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सामाजिक नियंत्रण के साधन या अभिकरण

सामाजिक नियंत्रण के साधन या अभिकरण

सामाजिक नियंत्रण की व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए अनेक साधनों एवं अभिकरणों का सहारा लिया जाता है। सामान्यतः साधन एवं अधिकरण में कोई भेद नहीं किया जाता है किंतु इन में पर्याप्त अंतर है। अभिकरण का तात्पर्य उन समूहों संगठनों एवं सत्ता से है जो नियंत्रण को समाज पर लागू करते हैं।नियमों को लागू करने का माध्यम अभिकरण कहलाता है उदाहरण के लिए परिवार, राज्य, शिक्षण, संस्थाएं एवं अनेक संगठन जो प्रथाओं परंपराओं नियमों और कानूनों को लागू करने वाले मूर्त माध्यम है अभिकरण कहे जाएंगे।
  साधन से तात्पर्य किसी विधि या तरीके से है किसके द्वारा कोई भी अभिकरण या एजेंसी अपनी नीतियों और आदेशों को लागू करती है। प्रथा, परंपरा, लोकाचार, हास्य, व्यंग, प्रचार, जनमत, कानून, पुरस्कार एवं दंड आदि सामाजिक नियंत्रण के साधन है।सभी अभिकरण एवं साधन मिलकर सामाजिक नियंत्रण की व्यवस्था को कायम रखते हैं।हम यहां सामाजिक नियंत्रण के विभिन्न साधनों एवं अभी कारणों का उल्लेख करेंगे।

1. परिवार
नियंत्रण के अनौपचारिक, असंगठित और प्राथमिक साधनों में परिवार का स्थान सर्वोपरि है। परिवार व्यक्ति के सामाजिकरण में प्रमुख भूमिका निभाता है। सामाजिकरण के द्वारा परिवार व्यक्ति को सामाजिक विश्वासों, मूल्यों, आदर्शों, प्रथाओं एवं नियमों से परिचित कराता है। व्यक्ति स्वतः ही सामाजिक नियमों को आत्मसात कर उनके अनुरूप आचरण करने लगता है जिससे कि समाज में नियंत्रण बना रहता है। परिवार ही बच्चों को आदर्श नागरिकता का पाठ पढ़ाता है और उसमें सद्गुणों का विकास करता है। प्राथमिक समूह होने के कारण परिवार के सदस्यों से व्यक्ति का घनिष्ठ संबंध होता है और वह उनके प्रत्यक्ष संपर्क में आता है। परिवार के सदस्य माता-पिता, भाई-बहन, पति पत्नी एवं बच्चे प्रेम, प्रशंसा, निंदा, अपमान, डांट फटकार और उपेक्षा के द्वारा व्यक्ति के व्यवहारों को नियंत्रित करते हैं और उसे सामाजिक नियमों को मानने के लिए बाध्य करते हैं। अपने प्रियजनों एवं रिश्तेदारों की उपेक्षा व्यक्ति सहन नहीं कर सकता क्योंकि वे ही तो दुर्दिन मैं उसके सहायक होते हैं, उसके अपने होते हैं तथा सबसे अधिक विश्वसनीय एवं उसे प्रेम करने वाले होते हैं। अतः उनकी बात मानना आवश्यक हो जाता है।इस प्रकार परिवार व्यक्ति के व्यवहार पर अंकुश रहकर समाज में नियंत्रण बनाए रखता है।


2. जनरीतियाँ

समनर कहते हैं कि जनरीतियाँ प्राकृतिक शक्तियों के समान होती हैं जिनका पालन व्यक्ति अचेतन रूप से करता है। मैकाइवर के अनुसार समाज में व्यवहार करने की स्वीकृत एवं मान्यता प्राप्त विधियां जनरीतियाँ कहलाती है । जनरीतियाँ भी सामाजिक नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इनका जन्म स्वतः होता है और बार-बार दोहराने से यह विकसित होती है। इनकी उत्पत्ति जानबूझकर किए गए प्रयत्नों से ही होती है। चूंकि समाज के सभी लोग उनका पालन कर रहे हैं अतः दूसरे व्यक्ति भी उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। बिना सोचे विचारे और अचेतन रूप से ही व्यक्ति जनरीतियों का पालन करता है। इनका उल्लंघन करने पर समाज द्वारा निंदा या आलोचना की जाती है व्यक्ति की हंसी उड़ाई जाती है और उस पर व्यंग्य किया जाता है। इस प्रकार जनरीतियाँ अधिक शक्तिशाली होती है, अतः इनका उल्लंघन करना सरल नहीं है।

