कुलीन विवाह से आप क्या समझते हैं
कुलीन विवाह का अर्थ जैसा कि उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि कुलीन विवाह वह प्रथा है जो कि लड़की को अपनी ही जाति या उप जाति में अपने से बराबर या ऊँचे कुलों में विवाह करने की आज्ञा देती है । दूसरे शब्दों में लड़की को अपने से नीचे कुलों इस वंश में विवाह करने की छूट है परंतु एक व्यक्ति को अपने लड़की का विवाह अपनी ही जाति में अपने बराबर या अपने से ऊंचे कुलों में करना पड़ता है यही कुलीन विवाह है । उदाहरणार्थ , ' अ ' ' ब ' ' स ' और ' द ' चारो कुल ब्राह्मण जाति के अंतर्गत ही आते हैं, पर सामाजिक प्रतिष्ठा के दृष्टिकोण से ' अ ' की स्थिति सर्वश्रेष्ठ है और उसके बाद क्रमशः ' ब ' ' स ' और ' द ' का स्थान है । अतः यदि ' ब ' 'स ' या ' द ' कुल या वंश की लड़की का विवाह ' अ ' के लड़के के साथ होता है तो उसे कुलीन विवाह कहेंगे । उसी प्रकार ' द ' वंश की लड़की की शादी ' ब ' या ' स ' वंश के साथ होने पर भी वह कुलीन विवाह होगा । अतः कुलीन विवाह में लड़के की वंश स्थिति लड़की से ऊंची होनी चाहिए ।कुलीन विवाह की उत्पत्ति के कारण
अंतर्जातीय कुलीन विवाह या अनुलोम प्रथा के समाप्त हो जाने के साथ सजातीय कुलीन विवाह का जन्म हुआ । इसका मुख्य कारण यह था कि जाति में विभिन्न सामाजिक स्थिति, प्रतिष्ठा या मर्यादा वाले समूह बन गए जैसे कि कान्यकुब्जों में बिस्वा के आधार पर विभिन्न समूह हैं । जब एक ही जाति के अंदर इस प्रकार के समूहों में नीचे कुल की लड़की का विवाह उससे ऊंचे कुल में होता है तो उसे सजातीय कुलीन विवाह कहते हैं ।
सजातीय कुलीन विवाह के उत्पन्न होने का मुख्य कारण एक ही जाति में विभिन्न सामाजिक स्तरीय स्थिति वाले समूहों का होना है । स्तरों या स्थितियों में असमानता, प्रजातीय श्रेष्ठता, राजनीतिक प्रभुता या क्षेत्रीय प्रभुता आदि के कारण सजातीय कुलीन विवाह उत्पन्न हो सकता है । राजपूताना ने राजनीतिक प्रभुता और राजवंश से संपर्क के आधार पर ऐसी समानताओं का जन्म हुआ था । कान्यकुब्जों में वे समूह ऊंचे स्तर पर हो गए जिन्हें मुगल बादशाहों से किसी ना किसी प्रकार की सहायता या सम्मान मिला । बीस बिस्वा के कान्यकुब्ज सबसे ऊंचे माने जाते हैं । डॉ शर्मा ने उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों की कुलीन विवाह प्रथा का जो अध्ययन किया है उससे पता चलता है कि सनाढ्यों मैं जिन परिवारों को बदायूँ के एक राजा से सम्मान मिला , उनकी संतानों को श्रेष्ठ माना जाता है । उसी प्रकार अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों के कुर्माचली ब्राह्मणों में राजा द्वारा सम्मानित परिवार श्रेष्ठ समझे जाते हैं । उत्तर प्रदेश के अहीर अपनी लड़कियों का विवाह इस प्रदेश के पश्चिम दिशा में अवस्थित गांवों मैं करना अधिक पसंद करते हैं और डॉक्टर शर्मा के अनुसार इसका कारण यह है कि भगवान कृष्ण पश्चिम के थे और अहीर उन्हें अपने पूर्वज मानते हैं इसलिए पश्चिम के गांव को पूर्व के गांवों की तुलना में अधिक माना जाता है ।
कपाड़िया ने भी लिखा है कि अनबिल लोगों में दो सामाजिक समूह है - देसाई और भटेला । इनमें देसाई की सामाजिक स्थिति भटेला से ऊँची हैं । इसलिए देसाई अपनी कन्या का विवाह किसी भटेला से करने का नहीं सोचता । उसी प्रकार पाटीदारों ने भी अपने आप को ग्रामों के आधार पर बांट रखा है । चारोत्तर के पाटीदारों की सामाजिक स्थिति ऊँची है, इसलिए वह आपस के क्षेत्र से कन्याएं ले लेते हैं, देते नही है ।
