समाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषा
समाजीकरण शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया गया है । अर्थशास्त्री और मुख्यतः मार्क्सवादी अर्थशास्त्री समाजीकरण शब्द का प्रयोग उत्पादन के साधनों एवं संपत्ति पर समाज के अधिकार के रूप में करते हैं । उदाहरणार्थ , वे कहते हैं कारखानों , बैंकों एवं भूमिका समाजीकरण किया जाना चाहिए, इसका अर्थ है इन पर समाज का स्वामित्व होना चाहिए । किम्बाल यंग ने समाजीकरण शब्द के तीन भिन्न भिन्न अर्थों का उल्लेख किया है :
1. - समाज सुधारक एवं उपदेशक :- इस शब्द का प्रयोग बच्चों एवं युवकों को नैतिक प्रशिक्षण देने के अर्थ में करते हैं ।
2.- बाल मनोविज्ञान में संकीर्ण अर्थ में इस शब्द का प्रयोग बच्चों को सामाजिक प्रशिक्षण देने के अर्थ में किया गया है ।
3. - समाजशास्त्र में इसका प्रयोग उन प्रक्रियाओं के लिए किया जाता है जिनके द्वारा व्यक्ति को सामाजिक सांस्कृतिक संसार से परिचित कराया जाता है । इस अर्थ में समाजीकरण वह विधि है जिसके द्वाराा संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है । इसके द्वारा व्यक्ति अपनेेे समूह एवं समाज के मूल्यों, जनरीतियों, लोकाचारों, आदर्शों एवं सामाजिक उद्देश्यों को सीखता है । समाजीकरण की विभिन्न परिभाषाओं से यह बात और भी स्पष्ट हो जाएगी ।
ग्रीन के शब्दों में , समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा सांस्कृतिक विशेषताओं, आत्मपन और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है । इस परिभाषा से स्पष्ट है कि समाजीकरण के द्वारा बच्चा संस्कृति की विशेषताओं को सीखता है उसके अनुसार अपने आचरण को ढालता हैं और व्यक्तित्व का विकास करता है ।
गिलिन और गिलिन लिखते हैं , समाजीकरण से हमारा तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा व्यक्ति समूह में एक क्रियाशील सदस्य बनता है , समूह के कार्य विधियों से समन्वय स्थापित करता है , उसकी परंपराओं का ध्यान रखता है और सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन करके अपने साथियों के प्रति सहनशक्ति की भावना विकसित करता है । इस परिभाषा में समाजीकरण को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में दर्शाया गया है जिसके द्वारा व्यक्ति समूह का सक्रिय सदस्य बनता है ।
किम्बाल यंग के अनुसार , सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है तथा समाज के विभिन्न समूहों का सदस्य बनता है और जिसके द्वारा उसे समाज के मूल्यों और मानकों को स्वीकार करने की प्रेरणा मिलती है ।
जॉनसन के अनुसार , समाजीकरण सीखने की वह प्रक्रिया है जो सीखने वाले को सामाजिक भूमिकाओं का निर्वाह करने योग्य बनाती है । इस प्रकार जॉनसन समाजीकरण को सीखने की प्रक्रिया मानते हैं जिसके द्वारा व्यक्ति समाज में अपनी भूमिकाओं को निभाना सीखता है ।
स्टीवर्ट एवं ग्लिन के अनुसार , समाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग अपने संस्कृति के विश्वासों , अभिवृत्तियों , मूल्यों , और प्रथाओं को ग्रहण करते हैं ।
फिचर के अनुसार , समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति सामाजिक व्यवहारों को स्वीकार करता है और उनसे अनुकूलन करना सीखता है । फिचर भी जॉनसन की तरह समाजीकरण को सीखने की प्रक्रिया मानते हैं ।
न्यूमेयर के अनुसार , एक व्यक्ति के सामाजिक प्राणी के रूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया का नाम ही समाजीकरण है ।