3. लोकाचार या रूढ़ियाँ

जब जनरीतियों में समूह कल्याण की भावना जुड़ जाती है तो वह लोकाचार का रूप ग्रहण कर लेती है । ये जनरीतियों की अपेक्षा अधिक स्थिर होती हैं और उनका उल्लंघन करने पर कठोर दंड की व्यवस्था की जाती है। लोकाचार में उचित एवं अनुचित का भाव निहित होता है। लोकाचार सकारात्मक एवं नकारात्मक दो प्रकार के होते हैं। सकारात्मक लोकाचार हमें कुछ कार्य करने का निर्देश देते हैं, जैसे सदा सच बोलो, सभी पर दया करो, माता पिता की आज्ञा मानो, ईमानदार बनो आदि। नकारात्मक लोकाचार हमें कुछ कार्यों को करने से रोकते हैं, जैसे चोरी मत करो झूठ मत बोलो हिंसा मत करो आदि । लोका चारों का पालन करना नैतिक दृष्टि से उचित माना जाता है । लोकाचार अनौपचारिक एवं असंगठित नियंत्रण का साधन है । इनका उल्लंघन करने पर नियंत्रण की औपचारिक शक्तियों जैसे हास्य व्यंग आलोचना आदि का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति स्वयं भी इनका उल्लंघन करना अनुचित मानता है क्योंकि ऐसा करने से सामूहिक कल्याण खतरे में पड़ जाता है। लोका चारों की शक्ति और प्रभाव कानूनों से भी अधिक होता है। डेविस कहते हैं सामान्य व्यक्तियों के मन में लोकाचारों से बड़ा कोई न्यायालय नहीं है तथा सामान्य प्रकृति के समाजों में लोकाचारों के अलावा दूसरे नियमों की आवश्यकता ही महसूस नहीं की जाती । इसका कारण यह है कि लोका चारों को उचित प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं होती वरन वे स्वयं की अधिकार शक्ति से ही जीवित रहते हैं इस प्रकार लोकाचार नियंत्रण के महत्वपूर्ण साधन हैं।


4. प्रचार

वर्तमान समय में प्रचार भी सामाजिक नियंत्रण का प्रमुख साधन बनता जा रहा है । व्यक्ति एवं समूह के व्यवहार पर प्रचार द्वारा नियंत्रण रखा जाता है । प्रचार के लिए अनेक साधनों का उपयोग किया जाता है, जैसे अखबार, पत्र पत्रिकाएं, साहित्य, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, प्रदर्शनी, मेले, सभा एवं समारोह आदि। प्रचार के द्वारा अच्छी और बुरी दोनों ही बातों का प्रसार किया जा सकता है। प्रचार के कारण ही हम आज अनेक सामाजिक कुप्रथाओं जैसे दहेज, बाल विवाह, छुआछूत, विधवा विवाह निषेध एवं अंधविश्वासों से छुटकारा पाने में कुछ सीमा तक सफल हुए हैं। सन्तो, नेताओं एवं महापुरुषों के विचारों का प्रचार कर समाज में एकरूपता एवं नियंत्रण उत्पन्न किया जाता है। आर्थिक नीतियों का प्रचार करने एवं शिक्षा के प्रति लोगों में जागृति पैदा करने के लिए प्रचार का सहारा लिया जाता है। प्रचार द्वारा लोगों को एक विशेष प्रकार से आचरण करने का सुझाव दिया जाता है।


