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सामुदायिक संगठन की परिभाषा-



समुदाय
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज से अलग उसका विकास असंभव है. मनुष्य जीवन की अनेक मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति व्यक्तियों के सहयोग के बिना असंभव है .समाज के सभी सदस्य अपनी विशेष योग्यता एवं आवश्यकताओं के कारण एक दूसरे पर निर्भर हैं.  इसलिए समाज में अनेकता में एकता दिखाई देती है.  स्पष्ट है कि समाज का अकेला सदस्य अपनी एवं अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति अपने स्वयं के प्रयास से नहीं कर पाता .इसलिए उसका अन्य लोगों पर आश्रित रहना संभावित है .आज समाज के बदले हुए परिवेश में जहां विशेषीकरण पर विशेष बल दिया जा रहा है ,वहां लोग व्यवसाय विशेष में विशेषज्ञ हो रहे हैं न कि सभी व्यवसाय में ,फलस्वरूप अन्य व्यवसायों से  लाभान्वित होने के लिए उन्हें किसी न किसी रूप से अन्य व्यक्तियों पर आश्रित रहना पड़ता है.

                मानव जीवन में एक साथ एक निश्चित भू-भाग में रहने की प्रवृत्ति का विकास सामूहिक शक्तियों की उपयोगिता महसूस होने के बाद से ही प्रारंभ हुआ. जब व्यक्तियों को यह विश्वास हुआ कि व्यक्तिगत रूप से आवश्यकताओं की पूर्ति असंभव है तो लोग अलग अलग रहने के स्थान पर समूह में निवास करना अच्छा समझने लगे. उन्हें विश्वास हुआ कि एक निश्चित भूभाग में रहने से एक तो बाहरी शक्तियों से सामूहिक रूप से मुकाबला करने में सफलता मिलेगी और दूसरे सामुदायिक भावना होने के कारण पारस्परिक जिम्मेदारी को बढ़ावा मिलेगा।

समुदाय का अर्थ एवं परिभाषा

समुदाय शब्द लैटिन भाषा के COM और MUNIS शब्दों से बना है COM  का अर्थ है Together अर्थात एक साथ तथा MUNIS का अर्थ है Serving अर्थात सेवा करना। इस प्रकार समुदाय का अर्थ एक साथ मिलकर सेवा करना है।  एक साथ मिलकर सेवा करने की प्रवृत्ति का विकास एक निश्चित भूभाग में रहने से संभावित होने लगता है। बड़े समाज के प्रत्येक व्यक्ति के साथ रहना अर्थात सबके साथ मिलकर सेवा करना असम्भव है। इसलिए व्यक्ति एक निश्चित भू क्षेत्र में , उसके निकट रहने वाले व्यक्तियों के साथ ही सम्बन्ध रख पाता है। समाजशास्त्रीय दृष्टि से समुदाय का अर्थ इतना ही नहीं कुछ और है जिसका विवरण विभिन्न विद्वानों द्वारा व्यक्त परिभाषाओं द्वारा निम्नलिखित रूप में दिया जा सकता है।

मैकाइवर के अनुसार -  समुदाय सामाजिक जीवन के उस क्षेत्र को कहते हैं जिसे सामाजिक सम्बन्धता  अथवा सामंजस्य की कुछ मात्रा द्वारा पहचाना जा सके।
ऑसबर्न एवं न्यूमेयर के अनुसार समुदाय व्यक्तियों का एक समूह है।  जो एक सन्निकट भौगोलिक क्षेत्र में रहता हो जिसकी गतिविधियों एवं हितों के समान केंद्र हो तथा जो जीवन के  प्रमुख कार्यों में इकट्ठे मिलकर कार्य करते हो।
बोगार्डस के अनुसार-  समुदाय एक सामाजिक समूह है जिसमें हम भावना को कुछ मात्रा हो तथा जो एक निश्चित क्षेत्र में रहता हो।
आगबर्न और निमकॉफ के अनुसार- समुदाय किसी सीमित क्षेत्र के भीतर सामाजिक जीवन का पूर्व संगठन है।
एच टी मजूमदार के अनुसार- समुदाय किसी निश्चित भू -क्षेत्र की सीमा कुछ भी हो पर रहने वाले व्यक्तियों का समूह है जो सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं।
ग्रीन के अनुसार समुदाय व्यक्तियों का समूह है जो समीपस्थ छोटे क्षेत्र में निवास करते हैं तथा सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं।
जींस वर्ग के अनुसार समुदाय सामाजिक प्राणियों का एक समूह है जो सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं जिसमें अनंत प्रकार के एवं जटिल संबंध संबंधित हैं जो उसे सामान्य जीवन के कारण उत्पन्न होते हैं अथवा जो इसका निर्माण करते हैं।
सदरलैंड के अनुसार- समुदाय एक  सामाजिक क्षेत्र है जिस पर रहने वाले लोग सामान भाषा का प्रयोग करते हैं सामान्य रूढ़ियों का पालन करते हैं न्यूनाधिक  समान भावनाएं रखते हैं तथा सम्मान प्रवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं।
जी डी एच कोल के अनुसार-  समुदाय से मेरा अभिप्राय सामाजिक जीवन के एक जटिल संरूप से है ऐसे संरूप से जिसमें अनेक मानव प्राणी सम्मिलित है जो सामाजिक संबंधों की परिस्थितियों के अंतर्गत रहते हैं जो सामान्य यद्यपि परिवर्तनशील रीतियों , प्रथा एवं प्रचलनों  द्वारा परस्पर संबंध है तथा कुछ सीमा तक सामान्य सामाजिक उद्देश्यों एवं हितों के प्रति जागरूक हैं।

