता हैं। खस लोगों में सबसे बड़ा भाई ही विवाह करके स्त्री लाता है और शेष भाई स्वतः ही उस स्त्री के पति बन जाते हैं। नीलगिरि पर्वत के टोडा लोगों में भी भ्रातृक बहुपति विवाह का प्रचलन है। डॉ रिवर्स का कहना है कि कभी-कभी सगे भाइयों के स्थान पर संगोत्री भाई मिलकर भी एक स्त्री से विवाह कर लेते हैं।
अभ्रातृक बहुपति विवाह :- इस प्रकार के विवाह में पति परस्पर भाई नहीं होते हैं। स्त्री बारी बारी से समान अवधि के लिए प्रत्येक पति के पास रहती है। यह प्रथा टोडा तथा नायरो में पाई जाती है ।
बहुपति विवाह को हम मातृ पक्ष एवं पित्र पक्ष दोनों से जोड़ सकते हैं। टोडा,खस,एवं कोटा आदि में पितृपक्षीय बहुपति प्रथा का प्रचलन है जिसमें स्त्री विवाह के बाद या तो पतियों के सामूहिक निवास पर जाकर रहती है या बारी-बारी से सभी पतियों के पास कुछ समय के लिए कहती है। मातृपक्षीय बहुपति विवाही परिवार में स्त्री अपनी मां के परिवार में या मूल निवास स्थान पर ही रहती है और पति ही बारी बारी से वहां निवास के लिए आते रहते हैं। यह प्रथा मातृ वंशीय नायर लोगों में पाई जाती है ।
बहुपति विवाह के कारण :-
बहुपति विवाह के परिणाम
बहुपति विवाह के विभिन्न परिणाम सामने आए हैं इसके प्रमुख गुण व दोष इस प्रकार हैं।
गुण :- बहुपति विवाह के कारण कम संताने पैदा होती हैं। अतः यह प्रथा आदर्श परिवार के निर्माण एवं जनसंख्या वृद्धि को रोकने में सहायक है। इस प्रकार के विवाह के कारण संपत्ति की संयुक्तता बनी रहती हैं। कृषि योग्य भूमि का बंटवारा ना होने से वह टुकड़े टुकड़े होने से बच जाती है। बहुपति विवाह के कारण परिवार का विभाजन एवं विघटन नहीं होने पाता, इस कारण परिवार की सामूहिकता एवं एकता बनी रहती है। ऐसे विवाह के कारण परिवार को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने एवं आर्थिक क्रियाओं के संपादन में सभी का सहयोग प्राप्त होता है। साथ ही प्रकृति से संघर्ष भी सामूहिक रूप से किया जाता है।
दोष :- इस प्रकार के विवाह के कारण स्त्रियों में बांझपन आ जाता है। ऐसा कौन से जैविक के कारणों से होता है। यह अभी स्पष्ट नहीं है। पर यह वास्तविकता है कि बहुपति विवाही समाजों की जनसंख्या दिनों दिन घट रही है और एक समय ऐसा भी आ सकता है जब वे बिल्कुल समाप्त हो जाए। बहुपति विवाह में लड़कियों की तुलना में लड़के अधिक पैदा होते हैं। अतः स्वतः ही योन असंतुलन उत्पन्न हो जाता है फलस्वरूप बहुपति प्रथा स्वतः चलती रहती है। बहुपति विवाह में एक स्त्री को कई पुरुषों से यौन संबंध रखने होते हैं। इस कारण यौन रोग बनाते हैं एवं स्त्री का स्वास्थ्य गिर जाता है। इस प्रकार की विवाह प्रथा वाले समाजों में स्त्रियों को कुछ अधिक यौन स्वतंत्रता प्राप्त होने से वहां यौन अनैतिकता बढ़ जाती है।
(ब) बहुपत्नी विवाह:-
बहुविवाह का एक रुप बहू पत्नी विवाह भी है जिसमें एक पुरूष एकाधिक स्त्रियों से विवाह करता है। कापड़िया का मत है कि भारतवर्ष में बहु पत्नी विवाह का प्रचलन वैदिक युग से वर्तमान समय तक प्रचलित रहा है। भारत में प्राचीन समय में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य एवं शूद्र यह चार वर्ण पाए जाते थे। शूद्रों को छोड़कर शेष तीन वर्णों को अपने वर्ण के अतिरिक्त अपने से निम्न वर्ण की लड़कियों से विवाह करने की भी स्वीकृति प्राप्त थी। इस प्रकार ब्राम्हण चार छत्रिय तीन एवं वैश्य को दो वर्ण की स्त्रियों