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ऑगस्त कॉम्टे का सामाजिक एवं राजनीतिक दर्शन


ऑगस्त कॉम्टे का सामाजिक एवं राजनीतिक दर्शन 


सामाजिक एवं राजनीतिक संस्थाओं के बारे में भी ऑगस्त कॉम्टे ने अपने विचार व्यक्त किये है। कॉम्टे के विचार में मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इस प्रकार सामाजिक एवं राजनीतिक संस्थाओं का मनुष्य के जीवन में महत्त्व पूर्ण स्थान है। कॉम्टे के सामाजिक और राजनीतिक दर्शन को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है -

1 . सामाजिक एवं राजनीतिक संस्थाओं की उत्पत्ति - कॉम्टे यह स्वीकार करता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। किन्तु वह इस तथ्य को स्वीकार नहीं करता है कि मनुष्य कभी भी प्राकृतिक अवस्था में रहा होगा। कॉम्टे ने लिखा है कि अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य में सामाजिकता की मात्रा अधिक पायी जाती है। यही कारन है कि वह कभी भी अन्य प्राणियों के द्वारा शासित नहीं हुआ अपितु हमेशा अन्य प्राणियों पर शासन किया है।
              जब हम मनुष्य की तुलना दूसरे प्राणियों से करते है।  बाल्यावस्था में उसकी असहायावस्था में और भी वृद्धि हो जाती है। गाय का बछड़ा पैदा होते ही  अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है चलने लगता है और अपनी माँ के स्तनों से दूध का पान करने लगता है किन्तु मनुष्य का बच्चा ,साल दो साल और यहाँ तक कि अनेक वर्षो तक असहाय रहता है। जो प्राणी जितना ही अधिक असहाय होगा उसे सुरक्षा की उतनी ही अधिक आवश्यकता होती है। बालक अपनी असहाय अवस्था में अस्तित्व की रक्षा के लिए परिवार पर आश्रित होता है। इसी लिए कॉम्टे ने परिवार को समाज की मूल इकाई  के रूप में स्वीकार किया है।
              कॉम्टे के अनुसार सामाजिक और राजनीतिक सस्थाओं की उत्पत्ति और विकास मनोवैज्ञानिक आधार पर हुई है।  कॉम्टे ने मन की तीन अवस्थएं मानी है - इच्छा , ज्ञान ,और क्रिया इन्ही के आधार पर समाज का विकास होता है। इन तीनो की विस्तृत व्याख्या इस प्रकार है -