            इस प्रकार  उपर्युक्त विद्वानों द्वारा व्यक्त परिभाषाओं  से स्पष्ट है की समुदाय एक ऐसे क्षेत्र का नाम है जहाँ के मानव प्राणियों के कार्य , व्यवसाय संस्कृति एवं सभ्यता में समानता के साथ साथ उनमे आपसी जिम्मेदारियों को महसूस करने तथा वहन करने की सामूहिक चिन्ता होती है।

समुदाय की विशेषताएं-
समुदाय की उपर्युक्त  परिभाषाओं के आधार पर उसकी कुछ मूल विशेषताएं बताई जा सकती हैं जो निम्नलिखित हैं -

निश्चित भू-भाग - निश्चित भूभाग का तात्पर्य यहाँ उस सीमा एवं घेरे से है जो किसी विशेष सामाजिक आर्थिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं वाले नागरिकों को अपनी परिधि में सम्मिलित करता है। मानव जाति की एक परंपरागत विशेषता रही है कि जब मानव परिवार किसी एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर बसने के लिए प्रस्थान करता  है तो वह उस स्थान को प्राथमिकता देता है जहाँ उसके समान सामाजिक आर्थिक एवं धार्मिक विचारों वाले लोग निवास करते है।  इस प्रकार धीरे धीरे काफी परिवार उस समान विशेषता वाले परिवार के समीप आकर बस जाते है। इन सभी एक क्षेत्र में बसे परिवारों की समानता एवं समीपता के आधार पर इसे एक नाम दिया जाता है जो इस पूरे समुदाय क्षेत्र का परिचायक होता है।  समुदाय के इस निश्चित भूभाग में बसने के आधार पर ही उसका प्रशासन एवं सामाजिक आर्थिक विकास की योजना निर्धारित की जाती है।
व्यक्तियों का समूह-  समुदाय से यहाँ तात्पर्य मानव जाति के समुदाय से है जो अपनी सामाजिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक समरूपताओं के आधार पर एक निश्चित सीमा में निवास करते है।  इस प्रकार स्पष्ट है की समुदाय में हम मानवीय सदस्यों को सम्मिलित करते है न की पशु पक्षियों को।
सामुदायिक भावना - सामुदायिक भावना का तात्पर्य यहाँ सदस्यों के आपसी मेल मिलाप पारस्परिक सम्बन्ध से है।  वैसे तो सम्बन्ध कई प्रकार के होते है लेकिन यहाँ सदस्यों में एक दूसरे की जिम्मेदारी महसूस करने तथा सार्वजनिक व सामुदायिक जिम्मेदारी को महसूस करने तथा निभाने से है।  आज बदलते परिवेश में मानव अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं एवं समस्याओं से अधिक जुड़ा हुआ है न की सामुदायिक से प्रारंभिक काल में व्यक्तियों में एक दूसरे के विकास एवं कल्याण के प्रति अटूट श्रद्धा थी। लोग व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जिम्मेदारियों की अपेक्षा सामुदायिक जिम्मेदारियों को अधिक महत्त्व देते थे और सामुदायिक जिम्मेदारियों को महसूस करने में अपना सम्मान समझते थे। इस प्रकार समुदाय में हम भावना व्यापक थी।  आज भी ग्रामीण समुदाय के पुराने सदस्य सामुदायिक जिम्मेदारियों को प्राथमिकता देते है।
सर्वमान्य नियम- जैसा की पहले ही बताया जा चूका है प्राथमिक रूप से समुदाय का प्रशासन समादाय के सदस्यों द्वारा बनाये गए नियमों पर निर्भर होता है।  औपचारिक नियमों के अतिरिक्त समुदाय को एक सूत्र में बांधने ,समुदाय में नियंत्रण स्थापित करने सदस्यों को न्याय दिलाने कमजोर सदस्यों को शोषण से बचने तथा शोषितों पर नियंत्रण रखने या सामुदायिक व्यवहारों को नियमित करने के लिए प्रत्येक समुदाय अपनी सामुदायिक परिस्थितियों के अनुसार अनौपचारिक नियमों को जन्म देता है।  इन निर्धारित नियमो( मूल्यों  ) का पालन प्रत्येक सामुदायिक सदस्य के लिए आवश्यक होता है। इनका उल्लंघन करने वालो को दण्डित किया जाता है। 
स्थायित्व- बहुधा एक बार स्थापित समुदाय का संगठन स्थिर होता है।  एक स्थिर समुदाय का उजड़ना आसान नहीं होता है।  कोई विशेष समुदाय किसी विशेष समस्या के कारण ही उजड़ता है अन्यथा स्थापित समुदाय सदा के लिए स्थिर होता है।  
समानता - एक समुदाय के सदस्यों के जीवन में समानता पाई जाती है। उनकी भाषा ,रीतिरिवाज ,रूढ़ियों आदि में भी समानता होती है।  सभी सामुदायिक परम्पराएं एवं नियम सदस्यों द्वारा सामुदायिक कल्याण एवं विकास के लिए बनायीं जाती है। इसलिए समुदाय में समानता पाया जाना स्वाभाविक है।

