सामुदायिक विकास की अवधारणा एवं उद्देश्य
सामुदायिक विकास आधुनिक सदी की एक अत्यंत प्रचलित व महत्वपूर्ण अवधारणा है । एक कार्यक्रम के रूप में इसका प्रसार विगत कई वर्षों से आरंभ हुआ है आज सामुदायिक विकास को विशेष रूप से अविकसित देशों में अपनाया गया है सामुदायिक विकास कार्यक्रम को जनता का समन्वित विकास करने के लिए स्वास्थ्य शिक्षा और आर्थिक विकास से संबंधित गतिविधियां जैसे कृषि पशुपालन ग्रामोद्योग और संचार साधन तथा समाज कल्याण कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
सामुदायिक विकास में दो शब्द समुदाय और विकास निहित हैं जिनके बारे में कुछ जानना जरूरी है
शाब्दिक रूप से सामुदायिक विकास का अर्थ समुदाय के विकास या प्रगति से है।सामुदायिक विकास को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा स्वयं लोगों के प्रयासों को सरकारी अधिकारियों के प्रयासों के साथ मिलाकर समुदायों की आर्थिक और सांस्कृतिक दशाओं को सुधारा जा सके और इन समुदायों को राष्ट्रीय जीवन में समन्वित किया जा सके जिससे कि वह राष्ट्रीय प्रगति में पूर्णतया योगदान कर सकें।
सामुदायिक विकास उन लोगों द्वारा की जाने वाली सहयोगात्मक सुविधा प्रदान करने वाली प्रक्रिया ( समुदाय, संस्थान और शैक्षिक भागीदारी ) जिसका क्षमता निर्माण का सामान्य उद्देश्य है ताकि जीवन की गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव पड़े।
सामुदायिक विकास सक्रिय और स्थाई समुदायों को विकसित करने की प्रक्रिया है जो सामाजिक न्याय और परस्पर सम्मान पर आधारित होता है।यह उन बाधाओं को दूर करने के लिए शक्ति संरचनाओं को प्रभावित करते हैं जो लोगों को उनके जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दों में भागीदारी करने से रोकते हैं। समुदाय कार्यकर्ता इस प्रक्रिया में लोगों की सहभागिता को सुविधाजनक बनाते हैं । वह संबंधों को समुदायों में और व्यापक नीतियों और कार्यक्रमों के साथ इन संबंधों को सक्षम बनाते हैं।विकास निष्पक्षता, समानता, जवाबदेही और अवसर, चयन, सहभागिता, परस्पारिकता आदान-प्रदान और सतत शिक्षा को अभिव्यक्त करता है।
सामुदायिक विकास में प्रयोग होने वाले उपागम निम्नलिखित हैं
1 परिसंपत्ति आधारित उपागम का प्रयोग करना जो क्षमताओं और मौजूदा संसाधनों पर आश्रित है।
2 समावेशी प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करना जिनमें समुदाय विविधता सम्मिलित है।
3 सहयोगात्मक रूप से योजनाबद्ध और निर्देशित पहल के माध्यम से समुदाय का स्वामित्व।
सामुदायिक विकास के उद्देश्य -
सामुदायिक विकास के निम्नलिखित उद्देश्य हैं
1 स्वास्थ्य और कल्याण के लिए समान दशाएं और परिणाम सृजित करना।
2 पूरे समुदाय के स्वास्थ्य और समृद्धि में सुधार करना।
3 समुदाय के प्रयासों को प्रोत्साहित करना
4 संलग्न लोगों के लिए स्थाई आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करना
5 निजी महत्त्व गरिमा और मूल्य में वृद्धि करना
6 समुदाय की जागरूकता सृजित करना और समुदाय के मुद्दों का समाधान करना
सामुदायिक विकास के मूल्य
सामुदायिक विकास के सहज मूल्य होते हैं। इनका उल्लेख स्थाई निम्नलिखित रुप से किया जा सकता है।
सामाजिक न्याय - लोगों को मानव अधिकारों की मांग करने उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने तथा लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णय निर्धारण प्रक्रियाओं पर नियंत्रण करने में सक्षम बनाना।
सहभागिता - ऐसे मुद्दों में लोगों की भागीदारी को सुविधाजनक बनाना जो पूरी नागरिकता, स्वायत्तता और साझा शक्ति( सत्ता ) कौशलों ज्ञान तथा अनुभव पर आधारित उनकी जीवन को प्रभावित करते हैं।
समानता -उन व्यक्तियों के दृष्टिकोण और संस्थाओं तथा समाज के व्यवहारों को चुनौती देना जो लोगों के साथ भेदभाव करते हैं और उन्हें अलग-थलग रखते हैं।
सहयोग- विविध संस्कृतियों और योगदान के पारस्परिक सम्मान पर आधारित कार्यवाही की पहचान करना और कार्यान्वित करना।
सामुदायिक विकास में धारणाएं
सामुदायिक विकास में कुछ अप्रत्यक्ष धारणाएं होती हैं यह धारणाएं निम्नलिखित है-
1 व्यक्तियों समूहों और स्थानीय संस्थाओं के समुदाय क्षेत्रों के अंदर सामान निहित होते हैं जो उन्हें एक साथ बांधते हैं।
2 यह सामान्यता उन्हें एक साथ कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
3 विभिन्न समूहों के हित परस्पर विरोधी नहीं होते।
4 राज्य शीर्ष निकाय होता है जो संसाधनों के आवंटन में निष्पक्ष होता है और यह अपनी नीतियों के माध्यम से असमानताओं को नहीं बढ़ाता ।
5 लोगों की पहल उनके सामान्य (साझा) हितों के कारण समुदायों में संभव हो पाती हैं सामुदायिक विकास कार्यकर्ता निम्नलिखित के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।
6 संगठनों संस्थाओं और समुदायों के अंदर भेदभाव और दमनकारी कार्यों को चुनौती देना।
7 पर्यावरण को संरक्षित करने वाले व्यवहार और नीति को विकसित करना।
8 समुदायों और संगठनों के बीच संबंधों और संपर्कों को प्रोत्साहित करना।
9 समाज के अंदर सभी समूहों और व्यक्तियों के लिए पहुंचे और चयन सुनिश्चित करना।
10 समुदायों के दृष्टिकोण से नीतियों और कार्यक्रमों को प्रभावित करना।
11 गरीबी और सामाजिक बहिष्कार झेलने वाले लोगों के संबंधित मुद्दों को प्राथमिकता देना।
12 सामाजिक परिवर्तन का संवर्धन करना जो दीर्घकालिक और स्थाई हो।
13 समाज में सख्त संबंधों की असमानता और असंतुलन को समाप्त करना।
14 समुदाय प्रेरित सामूहिक कार्रवाई का समर्थन करना।
सामुदायिक विकास का अर्थ - सामुदायिक विकास आधुनिक युग का एक अत्यंत लोक प्रचलित शब्द है। एक कार्यक्रम के रूप में इसका प्रसार विगत वर्षों में प्रारंभ हुआ जिसे मुख्य रूप से अविकसित देशों में अपनाया गया। सामुदायिक विकास योजना की व्यवस्था के लिए अनेक प्रयत्न किए गए हैं। वास्तव में सामुदायिक विकास एक ऐसी योजना है जो आत्म सहायता व सहयोग के सिद्धांतों के आधार पर स्वावलंबी उपायों से सामाजिक और आर्थिक उन्नति पर बल देती है। विद्वानों ने सामुदायिक विकास की अनेक परिभाषाएं दी है जिनमें कुछ प्रमुख निम्नलिखित है-
योजना आयोग के अनुसार- जनता द्वारा स्वयं ही अपने प्रयासों से ग्रामीण जीवन में सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन लाने का प्रयास सामुदायिक विकास है।
एस के डे के अनुसार- सामुदायिक योजना नियमित रूप से समुदाय के कार्यों का प्रबंध करने के लिए अच्छी प्रकार से सजी हुई योजना है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार- सामुदायिक विकास योजना एक विधि है जो समुदाय के लिए उसके पूर्ण सहयोग से आर्थिक और सामाजिक विकास की परिस्थितियों को पैदा करती है और पूर्ण रूप से समुदाय की पहल पर निर्भर करती है।
राष्ट्रीय सहयोग प्रशासन के अनुसार- सामुदायिक विकास एक ऐसा अवसर है जिसके द्वारा सामुदायिक स्तर पर राजकीय कर्मचारी लोगों की पहल के आधार पर उनके स्थिति सुधारने का प्रयत्न करते हैं।
आई सी जैकसन के अनुसार- सामुदायिक विकास किसी समुदाय को अपने आप काम करने के लिए प्रोत्साहित करने तथा भौतिक और आध्यात्मिक रूप से सामुदायिक जीवन को समृद्ध बनाने के लिए कदम उठाने को प्रेरित करता है।