ब्रूम तथा सेल्जनिक के अनुसार , समाजीकरण के दो पूरक अर्थ है - संस्कृति का हस्तांतरण और व्यक्तित्व का विकास । इससे स्पष्ट है कि समाजीकरण द्वारा एक व्यक्ति अपनी संस्कृति को सीखता है । संस्कृति पुरानी पीढ़ी द्वारा नई पीढ़ी को हस्तांतरित होती है । संस्कृति को सीखने से ही बच्चे के व्यक्तित्व का विकास होता है ।
टालकाट परसन्स :- व्यक्ति द्वारा सामाजिक मूल्यों को सीखने और उन्हें आन्तरीकृत करने को ही समाजीकरण कहते हैं ।
हारालाम्बोस के अनुसार , वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति अपने समाज की संस्कृति को सीखते हैं समाजीकरण के नाम से जानी जाती है ।
उपर्युक्त हरी भाषाओं से स्पष्ट है कि समाजीकरण सीखने की एक प्रक्रिया है , जिसके द्वारा व्यक्ति समूह अथवा समाज की सामाजिक सांस्कृतिक विशेषताओं को ग्रहण करता है , अपने व्यक्तित्व का विकास करता है और समाज का क्रियाशील सदस्य बनता है । समाजीकरण द्वारा सामाजिक प्रतिमानो को सीख कर उनके अनुरूप आचरण करता है , इससे समाज में नियंत्रण बना रहता है ।
ब्रूम तथा सेल्जनिक का मत है कि समाजीकरण की प्रक्रिया के तीन प्रमुख पहलू है - 1. सावयव (Organism) , 2. व्यक्ति (Individual) , तथा 3. समाज (Society) ।
1.- सावयव या शरीर रचना ही व्यक्ति को हुआ चलता प्रदान करती है जिसकी सहायता से मानव अन्य लोगों के व्यवहारों को सीखता है और भाषा द्वारा उन्हें व्यक्त करता है ।
2. व्यक्ति समाजीकरण की प्रक्रिया का वास्तविक आधार है क्योंकि व्यक्ति में 'आत्म ' (Self) का विकास हुए बिना समाजीकरण की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती ।
3. समाज ही वह क्षेत्र है जिसके अंतर्गत व्यक्ति विभिन्न प्रकार से अंतः क्रिया करता है
स्टीवर्ट एवं ग्लिन ने समाजीकरण के तीन आवश्यक तत्व माने हैं -
1. - समाज सुधारक एवं उपदेशक :- इस शब्द का प्रयोग बच्चों एवं युवकों को नैतिक प्रशिक्षण देने के अर्थ में करते हैं ।
2.- बाल मनोविज्ञान में संकीर्ण अर्थ में इस शब्द का प्रयोग बच्चों को सामाजिक प्रशिक्षण देने के अर्थ में किया गया है ।
3. - समाजशास्त्र में इसका प्रयोग उन प्रक्रियाओं के लिए किया जाता है जिनके द्वारा व्यक्ति को सामाजिक सांस्कृतिक संसार से परिचित कराया जाता है । इस अर्थ में समाजीकरण वह विधि है जिसके द्वाराा संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है । इसके द्वारा व्यक्ति अपनेेे समूह एवं समाज के मूल्यों, जनरीतियों, लोकाचारों, आदर्शों एवं सामाजिक उद्देश्यों को सीखता है । समाजीकरण की विभिन्न परिभाषाओं से यह बात और भी स्पष्ट हो जाएगी ।
ग्रीन के शब्दों में , समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा सांस्कृतिक विशेषताओं, आत्मपन और व्यक्तित्व को प्राप्त करता है । इस परिभाषा से स्पष्ट है कि समाजीकरण के द्वारा बच्चा संस्कृति की विशेषताओं को सीखता है उसके अनुसार अपने आचरण को ढालता हैं और व्यक्तित्व का विकास करता है ।
गिलिन और गिलिन लिखते हैं , समाजीकरण से हमारा तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा व्यक्ति समूह में एक क्रियाशील सदस्य बनता है , समूह के कार्य विधियों से समन्वय स्थापित करता है , उसकी परंपराओं का ध्यान रखता है और सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन करके अपने साथियों के प्रति सहनशक्ति की भावना विकसित करता है । इस परिभाषा में समाजीकरण को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में दर्शाया गया है जिसके द्वारा व्यक्ति समूह का सक्रिय सदस्य बनता है ।