स्वता उत्पत्ति
वर्तमान समय में कार्यरत विभिन्न शहरी आवासीय योजनाएं आवास की सुविधा प्रदान कर समुदाय के निर्माण में अवश्य ही सहायक साबित हो रही है लेकिन प्रारंभिक काल में समुदाय की स्थापना एवं विकास में स्वता उत्पत्ति की प्रक्रिया अधिक महत्वपूर्ण थी ।
        मानव अपने समरूप समुदाय की स्थापना स्वयं करता है जैसे जैसे लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर बसने की आवश्यकता महसूस करते हैं उनके सामने कुछ प्रश्न आ जाते हैं जैसे ऐसे समुदाय या स्थान पर अपना निवास स्थान बनाना जो अपनी परिस्थितियों के अनुरूप एवं सुविधाजनक हो इसलिए सदस्यगण अपनी सुविधा अनुसार उपयुक्त स्थान का चयन करते हैं धीरे धीरे अधिकाधिक सदस्य उस स्थान को प्राथमिकता देने लगते हैं और वह स्थान समुदाय के रूप में परिवर्तित हो जाता है

विशिष्ट नाम
प्रत्येक समुदाय के स्वत विकास के पश्चात उसे एक नाम मिलता है। लुम्ले के अनुसार यह समरूपता का परिचायक है यह वास्तविकता का बोध कराता है यह अलग व्यक्तित्व को इंगित करता है बहुधा व्यक्तित्व का वर्णन करता है कानून की दृष्टि में इसके कोई अधिकार एवं कर्तव्य नहीं होते इस प्रकार एक समुदाय अपने विशिष्ट नाम से पहचाना जाता है


 विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषा एवं उनमें व्यक्त तथ्यों के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि

आम बोलचाल की भाषा में  सामुदायिक संगठन का अभिप्राय: किसी समुदाय की आवश्यकताअें तथा साधनों के बीच परस्पर तालमेल स्थापित कर समस्याओं का समाधान करने से है। सामुदायिक संगठन एक प्रक्रिया है। इस रूप में सामुदायिक संगठन का तात्पर्य किस समुदाय या समूह में लोगों द्वारा आपस में मिलकर कल्याण कार्यो की योजना बनाना तथा इसके कार्यान्वयन के लिए उपाय तथा साधनों को निश्चित करना है।  किसी समुदाय से सम्बन्धित प्रक्रियांए अनेक प्रकार की हो सकती है।  अत: सामुदायिक संगठन की प्रक्रिया का अभिप्राय केवल उस प्रक्रिया से है जिसमें समुदाय की शक्ति और योग्यता का विकास किया जाता है। सामुदायिक संगठन की प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित इस प्रकार है -
  1. लिण्डमैन के मतानुसार 1921- सामुदायिक संगठन सामाजिक संगठन का वह स्तर है
    जिसमें समुदाय के द्वारा चेतन प्रयास किये जाते हैं तथा जिसके द्वारा वह अपने मामलों का
    प्रजातांत्रिक ढ़ंग से नियंत्रित करता है तथा अपने विशेषज्ञों ,जो संगठनों, संस्थाओं तथा
    संस्थानों से जाने-पहचाने अन्तर सम्बन्धियों के द्वारा उनकी उच्च कोटि की सेवायें प्राप्त
    करता है। 
  2. मेकनील के 
    मतानुसार 1951ए -
     सामुदायिक संगठन एक कार्यात्मक या भौगोलिक क्षेत्र की समाज
    कल्याण आवश्यकताओं और समाज कल्याण साधनों के बीच प्रगतिशील एवं अधिक
    प्रभाशाली समायोजन लाने और उसे बनाये रखने की प्रक्रिया है इसके उद्देश्य  समाज कार्य
     के उद्देश्यों के अनुरूप है क्योंकि इसका प्राथमिक ध्यान बिन्दु व्यक्ति की आवश्यकताओं
    और इनको पूरा करने के उन माध्यमों का प्राविधान करना है। जो प्रजातांत्रिक जीवन के
    मूल्यों के अनुरूप हो। 
  3.   सैण्डरसन एण्ड पोल्सन 1993 के अनुसार, ‘‘ सामुदायिक संगठन का उददेश्य समूहों तथा
    व्यक्तियों के मध्य ऐसे सम्बन्ध विकसित करना है जिससे उन्हें ऐसी सुविधाओं तथा
    समस्याओं का निर्माण करने तथा उन्हें बनाये रखने के लिए एक साथ कार्य करने में
    सहायता मिलेगी तथा जिसके माध्यम से समुदाय के सभी सदस्यों के समान कल्याण में
    अपने उच्चतम मूल्यों का अनुभव कर सके
  4. पैटिट के मतानुसार 1925  – सामुदायिक संगठन एक समूह के लोगों की उनकी सामान्य
      आवयकताओं को पहचानने तथा इन आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायता करने के रूप में
    उत्तम प्रकार से परिभाषित किया जा सकता हैं 
  5. डनहम  के अनुसार 1948 - समाज कल्याण के लिए सामुदायिक संगठन का अर्थ एक
    भौगोलिक क्षेत्र या कार्यक्षेत्र के समाज कल्याण संसाधनों में समायोजन लाने तथा बनाये
    रखने की प्रक्रिया से है”
  6. फ्रीडलैण्ड 1955 के अनुसार – ‘‘समाज कल्याण के लिए सामुदायिक संगठन को समाज
    कार्य की एक ऐसी प्रक्रिया कहकर परिभाषित किया जा सकता है। जिसके द्वारा एक
    भौगोलिक क्षेत्र के अन्दर समाज कल्याण आवश्यकताओं एवं समाज कल्याण साधनों के बीच
    स्थापित किया जाता है’’।
  7. रौस 1956 के अनुसार – सामुदायिक संगठन के कार्यकर्त्ता द्वारा समुदायों की सहायता
    करने की एक प्रक्रिया कहा है। उनके अनुसार ‘‘ सामुदायिक संगठन एक प्रक्रिया है।
    जिसके द्वारा समाज कार्यकर्त्ता अपनी अन्र्तदृश्टि एवं निपुणता का प्रयोग करके समुदायों
    (भौगोलिक तथा कार्यात्मक) को अपनी-अपनी समस्याओं को पहचानने और उनके समाधान
    हेतु कार्य करने में सहायता देता है’’।
उपरोक्त परिभाशाओं से स्पश्ट होता है। कि सामुदायिक संगठन में सेवार्थी  समुदाय होता है। इसका प्रमुख उद्देश्य समुदाय की इस प्रकार सहायता करना होता है। जिससे वह अपनी सहायता स्वंय करने में समर्थ हो सके। इसकी प्रक्रिया उद्देश्य मूलक होती है। सामुदायिक संगठन की कार्यविधि मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों से अधिक समाजशास्त्रीय सिद्धांतों पर निर्भर करती है।
सामुदायिक संगठन कार्य की कुछ सामान और प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

