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सामुदायिक संगठन का दर्शन एवं अवधारणा

सामुदायिक संगठन का दर्शन एवं अवधारणा 


सामुदायिक संगठन समाज कार्य के प्रमुख तरीकों में से एक है ठीक वैसे ही जैसे वैयक्तिक सेवा कार्य समाज कल्याण प्रशासन तथा समाज कार्य शोध।जहां वैयक्तिक कार्यकर्ता का संदर्भ व्यक्ति से होता है और समूह कार्यकर्ता का संदर्भ समूह से होता है वैसे ही सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय के संदर्भ में काम करता है वैयक्तिक कार्यकर्ता का उद्देश्य व्यक्ति सेवार्थी को अपनी समस्याओं की पहचान करने , तथा ऐसा करते हुए व्यक्ति के एकीकरण के लिए स्वयं को और स्वयं की क्षमता की समझ को बढ़ाने में मदद करना होता है। इसी प्रकार सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता संपूर्ण समुदाय के साथ सेवार्थी के रूप में काम करता है। संक्षेप में सामुदायिक संगठन शब्द सामुदायिक समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से समुदाय के जीवन में मध्यस्थता के लिए प्रयुक्त समाज कार्य के 1 तरीके को परिभाषित करने के लिए किया जाता है।

सामुदायिक संगठन का दर्शन -

मानवतावादी दृष्टिकोण से देखा जाए तो समुदायों के साथ काम करना इतना ही पुराना है जितना कि स्वयं समाज। सामुदायिक कार्य का एक ना एक रूप हमेशा विद्यमान रहा है, किंतु समाज कार्य के व्यवसाय के तरीकों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो समुदाय कार्य तुलनात्मक रूप से हाल ही के मूल का है। यह लेन समिति रिपोर्ट (1939) थी,विश्व में सबसे पहले सामुदायिक संगठन को समाज कार्य के तरीके के रूप में मान्यता दी।
       सामुदायिक संगठन को समाज कार्य में अभ्यास का एक वृहत तरीका  ( फिंक,1978) अथवा वृहत स्तर का समाज कार्य माना जाता है। चूंकि इसका प्रयोग लोगों के एक बड़े समूह को प्रभावित करने वाली व्यापकतर सामुदायिक समस्याओं का सामना करने के लिए किया जाता है। वृहत शब्द का उपयोग सामूहिक रूप से सामुदायिक समस्याओं का समाधान करने में बड़ी संख्या में लोगों को शामिल करने की इसकी सक्षमता की वजह से किया जाता है।इस प्रकार यह तरीका हमें मध्यस्थता के कार्यक्षेत्र / स्तर में वृद्धि करने में सक्षम बनाता है वैयक्तिक सेवा कार्य जिसमें एक समय में एक ही व्यक्ति के साथ व्यवहार किया जाता है, के विपरीत सामुदायिक संगठन में किसी भी समय में कई लोगों के साथ व्यवहार किया जाता है।
    वैयक्तिक दृष्टिकोण उसे संदर्भ में व्यवहारिक नहीं होता जहां समस्याओं का आकार खतरनाक हो जाता है।ऐसे मामलों में हमें ऐसा तरीका उपयोग करना पड़ता है जो एक साथ लोगों की बड़ी संख्या में सहायता कर सकें। यह विशेषकर विकासशील देशों के मामले मैं सत्य है जहां लोगों के समक्ष अनेक समस्याओं की मात्रा अत्यधिक होती है और इस तरह बड़े क्षेत्रों में साथ काम करने की तात्कालिक आवश्यकता पड़ती है।ऐसे में सामुदायिक संगठन इन देशों के सामने व्याप्त आर्थिक और सामुदायिक समस्याओं के निवारण के लिए समाज कार्य के अभ्यास के एक प्रभावी तरीके के रूप में उभरता है।
      सामुदायिक संगठन को इसलिए भी एक वृहत तरीके के रूप में चित्रित किया जाता है क्योंकि सामुदायिक संगठन द्वारा स्थानीय स्तर, जैसे किसी परिवेश,अथवा राज्य स्तर पर अथवा यहां तक कि क्षेत्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया जा सकता है।

