ग्रामीण समुदाय की अवधारणा एवं विशेषताएं-
प्रारंभिक काल से ही मानव जीवन का निवास स्थान ग्रामीण समुदाय रहा है धीरे-धीरे एक ऐसा समय आया जब हमारी ग्रामीण जनसंख्या चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई आज औद्योगीकरण शहरीकरण का प्रभाव मानव को शहर की तरह प्रोत्साहित तो कर रहा है लेकिन आज भी शहरी दूषित वातावरण से प्रभावित लोग ग्रामीण पवित्रता एवं शुद्धता को देखकर ग्रामीण समुदाय में बसने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं।
आज ग्रामीण समुदाय के बदलते परिवेश में ग्रामीण समुदाय को परिभाषित करना कठिन है ग्रामीण समुदाय की कुछ प्राचीन प्रचलित विशेषताएं जैसे कृषि का मुख्य व्यवसाय होना आज ग्रामीण समुदाय के बदलते परिवेश में ग्रामीण समुदाय को परिभाषित करना कठिन है ग्रामीण समुदाय की कुछ प्राचीन प्रचलित विशेषताएं जैसे कृषि का मुख्य व्यवसाय हो ना हम भावना साधारण जीवन किसका आदि सार्वभौमिक थी लेकिन आज और धोबी करण बढ़ती हुई जनसंख्या एवं ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का प्रभाव ग्रामीण समुदाय में कुछ आश्चर्यजनक परिवर्तन ले आया है इसलिए ग्रामीण जीवन शहरी जीवन के समीप साता दिखाई दे रहा है आता शहरी समुदाय से विपिन ग्रामीण समुदाय को परिभाषित करना कठिन है ग्रामीण समुदाय की कुछ परिभाषा निंलिखित थे-
एन. एल. सिम्स के अनुसार समाजशास्त्रीय में ग्रामीण समुदाय शब्द को कुछ ऐसे विस्तृत क्षेत्रों तक सीमित कर देने की बढ़ती हुई प्रवृत्ति है जिनमें कि सब या अधिकतर मानवीय स्वार्थों की पूर्ति होती है।
स्पष्ट है कि आप ग्रामीण समुदाय को अधिकाधिक मानवीय स्वार्थों की पूर्ति का विस्तृत क्षेत्र मानते हैं
मेरिल और एलरिज - के अनुसार ग्रामीण समुदाय के अंतर्गत संस्थाओं और ऐसे व्यक्तियों का संकलन होता है जो छोटे से केंद्र के चारों और संगठित होते हैं तथा सामान्य प्राकृतिक हितों में भाग लेते हैं।
आपने अपनी परिभाषा में ग्रामीण समुदाय को संस्थाओं और व्यक्तियों का संकलन माना है जो प्राकृतिक हितों में भाग लेते हैं
इन उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि ग्रामीण समुदाय एक ऐसे भू- क्षेत्र का नाम है जहां के व्यक्तियों का जीवन कृषि एवं संबंधित कार्य पर निर्भर है और उनमें एक दूसरे के प्रति कुछ अधिक लगाव नजदीक का संबंध तथा उनका जीवन सामाजिक मूल्यों एवं संस्थाओं से प्रभावित होता है।
ग्रामीण समुदाय की विशेषताएं-
ग्रामीण समुदाय की कुछ ऐसी विशेषताएं होती हैं जो अन्य समुदायों में नहीं पाई जाती हैं। ग्रामीण समुदाय में पाए जाने वाला प्रतिमान एक विशेष प्रकार का होता है जो आज भी कुछ सीमा तक नगर समुदाय से भिन्न है ग्रामीण समुदाय की विशेषताओ में निम्नलिखित प्रमुख हैं।
1. - कृषि व्यवसाय-, ग्रामीण आंचल में रहने वाले अधिकाधिक ग्रामवासियों का खेती योग्य जमीन पर स्वामित्व होता है, खेती करना और कराना उन्हें उनके परिवार के बयोवृद्ध सदस्यों द्वारा प्राप्त होता है। धीरे-धीरे आज सरकार के बढ़ते कृषि विकास कार्यक्रम एवं उपलब्ध आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण के फलस्वरुप उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। यद्यपि एक ग्रामीण क्षेत्र में कुछ ऐसे भी परिवार होते हैं