    1. सामुदायिक संगठन एक निश्चित भूभाग के सदस्यों के विकास का कार्य है - यह एक निर्धारित भूभाग में निवास करने वाले विभिन्न जाति धर्म एवं समूहों के सदस्यों के विकास का कार्य है।  एक समुदाय के लिए निश्चित भूभाग का तात्पर्य यहाँ एक गांव, मोहल्ला, शहर, प्रांत, राज्य एवं राष्ट्र से है।  इस कार्य में इन विभिन्न प्रकार के समुदायों में निवास करने वाले व्यक्तियों के साथ सामुदायिक कार्यकर्ता उनकी समस्याओं को पहचानते हुए समुदाय या समुदाय के बाहर उपलब्ध साधनों के बीच आवश्यक संबंध स्थापित करते हुए सदस्यों में कल्याण कार्य को विकसित करने का प्रयास करता है।

    2. सामुदायिक संगठन प्रशिक्षित समाज कार्यकर्ता के ज्ञान एवं कौशल पर आधारित है- सामुदायिक संगठन कार्य में प्रशिक्षित समाज कार्यकर्ता के ज्ञान एवं कौशल का प्रयोग आवश्यक है। असंगठित एवं विघटित समुदाय में समाज कार्यकर्ता ही एक ऐसा प्रशिक्षित कार्य करता है जो अपने व्यावहारिक ज्ञान से समुदाय की  समस्याओं, उनकी आवश्यकताओं तथा विभिन्न उपलब्ध साधनों को जानकर सदस्यों में इन बातों की जागृति लाते हुए उनके कर्तव्यों का बोध कराता है अर्थात प्रशिक्षित कार्यकर्ता का अनुभवशील ज्ञान सामुदायिक, ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होता है जिससे सदस्यगण आवश्यक कदम  उठाने की योजना बनाते है और इसे कार्यान्वित करने के योग्य होते है।  प्रशिक्षित कार्यकर्ता अपने ज्ञान एवं कौशल का प्रयोग समुदाय द्वारा उठाए गए उनके विभिन्न कदमों एवं चरणों में कर सदस्यों को शिक्षित- प्रशिक्षित करते हुए उनके कार्य एवं लक्ष्य को आसान बनाता है।
  3. इसमें समस्या अध्ययन करने की योग्यता का विकास किया जाता है - सामुदायिक संगठन कार्यकर्त्ता को पूर्ण ज्ञान होता है कि सामुदायिक संगठन कार्य की सफलता सामुदायिक सदस्यों पर निर्भर है इस लिए सामुदायिक कार्यकर्त्ता अपने उपयोगी ज्ञान को जो सामुदायिक सदस्यों के लिए आवश्यक है उनमे भरता है।
      समस्या के समाधान के उचित रास्तों का चयन करने के लिए आवश्यक है कि समस्या का अध्ययन किया जाये।  इसलिए सर्वप्रथम समाज कार्यकर्त्ता सदस्यों की समस्याओं का अध्ययन करते हुए सदस्यों में अध्ययन करने की स्वयं योग्यता का विकास करता है जिससे वे स्वयं समस्या का अध्ययन करते हुए  वास्तविक रूप रेखा जान सके।
4. सामुदायिक संगठन कार्य प्रजातान्त्रिक निर्णय पर आधारित है - जैसा की पहले ही चर्चा की जा चुकी है है कि समुदाय में कई धर्म जाती एवं विचारों के व्यक्ति निवास कर सकते है जहाँ  एक ही निर्णय एवं विषय पर लोगो के विचार निम्न हो सकते है।  यह भिन्नता सदस्यों की अपने व्यक्तिगत अनुभव एवं ज्ञान के कारन होती है।  जबकि किसी भी समुदाय में सामुदायिक संगठन कार्य की सफलता समुदाय के विभिन्न जाति  धर्म एवं समूह के निवासियों के सामूहिक सहयोग एवं निर्णय पर ही संभव है इसलिए इस कार्य के प्रत्येक निर्धारित मार्ग एवं मार्ग के प्रत्येक चरण में लोगो के विचार भावनाओं को जानना उनका आदर करना तथा निर्विवाद निर्णय लेना अत्यन्त आवश्यक है।  सामुदायिक कार्यकर्त्ता अपने ज्ञान एवं कौशल से इन बातों की संभाविकता महसूस कर सदस्यों को इससे अवगत करता है जिससे सदस्यगण समुदाय की चरों दिशा में रहने वाले व्यक्तियों को संगठित कर उनके पारस्परिक सहयोग सहायता एवं सलाह से विवाद रहित सामूहिक योजना बना सके और योजना के कार्यान्वयन में लोगो का सहयोग प्राप्त हो सके और सामुदायिक कल्याण का बढ़ावा मिल सके।