से विवाह कर सकते थे। ऐसा कहा जाता है कि स्मृतिकार मनु के दस एवं याज्ञवल्क्य के दो पत्नियां थीं। अल्टेकर का मत है कि बहुपत्नी प्रथा धनी, शासक एवं अभिजात वर्ग के लोगों में सामान्य थी। बहु पत्नी विवाह के भी दो रूप पाए जाते हैं - सीमित एवं असीमित । सीमित बहुपत्नीत्व में एक स्त्री के मरने पर ही दूसरी स्त्री से विवाह किया जाता है। असीमित बहुपतित्व में स्त्री के बाँझ होने की स्थिति में अथवा अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए पुरुष एकाधिक स्त्रियों से विवाह करता है।
भारतीय धर्म ग्रंथों में संतान ना होने पर दूसरा विवाह करने की स्वीकृति दी गई है किंतु सामान्य स्थिति में एकाधिक पत्नियां रखना उचित नहीं माना गया है। महाभारत में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने पुत्र संपन्न एवं धर्म परायण इस्त्री के होते हुए दूसरा विवाह करता है उसका बाप कभी भी नहीं भूल सकता है। मनु, कौटिल्य और आपस्तम्ब आदि ने सैद्धांतिक दृष्टि से बहुपतित्व को स्वीकार किया है किंतु एकपत्नित्व के आदर्श को सर्वोपरि रखा है । हिंदुओं एवं मुसलमानों के अतिरिक्त बहुपत्नित्व प्रथा भारत की नागा,गोंड, बैगा, भील, टोडा, लुसाई आदि जनजातियों में पाई जाती है। मध्य भारत की अधिकांश प्रोटो-आस्ट्रोलायड जनजातियों में यह प्रथा प्रचलित रही है। बंगाल में अनुलोम एवं कुलीन विवाह प्रथा के कारण बहुपत्नीत्व का प्रचलन रहा है। दक्षिण में नम्बूद्री ब्राह्मणों में भी यह प्रथा पाई जाती है। वर्तमान में बहुपत्नित्व पर कानूनी रोक लगा दी गई है।
बहुपत्नी विवाह के कारण :-
वेस्टरमार्क ने बहुपत्नित्व के निम्नांकित कारण बताए हैं :
भ्रातृक बहुपति विवाह :- जब दो या अधिक भाई मिलकर किसी एक स्त्री से विवाह करते हैं अथवा सबसे बड़ा भाई किसी एक स्त्री से विवाह करता है और अन्य भाई स्वतः ही उस स्त्री के पति माने जाते हैं तो इस प्रकार के विवाह को भ्रातृक बहुपति विवाह कहते हैं। भ्रातृक बहुपति विवाह का प्रचलन खस,टोडा, एवं कोटा लोगों तथा पंजाब के पहाड़ी भागो,लद्दाख़, कांगड़ा जिला के स्पीती और लाहोल परगनों में पाया जाता हैं। खस लोगों में सबसे बड़ा भाई ही विवाह करके स्त्री लाता है और शेष भाई स्वतः ही उस स्त्री के पति बन जाते हैं। नीलगिरि पर्वत के टोडा लोगों में भी भ्रातृक बहुपति विवाह का प्रचलन है। डॉ रिवर्स का कहना है कि कभी-कभी सगे भाइयों के स्थान पर संगोत्री भाई मिलकर भी एक स्त्री से विवाह कर लेते हैं।
अभ्रातृक बहुपति विवाह :- इस प्रकार के विवाह में पति परस्पर भाई नहीं होते हैं। स्त्री बारी बारी से समान अवधि के लिए प्रत्येक पति के पास रहती है। यह प्रथा टोडा तथा नायरो में पाई जाती है ।
बहुपति विवाह को हम मातृ पक्ष एवं पित्र पक्ष दोनों से जोड़ सकते हैं। टोडा,खस,एवं कोटा आदि में पितृपक्षीय बहुपति प्रथा का प्रचलन है जिसमें स्त्री विवाह के बाद या तो पतियों के सामूहिक निवास पर जाकर रहती है या बारी-बारी से सभी पतियों के पास कुछ समय के लिए कहती है। मातृपक्षीय बहुपति विवाही परिवार में स्त्री अपनी मां के परिवार में या मूल निवास स्थान पर ही रहती है और पति ही बारी बारी से वहां निवास के लिए आते रहते हैं। यह प्रथा मातृ वंशीय नायर लोगों में पाई जाती है ।
बहुपति विवाह के कारण :-