जिनके पास खेती योग जमीन नहीं होती। वे लोहारी ,सोनारी जैसे छोटे छोटे उद्योग धंधों में लगे रहते हैं ,लेकिन उनके भी दिल में कृषि के प्रति लगाव होता है। कृषकों को वे बराबर सम्मानित करते है तथा महसूस करते है कि काश उनके पास भी खेती योग जमीन होती। इस प्रकार स्पष्ट है कि उनमें भूमि के प्रति अटूट श्रद्धा होती है। कुछ गरीब और कृषि योग जमीन न रखने वाले ग्रामीण वासियों का भी जीवन कृषि कार्य से जुड़ा होता है अर्थात उनका जीवन भी कृषि कार्य पर निर्भर होता है।
2. -प्राकृतिक निकटता- जैसाकि हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि ग्रामीण वासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं उससे संबंधित कार्य होता है। सभी जानते हैं कि खेती का सीधा संबंध प्रकृति से है। स्पष्ट है कि ग्रामीण जीवन प्रकृति पर आश्रित रहता है। इसीलिए मैक्समूलर ने लिखा है यही कारण है कि भारत वर्ष में जोकि गांवों का देश है, सूर्य, चंद्र, वरुण, गंगा, आदि भी देवी देवताओं के रूप में पूजे जाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि ग्रामीण नागरिक प्रकृति के भयंकर एवं कोमल रूप से पूर्ण परिचित होता है और उसके रमणीक रूप की आकांक्षा करता है l
3. जातिवाद एवं धर्म का अधिक महत्व- रूढ़िवादिता एवं परम्परावाद ग्रामीण जीवन के मूल समाजशास्त्रीय लक्षण है। फलस्वरूप आज भी हमारे ग्रामीण समुदाय में अधिकाधिक लोगों की जातिवाद धर्मवाद में अटूट श्रद्धा है। देखा जाता है कि ग्रामीण निवासी अपने-अपने धर्म एवं जाति के बड़प्पन में ही अपना सम्मान समझते हैं। ग्रामीण समुदाय में जातीयता पर ही पंचायतों का निर्माण होता है। ग्रामीण समाज में छुआछूत व संकीर्णता पर विशेष बल दिया जाता है। इसी प्रकार उनको विश्वास होता है कि पुण्य कार्यों के द्वारा ही मोक्ष की प्राप्ति होती है और स्वर्ग की उपलब्धि भी उसी पर निर्भर है स्वर्ग और नर्क की भावना से ही व्यक्ति पापों से दूर रहता है।
4. सरल और सादा जीवन- ग्रामीण समुदाय के अधिकाधिक सदस्यों का जीवन सरल एवं सामान्य होता है इनके ऊपर शहरी यह चमक धमक का प्रभाव कम होता है उनका जीवन चिंता से सुदूर सादगी में रमा होता है उनका भोजन खानपान एवं रहन सहन सादा एवं शुद्ध होता है गांव का शिष्टाचार आचार विचार एवं व्यवहार सरल एवं वास्तविक होता है तथा अतिथि के प्रति अटूट श्रद्धा एवं लगाव होता है।
5. संयुक्त परिवार- ग्रामीण समुदाय में संयुक्त परिवार का अपना विशेष महत्व है। इसीलिए ग्रामीण लोग पारिवारिक सम्मान के विषय में सर्वदा सजग रहते हैं। परिवार को टूटने से बचाना तथा पारिवारिक समस्याओं को अन्य परिवारों से गोपनीय रख निपटाने का वे भरसक प्रयास करते हैं। पारिवारिक विघटन का संबंध उनकी सामाजिक परिस्थिति एवं सम्मान से जुड़ा होता है। इसीलिए परिवार का मुखिया एवं बड़े बूढ़े सदस्य इसे अपना सम्मान समझ परिवार की एकता को बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।
6. सामाजिक जीवन में समीपता- वास्तव में ग्रामीण जीवन में अत्यधिक समीपता पाई जाती है।अधिकाधिक ग्रामीण समुदायों के केवल व्यवसायिक समीपता ही नहीं, अपितु उनके सामाजिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन में अत्यधिक समीपता पाई जाती है। इसी समीपता का मुख्य कारण कृषि एवं उससे संबंधित व्यवसाय है। यदि कृषि को ग्रामीण समुदाय की धुरी माना जाए तो गलत न होगा जोकि सम्पूर्ण ग्रामीण परिवार को एक दूसरे के समीप लाता है। इसे समीपता का दूसरा प्रमुख कारण ग्रामीण समुदाय में समान धर्म के लोगों की बाहुल्यता हैं।