5. साधनो को जानने एवं उसे संचालित करने का प्रयास किया जाता है - प्रायः देखा जाता है प्रत्येक समुदाय में वहाँ के सदस्यों में व्याप्त उनकी समस्याओं से मुकाबला करने एवं जरुरत मंद आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन या तो समुदाय के अन्य सदस्यों द्वारा स्वयं या सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा समुदाय के अंदर एवं बाहर उपलब्ध होते है , लेकिन सदस्यगण अपनी विभिन्न प्रकार की उलझनों ,अशिक्षा एवं गरीबी के कारण न तो इसे जान पाते है।  और न ही अपने कल्याण में इसका सदुपयोग ही कर पाते  है। इसलिए सामुदायिक कार्यकर्त्ता अपने व्यावहारिक ज्ञान से सदस्यों को लाभान्वित होने के लिए उनमे आवश्यक कदम उठाने की योग्यता का विकास करता है , जिससे कल्याण सेवा प्रदान करने वाली संस्थाए अपनी सेवाओं को नियमित कर सके और सदस्यगण लाभान्वित हो सके।
6. सामुदायिक नियोजन एवं एकता का विकास किया जाता है - सामुदायिक संगठन  कार्य में सभी आवश्यक कदम सामुदायिक सदस्यों के साथ , सदस्यों के द्वारा और सदस्यों के लिए किया जाता है।  इसलिए सामुदायिक कार्यकर्त्ता सामुदायिक सदस्यों को शिक्षित कर उनमे विभिन्न समस्याओं से मुकाबला करने के लिए आवश्यक योजना बनाने की योग्यता का विकास करता है।  इसके लिए कार्यकर्त्ता समुदाय के विभिन्न समूहों ,उप समूहों एवं समुदाय के विभिन्न भागो में निवास करने वाले सदस्यों को स्वीकार करता है।   उन्हें उनके व्यक्तिगत अधिकार एवं कर्तव्यों के साथ साथ उनके सामूहिक कर्तव्यों के लिए उनमे सामूहिक योजना बनाने की योग्यता का विकास किया जाता है इस प्रकार इस कार्य में सदस्यों को सामूहिक रूप से अपनी समस्या पहचानने , अन्य लोगो को इससे अवगत कराने लोगो के विचारो को सामुदायिक विचार में बदलने , समस्या समाधान के लिए आवश्यक कार्यक्रम बनाने तथा कार्यान्वयन करने जैसे कार्यक्रमों का निर्धारण उनके आपसी सहयोग एवं सलाह के साथ होता है।
7. सामुदायिक कल्याण के विकास को जान कल्याण में बदला जाता है -  हम लोग पहले ही व्यक्त कर चुके है कि बहुत सी कल्याण सुविधाएं समुदाय के के कुछ सदस्यों के पास स्वयं भी उपलब्ध होती है।  कुछ अन्य आवश्यक कल्याण सुविधाओं को सामुदायिक कार्यकर्त्ता सामुदायिक सदस्यों की योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास कर व्यक्तिगत कल्याण से जोड़ता है।  इसे और विकसित कर अन्य समुदाय के कल्याण के लिए विकसित किया जाता है।  इस प्रकार उनके स्वयं के कल्याणकारी प्रयासों को सामुदायिक विकास के साथ साथ राष्ट्रीय विकास से जोड़ा जाता है।