- वेस्टरमार्क का मत है कि बहुमत विवाह का मुख्य कारण लिंग अनुपात का असंतुलित होना है। जिन समाजों में स्त्रियों की तुलना में पुरुष अधिक होते हैं वहां बहुपति प्रथा पाई जाती है। इस असंतुलन का एक कारण यह है कि कई समाजों में कन्यावध की प्रथा पाई जाती रही है। जिन समाजों का जीवन संघर्ष में होता है वहां स्त्रियों को भार समझा जाता हैं। अतः लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता है। रॉबर्ट ब्रिफॉल्ट का मत है कि यह बात सदा ही सही नहीं है क्योंकि लद्दाख तिब्बत एवं सिक्किम में स्त्री पुरुषों के अनुपात में कोई विशेष अंतर नहीं है। लद्दाख में तो स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है फिर भी यहां बहुपतित्व पाया जाता है।
- समनर ,कनिंघम एवं डॉ सक्सेना ने गरीबी को ही इस प्रकार के विवाहों के लिए उत्तरदाई माना है। पैदावार कम होने, कृषि योग्य भूमि का अभाव होने, सुगमता पूर्वक धन ना कमा सकने आदि के कारण परिवार का भरण-पोषण कठिन होता है। इसलिए कई पुरुष मिलकर एक स्त्री से विवाह करते हैं।
- जनसंख्या को मर्यादित रखने की इच्छा के कारण भी बहुपति विवाह का पालन किया जाता है क्योंकि ऐसे विवाह में संताने कम होती हैं।
- वधू मूल्य कई समाजों में बहुपति विवाह का कारण वधू मूल्य की अधिकता है। वधू मूल्य को जुटाने के लिए सभी भाई सामूहिक प्रयास करते हैं और ऐसी दशा में विवाह करके लाई गई इसी पर भी सभी का सामूहिक अधिकार होता है।
- संपत्ति के विभाजन को रोकने के लिए भी बहुपति विवाह का प्रचलन पाया जाता है। यदि सभी भाई अलग-अलग विवाह करते हैं तो उनमें तथा उनकी संतानों में संपत्ति बाटनी होती है। इसके विपरीत यदि सभी भाई एक स्त्री के साथ एक ही परिवार में रहते हैं तो संपत्ति भी सामूहिक बनी रहती है।
- भौगोलिक परिस्थितियां टोडा एवं खस लोग जिन स्थानों पर रहते हैं वहां कृषि योग्य भूमि का अभाव है और संपूर्ण प्रदेश पथरीला एवं पहाड़ी है। अतः इन्हें प्रकृति से कठोर संघर्ष करना होता है जिसमें अकेला व्यक्ति अपने को अयोग्य पाता है। अतः सभी भाई मिलकर ही परिवार की स्त्रियों में बच्चों का भरण पोषण करते हैं।
- धार्मिक कारण खस लोग अपने आपको पांडवों के वंशज मानते हैं । अतः यह भी द्रोपदी विवाह प्रथा का पालन करते हैं। इस प्रकार बहुपति विवाह विभिन्न भौगोलिक, धार्मिक, जनांकिकी एवं आर्थिक कारणों का परिणाम है।
बहुपति विवाह के परिणाम
बहुपति विवाह के विभिन्न परिणाम सामने आए हैं इसके प्रमुख गुण व दोष इस प्रकार हैं।
गुण :- बहुपति विवाह के कारण कम संताने पैदा होती हैं। अतः यह प्रथा आदर्श परिवार के निर्माण एवं जनसंख्या वृद्धि को रोकने में सहायक है। इस प्रकार के विवाह के कारण संपत्ति की संयुक्तता बनी रहती हैं। कृषि योग्य भूमि का बंटवारा ना होने से वह टुकड़े टुकड़े होने से बच जाती है। बहुपति विवाह के कारण परिवार का विभाजन एवं विघटन नहीं होने पाता, इस कारण परिवार की सामूहिकता एवं एकता बनी रहती है। ऐसे विवाह के कारण परिवार को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने एवं आर्थिक क्रियाओं के संपादन में सभी का सहयोग प्राप्त होता है। साथ ही प्रकृति से संघर्ष भी सामूहिक रूप से किया जाता है।