5. प्रथाएँ

प्रथाएँ भी सामाजिक नियंत्रण का महत्वपूर्ण साधन है। जब जनवरी तियां व्यवहार में बहुत अधिक आ जाती है, पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है और सारे समूह अथवा समाज की आदत बन जाती है तो वह ही प्रथाओं का रूप ले लेती हैं। जिसबर्ट कहते हैं, प्रथा व्यवहार का स्वरूप है जो आदत का रूप ले लेता है तथा समाज के अधिकांश सदस्यों द्वारा उसका पालन किया जाता है। बोगार्डस कहते हैं प्रथाएं समूह के द्वारा स्वीकृत नियंत्रण की ऐसी विधियां है जो इतनी सुंदर हो जाती हैं कि उन्हें बिना विचारे ही मान्यता दे दी जाती है और इस प्रकार यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती है। गिन्सबर्ग ने प्रथा में तीन तत्वों का उल्लेख किया है पहला मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रथा कुछ बातों में आदत की तरह होती है अर्थात प्रथा एक ऐसी आदत है जिसका पालन समाज के अधिकांश लोग करते हैं। दूसरा, प्रथाएं आदर्शात्मक एवं बाध्यतामूलक होतीं हैं अर्थात इनमें अच्छाई बुराई के भाव छिपे होते हैं तथा इनका पालन करना नैतिक रूप से आवश्यक माना जाता है। अतः प्रथा को नैतिक स्वीकृति प्राप्त कार्यप्रणाली, कह सकते हैं। तीसरा , प्रथा में सामाजिकता पाई जाती है अर्थात प्रथाएं व्यक्तिगत व्यवहार ना होकर सामूहिक व्यवहार होता है जिसे समाज की स्वीकृति प्राप्त होती है।

सरल एवं जटिल प्राचीन एवं आधुनिक सभी समाजों में कथाएं सामाजिक नियंत्रण का एक अनौपचारिक और अनियोजित, असंगठित एवं सशक्त साधन है।वे व्यक्तिगत व सामूहिक व्यवहारों पर नियंत्रण करती है ।ये इतनी शक्तिशाली होती है कि सामान्य व्यक्ति इनके उल्लंघन की हिम्मत नहीं कर सकता । शेक्सपियर इन्हें क्रूर बताता है तथा मानटेन इन्हें गुस्सेबाज और धूर्त स्कूल मास्टरनी कहते हैं। बेकन कहते हैं प्रथाएँ मनुष्य के जीवन की प्रमुख न्यायाधीश हैं। लॉक ने इनकी शक्ति को प्रकृति से भी महान बताया है। शपेरा ने कहा है कि आदिम समाजों में प्रथाओं के प्रति समर्पण स्वतः इस स्फूर्त होता है। प्रथाओं के पालन से व्यक्ति को सामाजिक सम्मान व भौतिक लाभ मिलते हैं। किन्तु मैलिनोवस्की की मान्यता है कि मान्यता है कि आधुनिक समाजों की तरह ही आदिम समाज में भी व्यक्ति व्यक्तिगत लाभ के कारण ही प्रथाओं का पालन करता है।

6. जनमत

जनमत भी सामाजिक नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण अनौपचारिक साधन है । बोटोमोर कहते हैं जनमत व्यक्तियों के व्यवहारों को प्रतिबंधित व निर्देशित करता है । आदिम एवं आधुनिक सभी समाजों में जनमत लोगों के व्यवहारों पर अंकुश रखता है। सभ्य समाजों में तो जन्नत सरकार की नीतियों , संघों, राज्य, सामाजिक व्यवहार एवं समूह पर अंकुश रखने वाली एक महान सामाजिक सकती है। यदि प्रथाएं एक निरंकुश राज्य की तरह समाज पर नियंत्रण रखती है तो जन्नत अनजाने ही व्यक्ति को समाज के अनुकूल आचरण करने की प्रेरणा देता है। दुर्खीम , मैलिनोवस्की, एवं अनेक अन्य मानव शास्त्रियों ने आदिम समाज में सामाजिक नियंत्रण बनाए रखने में जनमत की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया है। प्रजातंत्र में तो जनमत को राज्य, सरकार, संघ एवं व्यक्तियों पर नियंत्रण रखने में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है ।