सामुदायिक संगठन- 

वर्तमान सामुदायिक जीवन के अध्ययन एवं अवलोकन से ज्ञात होता है कि समुदाय का मौजूदा रूप शताब्दी पूर्व के सामुदायिक जीवन से पूर्णता भिन्न है। औद्योगीकरण , नगरीकरण, यातायात और संचार की सुविधाओं, सामाजिक अधिनियम एवं राजनैतिक तथा समाज सुधार आंदोलनों ने न केवल नगरीय सामुदायिक जीवन को ही प्रभावित किया है बल्कि ग्रामीण सामुदायिक जीवन को भी फलस्वरूप वर्तमान सामुदायिक जीवन अपनी वास्तविक विशेषताओं जैसे सामुदायिक सहयोग ,आपसी जिम्मेदारी, सामुदायिक कल्याण, सुरक्षा एवं विकास से सुदूर सामुदायिक विघटन की तरह बढ़ता जा रहा है।  मात्रा की दृष्टि से कहा जा सकता है कि नगरीय समुदाय का विघटन ग्रामीण समुदाय से अधिक हुआ है।  इन दोनों समुदायों के पुनर्गठन एवं विकास के लिए सामुदायिक संगठन अत्यन्त आवश्यक है

                 समाज कार्य की इस प्राथमिक( सामुदायिक संगठन ) प्रणाली का आविर्भाव वैसे तो मानव जीवन के साथ-साथ माना जाता है लेकिन प्रमाणित रुप से एक दान समिति के प्रयासों ( चैरिटी  ऑर्गेनाइजेशन सोसाइटी मूवमेंट ) से हुआ है।  यह तब हुआ जब इस दान समिति ने विभिन्न  अन्य कार्यरत गैर-सरकारी कल्याण समितियों के मजबूत संबंधों सहयोग एवं इन समितियों के माध्यम से उपलब्ध सहायता कोष के धन के उचित उपयोग के विषय में कदम उठाया।  इन प्रयासों से जन्मी  प्रणाली को सामुदायिक संगठन का नाम दिया गया।

                  सामान्य बोलचाल की भाषा में सामुदायिक संगठन का अर्थ किसी निश्चित क्षेत्र या भू-भाग के व्यक्तियों की विभिन्न आवश्यकताओं एवं उस भू-भाग में उपलब्ध आंतरिक एवं बाह्म  विभिन्न साधनों के बीच समुचित एवं प्रभावपूर्ण संबंध स्थापित करते हुए उन व्यक्तियों में अपनी समस्याओं एवं कठिनाइयों का अध्ययन करने तथा उपलब्ध साधनों से समस्या समाधान करने की योग्यता का विकास करना है।

  सामुदायिक संगठन कार्य में विघटित  समुदाय के सदस्यों को आपस में एकत्रित कर उनकी सामुदायिक कल्याण एवं विकास संबंधी आवश्यकताओं की खोज निकालने तथा उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक साधनों के जुटाने की योग्यता का विकास किया जाता है।  अर्थात सामुदायिक कार्यकर्ता का काम सामुदायिक सदस्यों के साथ मिलकर उनको अपनी समस्याओं का अध्ययन करने ,अपनी आवश्यकताओं को महसूस करने उपलब्ध  साधनों के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने सामूहिक समस्या समाधान के लिए उचित रास्ता अपनाने, एक होकर संघ बनाने आपसी सहयोग से योग्य नेता का चुनाव करने तथा वैधानिक ढंग से अपनी समस्या का समाधान करने की योग्यता का विकास करना है। इस प्रकार सामुदायिक संगठन की प्रक्रिया में सामुदायिक समस्याओं के अभिकेंद्रीकरण से लेकर उनके समाधान तक किये गए समुचित कार्यों एवं चरणों को शामिल किया जाता है।
                   सामुदायिक संगठन कार्य की सफलता का ज्ञान लोगों में उसी समय हुआ जब प्रथम विश्व युद्ध में इसने दान संगठन एवं कल्याण समिति के रूप में कार्य करके अभूतपूर्व सफलता हासिल की।

 सामुदायिक संगठन की परिभाषा-

सामुदायिक संगठन समाज कार्य की एक प्रमुख प्रक्रिया है जिसमें एक प्रशिक्षित समाज कार्यकर्ता द्वारा समुदाय के सदस्यों की इस प्रकार सहायता की जाती है कि वे लोग अपनी समस्याओं का समाधान विभिन्न उपलब्ध साधनों के माध्यम से स्वयं कर सकें।  इसकी अवधारणा को और स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं -

लिंडमेन के अनुसार- सामुदायिक संगठन सामाजिक संगठन का वह चरण है जिसमें समुदाय द्वारा प्रजातांत्रिक तरीके से अपने मामलों या कार्यों को नियोजित करने और अपने विशेषज्ञों संस्थाओं संगठनों के मान्य परस्पर संबंधों द्वारा उच्चतम सेवा प्राप्त करने के सचेत प्रयास सम्मिलित हैं। ------ सामुदायिक संगठन की मुख्य समस्या प्रजातांत्रिक प्रक्रियाओं और विशेषज्ञों में एक कार्यात्मक संबंध स्थापित करना है।

इस प्रकार लिंडमेन के अनुसार सामुदायिक संगठन एक ऐसा कार्य है जिसमे किसी निश्चित भू-भाग में निवास करने वाले व्यक्ति अपनी समस्याओं को जानते हुए समस्या समाधान के लिए प्रजातांत्रिक तरीके से आपस में योजना बनाते हैं और इस कार्य में विशेषज्ञों द्वारा दिए ज्ञान, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं एवं संगठनों के नियमों का आदर करते हुए समस्या समाधान के लिए सतत प्रयास करते हैं।  इस प्रकार इन की परिभाषा में मुख्य रूप से पांच तत्व दिखाई देते हैं।
1. समस्या की पहचान करना।
2.  प्रजातांत्रिक नियोजन।
3.  विशेषज्ञों संस्थाओं एवं संगठनों की मान्यता।
4.  पारस्परिक सहयोग।
5.  समाधान का सतत प्रयास आदि।

पैटिट  के अनुसार- सामुदायिक संगठन का अर्थ व्यक्तियों के एक समूह को अपनी सामान्य आवश्यकताओं को पहचानने और उन अवस्थाओं को पूरा करने में सहायता देना है।

लेन के अनुसार
इसके अनुसार सामुदायिक संगठन का सामान्य उद्देश्य समाज कल्याण आवश्यकताओं और समाज कल्याण साधनों के बीच प्रगतिशील एवं अधिक प्रभावशाली समायोजन लाना और उसे बनाए रखना है इसका तात्पर्य है कि सामुदायिक संगठन का समन्वय आवश्यकताओं की खोज और परिभाषा सामाजिक आवश्यकताओं और योग्यताओं की जहां तक संभव हो सके रोकथाम और समाप्ति बदली हुई आवश्यकताओं को अच्छे तरीके से पूरा करने के लिए साधनों के समुचित उपयोग से है

स्पष्ट होता है कि इनकी परिभाषा में मुख्यतः समाज कल्याण आवश्यकताओं समाज कल्याण संस्थाओं कल्याण सेवा एवं कल्याण संस्थाओं के साथ पारस्परिक संबंध एवं समायोजन बनाए रखने से संबंधित बातों पर विशेष जोर दिया गया

सैंडर्सन एवं पालसन के अनुसार- सामुदायिक संगठन का लक्ष्य समूह और व्यक्तियों में ऐसे संबंधों को विकसित करना है जो एक साथ कार्य करने की योग्य बना सके और ऐसी सुविधाओं एवं संस्थाओं का निर्माण और रखरखाव करने के योग्य बना सके जिसके माध्यम से वे अपने सर्वोच्च मूल्यों को समुदाय के सभी सदस्यों के सामान्य कल्याण के लिए प्राप्त कर सके।

मैकमिलन- इन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ सोशल वर्क 1938 में तीन समूहों द्वारा प्रस्तुत की गई सामुदायिक संगठन की परिभाषाओं का उल्लेख किया है।  इन परिभाषाओं की शब्दावलीयों में भेद होते हुए भी तीनों में काफी सहमति है। एक परिभाषा में समाज कल्याण की आवश्यकताओं की खोज पर बल दिया गया है और समस्याओं के समाधान का दृष्टिकोण अपनाया गया है।  दूसरी में उन व्यक्तियों और समूहों के बीच संबंधों की स्थापना और विकास पर बल दिया गया है जो समाज कल्याण सेवाओं से संबंधित हैं। तीसरी परिभाषा कल्याण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सामाजिक साधनों को निर्देशित करने पर बल देती है।  परंतु इन सभी परिभाषाओ  की मूल धारणाये  यही है कि आवश्यकताओं की पूर्ति में साधनों को गतिमान किया जाए सामाजिक सेवाओं को आरम्भ  किया जाए और समाज कल्याण संस्थाओं के प्रयासों में समन्वय स्थापित किया जाए।