दोष :- इस प्रकार के विवाह के कारण स्त्रियों में बांझपन आ जाता है। ऐसा कौन से जैविक के कारणों से होता है। यह अभी स्पष्ट नहीं है। पर यह वास्तविकता है कि बहुपति विवाही समाजों की जनसंख्या दिनों दिन घट रही है और एक समय ऐसा भी आ सकता है जब वे बिल्कुल समाप्त हो जाए। बहुपति विवाह में लड़कियों की तुलना में लड़के अधिक पैदा होते हैं। अतः स्वतः ही योन असंतुलन उत्पन्न हो जाता है फलस्वरूप बहुपति प्रथा स्वतः चलती रहती है। बहुपति विवाह में एक स्त्री को कई पुरुषों से यौन संबंध रखने होते हैं। इस कारण यौन रोग बनाते हैं एवं स्त्री का स्वास्थ्य गिर जाता है। इस प्रकार की विवाह प्रथा वाले समाजों में स्त्रियों को कुछ अधिक यौन स्वतंत्रता प्राप्त होने से वहां यौन अनैतिकता बढ़ जाती है।
(ब) बहुपत्नी विवाह:-
बहुविवाह का एक रुप बहू पत्नी विवाह भी है जिसमें एक पुरूष एकाधिक स्त्रियों से विवाह करता है। कापड़िया का मत है कि भारतवर्ष में बहु पत्नी विवाह का प्रचलन वैदिक युग से वर्तमान समय तक प्रचलित रहा है। भारत में प्राचीन समय में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य एवं शूद्र यह चार वर्ण पाए जाते थे। शूद्रों को छोड़कर शेष तीन वर्णों को अपने वर्ण के अतिरिक्त अपने से निम्न वर्ण की लड़कियों से विवाह करने की भी स्वीकृति प्राप्त थी। इस प्रकार ब्राम्हण चार छत्रिय तीन एवं वैश्य को दो वर्ण की स्त्रियों से विवाह कर सकते थे। ऐसा कहा जाता है कि स्मृतिकार मनु के दस एवं याज्ञवल्क्य के दो पत्नियां थीं। अल्टेकर का मत है कि बहुपत्नी प्रथा धनी, शासक एवं अभिजात वर्ग के लोगों में सामान्य थी। बहु पत्नी विवाह के भी दो रूप पाए जाते हैं - सीमित एवं असीमित । सीमित बहुपत्नीत्व में एक स्त्री के मरने पर ही दूसरी स्त्री से विवाह किया जाता है। असीमित बहुपतित्व में स्त्री के बाँझ होने की स्थिति में अथवा अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए पुरुष एकाधिक स्त्रियों से विवाह करता है।
भारतीय धर्म ग्रंथों में संतान ना होने पर दूसरा विवाह करने की स्वीकृति दी गई है किंतु सामान्य स्थिति में एकाधिक पत्नियां रखना उचित नहीं माना गया है। महाभारत में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने पुत्र संपन्न एवं धर्म परायण इस्त्री के होते हुए दूसरा विवाह करता है उसका बाप कभी भी नहीं भूल सकता है। मनु, कौटिल्य और आपस्तम्ब आदि ने सैद्धांतिक दृष्टि से बहुपतित्व को स्वीकार किया है किंतु एकपत्नित्व के आदर्श को सर्वोपरि रखा है । हिंदुओं एवं मुसलमानों के अतिरिक्त बहुपत्नित्व प्रथा भारत की नागा,गोंड, बैगा, भील, टोडा, लुसाई आदि जनजातियों में पाई जाती है। मध्य भारत की अधिकांश प्रोटो-आस्ट्रोलायड जनजातियों में यह प्रथा प्रचलित रही है। बंगाल में अनुलोम एवं कुलीन विवाह प्रथा के कारण बहुपत्नीत्व का प्रचलन रहा है। दक्षिण में नम्बूद्री ब्राह्मणों में भी यह प्रथा पाई जाती है। वर्तमान में बहुपत्नित्व पर कानूनी रोक लगा दी गई है।
बहुपत्नी विवाह के कारण :-
- पुत्र प्राप्ति के लिए:- हिंदुओं में पुत्र का धार्मिक महत्व है। यही मृत माता पिता के लिए पिंडदान एवं तर्पण करता है। अतः एक स्त्री के कोई संतान अथवा पुत्र ना होने पर दूसरी स्त्री से विवाह किया जाता है। स्मृतिकारों ने प्रथम स्त्री के पुत्र ना होने पर दूसरा विवाह करने की छूट दी है।
- आर्थिक कारण:- भारत में उन जनजातियों को जो पहाड़ी भागों में रहती हैं जीवन यापन के लिए प्रकृति से कठोर संघर्ष करना पड़ता है। विषम भौगोलिक परिस्थितियां होने पर आर्थिक आवश्यकता की पूर्ति परिवार के कई सदस्यों के सहयोग से ही संभव हो पाती है। परिवार में अधिक स्त्रियां होने पर उन्हें खेती में काम एवं गृह उद्योगों में लगाकर उनका आर्थिक सहयोग प्राप्त किया जाता है।