किम्बाल यंग के अनुसार , सामाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है तथा समाज के विभिन्न समूहों का सदस्य बनता है और जिसके द्वारा उसे समाज के मूल्यों और मानकों को स्वीकार करने की प्रेरणा मिलती है ।
जॉनसन के अनुसार , समाजीकरण सीखने की वह प्रक्रिया है जो सीखने वाले को सामाजिक भूमिकाओं का निर्वाह करने योग्य बनाती है । इस प्रकार जॉनसन समाजीकरण को सीखने की प्रक्रिया मानते हैं जिसके द्वारा व्यक्ति समाज में अपनी भूमिकाओं को निभाना सीखता है ।
स्टीवर्ट एवं ग्लिन के अनुसार , समाजिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग अपने संस्कृति के विश्वासों , अभिवृत्तियों , मूल्यों , और प्रथाओं को ग्रहण करते हैं ।
फिचर के अनुसार , समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति सामाजिक व्यवहारों को स्वीकार करता है और उनसे अनुकूलन करना सीखता है । फिचर भी जॉनसन की तरह समाजीकरण को सीखने की प्रक्रिया मानते हैं ।
न्यूमेयर के अनुसार , एक व्यक्ति के सामाजिक प्राणी के रूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया का नाम ही समाजीकरण है ।
ब्रूम तथा सेल्जनिक के अनुसार , समाजीकरण के दो पूरक अर्थ है - संस्कृति का हस्तांतरण और व्यक्तित्व का विकास । इससे स्पष्ट है कि समाजीकरण द्वारा एक व्यक्ति अपनी संस्कृति को सीखता है । संस्कृति पुरानी पीढ़ी द्वारा नई पीढ़ी को हस्तांतरित होती है । संस्कृति को सीखने से ही बच्चे के व्यक्तित्व का विकास होता है ।
टालकाट परसन्स :- व्यक्ति द्वारा सामाजिक मूल्यों को सीखने और उन्हें आन्तरीकृत करने को ही समाजीकरण कहते हैं ।
हारालाम्बोस के अनुसार , वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति अपने समाज की संस्कृति को सीखते हैं समाजीकरण के नाम से जानी जाती है ।
उपर्युक्त हरी भाषाओं से स्पष्ट है कि समाजीकरण सीखने की एक प्रक्रिया है , जिसके द्वारा व्यक्ति समूह अथवा समाज की सामाजिक सांस्कृतिक विशेषताओं को ग्रहण करता है , अपने व्यक्तित्व का विकास करता है और समाज का क्रियाशील सदस्य बनता है । समाजीकरण द्वारा सामाजिक प्रतिमानो को सीख कर उनके अनुरूप आचरण करता है , इससे समाज में नियंत्रण बना रहता है ।
ब्रूम तथा सेल्जनिक का मत है कि समाजीकरण की प्रक्रिया के तीन प्रमुख पहलू है - 1. सावयव (Organism) , 2. व्यक्ति (Individual) , तथा 3. समाज (Society) ।
1.- सावयव या शरीर रचना ही व्यक्ति को हुआ चलता प्रदान करती है जिसकी सहायता से मानव अन्य लोगों के व्यवहारों को सीखता है और भाषा द्वारा उन्हें व्यक्त करता है ।
2. व्यक्ति समाजीकरण की प्रक्रिया का वास्तविक आधार है क्योंकि व्यक्ति में 'आत्म ' (Self) का विकास हुए बिना समाजीकरण की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती ।
3. समाज ही वह क्षेत्र है जिसके अंतर्गत व्यक्ति विभिन्न प्रकार से अंतः क्रिया करता है
स्टीवर्ट एवं ग्लिन ने समाजीकरण के तीन आवश्यक तत्व माने हैं -
1. अंतः क्रिया ।
2. भावात्मक स्वीकृति।
3. संचार या भाषा ।