  • इच्छा और विकास - कॉम्टे के अनुसार इच्छा सामाजिक विकास का आधार है।  इच्छा दो प्रकार की भावनाओं को विकसित करती है - स्वार्थ और परार्थ।  जब इच्छा सामाजिकता को अपने में सम्मिलित कर लेती है ,तो परार्थ की भावना का विकास होता है। कॉम्टे ने परार्थ की भावना को सामाजिक और राजनीतिक सस्थाओं के विकास का आधार माना  है।  उसने परार्थ की भावना के विकास की प्रक्रिया को नींम तीन भागों में विभाजित किया है - 
  1. परिवार - परार्थ का पहला रूप अपनत्व की भावना है ,ममता की भावना  है। यह इच्छा का पहला रूप है। ममता शारीरिक और व्यक्तिगत तत्व है। कॉम्टे का विचार है कि जब किसी व्यक्ति में ममता की भावना विकसित हो जाती है ,तो उसमे परिवार का जन्म होता है। इसीलिए कॉम्टे ने परिवार को समाज की प्रमुख इकाई माना है। इस प्रकार परिवार सामाजिक विकास का आधार है। 
  2. राज्य -व्यक्ति के अंदर परिवार से ही ऐसी भावना का विकास होता है कि वह दूसरे व्यक्तियों का आदर करना सीख जाता है।  इसे पारिवारिक आदर की संज्ञा दी जा सकती है।  किन्तु व्यक्ति हमेशा परिवार की ही चारदीवारी में नहीं रह सकता।  इसे परवर से बाहर भी आना पड़ता है। इसलिए उसकी पारिवारिक आदर की भावना सामाजिक आदर के रूप में परिवर्तित हो जाती है।  इस प्रकार सामाजिक आदर की भावना से राज्य का विकास होता है। 
  3. मानव जाति - व्यक्ति जिस प्रकार परिवार से ऊपर उठ कर राज्य का निर्माण करता है ,ठीक इसी प्रकार वह राज्य से ऊपर उठकर मानव जाति के प्रति भावना का विकास करता है। वह मानव मात्र के प्रति आदर की भावना का विकास कर लेता है। इस प्रकार कॉम्टे ने मानवता की पूजा को ही सर्वोच्च स्थान प्रदान किया है। 
  • ज्ञान और विकास - सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं के विकास में ज्ञान का महत्वपूर्ण स्थान कॉम्टे ने स्वीकार किया है। कॉम्टे ने चिन्तन के विकास की तीन अवस्थएं मानी है।  इनमे सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं का जो स्वरुप था उसे निम्न भागो में दिखाया जा सकता है ---
  1. धार्मिक अवस्था -कॉम्टे के अनुसार यह 1300 ई . तक रही।  इसमें हर  सत्ता के पीछे देवताओं के होने की बात स्वीकार की गयी थी। इस अवस्था तक राज्य और सभी संस्थाओं को ईश्वर का अंग अंग माना गया था और यह विश्वास किया जाता था कि ये संस्थएं स्वयं ईश्वर के द्वारा उत्पन्न की गयी है।  राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना गया और उसे सब कुछ करने की पूरी छूट थी। राजा की आज्ञा का उल्लंघन ईश्वरीय आदेशों का उल्लंघन माना जाता था और उसको पाप समझा जाता था। 
  2. तात्विक अवस्था -यह अवस्था 1300 से लेकर 1800 ई. तक मानी जाती है।  यह संक्रमण की अवस्था थी। इसमें दैवीय उत्पति का सिद्धांत समाप्त हो जाता है और प्राकृतिक अधिकार के सिद्धांत को स्वीकार किया जाता है।  राजा की प्रभुसत्ता का स्थान प्रजा की प्रभुसत्ता ले लेती है।  
  3. प्रत्यक्षवादी अवस्था - कॉम्टे के अनुसार प्रत्यक्ष वादी अवस्था सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं के विकास की अन्तिम अवस्था है।  इसमें मानव वैज्ञानिक युग में प्रवेश करता है।  राजाओं की सत्ता उद्योगपतियों के हाथ में हस्तान्तरित हो जाती है।  
  • क्रिया और विकास - कॉम्टे ने क्रिया की विकास की अवस्थाओं को निम्न तीन भागों में विभाजित किया हैं -
  1. विजय ( Conquest )
  2. सुरक्षा 
  3. औद्योगिक विकास 
 कॉम्टे का विचार है कि सामाजिक विकास में प्रक्रिया का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।  विकास की पहली अवस्था में मनुष्य दूसरो पर विजय प्राप्त करना चाहता है।  कॉम्टे का कहना है की आधुनिक समाज उपर्युक्त दो स्तरों से गुजर चुका है और तीसरे स्तर में है।  इसीलिए आज औद्योगिकविकस हो रहा है  | 
  • राज्य -कॉम्टे ने लिखा है कि सर्कार के बिना समाज उतना ही असम्भव है जितना कि समाज के बिना सरकार।  कॉम्टे ने राज्य और समाज को एक ही माना है।  कॉम्टे ने अपनी विचारधारा में सम्प्रभुता के बारे में भी स्पष्ट विचार व्यक्त नहीं किये है।  कॉम्टे ने दो प्रकार की राज्य व्यवस्थाओं को स्वीकार किया है -
       ( i )     धार्मिक तंत्र 
       ( ii )   सामाजिक तंत्र 