डनहम के अनुसार- इनके मतानुसार समाज कल्याण के लिए सामुदायिक संगठन का अर्थ है एक भौगोलिक या एक कार्यात्मक क्षेत्र में समाज कल्याण आवश्यकताओं और समाज कल्याण साधनों के बीच समायोजन लाने और उसे बनाए रखने की प्रक्रिया है। साधनों में न केवल संस्थाएं या संस्थान ही सम्मिलित होते हैं बल्कि इनमें कर्मचारी, भौतिक साज -सामान, वित्त, कानून, नेतृत्व, जनता में प्रबोध, और सहभागिता भी शामिल है।  सामुदायिक संगठन एक गतिशील व्यापक और प्रभावशाली प्रक्रिया है।

बारी  ( Barry ) के अनुसार- आपने सामुदायिक संगठन को एक प्रक्रिया एवं प्रणाली दोनों के रूप में देखते हुए सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता के स्थान की चर्चा की है।  इनके अनुसार समाज कार्य में सामुदायिक संगठन समुदाय की कल्याणकारी आवश्यकताओं और सामाजिक साधनों के बीच एक प्रगतिशील एवं अधिक प्रभावशाली समायोजन की रचना करने और उसे बनाए रखने की प्रक्रिया है। यह समायोजन एक व्यावसायिक  कार्यकर्ता की सहायता से और समुदाय में व्यक्तियों और समूहों की सहभागिता द्वारा प्राप्त किया जाता है इसमें समस्याओं और आवश्यकताओं को स्पष्ट किया जाना, समाधान को निर्धारित किया जाना और क्रियात्मक योजना का बनाया जाना और चलाया जाना सम्मिलित है।

मैकनील के अनुसार- इन्होंने सामुदायिक संगठन को ऐसी प्रक्रिया कहा है जिसके द्वारा समुदाय के सदस्य व्यक्तिगत नागरिकों के रूप में यह समूहों के प्रतिनिधियों के रूप में एक दूसरे के साथ मिलते हैं जिससे समाज कल्याण संबंधी आवश्यकताओं को निश्चित किया जा सके उन्हें पूरा करने की योजना बनाई जा सके और आवश्यक साधनों को गतिमान किया जा सके।

फ्रीडलैण्डर के अनुसार-आपके अनुसार समाज कल्याण के लिए सामुदायिक संगठन को समाज कार्य की एक ऐसी प्रक्रिया कहकर परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा एक भौगोलिक क्षेत्र के अंदर समाज कल्याण आवश्यकताओं और समाज कल्याण साधनों के बीच एक प्रगतिशील एवं अधिक प्रभावी समायोजन स्थापित किया जाता है।

   विभिन्न विद्वानों द्वारा व्यक्त उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सामुदायिक संगठन का मुख्य उद्देश्य सामुदायिक सदस्यों में अपनी समस्याओं आवश्यकताओं एवं उपलब्ध कल्याणकारी साधनों को पहचानने समस्या समाधान के लिए योजना बनाने तथा निदान ढूंढने की योग्यता का विकास करना है।  इन्हें और अच्छे एवं सरल रूप से व्यक्त करने के लिए उपर्युक्त विद्वानों के विचारों को दो भागों में बांटकर रखा जा सकता है। प्रथम भाग में लेन,एनहम, बारी, मेकलीन और फीडलेंडर जैसे विद्वानों और उनके  विचारों को शामिल किया जा सकता है जो सामुदायिक संगठन का अर्थ समुदाय की विभिन्न आवश्यकताओं ,समस्याओं एवं उनके समाधान के लिए सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं  द्वारा उपलब्ध साधनों के बीच प्रभावकारी समायोजन से लगाते हैं दूसरे भाग में पैटिट सैंडर्सन एवं रॉस जैसे विद्वानों के विचारों को लिया जा सकता है जो सामुदायिक संगठन को सदस्यों में अपनी समस्याओ  आवश्यकताओं एवं उपलब्ध विभिन्न साधनो को पहचाने कारणों को ढूंढ निकालने तथा संगठित रूप से समस्याओं के समाधान करने की योग्यता के विकास से जोड़ते हैं।