दूसरे व्यक्तियों के साथ अंतः क्रिया करने के दौरान ही व्यक्ति सही व्यवहार करना सीखता है । वह यह भी सीखता है कि जिस प्रकार के व्यवहार समाज द्वारा स्वीकृत है और किस प्रकार के निषिद्ध । वह अपने अधिकारों , दायित्वों एवं कर्तव्यों को भी सीखता है । सीखने का कार्य संचार एवं भाषा के द्वारा सरलता से किया जाता है । चूँकि माना एक भावात्मक और बौद्धिक प्राणी है । अतः वह प्रेम पाने व प्रेम प्रदान करने का अनुभव भी प्राप्त करता है । भावात्मक वातावरण में सामाजिकरण शीघ्र होता है । इस प्रकार समाजीकरण के लिए यह तीनों तत्व आवश्यक एवं अपृथकनीय हैं ।
1. - सीखने की प्रक्रिया :- सामाजिकरण सीखने की एक प्रक्रिया है किंतु सभी प्रकार की बातें सीखना ही सामाजिकरण नहीं है वरन उन व्यवहारों, जो सामाजिक प्रतिमानों ,मूल्यों एवं समाज द्वारा स्वीकृत है को सीखना ही समाजीकरण है । उदाहरण के लिए , एक व्यक्ति चोरी करना , कक्षा से भाग जाना व गाली देना आदि सीखता है तो उसे हम समाजीकरण नहीं कहेंगे क्योंकि ये क्रियाएं समाज द्वारा स्वीकृत नहीं है और ना ही इन्हें सीखकर व्यक्ति समाज का क्रियाशील सदस्य बन सकता है ।
2. - आजन्म प्रक्रिया :- समाजीकरण की प्रक्रिया बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक चलने वाली प्रक्रिया है । बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक वह अनेक प्रस्थितिया धारण करता है और उनके अनुसार अपनी भूमिकाओं का निर्वाह करना सीखता है ।
3. - समय व स्थान सापेक्ष :- समाजीकरण की प्रक्रिया प्रमय व स्थान सापेक्ष हैं । समय सा पेज का अर्थ है कि दो भिन्न समयो में समाजीकरण की अंतर्वस्तु (Content) अलग अलग हो सकती है । उदाहरण के लिए प्राचीन भारत में स्त्रियों को पर्दा या घूंघट रखना सिखाया जाता था , एक व्यक्ति को अपनी जाति के खानपान के नियमों से परिचित कराया जाता था किंतु वर्तमान समय में यह व्यवहार अपेक्षित नहीं है । इसी प्रकार से बड़ों का अभिवादन करने के लिए बच्चों को प्रणाम करना, धोका देना , आदि सिखाया जाता था । किंतु अब यह गुड मॉर्निंग, बाय-बाय , गुड नाइट , ओके , हेलो आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं । समाजीकरण स्थान सापेक्ष भी है । इसका अर्थ यह है कि एक स्थान पर एक समाज में जो व्यवहार संशसनीय माना जाता है वही दूसरे समाज में निंदनीय भी माना जा सकता है ।
4. - संस्कृति को आत्मसात करने की प्रक्रिया :- इस प्रक्रिया के द्वारा एक व्यक्ति सांस्कृतिक मूल्यों , मानकों एवं समाज स्वीकृत व्यवहारों को सीखता है तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक तत्वों को आत्मसात करता है । धीरे-धीरे यह संस्कृति व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंग बन जाती है ।
5. - समाज का प्रकार्यात्मक सदस्य बनने की प्रक्रिया :- समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा ही व्यक्ति सामाजिक कार्यों में भाग लेने योग्य बनता है । इसी के द्वारा वह प्राणीशास्त्रीय प्राणी से सामाजिक प्राणी में बदल जाता है । किस पद पर रहकर किस परिस्थिति में कैसा व्यवहार करना चाहिए , यह सब सामाजिक संपर्क से ही सीखा जाता है और व्यक्ति लोगों की अपेक्षाओं के अनुसार व्यवहार करना सीखता है । हारालाम्बोस का कहना है कि समाजीकरण के अभाव में कोई भी मनुष्य समाज का सामान्य सदस्य नहीं बन सकता है ।
6. - आत्म का विकास :- समाजीकरण के द्वारा व्यक्ति के आत्म का विकास होता है । व्यक्ति में अपने प्रति जागरूकता आती है और वह यह जानने लगता है कि दूसरे व्यक्ति उसके बारे में क्या सोचते हैं ।
