Skip to main content

चिकित्सीय एवं मन: चिकित्सीय समाज कार्य


चिकित्सीय एवं मन: चिकित्सीय समाज कार्य

उद्देश्य :-

प्रस्तुति के अध्ययन के बाद आप - चिकित्सीय तथा मन: चिकित्सीय समाज कार्य से परिचित हो सकेंगे। 
 
मन: चिकित्सीय समाज कार्य में सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका को समझ सकेंगे।
मन: चिकित्सीय समाज कार्य की कुशलताओं को ग्रहण कर उसको क्षेत्र कार्य में परिवर्तित कर, कार्यानुभव कर सकेंगे।
स्वास्थ्य की मानसिक, शारीरिक एवं पारिवारिक स्तर पर आवश्यकता का वर्णन कर सकेंगे।
चिकित्सीय समाज कार्य को क्षेत्र कार्य के संदर्भ में समझ सकेंगे।
 
प्रस्तावना :-

समाज कार्य व्यक्ति के सकल सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है। इसकी यह मान्यता है कि व्यक्ति को संपूर्ण स्वास्थ्य का शुअवसर प्राप्त होना चाहिए।जिसके लिए आवश्यक है कि व्यक्ति के शरीर के साथ-साथ उसका मन भी स्वस्थ हो इसलिए मानव जीवन में स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण स्थान है। समाज कार्य के एक क्षेत्र एवं विशेष ई करण के रूप में चिकित्सीय एवं मन: चिकित्सीय समस्याओं से ग्रसित व्यक्तियों की सहायता की जाती है तथा यह प्रयास किया जाता है कि व्यक्तियों को समस्याओं का सामना ना करना पड़े। अतः सामाजिक कार्यकर्ता व्यक्तियों के खराब शारीरिक स्वास्थ्य एवं नेताओं के कारण होने वाले मनो सामाजिक समस्याओं का समाधान करने में सहायता देता है।सामाजिक कार्यकर्ता स्वास्थ्य निवारण एवं सामाजिक उपचार एवं पुनर्वास के लिए भी कार्य करते हैं। इस रूप में चिकित्सीय एवं मन: चिकित्सीय कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

भूमिका :-

स्वास्थ्य के मानसिक, सामाजिक व शारीरिक तीन महत्वपूर्ण पक्षों के साथ या सर्वमान्य हो चुका है कि रोगी के स्वास्थ्य सुधार में औषधि का जितना महत्व है उतना ही महत्व उसकी मानसिक व सामाजिक स्थितियों का भी है।इसी मान्यता के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में समाज कार्य के अभ्यास की आवश्यकता को स्वीकार किया गया है फल स्वरुप समाज कार्य की एक नवीन शाखा के रूप में चिकित्सीय समाज कार्य के माध्यम से समाज कार्य की पद्धति दर्शन व तकनीकों के अभ्यास का प्रचलन सर्वमान्य हुआ है।

चिकित्सीय एवं मन: चिकित्सीय समाज कार्य :-

हमारे समाज में यह कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है,अर्थात मानव जीवन में स्वास्थ्य का महत्व पूर्ण स्थान है।समाज कार्य इस बात पर बल देता है कि जीवन में संपूर्णता समग्रता प्रत्येक व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है कि प्रत्येक व्यक्ति को एवं पूर्ण सुखी जीवन व्यतीत करने के अवसर मिले। परंतु यह तभी संभव है जब व्यक्ति समाज में एक दूसरे की इस प्रकार सहायता करें कि व्यक्ति के जीवन में समग्रता की प्राप्ति पर बल दिया जा सके।इस प्रकार समाज कार्य के माध्यम से सहायता मूलक कार्यों को संपन्न किया जाता है और प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में संपूर्णता की प्राप्ति पर बल दिया जाता है।समाज कार्य के क्षेत्र एवं विशेष उपकरण के रूप में चिकित्सीय एवं मन चिकित्सीय समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों की सहायता की जाती है, और जहां तक संभव हो, कि पीड़ित व्यक्ति के लिए ऐसी परिस्थितियों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है, की पुनः समस्याएं उत्पन्न ही ना हो चिकित्सीय एवं मन चिकित्सीय समस्याओं से पीड़ित व्यक्तियों को सहायता देने के लिए 19 वीं सदी मैं मन: चिकित्सीय समाज कार्य का विकास हुआ।