सामुदायिक संगठन के उद्देश्य

समाज कार्य के उद्देश्य के समान सामुदायिक संगठन का मुख्य उद्देश्य सामुदायिक सदस्यों की इस प्रकार सहायता करना है जिससे सामुदायिक सदस्य अपनी समस्याओं के कारणों को खोज निकाले आवश्यकताओं को पहचानने तथा समुदाय में आत्मनिर्भरता का दीप जला सके और विकसित हो सके।विशेष रूप से एक समुदाय में सामुदायिक संगठन का मुख्य उद्देश्य समुदाय की विभिन्न सामाजिक आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच समुदाय में आवश्यक सहयोग सहकारिता एवं एकता के माध्यम से समायोजन स्थापित करना है।

जिन विद्वानों ने सामुदायिक संगठन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला है उनमें से कुछ प्रमुख विद्वानों के विचार निम्नलिखित हैं
हार्पर एवं डनहम ने 1939 में नेशनल कान्फ्रेस ऑफ सोशल वर्क द्वारा नियुक्त की गई लेन कमेटी द्वारा अपने प्रतिवेदन में दिये गये सामुदायिक संगठन के निम्नलिखित उद्देश्यों का उल्लेख किया है।

सामान्य उद्देश्य-

आपके अनुसार सामुदायिक संगठन का सामान्य उद्देश्य सदस्यों की समाज कल्याण की आवश्यकताओं एवं विभिन्न कल्याणकारी उपलब्ध साधनों के बीच प्रगतिशील समायोजन स्थापित करना है इसे और स्पष्ट करते हुए निम्नलिखित भागों में व्यक्त किया गया है
  1. विभिन्न प्रकार की कल्याण आवश्यकताओं का पता लगाना और उन्हें परिभाषित करना।
  2. अयोग्यताओं की रोकथाम करना।
  3.  बदलती परिस्थितियों में उत्पन्न विभिन्न आवश्यकताओं का स्पष्टीकरण करते हुए इन आवश्यकताओं को पूरा करने वाले साधनों का पता लगाना तथा दोनों में समायोजन स्थापित करना

द्वितीयक उददेश्य- 

 हार्पर एवं डनहम ने सामान्य उद्देश्यों के साथ कुछ द्वितीयक उद्देश्यों का भी उल्लेख किया है जो निम्नलिखित है-
  1. प्रभावी नियोजन कार्य के लिए वास्तविक एवं पर्याप्त आधारों की खोज करना तथा उन्हें बनाए रखना।

  2. आवश्यक कल्याणकारी कार्यक्रमों एवं उपयुक्त सेवाओं को आरंभ करना उन्हें विकसित करना तथा समय-समय पर आवश्यक संशोधन करना इससे आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच समुचित समायोजन स्थापित किया जा सके ।
  3. समाज कार्य के स्तर को ऊंचा करते हुए वैयक्तिक संस्थाओं की कार्य क्षमता को बढ़ाना ।स
  4. पारस्परिक संबंधों एवं सहयोग को बनाए रखने वाली विधि को आसान बनाना और विभिन्न कल्याणकारी संगठनों समूहों एवं व्यक्तियों के बीच पारस्परिक संबंध एवं आवश्यक समन्वय को बढ़ाना एवं स्थापित करना।
  5. सामुदायिक सदस्यों को समाज कार्य के उद्देश्यों कार्यक्रमों एवं प्रणालियों के विषय में अवगत कराना। 

  6. संचालित किए जाने वाले आवश्यक कल्याणकारी कार्यक्रमों के विषय में जनता को बताते हुए जनता का समर्थन प्राप्त करना तथा उनकी सहभागिता बढ़ाना।
मैकनील के विचार