7. - सांस्कृतिक हस्तांतरण :- समाजीकरण के द्वारा समूह अथवा समाज अपनी संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाता है । नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से संस्कृति ग्रहण करती है । प्रोफ़ेसर डेविस कहते हैं कि परिवर्तित करने की इस प्रक्रिया के बिना समाज अपनी निरन्तरता बनाए नहीं रख सकता और ना ही संस्कृति जीवित रह सकती है ।
समाजीकरण के द्वारा समाज बच्चे को यह सिखाता है कि समुदाय में घुलने मिलने के लिए उसे किन बातों की आवश्यकता है । उसकी क्षमताओं का विकास करने और स्थाई तथा अर्थपूर्ण संतुष्टियों को प्राप्त करने के लिए उसे क्या जानना और सीखना चाहिए । ब्रूम तथा सेल्जनिक ने समाजीकरण के चार प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख किया है जो निम्न प्रकार हैं
1. - आधारभूत नियमबद्धता का विकास :- सामाजिक जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए अनुशासन एवं नियमबद्धता अत्यावश्यक है । मानव की प्राकृतिक प्रेरणाएँ उसे नियम हीन व्यवहार करने को प्रोत्साहित करती हैं । समाजीकरण के द्वारा व्यक्ति में नियमबद्धता और अनुशासन उत्पन्न किया जाता है । समाजीकरण की प्रक्रिया व्यक्ति को अपने लक्ष्यों की पूर्ति तत्काल ही पूरा करने पर जोर नहीं देती वरन परिस्थिति के अनुसार लक्ष्यों को आगे के लिए स्थगित करना , छोड़ देना अथवा संशोधित करना भी सिखाती है । इसका उद्देश्य भावी लक्ष्य और सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए व्यवहार करना सिखाना है ।
2. - आकांक्षाओं की पूर्ति :- समाजीकरण नियमबद्धता के साथ ही आकांक्षाओं की पूर्ति भी करता है । अनुशासन स्वयं ही व्यक्ति को कोई पुरस्कार नहीं देकर आकांक्षाओं की पूर्ति में सहायक होता है । समाज सामान्य सांस्कृतिक मूल्यों का ही संचरण नहीं करता है वरन विशिष्ट आकांक्षाएं भी पैदा करता है । उदाहरण के लिए , धर्म कुछ लोगों में पुरोहित बनने की इच्छा पैदा करता है । उच्च एवं विकसित अर्थव्यवस्था लोगों में व्यापारी , वैज्ञानिक एवं इंजीनियर बनने की इच्छा जागृत करती है ।
3. - सामाजिक भूमिकाओं को निभाने की सीख :- समाजीकरण द्वारा व्यक्ति को उसकी सामाजिक भूमिका निभाने और उससे संबंधित अभिवृत्तियों को सिखाने का कार्य भी किया जाता है । समूह की सदस्यता की मांग है कि व्यक्ति सामान्य योग्यता के साथ-साथ विशिष्ट भूमिकाओं को निभाने की योग्यता भी प्राप्त करें । व्यक्ति समाज में अनेक पद ग्रहण करता है और अनेक लोगों के संपर्क में आता है । प्रत्येक पद एवं व्यक्ति के संदर्भ में उसे एक विशेष प्रकार की भूमिका निभानी होती है जो समाजीकरण के द्वारा ही सीखी जाती है ।
4.- क्षमताओं का विकास :- समाजीकरण का उद्देश्य व्यक्ति में ऐसी क्षमताएं पैदा करना है जिससे कि वह अपने को समाज के अनुकूल बना ले । सरल समाजों के परंपरागत व्यवहार पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते रहते हैं और सामान्यतः अनुकरण के द्वारा उन्हें सीखा एवं दैनिक जीवन में प्रयोग में लाया जाता है । किंतु उच्च तकनीकी ज्ञान से परिपूर्ण समाजों में औपचारिक शिक्षा द्वारा सामाजिक क्षमताओं का विकास करना सामाजिकरण का प्रमुख कार्य है । अन्य शब्दों में , औपचारिक शिक्षा प्रभावपूर्ण समाजीकरण के लिए एक आवश्यक शर्त बनती जा रही है ।
2. भावात्मक स्वीकृति।
3. संचार या भाषा ।