मनोचिकित्सीय समाज कार्य में चिकित्सीय सामाजिक कार्यकर्ता स्वास्थ्य में विभिन्न आयामों एवं क्षेत्रों जैसे चिकित्सालय एवं लघु चिकित्सालयों में कार्य करने के साथ-साथ स्वास्थ्य निवारण और सामाजिक उपचार एवं पुनर्वासन में भी कार्य करता है।इन क्षेत्रों में सामाजिक कार्यकर्ता व्यक्तियों के खराब स्वास्थ्य एवं बालिकाओं के कारण उत्पन्न मनो सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए सहायता देता है। ताकि वे अपनी क्षमता के अनुरूप एक संतोषप्रद एवं उत्पादकता पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें।

समाज में पुरातन काल से ही असहाय एवं पीड़ित व रोगी की सहायता का प्रचलन रहा है और प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे की सेवा करना अपना सामाजिक उत्तरदायित्व समझता रहा है। समाज में मानवता के आधार पर परंपरागत समाजसेवी आश्रम, विद्यालय, चिकित्सालय आदि के माध्यम से जन समुदाय को सेवा प्रदान करते रहे हैं।

ज्ञातव्य हो कि भारतीय समाज में सेवा व सहायता प्रदान करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इतिहास के पन्नों से स्पष्ट होता है कि विशेषकर, रुग्णता, विपन्नता, अपंगता, निराश्रित की स्थिति में सहायता करना व्यक्ति अपना धर्म समझता था। प्राचीन काल में सेवा करना धार्मिक कार्य व पुण्य कार्य समझा जाता था। एक मानव के नाते सक्षम व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की सेवा करना अपना कर्तव्य समझता रहा है।परंतु सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ इस विचारधारा में भी परिवर्तन आया और वर्तमान युग में सहायता प्रदान करने का आधार मानवतावादी दृष्टिकोण बन गया। अब परिस्थितियों ने नया रूप धारण किया जिसमें धर्म या मानवता के आधार पर सहायता प्रदान करना कठिन प्रतीत होने लगा।फल स्वरुप विशेष बतावा वृत्ति का चलन हुआ और यही वह इस चीज थी जब समाज सेवा में समाज कार्य का रूप धारण किया तथा धर्म एवं मानवता के आधार पर सहायता प्रदान करने के स्थान व्यवसायिक रूप से कार्य करना समाज की प्रवृत्ति बढ़ने लगी।

समाज कार्य के प्रवृत्तिक / व्यवसाय विकास के अनुक्रम में सर्वप्रथम चिकित्सीय समाज कार्य का अवलोकन किया जा सकता है। स्वास्थ्य के विकास, रोग निवारण, रोकथाम का उपचार के क्षेत्र समाज कार्य प्रणाली व तकनीकों के उपयोग को ही चिकित्सीय समाज कार्य कहा जाता है। समाज में निरंतर हो रहे परिवर्तन, प्रास्थानिकरण औद्योगिकरण और नगरीकरण के फल स्वरुप संयुक्त परिवारों के विघटन व स्वरूप में परिवर्तन तथा दिन प्रतिदिन की आर्थिक जटिलताओं के कारण व्यक्ति की अपनी व्यक्तिगत एवं पारिवारिक व्यस्तता में वृद्धि होती जा रही है इसके परिणाम स्वरूप अनेक प्रकार की मनो सामाजिक समस्याएं व्यक्ति के जीवन में आ रही हैं।जिनके निवारण तथा निराकरण में चिकित्सीय समाज कार्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। इन्हीं दृष्टिकोण को दृष्टिगत रखते हुए चिकित्सीय समाज कार्य की उपयोगिता महत्व व मान्यता में वृद्धि हुई है।