मैकनील ने सामुदायिक संगठन के लक्ष्य को समाज कार्य के लक्ष्य के समान ही माना है क्योंकि दोनों का केंद्र बिंदु मानव समाज ही है सदस्यों की विभिन्न आवश्यकताओं एवं उपलब्ध साधनों के बीच प्रजातांत्रिक जीवन के सिद्धांत के आधार पर आवश्यक साधनों को जुटाना सामुदायिक संगठन का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
मैकनील ने समाज कल्याण के क्षेत्र में सामुदायिक संगठन के निम्नलिखित उद्देश्यों का उल्लेख किया है
  1. आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधनों का विश्लेषण करना।
  2. मानवीय आवश्यकताओं के विषय में तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना
  3. तथ्यों का संश्लेषण, सहसंबंध एवं परीक्षण करना।
  4. उपलब्ध सेवाओं एवं मानवीय आवश्यकताओं संबंधी तथ्यों को मिलाना।
  5. सभी संबंधित व्यक्तियों एवं समूह के प्रतिनिधियों को कार्यक्रम के प्रत्येक चरणों में सहभागी बनाना।
  6. उत्पन्न हो रही विभिन्न सामाजिक समस्याओं के प्रति जनता में रुचि को बढ़ाना और उचित शिक्षा एवं सहभागिता द्वारा उनका समाधान खोजने के लिए जनता को प्रोत्साहित करना।
  7. प्राथमिकता निर्धारित करना।
  8. सेवाओं के स्तरों में सुधार एवं विकास लाना
  9. विभिन्न कल्याणकारी सेवाओं में विद्यमान कमियों का पता लगाना।
  10. संचालित कल्याणकारी सेवाओं के समापन उनका अन्य आवश्यक सेवाओं के साथ समायोजन एवं नई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नई सेवाओं को विकसित करना।
  11. सामुदायिक सदस्यों में शिक्षा के माध्यम से उनके ज्ञान में वृद्धि करना
  12. नैतिक एवं आर्थिक समर्थन को जुटाना।

सेंडरसन एवं पोलसन के विचार

स्पेंडर सन के अनुसार सामुदायिक संगठन का सामान्य उद्देश्य समूहों एवं व्यक्तियों के बीच इस प्रकार के संबंध को विकसित करना है इससे लोगों में एक साथ मिलकर कार्य करने की योग्यता का विकास हो सके तथा वे ऐसी सुविधाओं व संस्थाओं का निर्माण एवं संपादन कर सके जिनके द्वारा वे अपने सर्वोच्च मौलिक मूल्यों को सामुदायिक कल्याण के लिए प्राप्त कर सकें।
      इसके अतिरिक्त सेंडरसन ने इन व्यक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कुछ विशिष्ट उद्देश्यों की आवश्यकता पर बल दिया है जो निम्नलिखित है -
  1. सामुदायिक तादात्म्य की चेतना।
  2. अपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति।
  3. लोगों का सामाजिक जीवन में भाग लेना।
  4. सामुदायिक भावना द्वारा समाज में सामाजिक नियंत्रण
  5. आपसी संघर्ष एवं कला को दूर करने के लिए सदस्यों में सहयोग बढ़ाना।
  6. अवांछित प्रभाव और दशकों से समुदाय की रक्षा करना।
  7. अन्य विभिन्न समुदायों एवं संस्थाओं के साथ सहयोग स्थापित करके आवश्यकताओं की पूर्ति एवं समस्याओं का समाधान करना
  8. समुदाय में एकता स्थापित करना।
  9. सामुदायिक कार्य के लिए समुदाय में नेतृत्व का विकास करना।
इस प्रकारसामुदायिक संगठन का उद्देश्य न केवल एक निश्चित विभाग के एक या कुछ व्यक्तियों की समस्याओं एवं साधनों में क्षमता स्थापित करना है बल्कि समुदाय के संपूर्ण सदस्यों की आवश्यकताओं एवं समुदाय परिधि के अंदर या बाहर सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा उपलब्ध विभिन्न साधनों के बीच संबंध स्थापन के लिए सामुदायिक सदस्यों को उनकी आवश्यकताओं एवं समस्याओं के अनुसार व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से शिक्षित प्रशिक्षित कर उनकी योग्यताओं का विकास करना है।विभिन्न जाति वर्ग एवं संप्रदाय के लोगों में एक दूसरे के अधिकारों एवं कर्तव्यों के महत्व को विकसित करना है जिससे प्रजातांत्रिक रूप से सामुदायिक कल्याण का अधिकाधिक विकास किया जा सके।

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