- सामाजिक प्रतिष्ठा - धनवान, जमीदार एवं ऐश्वर्यशाली व्यक्ति अधिक पत्नियां इसलिए रखते हैं कि इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है। मुसलमान शासक हरम और क्षत्रिय राजा कई रानियां एवं बांदियाँ रखते थे।
- लिंग असमानता - बहुपत्नित्व का एक कारण समाज में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों का अधिक होना है। शिकार, युद्ध एवं आर्थिक साहसिक कार्यों में स्त्रियों की तुलना में पुरुषों के मरने के अवसर अधिक होते हैं इससे पुरुषों की संख्या घट जाती है और बहुपत्नित्व पनपता हैं।
- कामवासना एवं यौन अनुभव - पुरुषों में कामवासना की अधिकता एवं नवीन यौन अनुभव की इच्छा ने भी बहुपत्नित्व को जन्म दिया ।
- साली विवाह - जिन समाजों में साली विवाह की प्रथा प्रचलित है वहां प्रथा के रूप में एक व्यक्ति को अपनी पत्नी की सभी बहनों से विवाह करना पड़ता है।
- देवर विवाह - कुछ समाजों में देवर विवाह का भी प्रचलन है। अतः जब एक भाई की मृत्यु हो जाती है तो उसकी विधवा स्त्री से दूसरा भाई विवाह कर लेता है । इससे जीवित भाई की पत्नियों की संख्या बढ़ जाती है।
- युद्ध एवं आक्रमण - युद्ध एवं आक्रमण के समय में भी स्त्रियों को अपहरण करके लाया और उनसे विवाह कर लिया जाता है। कई जनजातियों में घर की उचित देखरेख एवं बच्चों के समुचित पालन पोषण के लिए एकाधिक पत्नियां रखना अच्छा माना जाता है। अफ्रीका की जनजातियों में स्त्री अक्सर अपने पिता के घर आती जाती रहती है। अतः बच्चों एवं घर की देखने के लिए एकाधिक पत्नियां रखी जाती है।
वेस्टरमार्क ने बहुपत्नित्व के निम्नांकित कारण बताए हैं :
- जंगली जनजातियों में गर्भवती एवं भुगतान कराने वाली स्त्री के साथ सहवास नहीं किया जाता। इस बाधित ब्रम्हचर्य के कारण उनमें बहुपत्नित्व की प्रथा चल पड़ी।
- जंगली जनजातियों में पुरुषों की तुलना में स्त्रियां जल्दी वृद्ध हो जाती हैं। अतः पुरुष दूसरा है विवाह कर लेता है।
- विविधता की इच्छा के कारण भी बहुपत्नित्व पाया जाता है ।
- जीवन यापन की कठिनाई के कारण परिवार में कई संतानों का होना आवश्यक माना जाता है जिसे कई स्त्रियों से विवाह करके ही पूरा किया जा सकता है।
बहुत पत्नी विवाह के परिणाम :-
बहुपत्नी विवाह के परिणाम स्वरुप समाज को कुछ लाभ एवं हानियां दोनों ही होती हैं। उनका हम यहां उल्लेख करेंगे :-
लाभ :- बहुपत्नित्व के कारण का में पुरुषों की यौन इच्छाएं परिवार में पूरी हो जाती है। अतः समाज में भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता में वृद्धि नहीं हो पाती है। परिवार में अनेक स्त्रियां होने पर बच्चों का लालन-पालन एवं घर की देखरेख सरलता से हो जाती है। इससे परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति सुगमता से हो जाती है। किसी समाज में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की अधिकता हो और एक विवाह प्रथा का पालन किया जाता हो तो ऐसी दशा में कई स्त्रियों को विवाह से वंचित रहना पड़ेगा। विवाह के अभाव में उनमें कई विकार पैदा हो सकते हैं। बहुपत्नी विवाह के कारण ऐसे समाजों में स्त्रियों को विवाह से वंचित नहीं रहना पड़ता। बहु पत्नी विवाह समाज के अधिकांशतः धनी एवं समृद्ध लोगों में पाए जाते हैं। अतः ऐसे विवाह से उत्पन्न संतानें शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से उत्तम होती हैं ।