चिकित्सीय समाज कार्य की अर्थ व परिभाषाएं :-


स्वास्थ्य की आधुनिक अवधारणा के मान्यता पूर्व सर्वमान्य विश्वास था कि औषधि अथवा शल्य चिकित्सा ही रुग्णता का एकमात्र अंतिम उपचार है। परंतु वैज्ञानिक प्रगति, आयुर्विज्ञान में वृद्धि, समाज कार्य व अन्य सामाजिक विज्ञानों के विकास के परिणाम स्वरुप यह तथ्य सामने आया कि रोगी के रूप में व्यक्ति की ओर अग्रसर था में प्रायः दो पहलुओं का समावेश होता है।

1. निरोधात्मक तथा उपचारात्मक पक्ष

2. शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक पक्ष


स्वास्थ्य के मानसिक,सामाजिक व शारीरिक तीन महत्वपूर्ण पक्षों के साथ यह सर्वमान्य हो चुका है कि रोगी के स्वास्थ्य सुधार में औषधि का जितना महत्व है उतना ही महत्व उसकी मानसिक और सामाजिक स्थितियों का भी है।इसी मान्यता के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में समाज कार्य के अभ्यास की आवश्यकता को स्वीकार किया गया है, फल स्वरुप समाज कार्य की एक नवीन शाखा के रूप में चिकित्सीय समाज कार्य के माध्यम से समाज कार्य की पद्धति दर्शन व तकनीकों के अभ्यास का प्रचलन सर्वमान्य हुआ है।

चिकित्सीय समाज कार्य मुख्य रूप से वैयक्तिक सेवा कार्य प्रणाली द्वारा तीन स्तरों पर संपन्न होता है -


1. रोग ग्रस्त व्यक्तियों से संबंधित कार्य

2. रोगी के परिवार तथा समुदाय से संबंधित सेवा कार्य

3. चिकित्सालय व्यवस्था, नियोजन व प्रशासन से संबंधित कार्य



चिकित्सकीय समाज कार्य,समाज कार्य की एक विशिष्टता है जिसके अंतर्गत समाज कार्य का ऐसा व्यवसाय उपचारात्मक प्रयोग किया जाता है जिसके द्वारा रोगियों को उपलब्ध निवारक निदानात्मक एवं उपचारात्मक सुविधाओं के अधिकतम उपयोग द्वारा समुचित रूप से समायोजित सामाजिक प्राणी बनाने के लिए उसे मानसिक सामाजिक आर्थिक शारीरिक स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त करने हेतु सहायता प्रदान की जाती है।

विभिन्न विद्वानों ने चिकित्सीय समाज कार्य को परिभाषित करने का प्रयास किया है -

प्रो एच एम पाठक के अनुसार - चिकित्सीय समाज कार्य उन रोगियों की सहायता प्रदान करने से संबंधित है जो सामाजिक व मनोवैज्ञानिक कारकों के कारण उपलब्ध चिकित्सीय सेवाओं का प्रभावी रूप से उपयोग करने में असमर्थ होते हैं।

प्रो राजाराम शास्त्री के अनुसार - चिकित्सीय समाज कार्य का मुख्य थे यह होता है कि व चिकित्सीय सुविधाओं का उपयोग रोगियों के लिए अधिकाधिक फल पद एवं सरल बनाए तथा चिकित्सा में बाधक मनोसामाजिक दिशाओं का निराकरण करें।

अमेरिका के समाज कार्यकर्ताओं के राष्ट्रीय संघ के अनुसार - चिकित्सकीय समाज कार्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सकीय देखरेख के क्षेत्र में समाज कार्य की पद्धतियों एवं दर्शन का उपयोग स्वीकार करता है।