कॉम्टे ने समाज में तीन प्रकार की  सत्ता  मानी है -------

      ( i )   नैतिक
      ( ii ) बौद्धिक 
      ( iii ) भौतिक 

कॉम्टे ने राज्य के लिए निम्न तत्वों को स्वीकार किया है -------

   ( i ) जनसँख्या 
   ( ii ) भूमि 
   (iii ) सत्ता 
   ( iv ) सर्कार 

  • जनमत और सामाजिक नियंत्रण - कॉम्टे प्रत्यक्षवादी सामाजिक विचारक था।  वह प्रत्यक्षवाद  की सहायता से समाज का पुनर्निर्माण करना चाहता था उसने समाजी पुनर्निर्माण के लिए सामाजिक नियंत्रण को अनिवार्य माना है।  सामाजिक नियंत्रण के लिए कॉम्टे ने जनमत को सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्वीकार किया है।  कॉम्टे का विचार था की जनमत के अभाव में सामाजिक पुनर्निर्माण असम्भव है।  कॉम्टे के मत में यदि हम सामाजिक नैतिकता को सरक्षित रखना चाहते है तो जनमत इसके लिए मात्र एक साधन है। कॉम्टे ने स्थायी जनमत के लिए जो व्यवस्था दी है उसे निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है ----
   ( i ) - एक ऐसी संस्था की स्थापना कि जाये ,जो समाज में मान्यता प्राप्त हो।  यह संस्था जनमत से सम्बन्धित विधान का निर्माण करे ,
  ( ii ) - इन सिद्धांतों की निश्चत व्याख्या करें , और 
  ( iii ) - सभी नागरिको से इन नियमो को स्वीकार करने के लिए कहा जाये।  ऐसा करने से स्वस्थ जनमत के निर्माण में सहायता मिलेंगी।  
  • परिवार - कॉम्टे ने लिखा है कि सरलतम संगठन अर्थात परिवार समाज की वास्तविक इकाई है।  इसी से वर्गों और नगरों जैसे जटिल समूहों का विकास होता है।  कॉम्टे ने अपनी सामाजिक संगठन की योजना में परिवार को प्रमुख इकाई माना  है।  उसने नींम दो कारणों से मनुष्य के लिए परिवार को अनिवार्य माना है --
  ( i ) जीवन की रक्षा के लिए ,और 
 ( ii ) समाजीकरण के लिए। 
 कॉम्टे के विचारो में परिवार एक भवन के समान है।  इस भवन का निर्माण स्नेह और विश्वास के माध्यम से होता है।  स्नेह और विश्वास जीवन में सहानुभूति और सामाजिकता का विकास करते है।  ये दोनों मानवता के आधार स्तम्भ है।  इसी में समाज की अन्तिम उन्नति  - नैतिक उन्नति  होती है।  परिवार वह संस्था है जो अपनी सन्तानो के लिए शिक्षा का प्रबन्ध करता  है।  कॉम्टे के अनुसार परिवार में जितने व्यक्ति रहते है उनका परिवार पर सामान अधिकार होता है 
  • विवाह - भारतीय ऋषियों ने विवाह के निम्न तीन उद्देश्य बताये थे --
    ( i ) धार्मिक संस्कार 
    ( ii ) प्रजा या पुत्र की उत्पति 
    ( iii ) रति या यौन सम्बन्ध 

कॉम्टे विवाह को सामाजिक आवश्यकता मनाता है  विवाह भौतिक आवश्यकता न होने के कारण पति पत्नी निःस्वार्थ भाव से परिवार के लिए अपने जीवन को ही उत्सर्ग कर देने को तैयार रहते है।  कॉम्टे का विचार है की विवाह के द्वारा ही सामाजिक प्रगति की जा सकती है और समाज में व्यवस्था को स्थायी रखा जा सकता है।  कॉम्टे के विवाह से सम्बन्धित प्रमुख विचार इस प्रकार है --

( i )  विवाह स्त्रियों के व्यक्तित्व के निखार के लिए अनिवार्य है ,
( ii ) विवाह के ही द्वारा पत्नी माता के रूप में परिवर्तित होकर समाज की आवश्यकता की पूर्ति करती है ,
( iii ) मातृत्व समाज में नैतिक आदर्श का प्रतिक है और विवाह के माध्यम से समाज में नैतिकता का विकास होता है ,
(iv ) विवाह न होने तक व्यक्ति स्वकेन्द्रित होता है और उसमे स्वार्थ की मात्रा अधिक रहती है। विवाह के बाद उसकी स्वार्थ की भावना परार्थ की भावना के रूप में बदल जाती है