सामुदायिक संगठन के सिद्धान्त 

मेकनील ने सामुदायिक संगठन के सिद्धान्तों  का उल्लेख किया हैं:-
  1. समाज कल्याण के लिए सामुदायिक संगठन व्यक्तियों औंर उनकी अवययकताओं से
    सम्बन्धित हैं। 
  2. समाज कल्याण के लिए सामुदायिक संगठन में समुदाय एक प्राथमिक सेवाथ्र्ाी माना
    जाता है। यह समुदाय, पड़ोस, नगर जनपद या राज्य या देश या अन्र्तराष्ट्रीय समुदाय हो
    सकता है। 
  3. सामुदायिक संगठन में यह स्वयं -सिद्ध धारणा है कि समुदाय जैसा भी है, जहॉ भी है,
    उसे वैसा ही स्वीकार किया जाता है। समुदाय के वातावरण को समझना इस प्रक्रिया में
    अनिवार्य है
  4. समुदाय के सभी व्यक्ति इसके स्वा-अध्याय एवं कल्याण सेवाओं में रूचि रखते हैं
    समुदाय के सभी कार्यो और तत्वों द्वारा संयुक्त प्रयासों में भाग लिया जाना सामुदायिक
    संगठन में अनिवार्य होता है। 
  5. हर समय बदलती रहती मानव आवश्यकताएॅ और व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों की
    वास्तविकता ही सामुदायिक संगठन प्रक्रिया की गति मानी जाती है। सामुदायिक संगठन में
    इस उद्देश्य पूर्ण परिवर्तन को स्वीकार किया जाता है। 
  6. सामुदायिक संगठन में समाज कल्याण की सभी संस्थाओं और संगठनों की परस्पर
    निर्भरता को माना जाता है कोई भी संस्था अकेले में उपयोगी नहीं हो सकती बल्कि दूसरी
    संस्थाओं के संन्दर्भ में ही कार्य करती है।
  7. समाज कल्याण के लिए सामुदायिक संगठन एक प्रक्रिया के रूप में सामान्य समाज
    कार्य का ही एक भाग है। समाज कल्याण के लिए सामुदायिक संगठन के अभ्यास के
    लिये व्यावसायिक शिक्षा समाज कार्य शिक्षा संस्थाओं के माध्यम से ही अच्छे तरीके से दी
    जा सकती है। 
रॉस ने भी सामुदायिक संगठन के सिद्धान्तों का उल्लेख किया है यह सिद्धान्त इस प्रकार है-----
  1. समुदाय में विधमान दषाओं के प्रति असंतोष के कारण संगठन का विकास। 
  2. विशेष समस्याओं के सन्दर्भ में इस असंतोष का केन्द्रित किया जाना और इसे
    संगठन, नियोजन और प्रयासों में बदलना। 
  3. असंतोष, जो सामुदायिक संगठन को आरम्भ करता है या जो इसे सजीव रखता है
    समुदाय के अधिक से अधिक सदस्यों द्वारा अनुभव किया जाता है।
  4. संघ/संस्था को ऐसे औपचारिक एवं अनौपचारिक नेताओं को अपने कार्यो में
     सम्मिलित करना जिनको समुदाय के प्रमुख उप-समूह स्वीकार करते हो।
  5. संघ/संस्था के उददेश्य एवं कार्यविधियों ऐसी हो जो सदस्यों को मान्य हो।
  6. संघ या संस्था के कार्यक्रमों में कुछ ऐसे भी क्रियाकलाप होने चहिए जो संवेगात्मक
    दृश्टिकोण विषय वस्तु लिए हो।
  7. संघ या संस्था को समुदाय में विधमान सद्भाव का प्रयोग करना चाहिए। 
  8. संघ/संस्था के अन्दर और अपने और समुदाय के बीच अच्छे संस्कारों को विकसित
    करना चाहिए।
  9. संघ/संस्था को समूहों में सहकारिता की भावना का विकास करना चाहिए। 
  10. संघ/संस्था को अपने संगठन और कार्यरीतियों को लचीला रखना चाहिए। 
  11. संघ/संस्था को अपने कार्यो की गति को समुदाय की विधमान दशाओं के अनुरूप
    रखना चाहिए। 
  12. संघ/संस्था को प्रभावशाली नेताओं का विकास करना चहिए।
  13. संघ/संस्था को समुदाय में अपनी सक्रियता स्थिरता और सम्मान को विकसित
    करना चाहिए।