चिकित्सकीय समाज कार्य समाज कार्य के ज्ञान तथा पद्धतियों के उन पक्षों का विस्तृत उपयोग करता है जो स्वास्थ्य तथा चिकित्सा संबंधी समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों की सहायतार्थ विशिष्ट रूप से उपयुक्त है।

इस प्रकार यह विदित है कि चिकित्सीय समाज कार्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सीय देखरेख क्षेत्र का वास्तविक समाज कार्य का एक विशिष्ट क्षेत्र है।इसमें सामाजिक कार्यकर्ता मानसिकता मनु सामाजिक समस्याओं की उत्पत्ति की रोकथाम तथा उनका निदान एवं उपचार करता है और रोगी को प्रदान की जा रही चिकित्सीय सेवाओं को अधिकतम लाभ उठाकर शीघ्र स्वस्थ होना तथा पूर्ववत पुनः स्थापित होने में सहायता प्रदान करता है।


विशेषताएं :-

चिकित्सीय समाज कार्य व्यवसाय समाज कार्य के विशिष्ट व्याख्या है।
चिकित्सीय समाज कार्य व्यवसाय की सहायता प्रदान करने का कार्य करता है।
इसके द्वारा रोगियों की उपलब्धि निवारक निदानात्मक तथा उपचारात्मक सुविधा उपलब्ध कराई जाती हैं।
यह सामाजिक सहायता प्रदान करता है। सहायता द्वारा रोग ग्रस्त व्यक्ति चिकित्सीय सेवाओं का अधिकतम लाभ उठाकर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है और समाज में अपनी क्रिया में पूर्ववत लगता है।

चिकित्सकीय समाज कार्य के क्षेत्र व उपयोगिता :-


मुख्य रूप से चिकित्सकीय समाज कार्य उपयोगिता के निम्नलिखित क्षेत्र हैं

सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम
प्रसूति एवं बाल कल्याण
रति रोग चिकित्सा केंद्र
बाल कक्ष
आरोग्य सदन
मानसिक चिकित्सालय और मनोचिकित्सा केंद्र
जन सामान्य के अस्पताल
ग्राम स्वास्थ्य इकाई
क्षय रोग आरोग्य निवास
अविवाहित माताओं की समस्याएं
सामुदायिक विकास व कल्याण संबंधी स्वास्थ्य कार्यक्रम
मधुमेह, कैंसर और कुष्ठ ग्रस्त रोगी तथा विकलांग व्यक्ति एड्स रोगी की समस्याएं
व्यक्तिगत परामर्श तथा स्वास्थ्य समस्या के संबंध में अप्रत्यक्ष सेवा
 
उपयोगिता :-

आधुनिक समय से यह बात पूर्णतया स्पष्ट हो चुकी है कि स्वास्थ्य पहलुओं से ही वही हैंबल्कि उसका संबंध व्यक्ति के सामाजिक एवं मानसिक पहलुओं से भी है।अतहर रोग के जनित मानसिक सामाजिक मनो सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं के निराकरण में चिकित्सीय समाज कार्य का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।


रोगी की सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन :-

रोग के पूर्ण एवं समुचित निदान हेतु रोगी की सामाजिक पृष्ठभूमि की जानकारी दी निदान करता को होनी चाहिए अतः सामाजिक कार्यकर्ता की या जिम्मेदारी दी जाती है। कि वह रोगी के मनोसामाजिक भूमि का समुचित विवरण तैयार करें और आवश्यकतानुसार उन जानकारियों को चिकित्सक को देखकर रोग के निदान में सम्यक योगदान दें जिससे रोगी को व्यक्तिगत मानसिक दबाव से मुक्त करने में सहायता मिले। अर्थात रोगी की समस्याओं के मनोसामाजिक कारणों की खोज करके ही समुचित निदान संभव हो सके।

