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सामाजिक परिवर्तन के अन्य सिद्धांत



सामाजिक परिवर्तन के अन्य सिद्धांत

उपरोक्त सिद्धांतों के अतिरिक्त के सामाजिक परिवर्तन के कुछ अन्य सिद्धांत भी हैं जिनका हम यहां संक्षेप में उल्लेख करेंगे। माल्थस में सामाजिक परिवर्तन के लिए जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उनका मत है कि मानव समाज में खाद्य पदार्थों के उत्पादन की तुलना में जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से होती है। जनसंख्या वृद्धि ज्यामितिक प्रकार से अर्थात 1,2,4,8,16,32,64, के क्रम में होती है। इसकी तुलना में खाद्य सामग्री की वृद्धि अंकगणितीय प्रकार से अर्थात 1,2,3,4,5,6,7 के क्रम में होती है। फलस्वरूप एक समय ऐसा आता है जब जनसंख्या के लिए खाद्य पदार्थों का अभाव होता है। यदि बढ़ती जनसंख्या पर रोक नहीं लगाई जाती है तो किसी देश की जनसंख्या 25 वर्षों में दुगनी हो जाती है। जब जनसंख्या बढ़ती है या घटती है तो समाज में परिवर्तन घटित होते हैं।
           सैडलर ने भी जनसंख्या संबंधी सिद्धांत का समर्थन किया और जनसंख्या वृद्धि का संबंध मानव की सुख समृद्धि एवं पारस्परिक संबंधों से जुड़ा है। वे यह मानते हैं कि मानव के विकास के साथ-साथ उसकी संतानोत्पत्ति की छमता में कमी आई है और सुख समृद्धि में वृद्धि हुई है। ये सभी बातें सामाजिक परिवर्तन के लिए भी उत्तरदाई हैं।
         थामस ने धर्म को ही सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्तरदाई माना। उनका मत है कि जब यूरोप में रोमन कैथोलिक धर्म था तो एक दूसरे प्रकार का समाज था किंतु जब प्रोटेस्टेंट धर्म आया तो आधुनिक पूंजीवादी समाज की नींव पड़ी। उन्होंने विश्व के 6 महान धर्मों ( हिंदू ईसाई इस्लाम चीनी आदि ) का अध्ययन करके बताया कि केवल प्रोटेस्टेंट धर्म में ही वे बातें मौजूद थी जो आधुनिक पूंजीवाद को जन्म दे सकती थी। प्रत्येक घर में आचरण के नियम पाए जाते हैं जो लोगों के विचारों एवं व्यवहारों को तय करते हैं। आता है जब धार में बदलता है तो समाज में भी परिवर्तन आता है। धर्म को वे परिवर्तन लाने वाला ' चल '( Variable) मानते हैं। प्रोटेस्टेंट धर्म की आर्थिक आचार संहिता में कुछ तत्व इस प्रकार के बताए गए हैं। ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है, एक पैसा बचाना एक पैसा कमाना है, समय ही धन है, पैसा पैसे को पैदा करता है, जल्दी सोना और जल्दी जागना मनुष्य को स्वस्थ, अमीर और बुद्धिमान बनाता है, कार्य ही पूजा है इत्यादि। इन सभी आचार्य नियमों ने प्रोटेस्टेंट मतावलंबियों के जीवन एवं व्यवहार को प्रभावित किया और आधुनिक पूंजीवाद को जन्म दिया जिससे कि समाज व्यवस्था ही बदल गई। वेबर के सिद्धांत की भी कुछ कमियां है। वे यह स्पष्ट नहीं कर सके कि स्वयं धर्म परिवर्तन क्यों आता है।
      आगबर्न ने अपनी पुस्तक Social change में 1922 मैं सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक विलंबना नामक सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उन्होंने संस्कृति को दो भागों में बांटा भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति। भौतिक संस्कृति के अंतर्गत हम हजारों भौतिक वस्तुओं जैसे वायुयान, रेल, पंखा, घड़ी, बर्तन, फर्नीचर, वस्त्र, पुस्तकें आदि को ले सकते हैं। अभौतिक संस्कृति में धर्म कला दर्शन ज्ञान विज्ञान विश्वास साहित्य आदि को ले सकते हैं। आगबर्न की मान्यता है कि पिछले कुछ वर्षों में दोनों ही संस्कृतियों में बहुत विकास हुआ है। उनका मत है कि अभौतिक संस्कृत की तुलना में भौतिक संस्कृति तीव्र गति से बदलती है। इस कारण भौतिक संस्कृति आगे बढ़ जाती है और अभौतिक संस्कृति उस से पिछड़ जाती है। भौतिक संस्कृति का आगे बढ़ जाना तथा अभौतिक संस्कृति का पीछे रह जाना ही सांस्कृतिक पिछड़न या सांस्कृतिक विलम्बना कहलाता है। यह तथा संस्कृति से असंतुलन की दशा है। इस असंतुलन को समाप्त करने के लिए सामान्य से तथा अनुकूलन का प्रयत्न किया जाता है इस दौरान समाज में भी परिवर्तन होते हैं इसी प्रकार से जब इन दो संस्कृतियों में असंतुलन पैदा होता है तो समाज पर भी इसका प्रभाव पड़ता है उसमें भी परिवर्तन आते हैं आगबर्न के इस सिद्धांत की चक्रीय व्याख्या सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारको के अंतर्गत की गई हैं।




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