सामुदायिक संगठन के अंग

सामुदायिक संगठन समाज कार्य की एक प्रणाली है, जिसके द्वारा कार्यकर्ता व्यक्ति को समुदाय के माध्यम से किसी संस्था अथवा सामुदायिक केन्द्र में सेवा प्रदान करता है, जिससे उसके व्यक्तित्व का सन्तुलित विकास सम्भव होता है। इस प्रकार सम्पूर्ण सामुदायिक संगठन के कार्य तीन स्तम्भों पर आधारित है -------
  1. कार्यकर्ता 
  2. समुदाय
  3. संस्था 

कार्यकर्ता – 

सामुदायिक संगठन कार्य में कार्यकर्ता एक ऐसा व्यक्ति होता है।  जो उस समुदाय का सदस्य नहीं होता, जिसके साथ वह कार्य करता है। इस कार्यकर्ता में कुछ निपुणतायें होती हैं ---- जो व्यक्तियों के  कार्यो, व्यवहारों तथा भावनाओं के ज्ञान पर आधारित होती है।  उसमें समुदाय के साथ कार्य करने की क्षमता होती है।  तथा सामुदायिक स्थिति से निपटने की शक्ति एंव सहनषीलता होती है उसका उद्देश्य सामुदाय को आत्मनिर्देशित तथा आत्म संचालित करना होता है तथा वह ऐसे उपाय करता है। जिससे समूह का नियंत्रण समुदाय-सदस्यों के हाथ में रहता है। वह सामुदायिक अनुभव द्वारा व्यक्ति में परिवर्तन एवं विकास लाता है। कार्यकर्ता को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है----
  1. सामुदायिक स्थापना।
  2. संस्था के कार्य तथा उद्देश्य।
  3. संस्था के कार्यक्रम तथा सुविधायें।
  4. समुदाय की विशेषतायें।
  5. सदस्यों की संधियाँ, आवश्यक कार्य एंव योग्यतायें।
  6. अपनी स्वयं की निपुणतायें तथा क्षमतायें।
  7. समुदाय की कार्यकर्ता से सहायता प्राप्त करने की इच्छा।
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता अपनी सेवाओं द्वारा सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है। वह व्यक्ति को स्वतंत्र विकास एवं उन्नति के लिए अवसर प्रदान करता है तथा व्यक्ति को सामान्य निमार्ण के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करता है। वह सामाजिक सम्बन्धों के आधार मानकर, शिक्षात्मक तथा विकासात्मक क्रियाओं का आयोजन व्यक्ति की समस्याों के समाधान के लिए करता है।

समुदाय – 

सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता अपने कार्य का प्रारम्भ समुदाय के साथ करता हैं और समुदाय के माध्यम से ही उद्देश्य की ओर अग्रसर होता है। वह व्यक्ति को समुदाय सदस्य के रूप में जानता हैं तथा उसकी विशेषताओं को पहचानता है।  समुदाय एक आवश्यक साधन तथा यन्त्र होता है।  जिसको उपयोग में लाकर सदस्य अपने उद्देश्य की पूर्ति करते हैं।  जिस प्रकार का समुदाय होता हैं कार्यकर्ता को उसी प्रकार की भूमिका निभानी पड़ती हैं। सामुदायिक कार्य इस बात में विश्वास  रखता है।  कि समुदाय का कार्य निपुणता प्राप्त करना नहीं है बल्कि प्राथमिक उद्देश्य प्रत्येक सदस्य का समुदाय में अच्छी प्रकार से समायोजन करना है।

संस्था – 

सामाजिक सामुदायिक कार्य में संस्था का विशेष महत्व होता है क्योंकि सामुदायिक कार्य का उत्पत्ति ही संस्थाओं के माध्यम से हुई है। संस्था की प्रकृति एंव कार्य, कार्यकर्ता की भूमिका को निष्चित करते हैं। सामुदायिक कार्यकर्ता अपनी निपुणताओं का उपयोग एजेन्सी के प्रतिनिधि के रूप में करता है क्योंकि समुदाय एजेन्सी के महत्व को समझता है तथा कार्य करने की स्वीकृति देता है। अत: कार्यकर्ता के लिए आवश्यक होता है।  कि वह संस्था के कार्यो से भली-भाँति परिचित हो। समुदाय के साथ कार्य प्रारम्भ करने से पहले कार्यकर्ता को संस्था की निम्न बातों को भली-भाँति समझना चाहिए----
  1.  कार्यकर्ता को संस्था के उद्देश्यों तथा कार्यो का ज्ञान होना चाहिए। 
  2. संस्था की सामान्य विशेषताओं से अवगत होना तथा उसके कार्य क्षेत्र का ज्ञान होना
    चाहिए।
  3. उसको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि किस प्रकार संस्था समुदाय की सहायता
    करती है तथा सहायता के क्या-2 साधन के श्रोत हैं।
  4. संस्था में सामुदायिक संबंध स्थापना की दषाओं का ज्ञान होना चाहिए। 
  5. संस्था के कर्मचारियों से अपने संबंध के प्रकारों की जानकारी होनी चाहिए।
  6. उसको जानकारी होनी चाहिए कि ऐसी संस्थायें तथा समुदाय कितने है जिनमें
    किसी समस्याग्रस्त सदस्य को सन्दर्भित किया जा सकता है। 
  7. संस्था द्वारा समुदाय के मुल्यांकन की पद्धति का ज्ञान होना चाहिए।
    सामुदायिक एंव संस्था के माध्यम से ही समुदाय अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को संतुश्ट
    करते हैं तथा विकास की और बढ़ते हैं। 








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समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास

समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास बाटोमोर के अनुसार समाजशास्त्र एक आधुनिक विज्ञान है जो एक शताब्दी से अधिक पुराना नहीं है । वास्तव में अन्य सामाजिक विज्ञानों की तुलना में समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है । एक विशिष्ट एवं पृथक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की उत्पत्ति का श्रेय फ्रांस के दार्शनिक आगस्त काम्टे को है जिन्होंने सन 1838 में समाज के इस नवीन विज्ञान को समाजशास्त्र नाम दिया । तब से समाजशास्त्र का निरंतर विकास होता जा रहा है । लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि क्या आगस्त काम्टे के पहले समाज का व्यवस्थित अध्ययन किसी के द्वारा भी नहीं किया गया । इस प्रश्न के उत्तर के रूप में यह कहा जा सकता है कि आगस्त काम्टे के पूर्व भी अनेक विद्वानों ने समाज का व्यवस्थित अध्ययन करने का प्रयत्न किया लेकिन एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र अस्तित्व में नहीं आ सका । समाज के अध्ययन की परंपरा उतनी ही प्राचीन है जितना मानव का सामाजिक जीवन । मनुष्य में प्रारंभ से ही अपने चारों ओर के पर्यावरण को समझने की जिज्ञासा रही है । उसे समय-समय पर विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ा है । इन समस...

उपकल्पना का अर्थ और सामुदायिक जीवन की उपकल्पनाएं -

सामुदायिक जीवन की उपकल्पनाएं -   सामुदायिक जीवन की कुछ प्रमुख उपकल्पनाएं -सामुदायिक जीवन की प्रमुख उपकल्पना ओं का चित्रण  न केवल व्यवसायिक समाज कार्यकर्ता के लिए ही उपयोगी है बल्कि अन्य व्यवसायों में प्रशिक्षित सामुदायिक कार्य में संलग्न  कार्यकर्ताओं के लिए भी उपयोगी है।  यह ज्ञान संबंधित कर्मचारियों एवं समाज वैज्ञानिकों को सामुदायिक योजना तथा अन्य विकास कार्यक्रम बनाने तथा सिद्धांतों के निर्धारण के लिए उपयोगी है।  यह समाज कार्यकर्ता को सामुदायिक संगठन कार्य में निष्कंटक  एवं सुगम रास्ता प्रदान करता है।  इस पर चलकर सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता सामुदायिक के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल सिद्ध होता है।  जिस प्रकार एक वैयक्तिक सेवा कार्यकर्त्ता को समस्या  युक्त सेवार्थी की समस्याओं का गहराई से अध्ययन करना, निदान करना, तथा उपचार में सेवार्थी की मनोवैज्ञानिक गतिविधियों की जानकारी हासिल करना आवश्यक है उसी प्रकार सामुदायिक संगठन कार्य की सफलता के लिए आवश्यक है कि  सामुदायिक संगठन कार्यकर्त्ता समुदाय की संस्कृति ,पर...

प्रकार्य की अवधारणा एवं विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए

प्रकार्य की अवधारणा एवं विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए सामान्यतः प्रकार्य (Function) का अर्थ हम समाज या समूह द्वारा किए जाने वाले कार्य या उसके योगदान से लगाते हैं । किंतु समाज में प्रकार्य का अर्थ सम्पूर्ण सामाजिक संरचना को व्यवस्थित बनाए रखने एवं अनुकूलन करने में उसकी इकाइयों द्वारा जो सकारात्मक योगदान दिया जाता है, से लगाया जाता है । प्रकार्य की अवधारणा को हम शरीर के उदाहरण से स्पष्टतः समझ सकते हैं । शरीर की संरचना का निर्माण विभिन्न इकाइयों या अंगों जैसे हाथ, पाँव, नाक,कान,पेट,हृदय,फेफड़े आदि से मिलकर होता है । शरीर के वे विभिन्न अंग शरीर व्यवस्था को बनाए रखने और अनुकूलन में अपना जो योगदान देते हैं,जो कार्य करते हैं, उसे ही इन इकाइयों का प्रकार्य कहा जायेगा ।  परिभाषा (Definition) -  प्रकार्य को इसी अर्थ में परिभाषित करते हुए रैडक्लिफ ब्राउन लिखते हैं, " किसी सामाजिक इकाई का प्रकार्य उस इकाई का वह योगदान है जो वह सामाजिक व्यवस्था को क्रियाशीलता के रूप में सामाजिक जीवन को देती है । वे पुनः लिखते हैं, " प्रकार्य एक आंशिक क्रिया द्वारा उसे संपूर्ण क्रिया को दिया जाने वाला योगदान ह...