रोगी को स्वयं समस्या समाधान में सक्षम बनाया जा सके और उसके अंदर अंतर्दृष्टि को विकसित कर उसे ऐसा सशक्त बनाने का प्रयास चिकित्सकीय समाज कार्य के माध्यम से किया जाता है कि वह अपनी समस्याओं के समाधान में स्वयं ही सक्षम हो जाए साथ-साथ रोगी की इच्छा शक्ति का विकास करके निराशाजनक स्थिति को रोकने उसका परिस्थितियों के हुए पर्यावरण में सामाजिक स्थापित को लाने एवं समुचित परिमार्जन के विकास पर बल दिया जाता है जिससे पुनः रोगी को मानसिक मनोसामाजिक रोग का सामना ना करना पड़े और वह समाज में रहकर अपने जीवन की संपूर्णता को प्राप्त कर सके।

मन: चिकित्सकीय समाज कार्य :-

मन : चिकित्सकीय समाज कार्य समाज कार्य की वह शाखा है जिसका संबंध मानसिक रोगों एवं मनो रोग विज्ञान से है तथा विज्ञान के साथ ही व्यवहार में आता है। मन: चिकित्सकीय समाज कार्य को सर्वप्रथम 1931 में संयुक्त राज्य अमेरिका में वहां की स्थापित मानदंडों की सलाहकार परिषद की कार्यसमिति ने परिभाषित किया। यद्यपि उनकी परिभाषा लगभग 100 वर्ष पुरानी है परंतु आज के संदर्भ में भी वह पूरी तरह खरी उतरती है। इस परिभाषा के अनुसार मन: चिकित्सीय समाज कार्य समाज कार्य की वह शाखा है जिसका विकास मनोरोग विज्ञान के साथ हुआ है इसका प्रयोग ऐसे प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता या व्यक्तियों के द्वारा किया जाता है जो कुछ सीमा तक मन: चिकित्सा विज्ञान के ज्ञान से युक्त होते हैं और वे इस ज्ञान को व्यक्ति समाज कार्य के व्यवहार में उपयोग करते हैं मन: चिकित्सकीय सामाजिक कार्यकर्ता सामाजिक समायोजन के उनसे वारसी के साथ कार्य करता है जिनमें मनोस्वायू विकृति तथा मनोविकृति की आरंभिक अवस्था में काम करने की विशेष आवश्यकता है।उनसे वासियों के साथ कार्य करता है जिनमें व्यक्तिगत कठिनाई संबंधित तथा मनोविकृति के से भारतीयों से आरंभिक अवस्था में ही निपटने का विशेष महत्व होता है। यह कार्य वैयक्तिक समाज कार्य, शोध कार्य, कार्य कार्य प्रशासनिक अथवा शैक्षणिक हो सकता है।

इस प्रकार मन: चिकित्सकीय समाज कार्य वृत्तिक समाज कार्य की व विशिष्ट शाखा है जो अपने विशिष्ट एवं वैज्ञानिक ज्ञान द्वारा मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी उन संस्थाओं में व्यवहार में आता है जिन संस्थाओं का प्रमुख लक्ष्य मानसिक रोगो का अध्ययन ,उनका उपचार तथा उनकी रोकथाम करना है।

मन: चिकित्सकीय समाज कार्य का उद्भव :-

मन: चिकित्सकीय समाज कार्य का उद्भव संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। बीसवीं सदी के आरंभ में कु. मैरी जैरट जो बोस्टन साइकोपैथिक हॉस्पिटल में कार्य कर रही थी, उन्होंने मानसिक रोगियों का अंतरंग अध्ययन किया तथा इन रोगियों के साथ किस प्रकार समाज कार्य किया जा सकता है इसकी रूपरेखा तैयार की। 1905 में सर्वप्रथम मैसाचुसट्स जनरल हॉस्पिटल में समाज सेवा विभाग की स्थापना की गई और यहां के कार्यकर्ताओं को चिकित्सालय के न्यूरोलॉजिकल क्लीनिक को चिकित्सालय के न्यूरोलॉजिकल क्लीनिक रोग के सही निदान तथा प्रभावी उपचार के लिए नियुक्त / प्रयुक्त किया जाने लगा।