दूसरे व्यक्तियों के साथ अंतः क्रिया करने के दौरान ही व्यक्ति सही व्यवहार करना सीखता है । वह यह भी सीखता है कि जिस प्रकार के व्यवहार समाज द्वारा स्वीकृत है और किस प्रकार के निषिद्ध । वह अपने अधिकारों , दायित्वों एवं कर्तव्यों को भी सीखता है । सीखने का कार्य संचार एवं भाषा के द्वारा सरलता से किया जाता है । चूँकि माना एक भावात्मक और बौद्धिक प्राणी है । अतः वह प्रेम पाने व प्रेम प्रदान करने का अनुभव भी प्राप्त करता है । भावात्मक वातावरण में सामाजिकरण शीघ्र होता है । इस प्रकार समाजीकरण के लिए यह तीनों तत्व आवश्यक एवं अपृथकनीय हैं ।
समाजीकरण की विशेषताएं :-
1. - सीखने की प्रक्रिया :- सामाजिकरण सीखने की एक प्रक्रिया है किंतु सभी प्रकार की बातें सीखना ही सामाजिकरण नहीं है वरन उन व्यवहारों, जो सामाजिक प्रतिमानों ,मूल्यों एवं समाज द्वारा स्वीकृत है को सीखना ही समाजीकरण है । उदाहरण के लिए , एक व्यक्ति चोरी करना , कक्षा से भाग जाना व गाली देना आदि सीखता है तो उसे हम समाजीकरण नहीं कहेंगे क्योंकि ये क्रियाएं समाज द्वारा स्वीकृत नहीं है और ना ही इन्हें सीखकर व्यक्ति समाज का क्रियाशील सदस्य बन सकता है ।
2. - आजन्म प्रक्रिया :- समाजीकरण की प्रक्रिया बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक चलने वाली प्रक्रिया है । बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक वह अनेक प्रस्थितिया धारण करता है और उनके अनुसार अपनी भूमिकाओं का निर्वाह करना सीखता है ।
3. - समय व स्थान सापेक्ष :- समाजीकरण की प्रक्रिया प्रमय व स्थान सापेक्ष हैं । समय सा पेज का अर्थ है कि दो भिन्न समयो में समाजीकरण की अंतर्वस्तु (Content) अलग अलग हो सकती है । उदाहरण के लिए प्राचीन भारत में स्त्रियों को पर्दा या घूंघट रखना सिखाया जाता था , एक व्यक्ति को अपनी जाति के खानपान के नियमों से परिचित कराया जाता था किंतु वर्तमान समय में यह व्यवहार अपेक्षित नहीं है । इसी प्रकार से बड़ों का अभिवादन करने के लिए बच्चों को प्रणाम करना, धोका देना , आदि सिखाया जाता था । किंतु अब यह गुड मॉर्निंग, बाय-बाय , गुड नाइट , ओके , हेलो आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं । समाजीकरण स्थान सापेक्ष भी है । इसका अर्थ यह है कि एक स्थान पर एक समाज में जो व्यवहार संशसनीय माना जाता है वही दूसरे समाज में निंदनीय भी माना जा सकता है ।
4. - संस्कृति को आत्मसात करने की प्रक्रिया :- इस प्रक्रिया के द्वारा एक व्यक्ति सांस्कृतिक मूल्यों , मानकों एवं समाज स्वीकृत व्यवहारों को सीखता है तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक तत्वों को आत्मसात करता है । धीरे-धीरे यह संस्कृति व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंग बन जाती है ।
5. - समाज का प्रकार्यात्मक सदस्य बनने की प्रक्रिया :- समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा ही व्यक्ति सामाजिक कार्यों में भाग लेने योग्य बनता है । इसी के द्वारा वह प्राणीशास्त्रीय प्राणी से सामाजिक प्राणी में बदल जाता है । किस पद पर रहकर किस परिस्थिति में कैसा व्यवहार करना चाहिए , यह सब सामाजिक संपर्क से ही सीखा जाता है और व्यक्ति लोगों की अपेक्षाओं के अनुसार व्यवहार करना सीखता है । हारालाम्बोस का कहना है कि समाजीकरण के अभाव में कोई भी मनुष्य समाज का सामान्य सदस्य नहीं बन सकता है ।
6. - आत्म का विकास :- समाजीकरण के द्वारा व्यक्ति के आत्म का विकास होता है । व्यक्ति में अपने प्रति जागरूकता आती है और वह यह जानने लगता है कि दूसरे व्यक्ति उसके बारे में क्या सोचते हैं ।
7. - सांस्कृतिक हस्तांतरण :- समाजीकरण के द्वारा समूह अथवा समाज अपनी संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाता है । नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से संस्कृति ग्रहण करती है । प्रोफ़ेसर डेविस कहते हैं कि परिवर्तित करने की इस प्रक्रिया के बिना समाज अपनी निरन्तरता बनाए नहीं रख सकता और ना ही संस्कृति जीवित रह सकती है ।
समाजीकरण के उद्देश्य :-
समाजीकरण के द्वारा समाज बच्चे को यह सिखाता है कि समुदाय में घुलने मिलने के लिए उसे किन बातों की आवश्यकता है । उसकी क्षमताओं का विकास करने और स्थाई तथा अर्थपूर्ण संतुष्टियों को प्राप्त करने के लिए उसे क्या जानना और सीखना चाहिए । ब्रूम तथा सेल्जनिक ने समाजीकरण के चार प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख किया है जो निम्न प्रकार हैं
1. - आधारभूत नियमबद्धता का विकास :- सामाजिक जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए अनुशासन एवं नियमबद्धता अत्यावश्यक है । मानव की प्राकृतिक प्रेरणाएँ उसे नियम हीन व्यवहार करने को प्रोत्साहित करती हैं । समाजीकरण के द्वारा व्यक्ति में नियमबद्धता और अनुशासन उत्पन्न किया जाता है । समाजीकरण की प्रक्रिया व्यक्ति को अपने लक्ष्यों की पूर्ति तत्काल ही पूरा करने पर जोर नहीं देती वरन परिस्थिति के अनुसार लक्ष्यों को आगे के लिए स्थगित करना , छोड़ देना अथवा संशोधित करना भी सिखाती है । इसका उद्देश्य भावी लक्ष्य और सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए व्यवहार करना सिखाना है ।
2. - आकांक्षाओं की पूर्ति :- समाजीकरण नियमबद्धता के साथ ही आकांक्षाओं की पूर्ति भी करता है । अनुशासन स्वयं ही व्यक्ति को कोई पुरस्कार नहीं देकर आकांक्षाओं की पूर्ति में सहायक होता है । समाज सामान्य सांस्कृतिक मूल्यों का ही संचरण नहीं करता है वरन विशिष्ट आकांक्षाएं भी पैदा करता है । उदाहरण के लिए , धर्म कुछ लोगों में पुरोहित बनने की इच्छा पैदा करता है । उच्च एवं विकसित अर्थव्यवस्था लोगों में व्यापारी , वैज्ञानिक एवं इंजीनियर बनने की इच्छा जागृत करती है ।
3. - सामाजिक भूमिकाओं को निभाने की सीख :- समाजीकरण द्वारा व्यक्ति को उसकी सामाजिक भूमिका निभाने और उससे संबंधित अभिवृत्तियों को सिखाने का कार्य भी किया जाता है । समूह की सदस्यता की मांग है कि व्यक्ति सामान्य योग्यता के साथ-साथ विशिष्ट भूमिकाओं को निभाने की योग्यता भी प्राप्त करें । व्यक्ति समाज में अनेक पद ग्रहण करता है और अनेक लोगों के संपर्क में आता है । प्रत्येक पद एवं व्यक्ति के संदर्भ में उसे एक विशेष प्रकार की भूमिका निभानी होती है जो समाजीकरण के द्वारा ही सीखी जाती है ।
4.- क्षमताओं का विकास :- समाजीकरण का उद्देश्य व्यक्ति में ऐसी क्षमताएं पैदा करना है जिससे कि वह अपने को समाज के अनुकूल बना ले । सरल समाजों के परंपरागत व्यवहार पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते रहते हैं और सामान्यतः अनुकरण के द्वारा उन्हें सीखा एवं दैनिक जीवन में प्रयोग में लाया जाता है । किंतु उच्च तकनीकी ज्ञान से परिपूर्ण समाजों में औपचारिक शिक्षा द्वारा सामाजिक क्षमताओं का विकास करना सामाजिकरण का प्रमुख कार्य है । अन्य शब्दों में , औपचारिक शिक्षा प्रभावपूर्ण समाजीकरण के लिए एक आवश्यक शर्त बनती जा रही है ।
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