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मानव संसाधन विकास की अवधारणा



      मानव संसाधन विकास की अवधारणा 


निस्संदेह , एक राष्ट्र के विकास के लिए प्राकृतिक संसाधन एक महत्वपूर्ण घटक होते है ,परन्तु मानवीय संसाधनों ने स्वयं अपने महत्त्व को प्राप्त किया है , क्योकि कोई भी कार्य मानवीय प्रयत्नों के बिना सम्पन्न नहीं हो सकता है।  मानवीय संसाधन आर्थिक विकास की प्रक्रिया में साधन एवं लक्ष्य दोनों के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते है।  वास्तव में ये उत्पादन का साधन एवं लक्ष्य दोनों होते है।  कोई भी राष्ट्र मानव मस्तिष्क एवं शरीर की कुशलता के प्रभावी उपयोग के बिना विकास नहीं कर सकता है। अतः एक राष्ट्र एवं संगठन के लिए मानवीय संसाधन सर्वाधिक उपयोगी संसाधन होते है तथा इनका बहुमुखी विकास किया जाना अत्यन्त आवश्यक होता है।
                 मानवीय संसाधनों का विकास ,अन्य संसाधनों जैसे - खनिज ,विद्युत तथा वन्य संसाधनों के विकास के समान विषय नहीं है , बल्कि इसमें प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादों के समुचित उपयोग के लिए मानव मस्तिष्क को विकसित किया जाता है।  मानवीय संसाधनों के विकास के विषय में स्वयं मनुष्यों के हित लाभ के लिए मनुष्यों का विकास किया जाता है यही विकास का उद्देश्य होता है।

            एक संगठन के सम्बन्ध में मानवीय संसाधन शब्द , संगठन की श्रम शक्ति ( Work Force ) के ज्ञान , निपुणताओं , सृजनात्मक योग्यताओं , प्रतिभाओं , कौशल , मूल्यों एवं विश्वासों से सम्बंधित है.  मानवीय संसाधनों के अधिक महत्वपूर्ण पहलू कौशल , मूल्य , मनोवृत्तियों तथा विश्वास है।  मानवीय संसाधनों के उपयोग की सापेक्ष मूल्य की संवृद्धि मानवीय संसाधन पहलुओं , जैसे  ज्ञान, निपुणताओं ,सृजनात्मक योग्यताओं एवं प्रतिभाओं में सुधार तथा अन्य पहलुओं ,जैसे - मूल्यों , विश्वासों कौशल एवं मनोवृत्तियों को समूह संगठन एवं सामान्य रूप से समाज की परिवर्तित आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने पर निर्भर करती है।  यह प्रक्रिया मानव संसाधन विकास का मूल तत्व है।
एक संगठन का प्रभावी निष्पादन केवल उपलब्ध संसाधनों पर ही नहीं बल्कि संगठन द्वारा समय-समय पर जैसा कि आवश्यक हो इसकी गुणवत्ता तथा क्षमता पर भी निर्भर करता है दो राष्ट्रों के बीच विभिन्नता एक संगठन का प्रभावी निष्पादन केवल उपलब्ध संसाधनों पर ही नहीं बल्कि संगठन द्वारा समय समय पर जैसा की आवश्यक हो इस की गुणवत्ता तक्षक क्षमता पर भी निर्भर करता है दो राष्ट्रों के बीच विभिन्नता वह ग्रुप से मानवीय संसाधनों की गुणवत्ता के स्तर पर निर्भर करती है इसी प्रकार से दो संगठनों के निष्पादन के विषय में भिन्नता भी मानवीय संसाधनों के उपयोग के सापेक्ष मून पर निर्भर करती है इसके अतिरिक्त
उत्पादन प्रक्रिया की क्षमता तथा प्रबंधन के विभिन्न क्षेत्र 1 ग्राहक विस्तार क्षेत्र के लिए मानव संसाधन विकास के स्तर पर निर्भर होते हैं