भारत में मन: चिकित्सकीय समाज कार्य :-


भारतवर्ष में सर्वप्रथम 1937 में मनोज चिकित्सकीय कार्यकर्ता की नियुक्ति तत्कालीन सर दोराब जी टाटा ग्रैजुएट स्कूल आफ सोशल वर्क (वर्तमान में टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज) के नाम से जाना जाता है, के चाइल्ड गाइडेंस क्लीनिक' मैं पहले सामाजिक कार्यकर्ता की नियुक्ति हुई। या कार्यकर्ता मुख्यतः उन बालकों व उनके परिवारों की सहायता करता था जो व्यवहार एवं मनो प्रतियों संबंधी समस्याओं के लिए इस निदान केंद्र में आते थे।
इस प्रकार भारतवर्ष में मन: चिकित्सकीय समाज कार्य एक वृत्ति के रूप में केवल सात दशक पुराना है।
सत्तर से भी अधिक वर्षों के अथक प्रयास के बाद भी देश के सभी मानसिक चिकित्सालय तथा मानसिक स्वास्थ्य संबंधित संस्थाओं में सामाजिक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति नहीं की गई। केवल मद्रास ,रांची तथा बैंगलोर को छोड़कर किसी अन्य मानसिक चिकित्सालय में सामान्यता एक से अधिक सामाजिक कार्यकर्ता नहीं है।

भारतवर्ष में मन: चिकित्सकीय समाज कार्य प्रशिक्षण की सुविधाएं :-

भारतवर्ष में एक मनो चिकित्सकीय सामाजिक कार्यकर्ता के लिए 2 वर्ष का पूर्ण कालीन स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम मास्टर ऑफ सोशल वर्क या मास्टर ऑफ आर्ट इन सोशल वर्क उत्तीर्ण करना अनिवार्य है।इस पाठ्यक्रम के अंतर्गत उसे मनो चिकित्सकीय समाज कार्य के एक विशिष्ट पाठ्यक्रम को पढ़ना पड़ता है।2 वर्ष की अवधि में कक्षाओं के अंदर अध्ययन के साथ-साथ उन्हें व्यावहारिक प्रशिक्षण एवं अभ्यास हेतु दो-तीन महीने के लिए किसी मानसिक चिकित्सालय या मानसिक संस्थान में भेजा जाता है।

राष्ट्रीय स्तर पर दो वैसे संस्थान एक रांची तथा दूसरा बैंगलोर में है जहां पहले डी.पी.एस. डब्लू ( डिप्लोमा इन साइकियाट्रिक सोशल वर्क) तथा अब एम.फिल. की उपाधि प्राप्त की जाती है।

मन: चिकित्सकीय सामाजिक कार्यकर्ता का राष्ट्रीय स्तर पर संगठन है जिसकी स्थापना रांची में डॉक्टर आरके उपाध्याय द्वारा 1970 में की गई इस संगठन का नाम भारतीय मन: चिकित्सीय की स्थापना का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य तथा समाज कार्य के क्षेत्र में शोध अध्ययनों को प्रोत्साहन देना। उनका प्रकाशन सदस्यों के लिए विचार गोष्ठी , सम्मेलन तथा कार्यक्रम एवं कार्य। शाला का आयोजन करके मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार लाना है।

मन: चिकित्सकीय समाज कार्य की विशेषाएं :-

मन: चिकित्सकीय समाज कार्य ,समाज कार्य की एक विशिष्ट शाखा है।
इस शाखा में सम्बंधित सामाजिक कार्यकर्ता ,मन: चिकित्सा विज्ञान के प्रारंभिक ज्ञान से युक्त होता है।
ये कार्यकर्ता सामान्यतः उन संस्थाओं में कार्य के माध्यम से मानसिक रुग्णता में व्यक्तियों की सहायता उपलब्ध कराकर मनो सामाजिक समस्याओं को दूर करने का प्रयास करते हैं।
मन: चिकित्सकीय समाज कार्य में प्रमुख रूप से वैयक्तिक समाज कार्य की विधि का प्रयोग किया जाता है और आवश्यकतानुसार कार्यकर्ता अन्य विधियों की सहायता भी लेता है। 
 