इन उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि सामुदायिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सामुदायिक जनशक्तियों का प्रयोग उनके स्वयं के प्रयासों से एकत्रित करने संबंधित सरकारी एवं गैर सरकारी कर्मचारियों द्वारा सामुदायिक आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति को उच्च करने तथा सामुदायिक जीवन को राष्ट्रीय जीवन में परिवर्तित करने जैसे कार्यों को सम्मिलित किया जाता है। मूल रूप से सामुदायिक विकास में दो बातें सम्मिलित है प्रथम अपनी वर्तमान स्थिति को उठाने के लिए सदस्यों की विकास कार्यों में सहभागिता और द्वितीय विकास के लिए तकनीकी एवं अन्य आवश्यक साधनों की उपलब्धता। इस कार्य में न केवल समुदाय की आर्थिक तकनीकी एवं वैज्ञानिक स्थिति में ही परिवर्तन लाया जाता है बल्कि सामुदायिक मूल्यों एवं व्यावहारिक पद्धतियों में भी परम्परा में जकड़े होने के कारण ग्रामीण लोग धीरेधीरे ही आधुनिक बातों में विश्वास करते है। अतः आवश्यक है कि सदस्यों के विचारों , मनोवृत्तियों एवं भावनाओं में धीरे धीरे परिवर्तन लाया जाये जिससे वे अपनी परंपरागत रूढ़ियों में अनुकूल परिवर्तन ला सके और उपलब्ध सरकारी एवं गैर सरकारी साधनो का उपयोग कर अपने व्यावहारिक जीवन को परिवर्तित कर सके। इसके लिए शिक्षण ,प्रशिक्षण चलचित्र प्रदर्शनी पोस्टर बैनर रेडियो टेलीफोन आदि माध्यमों का सहारा लेना चाहिए जिसमे सामुदायिक जीवन में आमूल परिवर्तन आ सके और सामुदायिक विकास सम्भव हो सके।
सामुदायिक विकास के मूल तत्व-
सामुदायिक विकास के अध्ययनों से ज्ञात होता है कि इसके चार मूल तत्व है जो निम्नलिखित है
1 नियोजित कार्यक्रम जिसे समुदाय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
2 विकास कार्यों में ग्रामीणों की सहभागिता और पहल।
3 विशेषज्ञ सामग्री और साधन के रूप में सहायता।
4 समुदाय की सहायता के लिए विभिन्न विशेषज्ञों और सामंजस्य जैसे कृषि पशुपालन, जन स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज सेवा आदि।
सामुदायिक विकास का उद्देश्य
अन्य विकास योजनाओं के समान सामुदायिक विकास कार्य के कुछ प्रमुख उद्देश्य हैं जिनकी पूर्ति के लिए समय-समय पर जरूरतमंद समुदायों में विकासात्मक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। मूल रूपेण सामुदायिक विकास योजनाओं का मुख्य उद्देश्य सरकारी सहायता एवं जन सहयोग से ग्रामीण जीवन का सामाजिक एवं आर्थिक विकास करना है। इसके अतिरिक्त सामुदायिक विकास के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. कृषि उत्पादन एवं ग्रामीण उद्योगों में बढ़ोतरी कर पारिवारिक आमदनी को बढ़ावा देना।
2. जन सहयोग के माध्यम से लोक कल्याणकारी कार्यों जैसे सड़क निर्माण विद्यालय भवन निर्माण आदि कार्यों को प्रोत्साहन देना।
3. स्वास्थ्य एवं सफाई को बनाए रखना तथा बढ़ावा देना।
4. शिक्षा में मनोरंजन एवं बाल प्रशिक्षण कार्यों को बढ़ावा देना।
5. ग्रामीण संस्कृति रूढ़ियों मूल्य एवं कल्याणकारी कार्यों को विकसित करना।
6. स्थानीय सरकार को प्रोत्साहन देना।
7. सहकारिता एवं सहकारी कार्यों को बढ़ावा देना
उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समय-समय पर अनेक राज्यों द्वारा अनेक प्रकार की जरूरतमंद विकास योजनाओं का संचालन किया गया जिनका समय समय पर मूल्यांकन भी कराया गया यद्यपि सहकारिता उत्तम किस्म के बीज खाद तथा उत्पादक मशीनों के प्रयोग में कुछ वृद्धि अवश्य हुई लेकिन स्थानीय सरकार जिसको सामुदायिक विकास कार्य की धुरी मानकर प्रोत्साहित किया गया था, के क्षेत्र में कोई संतोषजनक सफलता नहीं मिल सकी। सन 1956 - 57 में बलवंत राय मेहता के नेतृत्व में स्थापित समिति के सुझाव तथा भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी द्वारा चयनित अध्ययन दल के सुझाव पर आज पंचायत राज को सामुदायिक विकास का मूल आधार मानकर उसे संपूर्ण राज्यों के तीन महत्वपूर्ण स्तरों ( ग्राम ब्लाक एवं जिला ) पर स्थाई बनाया जा रहा है जिसे सभी जाति वर्ग तथा महिला समूह के सदस्य जो भी चयनित होकर सामुदायिक विकास आवश्यकता एवं कल्याण योजनाओं के निर्माण में हाथ बटा सकें।
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