मानव संसाधन विकास की अवधारणा का उदविकास  - हाल ही के वर्षो में मानव संसाधन विकास शब्द अत्यधिक लोकप्रिय हो गया है। इसकी अवधारणा का इतिहास अधिक पुराना नहीं है। मानव संसाधन विकास की अवधारणा को औपचारिक रूप से प्रो. लेंन नेडलर में 1969 में अमेरिका में प्रशिक्षण एवं विकास सम्मलेन में प्रस्तुत किया था।  भारत में , लार्सन एंड टूब्रो  लि. प्रथम कंपनी थी जिसने निजी क्षेत्र के उद्योग के रूप में 1975 में कर्मचारियों को विकास की सुविधाओं को प्रदान करने के उद्देश्य के साथ इस अवधारणा को प्रस्तुत किया। सार्वजनिक क्षेत्र के सरकारी उद्योगों में भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि.थी जिसने सर्वप्रथम 1980 में इस अवधारणा को प्रस्तुत किया। मानव  संसाधन विकास की अवधारणा के उद्भव के दौरान, बहुत से संगठनों की धारणा थी कि यह प्रशिक्षण एवं विकास की अवधारणा के अतिरिक्त कुछ भी नहींं है।  बाद के वर्षों में भारत में मानव संसाधन विकास केे प्रति एक व्यवसायिक दृष्टिकोण अपनाया गया।  धीरे धीरे इस अवधारणा को सार्वजनिक एवं निजी तथा छोटे बड़े सभी प्रकार के संगठनों में अपनाया जाने लगा। भारत में केंद्रीय स्तर पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय का गठन किया गया।  इसके अतिरिक्त देश में अन्य अग्रणी प्रबंध संस्थानों द्वारा मानव संसाधन विकास के पाठ्यक्रम भी संचालित किए जाने लगे।,

मानव संसाधन विकास का अर्थ एवं परिभाषाएं

मानवीय संसाधनों को एक संगठन के लोगों के ज्ञान, निपुणताओ , मनोवृत्तियों , वचनबद्धता, मूल्यों एवं अभिरुचियों की संपूर्णता के रूप में समझा जा सकता है।  विकास का अर्थ क्षमताओं को अर्जित करना है, जोकि वर्तमान कार्यों अथवा भविष्य के अपेक्षित कार्यों को संपन्न करने के लिए आवश्यक है।  इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मानव संसाधन विकास का तात्पर्य संगठनात्मक एवं व्यक्तिगत लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नवीन कार्यों को सम्पन्न करने हेतु पहल करने के लिए लोगों को प्रेरित करने के उद्देश्य से उनमें छिपी हुई विशेषताओं को विकसित करना अथवा उसके लिए दस्तक देना है। मानव संसाधन विकास, मानव संसाधन प्रबंधन के अंतर्गत एक सकारात्मक अवधारणा है।  इसका लक्ष्य कर्मचारियों संगठन तथा सामान्य रूप से समाज के कल्याण हेतु योगदान देने के उद्देश्य से मानवीय  संसाधनों का सम्पूर्ण  विकास करना है।

  जैसा कि पूर्व में वर्णित किया गया है मानव संसाधन विकास मुख्य रूप से लोगों के ज्ञान निपुणताओं तथा क्षमताओं के विकास से संबंधित है।  जब हम इसे एक लोगों से संबंधित अवधारणा के रूप में संबोधित करते हैं तब अनेक प्रश्न मस्तिष्क में उभरते हैं जैसे लोगों को वृहत्तर एवं राष्ट्रीय संदर्भ में विकसित किया जाना चाहिए अथवा लघु स्तर पर संगठनात्मक संदर्भ में ? क्या यह वृहत स्तर पर तथा लघु स्तर पर भिन्न-भिन्न होता है ? मानव संसाधन विकास संगठनात्मक (लघु) तथा राष्ट्रीय ( वृहत ) दोनों स्तरों के लिए लागू होता है। तथापि यह वृहत  एवं लघु दोनों स्तरों पर उपयोगी होता है।