मन: चिकित्सकीय सामाजिक कार्यकर्ता के कार्य :-

मानसिक रोग के निदान एवं उपचार एवं रोगों की रोकथाम हेतु रोग पीड़ित व्यक्ति के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करना आवश्यक होता है इस कार्य के लिए सही सूचना दाता का प्रयोग किया जाता है जो रोगी के बारे में पूर्ण जानकारी मन: चिकित्सीय कार्यकर्ता को दे सके।इस कार्य के लिए रोगी के माता-पिता, जीवन साथी, भाई-बहन इत्यादि के माध्यम से सूचना प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। रोगी के बारे में प्रारंभिक सूचना जैसे नाम, जाति, धर्म, शिक्षण एवं प्रशिक्षण व्यवसाय, मासिक आय, नगरी है या ग्रामीण पृष्ठभूमि एवं पूरा पता रोगी के वर्तमान शिकायतों के लक्षण एवं वर्तमान रोग की शिकायत कब से प्रारंभ हुई वर्तमान रोग से पूर्व रोगी के शारीरिक तथा मानसिक रोग की जानकारी रोगी के पारिवारिक पृष्ठभूमि की संपूर्ण जानकारी और रोगी के व्यक्तिगत व्यवसायिक एवं संपूर्ण व्यक्तित्व के विशेषताओं के बारे में जानकारी आदि को प्राप्त करना है।

उपरोक्त जानकारी प्राप्त करने के पश्चात रोगी का मानसिक परीक्षण तथा निदान विभिन्न संस्थाओं द्वारा भिन्न-भिन्न रूप से किया जाता है मानसिक रोगों की पूर्ण जानकारी के पश्चात उपचार की प्रक्रिया कार्यकर्ता द्वारा प्रारंभ की जाती है।

उपचार - मानसिक रोगों का सही उपचार इन्हीं कारणों में समाहित होता है इसके उपचार के लिए कारणों को बारीकी से समझना अति आवश्यक होता है कारणों को समझकर परिवार के सहयोग से प्राप्त कारणों का निराकरण कर रोगी के उपचार में सहयोग दिया जाता है।


अनुवर्ती प्रयास - सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा उपचार के पश्चात चिकित्सालय छोड़कर जाने वाले रोगियों के घर के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है जिससे पुनः वह मानसिक रोग का शिकार ना हो।


पुनर्वास - मन: चिकित्सकीय कार्यकर्ता असाधारण रोगियों की स्वयं देखभाल करके उन्हें सक्षम बनाने का प्रयास करता है जिससे रोगी पुनः अपने जीवन में समायोजन स्थापित कर सकें पुनर्वास के दौरान रोगी को व्यवसाय प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वह अपने कार्यों में व्यस्त रहें तथा अपनी दिनचर्या को समायोजित कर सके।

Comments

Popular posts from this blog

समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास

समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास बाटोमोर के अनुसार समाजशास्त्र एक आधुनिक विज्ञान है जो एक शताब्दी से अधिक पुराना नहीं है । वास्तव में अन्य सामाजिक विज्ञानों की तुलना में समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है । एक विशिष्ट एवं पृथक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की उत्पत्ति का श्रेय फ्रांस के दार्शनिक आगस्त काम्टे को है जिन्होंने सन 1838 में समाज के इस नवीन विज्ञान को समाजशास्त्र नाम दिया । तब से समाजशास्त्र का निरंतर विकास होता जा रहा है । लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि क्या आगस्त काम्टे के पहले समाज का व्यवस्थित अध्ययन किसी के द्वारा भी नहीं किया गया । इस प्रश्न के उत्तर के रूप में यह कहा जा सकता है कि आगस्त काम्टे के पूर्व भी अनेक विद्वानों ने समाज का व्यवस्थित अध्ययन करने का प्रयत्न किया लेकिन एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र अस्तित्व में नहीं आ सका । समाज के अध्ययन की परंपरा उतनी ही प्राचीन है जितना मानव का सामाजिक जीवन । मनुष्य में प्रारंभ से ही अपने चारों ओर के पर्यावरण को समझने की जिज्ञासा रही है । उसे समय-समय पर विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ा है । इन समस...