हानियां :- बहुपत्नी विवाह के कारण परिवार में संघर्ष, ईर्ष्या एवं वैमनस्य का वातावरण उत्पन्न होता है। स्त्रियां परस्पर छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़ टी रहती है। इससे परिवार की सुख-शांति समाप्त हो जाती है। कई पत्नियां होने पर परिवार में संतानों की संख्या बढ़ जाती है। अधिक संतानों की शिक्षा दीक्षा एवं देखभाल करना प्रायः कठिन होता है। ऐसे विवाहों के कारण स्त्रियों के सामाजिक प्रतिष्ठा गिर जाती है और उनका शोषण होता है। एकाधिक पत्नियां होने पर एक पुरुष उन सभी की योजनाओं को संतुष्ट नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में समाज में यौन अनाचार पनपता है। एकाधिक पत्नियां रखने वाले व्यक्ति की मृत्यु होने पर समाज में विधवाओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है। इन हानियों को देखते हुए ही वर्तमान में बहुपत्नित्व के स्थान पर एक विवाह के नियम को स्वीकार किया गया है ।
(स) द्वि-पत्नी विवाह:-
बहुविवाह का एक रूप द्वि पत्नी विवाह भी है। इस प्रकार के विवाह में एक पुरुष एक साथ दो स्त्रियों से विवाह करता है। कई बार पहली स्त्री के संतान ना होने पर दूसरा विवाह कर लिया जाता है। ऑरेगन तथा एस्कीमो जनजातियों में यह प्रथा प्रचलित हैं। भारत में दक्षिण की कुछ जनजातियों में यह प्रथा पाई जाती है। किंतु वर्तमान में ऐसे विवाहों पर कानूनी रोक लगा दी गई है।
(द) समूह विवाह:-
(द) समूह विवाह:-
समूह विवाह में पुरुषों का एक समूह स्त्रियों के एक समूह से विवाह करता है और समूह का प्रत्येक पुरुष समूह की प्रत्येक स्त्री का पति होता है। परिवार और विवाह की प्रारंभिक अवस्था में यह स्थिति रही होगी। ऐसी उद्विकास वादियों की धारणा है। यह प्रथा आस्ट्रेलिया की जनजातियों में पाई जाती है जहां एक कुल की सभी लड़कियां दूसरे कुल की भावी पत्नियां समझी जाती हैं । वेस्टरमार्क का मत है कि ऐसे विवाह तिब्बत, भारत एवं श्रीलंका के बहुपतित्व वाले समाजों में पाए जाते हैं। डॉ सक्सेना का मत है कि बहुपति विवाही समाजों में आर्थिक स्थिति में सुधार होने पर पुरुष एकाधिक स्त्रियां रखते हैं, तब बहुपति विवाह समूह विवाह का रूप ले लेता है। टोडा लोगों में बहुपत्नित्व एवं बहुपत्नित्व का सम्मिश्रण हो रहा है क्योंकि उन्होंने बालिकावध की तथा त्याग दी है। अतः उन में स्त्रियों की संख्या बढ़ रही है। यदि हम समूह विवाह का प्रयोग इस अर्थ में करते हैं जो यह सूचित करता हो कि समूह का प्रत्येक पुरुष दूसरे समूह की प्रत्येक स्त्री का पति हो तथा उत्पन्न संतानों को भी संपूर्ण समूह की संताने समझा जाता हो तो इस प्रकार के विवाह के उदाहरण विश्व में कहीं नहीं है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि विभिन्न समाजों में विवाह की भिन्नता का कारण उनकी सामाजिक, आर्थिक एवं जनांकिकी परिस्थितियों की भिन्नता है। हिंदुओं में विवाह धार्मिक संस्कार माना जाता है तो जनजातियों एवं अन्य लोगों में सामाजिक समझौता।
इस प्रकार हम देखते हैं कि विभिन्न समाजों में विवाह की भिन्नता का कारण उनकी सामाजिक, आर्थिक एवं जनांकिकी परिस्थितियों की भिन्नता है। हिंदुओं में विवाह धार्मिक संस्कार माना जाता है तो जनजातियों एवं अन्य लोगों में सामाजिक समझौता।
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