7. सामुदायिक भावना- ग्रामीण समुदाय की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनमें व्याप्त सामुदायिक भावना है। ग्रामीण समुदाय के सदस्यों में व्यक्तिगत निर्भरता के स्थान पर सामुदायिक निर्भरता अधिक पाई जाती है। इसलिए लोग एक दूसरे पर आश्रित होते हैं। सामुदायिक विकास एवं विघटन के लिए न केवल समुदाय का व्यक्ति विशेष जिम्मेदार होता है बल्कि संपूर्ण सदस्यों को जिम्मेदार माना जाता है। समुदाय नियंत्रण एवं सदस्यों के व्यवहारों का नियमन भी वहां के सदस्यों पर निर्भर होता है। सामुदायिक सदस्य बुराइयों के जिम्मेदार सदस्यों को दंड देने, आपसी तालमेल को बनाए रखने तथा पारस्परिक विकास के लिए नियम भी बनाते है। ग्रामीण समुदाय के एक सीमित क्षेत्र में बसने के कारण सदस्यों की आपसी समीपता बढ़ जाती है, उनमें स्वभावतः हम की भावना का विकास हो जाता है जिसे सामुदायिक भवन का नाम दिया जाता है।
8. स्त्रियों की निम्न स्थिति. ग्रामीण समुदाय की अशिक्षा ,अज्ञानता एवं रूढ़िवादिता का सीधा प्रभाव ग्रामीण स्त्रियों की स्थिति पर पड़ता है। भारतीय ग्रामीण समुदाय में अभी भी अशिक्षा काफी अधिक है। परिणाम स्वरूप ग्रामीण सदस्यों का व्यवहार रूढ़ियों एवं पुराने सामाजिक मूल्यों से प्रभावित होता है। कुछ भारतीय ग्रामीण स्त्रियों में शिक्षा का प्रभाव ग्रामीण महिलाओं के जीवन में ऐच्छिक परिवर्तन लाने में सहायक हो रहा है लेकिन आज भी अधिकाधिक ग्रामीण समुदाय में बाल विवाह ,दहेज़ प्रथा ,पर्दा प्रथा ,लड़कियों को शिक्षा एवं बाहर नौकरी से रोकना आदि सार्वभौमिक दिखाई देती है जो स्त्रियों की गिरी दशा के लिए उत्तरदायी है।
9. धर्म एवं परंपरागत बातों में आर्थिक विश्वास- ग्रामीण लोग धर्म पुरानी परंपराओं एवं रूढ़ियों में विश्वास करते हैं। तथा उनका जीवन सामुदायिक व्यवहार धार्मिक नियमों एवं परंपराओं से प्रभावित होता है। ग्रामीण समुदाय का सीमित क्षेत्र उसे बाहरी दुनिया के प्रभावों से मुक्त रखता है और इसी कारण उनमें विस्तृत दृष्टिकोण भी आसानी से नहीं पनप पाता। अतः ग्रामीण लोग नई चीजों से दूर अपनी पुरानी परंपराओं में लिप्त रहते हैं तथा धर्म परायण बने रहते हैं।
10. भाग्यवादिता एवं शिक्षा का बाहुल्य- ग्रामीण समुदाय में शिक्षा का प्रचार प्रसार अभी भी कम है। शिक्षा के अभाव में ग्रामवासी अनेक अंधविश्वासों और कुसंस्कारों का शिकार बने रहते हैं तथा भाग्यवादिता पर अधिक विश्वास करते हैं।
इन उपर्युक्त ग्रामीण विशेषताओं से स्पष्ट है कि परंपरावादिता उनकी सर्वप्रमुख विशेषता है। जैसे-जैसे सरकार एवं स्वयंसेवी संगठनों के प्रयास से ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का कार्यान्वयन एवं विकास बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे उनके जीवन में परिवर्तन आता जा रहा है। आज कुछ गांव में हो रहे ऐच्छिक परिवर्तनों एवं विकासात्मक विशेषताओं से स्पष्ट होता है कि ग्रामीण समुदाय शहरी समुदाय की विशेषताओं के नजदीक आता जा रहा है। कुछ ग्रामीण समुदाय आज भी ऐसे विकसित दिखाई देते हैं जिनको देखने से ज्ञात होता है कि इनमें और शहरी समुदायों में बहुत कम दूरी रह गई है।