  • तलाक - कॉम्टे का दाम्पत्य जीवन अत्यन्त दुखी था। इसीलिए उसने 1842 में अपनी विवाहिता पत्नी कोरोलिन मेसिन को तलाक दे दिया था। उसका कहना था कि वैवाहिक जीवन का सुखी होना आवश्यक है। इसलिए यदि विवाह सुख साधनों में वृद्धि न कर सके तो तलाक दे देना चाहिए। तलाक के सम्बन्ध में कॉम्टे के विचार निम्न है 
  ( i ) विवाह वह संस्था है जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक सुख साधनों में वृद्धि करना है।  इसलिए यदि विवाह से सुख प्राप्ति की सम्भावना समाप्त हो जाये तो तलाक दे देना चाहिए 
  ( ii )- कॉम्टे ने विवाह को  कानूनी मान्यता भी प्रदान की। 
 ( iii )- कॉम्टे ने पुनर्विवाह की आज्ञा स्त्री को प्रदान नहीं की है। उसका कहना है कि विवाह विच्छेद के बाद वियोगी जीवन व्यतीत करना चाहिए। 
  • स्त्रियों की स्थिति - कॉम्टे ने स्त्री को  प्रतिक माना है कॉम्टे ने लिखा है कि वह स्त्री प्रेम में पुरुष से उत्तम है। जैसा की पुरुष समस्त शक्तियों में उससे उत्तम है।  कॉम्टे क्लेटाइल्ड डी वाक्स से अत्यधिक प्रभावित था और उसे मानवता का प्रतिक मानता था। कॉम्टे के स्त्रियों की स्थिति के सन्दर्भ में जो विचार है ,उन्हें निम्न भागों में विभाजित किया जाता है 
 ( i ) कॉम्टे के अनुसार स्त्रियों में पुरषों की तुलना में बुद्धि और रचनात्मक शक्ति कम होती है। 
 ( ii ) कॉम्टे की स्त्री हृदय पक्ष की प्रतीक है ,इसलिए कॉम्टे ने स्वीकार किया है की स्त्री मन भावना की प्रतीक है।  इसी आधार पर कॉम्टे ने अपने मानवता के धर्म नामक सिद्धांत का प्रतिपादन किया था,
( iii  ) कॉम्टे ने घरेलू काम के लिए स्त्री को उपयुक्त माना है वह स्त्रियों को घर से बाहर कार्य करने की अनुमति नहीं देता है ,
( iv ) कॉम्टे के अनुसार प्रत्येक स्त्री को सहायता प्राप्त करने का अधिकार है। यह सहायता पिता ,पति ,पुत्र या सरकार की हो सकती है। 
( v ) कॉम्टे ने स्त्रियों को राजनीतिक कार्यों में भाग लेने से रोका है ,उन्हें सम्पति पर नियंत्रण नहीं रखना चाहिए।  ऐसा करने से  उनका स्त्री सुलभ गुण समाप्त हो जाता है। 
( vi ) कॉम्टे ने स्त्री पुरुष दोनों को एक दूसरे का पूरक माना है ,और। 
( vii ) कॉम्टे के अनुसार स्त्री और  पुरुष में सामाजिक भिन्नता होना अनिवार्य है क्योंकि दोनों में प्राकृतिक भिन्नता पायी जाती है। 
  • शिक्षा - कॉम्टे के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का विज्ञान है।  समाज में व्यवस्था की स्थापना और प्रगति के लिए कॉम्टे ने शिक्षा को अनिवार्य माना है।  कॉम्टे प्रत्यक्ष वादी विचारक था  पुनर्निर्माण करना चाहता था।  समाज के पुअरनिर्माण के लिए उसने शिक्षा को आवश्यक माना है। के अनुसार शिक्षा बौद्धिक विकास का सबसे शक्तिशाली साधन है। उसके विचार से शिक्षा के  समाज की प्रगति अनुशासित तरीकों से की जा सकती है। वह शिक्षा के द्वारा समाज में औद्योगिक और सामाजिक नैतिकता का प्रसार करना चाहता था। 
  • समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र - कॉम्टे समाजशास्त्र का पिता था और उसने समाज शास्त्र की आधारशिला रखी थी।  इसके साथ ही साथ कॉम्टे ने राजनीतिशास्त्र पर भी महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किये थे कॉम्टे ने समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र से सम्बन्धित विचारों को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है -
( i )  कॉम्टे राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र में जो प्रमुख अंतर है ,उसे स्पष्ट नहीं कर सका है। 
( ii ) कॉम्टे के अनुसार समाजशास्त्र भविष्य का पूर्ण राजनीतिशास्त्र है। 
(iii ) कॉम्टे के अनेक स्थानों पर ऐसी संका व्यक्त की है कि समाज से पृथक भी कोई राज्य विज्ञान हो सकता है। 
(iv ) कॉम्टे के विचारों में राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र के अन्तः सम्बंधित प्रतीत होते है। 
























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