समाज कार्य से आप क्या समझते है एवं इसे परिभाषित कीजिये
समाज कार्य एक नवीन व्यवसायिक सेवा है जिसमें एक प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता के द्वारा व्यक्ति की मनो सामाजिक समस्याओं का समाधान व्यवसायिक ढंग से किया जाता है । कार्य में मनो सामाजिक समस्याओं के समाधान में भी व्यवसाय ज्ञान एवं निपुणता ओं का उपयोग किया जाता है । यह कार्य समाज कार्य की विशिष्ट कार्य प्रणालियों के द्वारा किया जाता है ।जिनमें में मानवीय व्यवहार के ज्ञान का उपयोग किया जाता है ।समाज कार्य का अर्थ -मानव समाज विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रसित है यह समस्याएं विभिन्न स्वरूपों में मानव समाज में पूर्व काल से ही चली आ रही है गरीबी बेरोजगारी बीमारी एवं निराश्रितता आदि समस्याएं ऐसी है जिसमें मनुष्य का सामाजिक पर्यावरण प्रभावित होता है और उसको कुसमा योजन की समस्याओं का सामना करना पड़ता है । मानव समाज की समस्याओं का स्वरूप भौतिक और मनोसामाजिक दोनों प्रकार का होता है । वैसे तो प्रत्येक समस्या स्वयं में अलग एवं विशिष्ट होती है किंतु समस्याएं आपस में अंतर संबंधित होती हैं और एक दूसरे की उत्पत्ति के कारण भी बन सकती हैं आज का युग विशे षी करण का युग है जिसमें प्रत्येक समस्या को एक विशिष्ट समस्या मानकर उसका समाधान किया जाता है समाज कार्य को विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण व एवं अर्थों में समझा तथा परिभाषित किया है। फिर भी कोई ऐसी परिभाषा विकसित नहीं हो सकी है जो सर्वमान्य एवं सभी समाजों तथा देशों की संस्कृति और सामाजिक परिस्थितियों को अपनी परिधि में सम्मिलित कर सके। इस प्रकार की भिन्नता होना स्वाभाविक ही प्रतीत होती है क्योंकि समाज कार्य का विकास विभिन्न समाजों में उनकी अपनी विशिष्टताओं के अनुसार भिन्न-भिन्न रूपों में हुआ है। किसी समाज में इसका समुचित विकास व्यवसायिक सेवा के रूप में हुआ है। तो कहीं यह दान, दया और मानवता के आधार पर मात्र अर्थ दान के रूप में विकसित हुआ है।
समाज कार्य वैज्ञानिक एवं क्रमबद्ध ज्ञान और प्रणालियों पर आधारित व्यवसाय है। इसकी छः कार्य प्रणालियां है जिनके माध्यम से वह लोगों को सहायता प्रदान करता है। यह सहायता प्रशिक्षित लोगों के द्वारा प्रदान की जाती है।सहायता लेने वाला व्यक्ति सेवार्थी कहलाता है और जो प्रशिक्षित व्यक्ति उसकी सहायता करता है वह सामाजिक कार्यकर्ता कहलाता है। वास्तव में समाज कार्य की इन छः पद्धतियों में कार्यकर्ता और उसके सेवार्थी का संबंध ही सर्व प्रमुख होता है। इन छः पद्धतियों में तीन पद्धतियों को प्राथमिक प्रणाली एवं तीन अन्य सहायक पद्धतियों को द्वितीयक प्रणाली/पद्धतियां या सहायक प्रणाली कहा जाता है
तीन प्राथमिक प्रणालियां
1 वैयक्तिक समाज कार्य
2 समूह कार्य
3 सामुदायिक संगठन हैं
तीन सहायक प्रणालियां
4 समाज कल्याण प्रशासन
5 समाज कार्य शोध
6 सामाजिक क्रिया
सेवार्थी की सहायता का कार्य प्रमुखता इन्हीं पद्धतियों के माध्यम से ही किया जाता है समाज कार्य की इन पद्धतियों का संबंध इनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा के स्वरूप पर निर्भर करता है
समाज कार्य को परिभाषित करने वाले विद्वानों की संख्या सीमित है। अधिकांश समाज कार्य वेत्ताओं ने इसकी परिभाषा न केवल, इसके इतिहास, दर्शन, मूल्य, प्रक्रियाओं, लक्षणों, क्षेत्रों एवं कार्यों का ही विवरण प्रस्तुत किया है जिसके आधार पर समाज कार्य के अर्थ व अवधारणा को समझा जा सकता है। हेलन क्लार्क ने अपनी पुस्तक Principles and Practice of Social Work में समाज कार्य को निम्नलिखित तीन युगों के आधार पर वर्गीकृत करके स्पष्ट करने का प्रयास किया है -
1. प्राचीन काल-
श्रीमती हेलन के अनुसार समाज कार्य की जड़ें मानव समाज की उत्पत्ति के साथ प्राचीन काल से जुड़ी है। उस युग में समाज कार्य का रूप आज के व्यवसायिक समाज कार्य से भिन्न था। प्राचीन काल में निर्बल निर्धन अपाहिज रोग ग्रस्त अनाथ वृद्ध तथा निराश्रित व्यक्तियों की सहायता करना अपना धार्मिक कर्तव्य समझते थे तथा समस्या ग्रस्त ,व्यक्ति की सहायता दया व सहानुभूति की भावना से प्रेरित होकर अर्थदान या वस्तु दान के द्वारा करने का प्रयास करते थे।
2. मध्य काल-
अठ्ठारवीं (18 ) वीं शताब्दी मैं मानवतावादी दृष्टिकोण की उत्पत्ति हुई। इस काल में समाज सेवा की प्रेरणा धर्म या दया की भावना का फल न होकर मानवतावाद पर आधारित पाई जाती है। मानव समाज के प्रति जागरूक हुआ और उसने मनो सामाजिक, आर्थिक एवं शारीरिक कठिनाइयों से पीड़ित व्यक्तियों की सहायता करना अपना कर्तव्य समझकर अपनी क्षमता के अनुरूप जनसेवा में भाग लिया।
3. आधुनिक काल-
प्राचीन काल व मध्यकाल की भांति इस काल में दया, धर्म, व मानवता के प्रति कर्तव्य की भावना के आधार पर सेवा कार्य का प्रचलन नाम मात्र ही रह गया और इसके स्थान पर समाज कार्य व्यवसायिक सेवा कार्य के रूप में विकसित हुआ। समाज कार्य की विशिष्ट विधियों एवं प्रविधियों तथा सिद्धांतों का विकास हुआ जिसके द्वारा समस्या ग्रस्त व्यक्तियों को अपनी सहायता स्वयं करने हेतु प्रेरित व निर्देशित किया जाता है।
उक्त विवरण के आधार पर हम देखते हैं कि विभिन्न युगों में लोगों ने समाज कार्य को विभिन्न रूपों से समझा व देखा है। जिसे हेलेन क्लार्क ने निम्न प्रकार से निरूपित करने का प्रयास किया है। इनके अनुसार समाज कार्य के प्रति समाज के विभिन्न वर्गों के दृष्टिकोणों को भिन्न-भिन्न रूप में विवेचित करके समाज कार्य के प्रति अलग-अलग धारणाओं को भली-भांति समझा जा सकता है।
समाज कार्य के प्रति जनसाधारण का दृष्टिकोण - जनसाधारण की भाषा में दान दया धर्म व सहानुभूति की भावना से प्रेरित होकर समस्या ग्रस्त व्यक्ति की सहायता व सेवा कार्य को समाज कार्य कहते हैं। साधारण व्यक्ति को समाज कार्य संबंधी वैज्ञानिक ज्ञान तथा समाज कार्य की विभिन्न पद्धतियों एवं विधियों की जानकारी नहीं होती परंतु ऐसा अनुमान है कि जो व्यक्ति किसी समस्या ग्रस्त व्यक्ति ,समूह अथवा समुदाय की समस्या समाधान में सहायता करता है उसे सामाजिक कार्यकर्ता तथा उसके कार्यों को समाज कल्याण संबंधी कार्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए लेकिन वास्तविकता यह है कि समाज कार्य के प्रति उक्त दृष्टिकोण पाश्चात्य देशों के साधारण व्यक्तियों का दृष्टिकोण तो हो सकता है परंतु हमारे भारतीय समाज में अधिकांश लोग, निरक्षरता, अज्ञानता पिछड़ेपन, ग्रामीण पृष्ठभूमि तथा व्यवसायिक रूप से प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं द्वारा संचालित व निर्देशित कल्याणकारी संस्था के अभाव के कारण, व्यवसायिक समाज कार्य के प्रति अनभिज्ञ व अज्ञान है अथवा इस व्यवसायिक सेवा के प्रति उनमे गलत धारणा व्याप्त है।
2. समाज कार्य सम्बन्धी अर्द्ध व्यवसायिक दृष्टिकोण - समाज कार्य क्षेत्र में कार्यरत अप्रशिक्षित कार्यकर्ता द्वारा जब किसी कल्याणकारी संस्था के कार्यक्रमों का अनुपालन किया जाता है तो इस प्रकार के समाज कार्य को अर्द्ध व्यवसायिक समाज कार्य की संज्ञा दी जाती है। ऐसे अप्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की इच्छा एवं विचार है कि वे कल्याणकारी संस्थाओं के माध्यम से समाज कल्याण कार्य का संचालन एवं अभ्यास करते हैं अतः उन्हें व्यवसायिक रूप से प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं के अनुरूप ही पद , स्तर व उपाधि प्रदान की जाए। श्रीमती क्लार्क ने इस विचारधारा को अस्वीकार करते हुए दो प्रमुख दोषों का अवलोकन व स्पष्टीकरण किया है। प्रथम तो यह कि यह कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता कि -- किसी समाज कल्याणकारी संस्था से सम्बद्ध रहकर कार्य करने वाले सभी कार्यकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता होते हैं इस कारण प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ताओं के संदर्भ में प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ताओं को व्यवसायिक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मान्यता नहीं प्रदान की जा सकती। दूसरी बात यह कि समाज कल्याण संस्था से संबद्ध सभी कार्यकर्ताओं को व्यवसायिक सामाजिक कार्यकर्ता का पद व स्तर नहीं प्रदान किया जा सकता क्योंकि समाज कार्य को व्यवसाय के रूप में अपनाने वाले कार्यकर्ताओं को समाज कार्य के क्षेत्रान्तर्गत विशेष शिक्षा व प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य होता है अर्थात व्यवसायिक स्तर प्रदान करने के लिए यह देखना आवश्यक होता है कि सामाजिक कार्यकर्ता को किस प्रकार व स्तर का प्रशिक्षण व व्यवसायिक ज्ञान दिया गया है। परंतु समाज कल्याण संस्थाओं में कार्यरत अपने आप को व्यवसाय कार्यकर्ता के रूप में पद व स्तर प्राप्त करने के अधिकारी समझने वाले अप्रशिक्षित कार्यकर्ता अपने उक्त मत को व्यक्त करने के पूर्व ना तो इस बात का ध्यान देते हैं कि प्रशिक्षित कार्यकर्ता तथा उनके बीच क्या अंतर है और ना ही अन्य मान्य व स्वीकृति प्राप्त व्यवसायों से अपनी तुलना ही करते हैं वरन केवल इस आधार पर कि वह समाज कार्य के अंतर्गत आने वाली कल्याणकारी संस्था से संबद्ध है अपने को व्यवसाय कार्यकर्ता के रूप में पद व स्तर पाने की अभिलाषा करते हैं जो सर्वथा अमान्य एवं अनुचित है।
समाज कार्य के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण - समाज कार्य के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण का व्याख्या करने के सम्बन्ध में श्रीमती हेलन क्लार्क ने डॉ हेलेन विटमर की विचारधारा का सहारा लिया है। जबकि विटमर के विचार की आधारशिला मैलिनोस्की द्वारा उद्धृत सामाजिक संस्था की परिभाषा है। मैलिनोस्की द्वारा दी गयी सामाजिक संस्था की परिभाषा में सम्मिलित किये गए तत्वों का अवलोकन विटमर ने समाज कार्य के अंतर्गत किया और उसी आधार पर समाज कार्य को एक सामाजिक संस्था के रूप में स्वीकार किया है उन्होंने समाज कार्य को एक सामाजिक संस्था के रूप में स्वीकार करने के प्रमुख कारणों की व्याख्या करते हुए समाज कार्य के निम्न तत्वों पर प्रकाश डाला हैं :
समाज कार्य की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं
समाज कार्य की परिभाषाएं
समाज कार्य की परिभाषा को लेकर विभिन्न देशों तथा समुदाय के विद्वानों की अलग-अलग धारणाएं रही है किसी ने इसे व्यवसायिक सेवा के रूप में देखा तो किसी ने इसे परोपकार आदि के रूप में इसका कारण उस राष्ट्र अथवा समुदाय की परिस्थितियां परंपराएं संस्कृति मूल्य आदि हैं जिन्होंने उसके दृष्टिकोण को निर्धारित किया है
विटमर 1942 के अनुसार -
समाज कार्य का प्रमुख कार्य व्यक्तियों की उन कठिनाइयों को दूर करने में सहायता देना है जो एक संगठित समूह की सेवाओं के प्रयोग से या उनके एक संगठित समूह के सदस्यों के रूप में कार्य सम्पादन से संबंधित है ।
फिंक के शब्दों में - समाज कार्य अकेले अथवा समूह में व्यक्तियों को वर्तमान अथवा भावी भविष्य की ऐसी सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक, बाधाओं जो समाज में पूर्ण अथवा प्रभावपूर्ण सहभागिता को रोकती है अथवा रोक सकती हैं, के विरुद्ध सहायता प्रदान करने हेतु प्ररचित सेवाओं का प्रावधान है
एलिस चेनी 1936 के अनुसार - समाज कार्य में वह सब अच्छे प्रयास सम्मिलित है जिनका संबंध सामाजिक सामाजिक संबंधों से है और जो वैज्ञानिक ज्ञान और वैज्ञानिक प्रणालियों का प्रयोग करते हैं।
सुशील चंद्र के मतानुसार- समाज कार्य जीवन के मानदंडों को उन्नत बनाने तथा समाज के सामाजिक विकास की किसी स्थिति में व्यक्ति परिवार तथा समूह के सामाजिक आर्थिक राजनीतिक एवं सांस्कृतिक कल्याण हेतु सामाजिक नीति के कार्यान्वयन में सार्वजनिक अथवा निजी प्रयास द्वारा की गई गतिशील क्रिया है ।
फ्रीडलैंडर के अनुसार - समाज कार्य वैज्ञानिक ज्ञान एवं मानवीय संबंधों में निपुणता पर आधारित एक व्यवसायिक सेवा है जो व्यक्तियों की अकेले अथवा समूह में सामाजिक एवं व्यक्ति संतोष एवं स्वतंत्रता प्राप्त करने में सहायता करती है ।
समाज कार्य एक व्यवसायिक सेवा है जो वैज्ञानिक ज्ञान एवं निपुणताओं मानव संबंधों की पर आधारित है यह व्यक्तियों की अकेले यह सब में सहायता करता है ताकि वह सामाजिक एवं व्यक्तिगत संतुष्टि एवं स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें ।
बोएम 1959 के अनुसार - समाज कार्य व्यक्तियों की व्यक्तिगत एवं सामाजिक परिस्थिति में सामाजिक कार्यात्मक ता को बढ़ाने के लिए ऐसे प्रक्रियाओं का प्रयोग करता है जिनका संबंध मनुष्य और उनके पर्यावरण के बीच परस्पर संबंध क्रियाओं से है इन क्रियाओं को 3 कार्यों में विभाजित किया जा सकता है विकृत योग्यता का पुणे स्थापन वैयक्तिक एवं सामाजिक साधनों की उपलब्धि एवं सामाजिक कार्य में विकल्प का विरोध।
स्ट्रूप 1960 के अनुसार - समाज कार्य ऐसी कला है जिसमें विभिन्न साधनों का प्रयोग व्यक्ति के सामूहिक एवं सामुदायिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है और इसके लिए ऐसी वैधानिक प्रणाली का प्रयोग किया जाता है जिसमें लोगों की सहायता की जाती है कि वे स्वयं अपनी सहायता कर सकें।