            वृहत स्तर पर मानव संसाधन विकास राष्ट्र के कल्याण के लिए लोगों के विकास से संबंधित होता है। यह लोगों के स्वास्थ्य, क्षमताओं, निपुणताओ  तथा मनोवृतियों की देखरेख करता है।  जो समग्र रूप से राष्ट्र के विकास के लिए अत्यधिक उपयोगी है। राष्ट्रीय आय तथा आर्थिक वृद्धि की गणना करने के दौरान, भावी मानव संसाधन विकास की अवधारणा व्यक्तियों की क्षमताओं, मनोवृत्तिओं,महत्वाकांक्षाओं ,निपुणताओ तथा ज्ञान आदि का परीक्षण करता है तथा आर्थिक नियोजन के लिए एक ठोस आधार स्थापित करता है। लघु स्तर पर मानव संसाधन विकास, संगठनों के अंतर्गत आधारभूत   विकास से सम्बन्धित होता है। प्रायः लघु स्तर पर मानव संसाधन विकास संगठन के मानव नियोजन चयन प्रशिक्षण निष्पादन मूल्यांकन ,विकास, क्षमताओ के मूल्यांकन  क्षतिपूर्ति ,संगठनात्मक विकास आदि की चर्चा का विषय है। मानव  संसाधन विकास की इन सभी क्षेत्रों से संबद्धता प्रमुख रुप से लोगों को वर्तमान कार्य की चुनौतियों का मुकाबला करने तथा भविष्य के  कार्य की आवश्यकताओं को स्वीकार करने हेतु उन्हें लैस करने से संबंधित उनमें कुछ निश्चित नवीन क्षमताओ  का विकास करने के एक उद्देश्य के साथ है।  परंतु यहां पर हम संगठनात्मक दृष्टिकोण से मानव संसाधन विकास का अध्यन कर रहे हैं
                       मानव संसाधन विकास की अवधारणा की उत्पत्ति अभी हाल ही में हुई है तथा वर्तमान में यह विकासशील अवस्था में है। परिणामस्वरूप यह अवधारणा अभी भी पूर्णतया स्पष्ट नहीं है तथा प्रायः प्रबंधकों एवं संगठनों द्वारा इसे प्रशिक्षण एवं विकास के पर्यायवाची के रूप में देखा जाता है।  देश में बहुत से संगठनों ने अपने प्रशिक्षण विभाग को मानव संसाधन विकास विभाग के नाम से परिवर्तित कर दिया है।  यहां तक कि कुछ संगठनों ने तो अपने कार्मिक विभाग को ही मानव संसाधन विभाग के नाम से परिवर्तित कर दिया है अतः यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि मानव संसाधन विकास की सुस्पष्ट ,सुसंगत एवं उपयुक्त परिभाषा को प्रस्तुत किया जाए , जिससे की इसकी अवधारणा पूर्ण रूप से स्पष्ट हो सके।
                        मानव संसाधन विकास की अवधारणा की अभी हाल ही में हुई उत्पत्ति के कारण अब तक बहुत अधिक विद्वानों ने इसे भली प्रकार से अभिव्यक्त नहीं किया है फिर भी कुछ विद्वानों ने इसको अपने अपने दृष्टिकोण से परिभाषित करने का प्रयत्न किया है जिसका विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

    लियोनार्ड नेडलर के अनुसार - मानव संसाधन विकास वे  सीखने के अनुभव है जो कि व्यवहार संबंधी परिवर्तन की संभावना को उत्पन्न करने के लिए एक अवधि विशेष के लिए संगठित एवं नियोजित किए गए हैं।              सीखने का अनुभव शब्द अर्थ पूर्ण अथवा उद्देश्य पूर्ण सीखने से संबंधित है ना कि आकस्मिक सीखने से।

    टीवी राव के अनुसार- मानव संसाधन विकास एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक संगठन के कर्मचारियों की नियोजित ढंग से अग्रलिखित कार्यों के लिए सतत सहायता की जाती है : 1 - उनकी वर्तमान तथा भविष्य की भूमिकाओं से संबंधित कार्यों के निष्पादन हेतु क्षमताओं को प्राप्त करना अथवा कुशाग्र बनाना,  2 - स्वयं उनके तथा अथवा संगठनात्मक विकास के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उनकी व्यक्तियों के रूप में सामान्य क्षमताओं का विकास करना तथा उनकी आंतरिक शक्तियों की खोज करना एवं उनका प्रयोग करना, तथा 3 - संगठनात्मक संस्कृति का विकास करना जिसके अंतर्गत वरिष्ठ अधीनस्थ सम्बन्ध टीम भावना तथा उप इकाइयों के बीच सहयोग की भावना सुदृढ़ हो तथा जो कर्मचारियों व्यवसायिक कल्याण अभिप्रेरणा तथा आत्म सम्मान में योगदान दे सकें।

          एक समग्र एवं संपूर्ण परिभाषा के रूप में कहा जा सकता है कि संगठनात्मक दृष्टिकोण से मानव संसाधन विकास एक प्रक्रिया है।  जिसके अंतर्गत एक संगठन के कर्मचारियों को तकनीकी प्रबंधकीय  एवं व्यवहार सम्बन्धी ज्ञान निपुणता एवं क्षमताओं को प्राप्त करने एवं विकसित करने तथा संगठनात्मक सामूहिक व्यक्तिगत एवं सामाजिक लक्ष्यों के प्रति सकारात्मक योगदान देने के उद्देश्य के साथ श्रेष्ठ मानवीय शक्तियों को प्राप्त करने के द्वारा वर्तमान एवं भविष्य की भूमिकाओं को संपन्न करने हेतु आवश्यक मूल्यों विश्वास एवं मनोवृत्तियों को ढालने के लिए सहायता की जाती है अथवा अभिप्रेरित किया जाता है।
   

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