7. हास्य तथा व्यंग

हास्य एवं व्यंग के द्वारा प्राचीन समय से ही सामाजिक नियंत्रण रखा जाता रहा है। व्यक्ति के व्यवहारों पर हास्य एवं व्यंग द्वारा अप्रत्यक्ष एवं मधुर रूप से नियंत्रण रखा जाता है। व्यक्ति के समाज विरोधी व्यवहार पर कविता साहित्य एवं कला के द्वारा मार्मिक रूप से व्यंग किया जाता है व्यक्ति का मजाक उड़ाया जाता है जिससे दोषी व्यक्ति अपने व्यवहारों के प्रति जागरूक हो जाता है और समाज विरोधी व्यवहारों को त्याग कर समाज के अनुरूप व्यवहार करने लगता है।

8.  दण्ड एवं पुरस्कार

दण्ड एवं पुरस्कार सामाजिक नियंत्रण के महत्वपूर्ण साधन है। यदि व्यक्ति समाज विरोधी कार्य करता है और सामाजिक नियमों की अवहेलना करता है तो समाज उसे दंड देता है जिससे कि वह भविष्य में उन गलतियों को ना दोहराए दण्ड के अनेक रूप हैं जो आंखें दिखाने, डराने, धमकाने,डाँटने, मार पीट करने तथा जुर्माने व जेल से लेकर मृत्युदंड तक हो सकते हैं।

दूसरी ओर यदि मानव समाज द्वारा मान्य व्यवहारों को करता है तो उसे पुरस्कार प्रदान किया जाता है यह पुरस्कार चुम्बन, प्यार , प्रशंसा ,धन्यवाद, पदक,उपाधि , से लेकर किसी भौतिक वस्तु व संपत्ति के रूप में भी हो सकता है । कई बार लोग पुरस्कार पाने के लिए ही सामाजिक नियमों का पालन करते हैं । पुरस्कार के कारण व्यक्ति की कार्य कुशलता में वृद्धि होती है।

9. नेता

नेता सामाजिक नियंत्रण के प्रभावशाली साधन होते हैं । नेतृत्व एवं नेता के अनेक प्रकार हो सकते हैं । राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, सैनिक, परंपरावादी, चमत्कारिक एवं प्रजातंत्रवादी सभी नेता समाज में किसी ना किसी रूप में नियंत्रण बनाए रखते हैं ।दुर्खीम उन्हें सामुदायिक जीवन के प्रतिनिधि मानता है। इसलिए उनका प्रभाव उनके अनुयायियों पर अधिक होता है। नेता लोग अपने आचरण, चरित्र, आदर्श, बुद्धि, परिश्रम एवं सूझबूझ से लोगों के व्यवहारों को एक निश्चित दिशा प्रदान करते हैं। हिटलर, मुसोलिनी, गांधी ,नेहरू,सुभाष,भगतसिंह,चंद्रशेखर आदि नेताओं ने क्रांति एवं शांति के समय लोगों को नेतृत्व प्रदान किया । लोगों ने उनके सुझाव एवं आदेशों का पालन करके अपने दायित्व को निभाया । सामाजिक नियंत्रण में नेतृत्व के महत्व को बताते हुए गिलिन एवं गिलिन लिखते हैं सामाजिक नियंत्रण में पहला चरण शायद प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा ही उठाया गया है। नेतृत्व और अधीनता पशु जीवन में भी देखने को मिलते हैं । महापुरुष सदा की ही भांति आज भी समाज में अपनी भूमिका अदा करता आ रहा है , यद्दपि आधुनिक प्रजातंत्र ने उसे सेना के निर्देशक के स्थान पर उद्योग, शिक्षा, कला तथा विज्ञान के निर्देशक का नया रूप प्रदान कर दिया है।

10. सामाजिक नियंत्रण में कानून की भूमिका अथवा महत्व

सामाजिक नियंत्रण में कानून की भूमिका अथवा महत्व को कई विद्वानों ने स्वीकार किया है। रॉस लिखते हैं कानून सामाजिक नियंत्रण का सबसे अधिक विशेषीकृत और अत्यधिक स्पष्ट इंजन है किसको स्वयं समाज क्रियाशील बनाता है। मेलिनोवस्की लिखते हैं कि सामाजिक नियंत्रण में कानून की शक्ति उसके विभिन्न कार्यों से संबंधित है। उसके अनुसार कानून का मौलिक कार्य व्यक्ति के प्राकृतिक उद्वेग और मूल प्रवृत्तियों के प्रभावों को कम करना अथवा एक समाजीकृत व्यवहार को प्रोत्साहन देना है कानून का कार्य व्यक्तियों के बीच इस प्रकार सहयोग पैदा करना है जिससे वे सामान्य लक्ष्यों को पाने के लिए अपने स्वयं के स्वार्थों का बलिदान कर सके।

11. सामाजिक नियंत्रण में राज्य की भूमिका

राज्य सामाजिक नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली अभिकरण है। उसके पास दमनकारी शक्ति होती है। पुलिस, न्यायालय, जेल एवं कानून के द्वारा वह अपने भू-क्षेत्र में सामाजिक नियंत्रण को बनाए रखता है। समाज विरोधी तत्व एवं अपराधियों पर अंकुश रखता है, उन्हें दंड देता है और सामाजिक नियम व कानूनों का पालन करने वाले को पुरस्कृत करता है । राज्य सुधार गृहों की स्थापना करता है जिनमें अपराधियों एवं बाल अपराधियों को सुधार कर सुयोग्य नागरिक बनाया जाता है । राज्य की नियंत्रणकारी भूमिका को स्पष्ट करते हुए। फेयर चाइल्ड लिखते हैं राज्य समाज की वह एजेंसी अथवा संस्था है जो शक्ति का उपयोग करने अथवा दमनकारी नियंत्रण को लागू करने का अधिकार रखती है । वह इस शक्ति का उपयोग सदस्यों पर नियंत्रण रखने अथवा किसी अन्य समाज के विरुद्ध कर सकता है । सामाजिक नियंत्रण में राज्य द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका को हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं।

12. सामाजिक नियंत्रण में धर्म की भूमिका

धर्म सामाजिक नियंत्रण का प्रमुख साधन है। ईश्वर पाप एवं नरक के भय से व्यक्ति समाज विरोधी कार्यों से बचता रहता है सामाजिक नियंत्रण में धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका है।

13. नैतिकता एवं सामाजिक नियंत्रण

धर्म की तरह नैतिकता भी सामाजिक नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण साधन है। नैतिकता व्यक्ति को उचित अनुचित का बोध कराती है। और साथ ही उसे अच्छे कार्य करने का निर्देश देती है। नैतिकता अनुचित एवं बुरे कार्यों पर रोक लगाती है । नैतिकता हमें सत्य इमानदारी, अहिंसा, न्याय, समानता और प्रेम के गुण सिखाती है । और असत्य, बेईमानी ,अनाचार, झूठ, अन्याय ,चोरी आदि दुर्गुणों से बचाती है। नैतिक नियमों को समाज में उचित एवं आदर्श माना जाता है । इनके उल्लंघन पर सामाजिक निंदा, खिल्ली उड़ाने एवं प्रतिष्ठा की हानि का डर रहता है । नैतिकता में समूह कल्याण की भावना छिपी होती है। धर्म के प्रभाव के कमजोर पड़ जाने के कारण आज कल, नैतिकता सामाजिक नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में शिक्षा की भूमिका


शिक्षा के विभिन्न प्रकार्यो में से एक महत्वपूर्ण पर प्रकार्य समाज में नियंत्रण बनाए रखना भी है। सामाजिक नियंत्रण के अन्य साधन व्यक्ति के प्रति कठोरता बर्फ सकते हैं दंड, दबाव एवं बदले की भावना से काम ले सकते हैं। किंतु शिक्षा व्यक्ति में तर्क एवं विवेक पैदा करती है, उसमें आत्म नियंत्रण की शक्ति पैदा करती है जिससे कि वह स्वयं ही उचित एवं अनुचित को ध्यान में रखकर सामाजिक नियमों, प्रति मानव एवं कानूनों का पालन करता है।

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  1. संसाधन नियोजन क्या है संसाधनों के नियोजन की आवश्यकता क्यों है
    https://gyanipy.blogspot.com

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