इंडियन कॉन्फ्रेंस आफ सोशल वर्क के अनुसार - समाज कार्य मानवतावादी दर्शन वैधानिक ज्ञान एवं प्राविधिक निपुणता ऊपर आधारित व्यक्तियों अथवा समूह एवं समुदाय को एक सुखी एवं संपूर्ण जीवन व्यतीत करने में सहायता प्रदान करने हेतु एक कल्याणकारी क्रिया है।
कोनोप्का 1958 के अनुसार - समाज कार्य एक अस्तित्व है जिसके तीन स्पष्ट रूप से भिन्न परंतु परस्पर संबंधित भाग है , सामाजिक सेवाओं का एक जाल, सावधानी के साथ विकसित प्रणालियों एवं प्रक्रियाएं तथा सामाजिक नीति जो सामाजिक संस्थाओं और व्यक्तियों द्वारा प्रकट होती है । यह तीनों मनुष्यों के विषय में एक मत, उनके परस्पर संबंधों और उनके नैतिक कर्तव्यों पर आधारित है।
क्लार्क के अनुसार - समाज कार्य व्यवसायिक सेवा का एक रूप है जिसका आधार ज्ञान एवं निपुण अदाओं का ऐसा मिश्रण है जिसका कुछ भाग समाज कार्य का विशेष भाग है और कुछ नहीं , जो सामाजिक पर्यावरण में आवश्यकता ओं की संतुष्टि करने में व्यक्ति की सहायता करने का प्रयास करता है कि जहां तक हो सके उन बाधाओं को दूर किया जा सके जो लोगों को सर्वोत्तम की प्राप्ति के वे योग्य है से रोकती है।
यूनाइटेड नेशन्स ऑर्गनाइजेशन द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार- समाज कार्य पीड़ितों को व्यक्तिगत रूप से दान देने, आर्थिक व भौतिक सहायता के माध्यम से योगदान पर आधारित है यह भेदभाव रहित तथा समान रूप से 20 ओवर मानवता के कल्याण पर केंद्रित है तथा विशिष्टता के साथ हैं अनिवार्यत किसी संगठन द्वारा दी जाती है ।
इंडियन कॉन्फ्रेंस ऑफ सोशल वर्क 1957 के अनुसार -
इंडियन कांफ्रेंस ऑफ सोशल वर्क के अनुसार समाज कार्य एक कल्याणकारी किया है जो मानवता सेवी लोक उपकारी दर्शन वैज्ञानिक ज्ञान प्राविधिक निपुणता ओं पर आधारित है जिसका उद्देश्य व्यक्तियों समूहों या समुदाय की सहायता करना है जिससे वह एक सुखी एवं संपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें।
इस परिभाषा के दो पक्ष है एक समाज कार्य को कल्याणकारी क्रिया माना है जो वैज्ञानिक ज्ञान और कार्यकर्ता की सहायता करने की प्राविधिक निपुणता ओं पर आधारित है दूसरे इन कल्याणकारी क्रियाओं का उद्देश्य व्यक्तियों समूहों या समुदाय के सदस्यों को सुखी और संपूर्ण जीवन व्यतीत करने में सहायता प्रदान करना है।
इस प्रकार समाज कार्य वैज्ञानिक ज्ञान, प्राविधिक निपुणता एवं मानवतावादी दर्शन का प्रयोग करते हुए मनो सामाजिक समस्याओं से ग्रस्त लोगों को वैयक्तिक सामूहिक एवं सामुदायिक स्तर पर सहायता प्रदान करने की एक क्रिया है जो उनकी इन समस्याओं को पहचानने उन पर ध्यान केंद्रित करने उनके कारणों को जानने तथा उनका स्वतः समाधान करने की क्षमता को विकसित करती है तथा सामाजिक व्यवस्था की गड़बड़ियों को दूर करती है इसमें वांछित परिवर्तन लाती है ताकि व्यक्ति की सामाजिक क्रिया प्रभावपूर्ण हो सके उसका समायोजन संतोषजनक हो सके और उसे सुख शांति का अनुभव हो सके।
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने धन्यवाद🙏
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