ग्रामीण समुदाय का बदलता हुआ स्वरूप-
परिवर्तन समाज का परंपरागत नियम है। इसलिए समय के साथ-साथ समाज बदलता रहता है भले ही बदलाव की गति मंद हो या तीव्र। भारतीय समाज का जो वर्तमान रूप है वह शताब्दी पूर्व के भारतीय समाज से पूर्णतया भिन्न है। आज सामाजिकऔद्योगिकी अर्थतंत्र सामाजिक संस्थाएं विचार दर्शन कला तथा धर्म आदि ने निरंतर परिवर्तन आ रहा है। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप ग्रामीण समाज में दर्शनीय परिवर्तन आए हैं यह परिवर्तन विभिन्न रुपों में अभिव्यक्त होते हैं। इन सभी परिवर्तनो का संबंध ग्रामीण समाज के बाहरी और आंतरिक दोनों पक्षों से हैं। पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली यातायात और संचार की सुविधाएं , औद्योगीकरण , प्रौद्योगिकी ,राजनैतिक तथा समाज सुधार आंदोलन, सामाजिक अधिनियम तथा सामाजिक विकास कार्यक्रम इत्यादि कुछ ऐसे कारक हैं जिनके परिणाम स्वरुप ग्रामीण समुदाय में परिवर्तन की गति तीव्र हुई है। इन सब कारकों ने ग्रामीण संस्कृति एवं सभ्यता को प्रभावित किया है जिसे ग्रामीण समाज बदलने लगा है। ग्रामीण समाज के विभिन्न पक्षों में यह परिवर्तन दिखाई देने लगा है कुछ प्रमुख परिवर्तनो का जिक्र निंलिखित रूपों में किया जा सकता है।
1. कार्य और पद में परिवर्तन- भारतीय समुदाय में व्यक्तियों के कार्य एवं पद का बंटवारा उनके जन्मे परिवार एवं उनके कर्म के साथ निर्धारित था इसलिए व्यक्ति की सामाजिक परिस्थिति का निर्धारण जन्म से माना गया। भारतीय ग्रामीण समुदाय जातिगत है। प्रत्येक जाति की परिस्थिति पहले से ही निर्धारित होती थी उदाहरणार्थ चमार को चमड़े का कार्य, लुहार को लोहे का कार्य ,सुनार को सोने का कार्य ,वैश्य को व्यापार का ,ब्राह्मण को पठान पाठन का कार्य इत्यादि। लेकिन विगत वर्षों में इस परम्परात्मक कार्य में काफी परिवर्तन आया है। आज ग्रामीण समुदाय में भी व्यक्ति के जन्मगत स्तर के साथ-साथ उसके अर्जित स्तर को भी मान्यता दी जाने लगी है। आज अधिकाधिक व्यक्तियों के कार्य एवं पद के निर्धारण में उनकी योगिता ,प्रशिक्षण एवं रुचियों पर ध्यान दिया जाता है न कि जन्म पर।
2. जाति विशेष की प्रभुता में कमी
प्राचीन काल में ग्रामीण सामाजिक संगठन के अंतर्गत प्रारंभ में कुछ जातियां अन्य जातियों की अपेक्षा अधिक प्रभुत्व पूर्ण थी आर्थिक संपन्नता के कारण वह निम्न जातियों पर नियंत्रण कायम करने में पूर्ण सक्षम थी इसलिए उन्हें अन्य जातियों की अपेक्षा श्रेष्ठ माना जाता था लेकिन आज इन जातियों की प्रभुता में कमी आई है इसके साथ-साथ पंचायतें जो पहले उच्च जाति द्वारा नियंत्रित होती थी अब उनकी संरचना में भी परिवर्तन आया है अतः ग्रामीण क्षेत्रों में सामूहिक ता के स्थान पर अब व्यक्तिवाद को बढ़ावा मिल रहा है
3. आत्मनिर्भरता का ह्रास - आरम्भ में भारतीय गांव एक क्षेत्रीय इकाई होने के साथ-साथ आत्मनिर्भर भी होते थे। ग्रामीण जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी। लेकिन आज बढ़ती हुई महंगाई जनसंख्या वृद्धि औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के परिणाम स्वरुप कृषि मुख्य व्यवसाय होते हुए भी ग्रामीण अंचल में आत्मनिर्भरता नहीं के बराबर है।