कुलीन विवाह के परिणाम :-
कुलीन विवाह प्रथा लड़कियों के प्रति अनादर की भावनाओं को पनपाने में सहायक सिद्ध होती है । इस प्रथा के फल स्वरुप लड़कियों के लिए वर प्राप्त करने में जिस दहेज की आवश्यकता होती है और उस दहेज को जुटाने में परिवार की जो धार्मिक हानि और बहुधा बर्बादी होती है, वह लड़कियों के प्रति अनुकूल मनोभाव को पनपाने मैं कदापि सहायक नहीं होती । इसलिए कन्या का जन्म पूर्व जन्म में किए गए पापों का फल माना जाता है । इस मनोभाव का परिणाम क्या होता है कि हिंदू परिवारों में लड़कियों का लालन-पालन का कार्य बहुत ही अवहेलना के साथ किया जाता है , जिसके फलस्वरूप उनके व्यक्तित्व का समुचित विकास संभव नहीं होता और अनेक होनहार व्यक्तित्व इस सामाजिक प्रथा रूपी दानव के पैरों तले कुचले जाते हैं । लड़कियों के प्रति अवहेलना का उग्रतम रूप जन्म लेते ही कन्याओं की हत्या करना है ।
कुलीन विवाह के परिणामों को हम इस प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैं :-
1. - सामाजिक मान्यता के अनुसार जिस समूह की स्थिति सबसे ऊंची है, उस समूह के लड़कों को वर के रूप में पाने का प्रयत्न नीचे के सभी समूह या कुल के लोग करते हैं जिसके कारण ऊंचे कुलों में लड़कों की कमी हो जाती है और बहुत सी लड़कियों को योग्य वर नहीं मिल पाते ।
2. - ऊंचे कुल में लड़कों की अत्यधिक कमी होने के कारण कुल की अनेक लड़कियों को या तो अविवाहित रहना पड़ता है या एक लड़के से एकाधिक लड़कियों का विवाह किया जाता है जिससे बहुपत्नी प्रथा का जन्म होता है । इसके विपरीत सबसे निम्न स्कूल में लड़कियों की अत्यधिक कमी होती है और अनेक लड़के अविवाहित रहते हैं या एक लड़की से एकाधिक लड़कों का विवाह होता है अर्थात बहुपति प्रथा का जन्म होता है ।
3. - ऊंचे कुल में लड़कों की संख्या सीमित होने से उनको वर के रूप में पाने की उत्कृष्ठ इच्छा नीचे कुल के सभी माता-पिता में होती है । इस कारण वे योग्य वर पाने के लिए अधिक से अधिक मूल्य चुकाने से भी नहीं हिचकिचाते जिससे दहेज प्रथा को बढ़ावा मिलता है ।
4. - दहेज प्रथा के बाजार में धनी पिता ही विजई होते हैं । निर्धन पिता के पास केवल दो रास्ते हैं - या तो कर्ज लेकर दहेज की मांग को पूरा करें और आजीवन रेडी रहे या लड़कियों को जन्म लेते ही मार डाले ।
5. - दहेज देने में असमर्थ लोग अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए अपनी पुत्री का विवाह अधेड़ उम्र के कुलीन पुरुष के साथ कर देते हैं । इस प्रकार बेमेल विवाह कुलीन विवाह प्रथा का एक सामान्य परिणाम है ।
6. - बेमेल विवाह अर्थात सात आठ साल की लड़की का विवाह साठ - सत्तर साल के बूढ़े से विवाह का यही फल होता है कि समाज में बाल विधवाओं की संख्या बढ़ जाती है जो हिंदू समाज के लिए एक गंभीर समस्या है ।
7. - ऊंचे कुल में लड़कों की कमी और दहेज की अत्यधिक मांग के कारण कन्याओं के माता पिता उनका विवाह जल्दी से जल्दी करने का प्रयत्न करते हैं जिससे बाल विवाह का प्रचलन बढ़ता है ।
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