उपकल्पना का अर्थ और सामुदायिक जीवन की उपकल्पनाएं -

सामुदायिक जीवन की उपकल्पनाएं -   सामुदायिक जीवन की कुछ प्रमुख उपकल्पनाएं -सामुदायिक जीवन की प्रमुख उपकल्पना ओं का चित्रण  न केवल व्यवसायिक समाज कार्यकर्ता के लिए ही उपयोगी है बल्कि अन्य व्यवसायों में प्रशिक्षित सामुदायिक कार्य में संलग्न  कार्यकर्ताओं के लिए भी उपयोगी है।  यह ज्ञान संबंधित कर्मचारियों एवं समाज वैज्ञानिकों को सामुदायिक योजना तथा अन्य विकास कार्यक्रम बनाने तथा सिद्धांतों के निर्धारण के लिए उपयोगी है।  यह समाज कार्यकर्ता को सामुदायिक संगठन कार्य में निष्कंटक  एवं सुगम रास्ता प्रदान करता है।  इस पर चलकर सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल सिद्ध होता है।  जिस प्रकार एक वैयक्तिक सेवा कार्यकर्त्ता को समस्या  युक्त सेवार्थी की समस्याओं का गहराई से अध्ययन करना, निदान करना, तथा उपचार में सेवार्थी की मनोवैज्ञानिक गतिविधियों की जानकारी हासिल करना आवश्यक है उसी प्रकार सामुदायिक संगठन कार्य की सफलता के लिए आवश्यक है कि  सामुदायिक संगठन कार्यकर्त्ता समुदाय की संस्कृति ,पर...

प्रकार्य की अवधारणा एवं विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए

प्रकार्य की अवधारणा एवं विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए सामान्यतः प्रकार्य (Function) का अर्थ हम समाज या समूह द्वारा किए जाने वाले कार्य या उसके योगदान से लगाते हैं । किंतु समाज में प्रकार्य का अर्थ सम्पूर्ण सामाजिक संरचना को व्यवस्थित बनाए रखने एवं अनुकूलन करने में उसकी इकाइयों द्वारा जो सकारात्मक योगदान दिया जाता है, से लगाया जाता है । प्रकार्य की अवधारणा को हम शरीर के उदाहरण से स्पष्टतः समझ सकते हैं । शरीर की संरचना का निर्माण विभिन्न इकाइयों या अंगों जैसे हाथ, पाँव, नाक,कान,पेट,हृदय,फेफड़े आदि से मिलकर होता है । शरीर के वे विभिन्न अंग शरीर व्यवस्था को बनाए रखने और अनुकूलन में अपना जो योगदान देते हैं,जो कार्य करते हैं, उसे ही इन इकाइयों का प्रकार्य कहा जायेगा ।  परिभाषा (Definition) -  प्रकार्य को इसी अर्थ में परिभाषित करते हुए रैडक्लिफ ब्राउन लिखते हैं, " किसी सामाजिक इकाई का प्रकार्य उस इकाई का वह योगदान है जो वह सामाजिक व्यवस्था को क्रियाशीलता के रूप में सामाजिक जीवन को देती है । वे पुनः लिखते हैं, " प्रकार्य एक आंशिक क्रिया द्वारा उसे संपूर्ण क्रिया को दिया जाने वाला योगदान ह...