4. सामुदायिक भावना में कमी- पहले ग्रामीण सदस्यों का दृष्टिकोण सामुदायिक था। वे व्यक्तिगत हितों की अपेक्षा पूरे गांव के हितों को विशेष महत्व देते थे। लेकिन कुछ विगत वर्षों से इस दृष्टिकोण में बदलाव आया है। परिणाम स्वरूप अब गोत्र की अपेक्षा व्यक्तिगत हितों पर विशेष बल दिया जाने लगा है।
5. नेतृत्व में परिवर्तन- ग्रामीण क्षेत्रों में नवीन पंचायत राज्य की स्थापना मताधिकारों की स्वतंत्रता तथा आर्थिक परिवर्तन नवीन नेतृत्व प्रणाली को जन्म दे रहा है। इसके पहले गांव में परंपरागत नेतृत्व का बोलबाला था जो व्यक्ति के सम्मान आयु एवं उसकी जाति पर आधारित था गांव के कुछ व्यक्तियों को गांव के अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक कुशल एवं दूरदर्शी माना जाता था जिन्हें लोग नेता मान लेते थे। समयानुसार ऐसे परिवार के बच्चों को भी उसी प्रकार का नेतृत्व एवं प्रशिक्षण प्रदान कर नेता के योग्य बनाया जाता था। जिससे भविष्य में वह सामुदायिक नेतृत्व संभाल सकें। लेकिन आज सभी नागरिकों को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है कि वे अपने विश्वसनीय व्यक्ति को नेता बनायें। अतः आज कोई भी नेता बन सकता है। यहाँ तक कि अब पिछड़ी जातियों एवं महिलाओं के प्रोत्साहन के लिए कुछ नेतृत्त्व की सीटें आरक्षित रखी जा रही है।
6. संयुक्त परिवार का विघटन- प्रारम्भ में गांव में संयुक्त परिवार का बाहुल्य था। परिवार का आकार बहुत बड़ा होता था और सब लोग मिल जुल कर रहते थे लेकिन विगत वर्षों में आर्थिक संरचना में आए परिवर्तन संयुक्त परिवार के सदस्यों को स्वतंत्रता एवं व्यक्तिवादिता की तरफ ले जा रहे हैं। परिणाम स्वरूप लोग संयुक्त परिवार के स्थान पर एकाकी परिवार को अपनाने लगे हैं।
7. अपराधों में वृद्धि- ग्रामीण समुदाय में बढ़ रही जनसंख्या बेरोजगारी तथा गरीबी उन्हें चारों तरफ से जकड़ रही है। यहां तक कि ग्रामीण जीवन में राजनीति भी बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। इन सब के कारण ग्रामीण समुदाय में अपराधों की संख्या भी बढ़ रही है। यद्यपि सरकारी सुधारात्मक एवं विकासात्मक प्रयास जारी है लेकिन उनके साथ-साथ अनेक प्रकार के अपराध भी पढ़ रहे हैं परिणाम स्वरूप आज कुछ ग्रामीण जनसंख्या शहरी निवास को प्राथमिकता दे रही है।
इन उपर्युक्त परिवर्तित परिस्थितियों एवं बढ़ रही समस्याओं से स्पष्ट है कि आज कार्यरत सरकारी एवं गैर सरकारी कल्याणकारी सेवाएं एवं साधन सीमित है या इनका उचित लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। अतः प्रशिक्षित समाज कार्यकर्ता एवं स्वयंसेवी संगठनों को चाहिए कि वे ग्रामीण समुदाय में परिवर्तनशील कारकों एवं वर्तमान स्थितियों का अध्ययन कर वहां के निवासियों की आवश्यकताओं एवं समस्याओं के अनुसार जरूरतमंद योजना बनाने में सदस्यों की सहायता करें और सामुदायिक कल्याण, परिवर्तन सुधार एवं विकास को साकार बनाने का प्रयास करें।
Nice
ReplyDeleteसंसाधन नियोजन क्या है संसाधनों के नियोजन की आवश्यकता क्यों है
ReplyDeletehttps://gyanipy.blogspot.com
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete