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कॉम्टे का जीवन परिचय

ऑगस्त कॉम्टे का जीवन परिचय 


    ऑगस्त  कॉम्टे  ( 1798 - 1857 )  फ़्रांस - समाज शास्त्र समाज का अध्ययन है।  और व्यक्ति समाज की मूलभूत इकाई है।  व्यक्ति और समाज आपस में कुछ इस प्रकार अन्तः सम्बंधित है की इन्हे एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है।  व्यक्ति चिंतन शील प्राणी है उसमे सोचने समझने विचार करने की शक्ति होती है।  मनुष्य का चिंतन  उसके समाज और उसके वातावरण से प्रभावित रहता है।  इस चिंतन का आधार अधिक से अधिक सुख प्राप्त करना होता है। यह सुख इहलौकिक और पारलौकिक  दोनों प्रकार का हो सकता है।  चिंतन की परम्परा अति प्राचीन है और यह विश्वास किया जाता है की मानव प्रारंभिक काल से ही चिंतनशील रहा है।  यह हो सकता है कि उसका प्राचीनकालीन  चिंतन  आधुनिक चिंतन से भिन्न रहा हों।
           
                 समाज के  विषय में चिंतन समाज की प्रमुख विषय  सामग्री रही हैं।  चिंतन भी मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है - व्यवस्थित और अव्यवस्थित।  चिन्तन को ही समाज की मूल विरासत के रूप में अपनाया जाता है।  जहाँ तक समाज शास्त्र के सम्बन्ध में व्यवस्थित चिंतन का प्रश्न है , यह प्राचीन काल से होता आया है।  चिंतन के क्षेत्र में भारत विश्व के अन्य देशों में अग्रणी रहा है , चाहे यह चिंतन सामाजिक राजनितिक या धार्मिक हों।  वेद विश्व के आदि ग्रन्थ है और इन में समाज और व्यक्ति के सम्बन्ध में जो चिंतन किया गया है वह अत्यंत ही वैज्ञानिक और मौलिकता लिए हुए है।  इस चिन्तन  में  समाजशास्त्र जैसे किसी शब्द का प्रयोग तो नहीं किया गया था , किन्तु समाजशास्त्रीय सिद्धांतों की विवेचना का प्रयास किया गया था।  फ्रांस के प्रतिभा सम्पन्न  विचारक कॉम्टे को समाजशास्त्र का पिता कहा जाता है।  कॉम्टे को समाजशास्त्र का पिता कहा जाता है।  कॉम्टे को समाज शास्त्र का पिता दो करणों  से कहा जाता है -


  1. कॉम्टे  ने 1838 में पहली बार Sociology  शब्द का प्रयोग किया था।  कॉम्टे से पहले विश्व के किसी भी विचारक ने इस शब्द का प्रयोग नहीं किया था ,और 
  2. इसके साथ ही कॉम्टे ने समाजशास्त्र  को एक व्यवस्थित विज्ञान के रूप में प्रतिपादित किया समाजशास्त्रीय सिद्धांतों की विवेचना प्रस्तुत की।         
     परिस्थितियां ही प्रतिभाओं को जन्म देती है।  समाजशास्त्र के जन्म और विकास में फ़्रांस की राज्य क्रांति का स्थान प्रमुख है।   क्रांति ने फ़्रांस के सामाजिक जीवन को अस्त व्यस्त कर दिया था।  इससे कॉम्टे काफी प्रभावित हुआ।  उसने अपने चिंतन को इस तथ्य पर लाकर केंद्रित कर दिया की फ़्रांस में किस प्रकार से व्यवस्था स्तापित की जाय।  कॉम्टे का यह विश्वास था की व्यवस्था के माध्यम से ही समाज उन्नति कर सकता है।  कॉम्टे ने समाजशास्त्र के अंतर्गत सामाजिक व्यवस्था के मूल भूत  सिद्धांतो  की विवेचना का प्रयास किया है।  


कॉम्टे का जीवन परिचय -
समाज शास्त्र में ही नहीं ,अपितु 19 वीं  शताब्दी के सामाजिक विचारकों में ऑगस्त कॉम्टे  का नाम सर्वोपरि है। कॉम्टे के जीवन परिचय को कई भागो में बांटा जा सकता है -
जन्म - ऑगस्त कॉम्टे का जन्म 19 जनवरी 1798 ई . में हुआ था उसका पूरा नाम इन्सिडोर ऑगस्त मेरिए फैंकोइस जेब्रियर कॉम्टे था।  उसका जन्म फ़्रांस के मोंटपीलियर नमक स्थान में हुआ था और यही उसकी प्रारंभिक शिक्षा हुई।
माता पिता - ऑगस्त कॉम्टे का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जो राजभवन परम्परात्मक और मध्यम वर्गीय था।  उसके माता पिता कैथोलिक धर्म के कट्टर समर्थकों में थे।  कॉम्टे के पिता फ़्रांस के कर विभाग में एक अधिकारी थे।
बचपन - कॉम्टे का बचपन अनेक प्रकार की विलक्षणताओं से परिपूर्ण था।  ये विलक्षणताएँ उसके जीवन के हर क्षेत्र में प्रदर्शित होती थी।  इन विलक्षणताओं को मुख्य रूप से इस प्रकार है -

  • प्रखर बौद्धिक क्षमता - बौद्धिक क्षमता की प्रखरता उसकी प्रमुख विशेषताएं थीं।  बौद्धिक दृष्टि से वह अत्यन्त ही विलक्षण व्यक्ति था।  बौद्धिक विलक्षणता के कारण ही उसने 16 वर्ष की आयु से गणित जैसे कठिन विषयों पर व्याख्यान देना प्रारम्भ कर दिया था।  उसका कहना था कि गणित समस्त मानव ज्ञान का आधार है। 
  • स्थापित सत्ता के विरोध की प्रवृत्ति - कॉम्टे की बचपन की दूसरी प्रमुख विशेषता यह थी की वह प्राचीन स्थापित सत्ता और परम्पराओं का घोर विरोधी था।  उसका पिता कट्टर राज्य भक्त था।  फिर भी कॉम्टे ने इसका प्रबल विरोध किया।  कॉम्टे के विचार अपने माता पिता के राजनितिक विचारों से भिन्न थे।  इसी कारण कॉम्टे ने स्वयं को रिपब्लिकन घोषित कर दिया था।  यद्यपि कॉम्टे के माता पिता कैथोलिक धर्म के उपासक थे किन्तु कॉम्टे ने कैथोलिक धर्म का विरोध किया। 
 शिक्षा -उसकी प्रारंभिक शिक्षा उसके ही नगर मौंटपीलियर में हुई थी।  बचपन से ही उसकी गणित में रूचि थी उच्च शिक्षा के लिए उसे पेरिस जाना पड़ा।  जहाँ उसने पॉलिटेक्निक स्कूल में प्रवेश लिया।  उसकी प्रतिभा का निखार तो मौंटपीलियर में ही दृष्टिगत होने लगा था ,किन्तु यहाँ आकर उसकी प्रतिभा को परिपक़्वता प्राप्त हुई। 

विद्यार्थी जीवन की विशेषताएं - ऑगस्त कॉम्टे के विद्यार्थी जीवन की विशेषताओं को कई भागों में विभाजित किया जा सकता है -

  • योजनाबद्ध अध्ययन -उसका अध्ययन एक क्रम के अनुसार ,एक योजना के अनुसार ही होता था।  वह पढ़ने से पहले अगले दिनों के सम्बन्ध में योजनाएं बनाता था इस योजना में इन तत्वों पर ध्यान देता था कि 
  1. प्रतिदिन कितना पढ़ना है ,और 
  2. अध्ययन समय में कब क्या पढ़ना है ?
इन्ही दो तत्वों को ध्यान में रख कर  अध्ययन करता था .अध्ययन के अतिरिक्त भी उसके सभी कार्यक्रम पूर्व निश्चित हुआ करते  थे . ऐसा कहा जाता है कि ऑगस्त कॉम्टे जब घूमने निकलता था तो आसपास के लोग अपनी घड़ी मिलाया करते थे।

  • योजनाबद्ध लेखन - अध्ययन के साथ ही वह नियमित तौर पर लेखन का भी काम  करता था।  उसके लेखन की दो प्रमुख विशेषताएँ  थी -
  1. जो कुछ भी उसे लिखना होता था ,लिखने से पहले वह उस विषय की संक्षिप्त रुपरेखा ( Synopsis ) बना लेता था और -
  2. इस संक्षिप्त रुपरेखा की दो विशेषताएं होती थी - स्पष्टता और विस्तृत स्वरुप। लिखने से पहले वह विषय सामग्री को इतना स्पष्ट कर देता था की उसमें अक्रमबद्धता आती ही नहीं थी।  आज भी उसकी पुस्तकों में इसी क्रमबद्धता को स्पष्ट  देखा जा सकता हैं। 
  • कुशल नेतृत्व - विद्यार्थी जीवन में ही कॉम्टे में कुशल नेतृत्व की क्षमता थी। यही कारन है की वह अपने विद्यार्थी जीवन में ही एक सफल नेता हो गया था। उसने एक अध्यापक के त्याग पत्र की मांग को लेकर छात्र आंदोलन का सूत्र पात किया और स्वयं इस आंदोलन का नेतृत्व भी किया। इस आंदोलन के अभियोग को लेकर उसे स्कूल भी छोड़ना पड़ा। 
  • फिलासफर - उसकी बौद्धिक क्षमता अत्यंत ही प्रखर थी।  उसमे मौलिक चिंतन की भी अभूतपूर्व क्षमता थी।  वह अपने जीवन में चिंतनशीलता की प्रवृति के कारण ही महान विचारक के रूप में विख्यात हुआ। चिंतनशील प्रवृति के कारण ही उसके विद्यार्थी के साथी कॉम्टे को फिलासफर उपनाम से पुकारते थे। 
  • सन्त साइमन -ऑगस्त कॉम्टे के जीवन में फ़्रांस के प्रगति शील विचारक सन्त साइमन का अत्यधिक प्रभाव पड़ा था। 1818 ई. में उन्नीस वर्ष की अवस्था में ऑगस्त कॉम्टे सन्त साइमन के सम्पर्क में आया और उसके साथ 1824 ई. तक निरन्तर छः वर्ष रहा।  इसके बाद कॉम्टे की सन्त साइमन के साथ नहीं बनी।  कॉम्टे ने अपने विचारक गुरु साइमन पर यह आरोप लगाया कि वह ढोंगी है ,पाखंडी है और कॉम्टे के ही विचारों का शोषण करके उन्हें अपने नाम से उपयोग करता है। इसप्रकार कॉम्टे और सन्त साइमन के बिच जो सम्बन्ध थे वे समाप्त हो गए। 
  • विवाह -1825 ई. में ऑगस्त कॉम्टे का विवाह कोरोलीन मेसिन में हुआ। इस विवाह को कॉम्टे के दुर्भाग्य के रूप में निरूपित किया जाता है इसका कारण यह है कि उसकी अपनी पत्नी से गहन मतभेद हो गए और इसका अंतिम परिणाम यह हुआ की विवाह के 17 वर्ष बाद 1842 में कॉम्टे का क्रोरोलीन मैसिन से विवाह विच्छेद हो गया। 
  • आर्थक स्थिति - ऑगस्त कॉम्टे की आजीविका का कोई भी साधन नहीं था।  उसका दाम्पत्य जीवन भी दुःखपूर्ण था। इसीलिए उसने अपना जीवन अध्ययन और लेखन की ओर लगा दिया। ऐसे भी अनेक दिन आते थे जब कॉम्टे को भोजन तक नहीं मिल पता था। इसके बावजूद उसे अत्यंत ही मानसिक श्रम करना पडता था। इन दोनों प्रतिकूल परिस्थितियों का कॉम्टे पर बुरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा। अपनी इस विक्षिप्तता की अवस्था में उसने एक बार डूबकर आत्महत्या का भी प्रयास किया था ,किन्तु उसको इस कार्य में सफलता नहीं मिली ,जैसे ही वह स्वस्थ हुआ ,1830 ई. में उसने अपनी पुस्तक पॉजिटिव फिलासफी के [प्रथम भाग को प्रकाशित करवाया।  इस पुस्तक का छठवां और अंतिम भाग 1942 में प्रकाशित हुआ।  
                       जैसे ही उसकी पुस्तक पॉजिटिव फिलासफी प्रकाशित हुई कॉम्टे की ख्याति चरों ओर फैलने लगी जैसे ही उसकी इस पुस्तक का प्रकाशन हुआ उसे पॉलिटेक्निक स्कूल में प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों के निरीक्षक का पद प्राप्त हो गया। इस कार्य में उसकी आर्थिक स्थिति में कुछ सुधर हुआ। उसके मित्र और अनुयायी ही आर्थिक स्थिति के स्रोत थे।  जॉन स्टुअर्ट मिल ने इग्लैंड में उसकी सहायता  के लिए पर्याप्त चंदा एकत्रित किया था। कॉम्टे  पुस्तकों की रॉयल्टी  नहीं लेता था। वह  सोचता था की लेखन के बदले पैसे लेना उचित नहीं है।  यही कारण है कि वह जीवन पर्यन्त आर्थिक संकटों से ग्रस्त रहा।

  • मृत्यु -  कॉम्टे जीवन भर संघर्ष करता रहा।  वह मानसिक दृष्टि से अत्यंत परिश्रम करता था।  उसका जीवन आर्थिक कठिनाइयों से निरंतर  जूझता रहा। अपने वैवाहिक जीवन जीवन से भी  उसे निरंतर दुःख और यातनाएं मिली तथा अंत में उसका परिणाम विवाह विच्छेद के रूप में सामने आया। वह निरंतर सामन्तवाद और परम्परात्मक धर्म का विरोध करता रहा। इन संघर्षो के कारण उसका शरीरिक और मानसिक जीवन अत्यन्त ही जर्जर हो गया था। अंत में उसे कैंसर ने भी धर दबोचा।  इस भयानक बीमारी से मुक्ति पाना उसकेलिये असम्भव हो गया। इसी बीमारी के परिणाम स्वरुप 59 वर्ष आयु में 5 सितम्बर ,1857 को समाजशास्त्र के पिता की मृत्यु हो गयी इस मृत्यु ने कॉम्टे के सिर्फ भौतिक शरीर को ही नष्ट किया है। उसका मानसिक शरीर और विचार आज भी जीवित है और शताब्दियों बाद भी जीवित रहेंगें तथा मानव जीवन और समाज के दिशा निर्देशन का काम करते रहेंगे। 

ऑगस्त काम्टे की कृतियाँ 
ऑगस्त कॉम्टे ने अपने जीवन में जिन महत्वपूर्ण ग्रंथो की रचना की ,वे इस प्रकार है -

A.  Prospectus of the scientific works required for the Reorganization of Society -

इस पुस्तक के साथ ही कॉम्टे अपने दर्शन की योजनाओं को प्रस्तुत करता है। 19 वीं शताब्दी के अनेक विद्वानों ने समाज सुधर की योजना प्रस्तुत की थी। कॉम्टे सन्त साइमन के साथ 6 वर्ष तक रहा और उससे प्रभावित हो कर उसने समाज को संगठित करने के लिए पाठयक्रम तैयार किया था। इस पुस्तक की दो प्रमुख विशेषताएं है -

( i ) - इस पुस्तक के माध्यम से उसने सामाजिक सुधार एवं सामाजिक पुनर्निर्माण की योजना प्रस्तुत करने का प्रयास किया था और ,

( ii )- इस पुस्तक की दूसरी विशेषता यह है कि यह सामाजिक विकास का आधार प्रस्तुत करती है।

2 . पॉजिटिव फिलासफी (Positive Philosophy )
 - यह कॉम्टे की सर्वाधिक महत्त्व पूर्ण कृति है। इस पुस्तक की प्रमुख विशेषताएं निम्न थी -

( i ) - यह पुस्तक 6 भागों में विभाजित है

( ii ) - इस पुस्तक का रचना काल 1830 से लेकर 1842 तक था

( iii ) - इस पुस्तक में उसने साकारवाद ( Positivism ) की विस्तृत रूप रेखा प्रस्तुत की थी ,

(iv ) - इसमें समाजशास्त्र की सैद्धान्तिक आधार की रुपरेखा प्रस्तुत की गयी थी ,

(v ) - इस पुस्तक में कॉम्टे ने चिंतन की तीन अवस्थाओं के नियम का प्रतिपादन किया था।

3 . पॉजिटिव पॉलिटी - ( Positive Polity )यह कॉम्टे का दूसरा महत्वपूर्ण ग्रन्थ था। इस ग्रन्थ की प्रमुख विशेषताएं निम्न थी

( i ) - यह पुस्तक उसने चार भागों में लिखीं थी।

(ii ) - इस पुस्तक की रचना उसने 1851 से 1854 के बीच की थी।

(iii ) - इस पुस्तक की रचना का उद्देश्य मानवता के नवीन धर्म का प्रतिपादन करना था। इस पुस्तक में उसने स्त्रियों की घोर प्रशंसा की है।

(iv ) - इस पुस्तक में उसने अपने सैद्धांतिक विचारों को व्यावहारिक स्वरुप प्रदान करने का प्रयास किया है।

( v ) - इस पुस्तक के माध्यम से उसने सामाजिक पुनर्निर्माण की योजना प्रस्तुत की थी और इस योजना में उसने मानवता के धर्म को विशेष महत्त्व दिया है।

(vi ) - इस पुस्तक में वैज्ञानिक कॉम्टे को धार्मिक और आध्यात्मिक रूपों में देखा जा सकता है।

4 . कैचिज्म ऑफ पॉजिटिविज्म ( Catchism of positivism ) इस पुस्तक की प्रमुख विशेषताएं निम्न है -

( i ) यह कॉम्टे की अन्तिम पुस्तक थी।

(ii ) इसका प्रकाशन 1852 में हुआ था।

( iii ) इस पुस्तक में ऑगस्त कॉम्टे ने निम्न दो तत्वों का उल्लेख किया।

(iv ) जनतंत्र का समर्थन।

( v ) प्रेम और सार्वजानिक सम्बन्धों की स्वतंत्रता की माँग।

19 वीं शताब्दी मानव इतिहास का एक ऐसा युग है जिसमें चिंतन के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हुई। इस युग में वैचारिक द्वन्द भी सबसे अधिक हुआ। परिस्थितियाँ ही प्रतिभाओं को जन्म देती है और कॉम्टे के विचार तत्कालीन यूरोपीय परिस्थितियों के परिणाम थे। उसके विचार तत्कालीन जिन परिस्थितियों से प्रभावित हुए थे वे निम्न है ----

औद्योगिक क्रांति -18 वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में होने वाली औद्योगिक क्रांति ने विश्व के समस्त समाजों और जीवन को प्रभावित किया। विश्व दर्शन में औद्योगिक क्रांति का प्रभाव सबसे अधिक पड़ा और ऑगस्त कॉम्टे इस प्रभाव से स्वयं को अलग नहीं रख सकता था। औद्योगिक क्रांति का तात्पर्य औद्योगिक जीवन में होने वाले महान परिवर्तनों से है प्रश्न यह है कि औद्योगिक क्रांति के क्या कारण थे औद्योगिक क्रांति मुख्य रूप से दो कारणों से अधिक प्रभावित हुई --
  • लोहा और कोयले की खोज ,तथा
  • भाप की शक्ति का अविष्कार।
औद्योगिक क्रांति सबसे पहले इंग्लैंड में हुई और इसका प्रभाव विश्व के अन्य देशों में भी हुआ। 18 वीं शताब्दी के अन्त तक फ़्रांस निम्न विशेषताओं वाला देश था
  • वहाँ कृषि की प्रधानता थी। 
  • ,गिल्ड प्रथा पायी जाती थी ,जिसके अन्तर्गत सभी प्रकार के व्यवसायों का अलग अलग संगठन था ,और। 
  •  जीवन और अर्थ व्यवस्था में प्रतियोगिता का नितान्त अभाव था। 
औद्योगिक क्रांति का फ़्रांस पर भी प्रभाव पड़ा और धीरे धीरे फ़्रांस में भी औद्योगीकरण का प्रादुर्भाव हुआ। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप निम्न तत्वों को फ़्रांस में प्रोत्साहन मिला ---

  • कृषि के स्थान पर उद्योगों की अधिकता। 
  • प्रतियोगिता का जन्म ,और 
  • व्यावसायिक जागरूकता का विकास। 

फ़्रांस जैसे परम्परात्मक देश में जब औद्योगीकरण हुआ तो वहाँ संक्रमण की स्थिति उत्पन्न हो गयी। परिणाम स्वरूप अनेक समस्याएं अपने विकराल रूप में देश के सम्मुख उपस्थित हो गयी। इनमे कुछ प्रमुख समस्याएं निम्न थी -----

  • जनसँख्या में वृद्धि की समस्या। 
  • नगरीकरण और इसके दुष्परिणाम। 
  • पारिवारिक उपेक्षा , पारिवारिक कलह ,पारिवारिक तनाव और पारिवारिक विघटन से सम्बंधित समस्याएं। 
  • बेकारी और निर्धनता की समस्याएं। 
  • प्राचीन और नवीन के संघर्ष की समस्याएं और
  •  पूंजीवादी और समाजवादी विचारधाराओं से उत्पन्न समस्याएं 
ऑगस्त कॉम्टे का चिंतन इन समस्याओं से अछूता नहीं रह सकता था परिणाम यह हुआ कि उसने इन सामाजिक समस्याओं के संदर्भ में अपने चिंतन को क्रियाशील पाया।

फ़्रांस की राज्य क्रांति - फ़्रांस में 1789 में राज्य क्रांति हुई। इस राज्य क्रांति के अनेक कारण थे -राजनीतिक ,आर्थिक ,सामाजिक,और बौद्धिक। राजनीतिक कारणों में शासक की निरंकुशता ,फ़्रांस की आन्तरिक अव्यवस्था और युद्ध प्रमुख थे। फ़्रांस की अर्थव्यवस्था भी अस्त व्यस्त हो गयी थी। एक ओर समाज के कुछ व्यक्ति विलासी जीवन बिताने के लिए करोंडो रुपया खर्च करते थे तो दूसरी ओर अधिकांश जनता रोटी के लिए परेशान थी। समाज तीन वर्गों में विभाजित था -- पादरी ,सामन्त और सर्वसाधारण जनता। 5 प्रतिशत पादरी और सामन्तों को सर्वाधिक अधिकार प्राप्त थे जबकि 95 प्रतिशत जनता अधिकारों से वंचित थी। बौद्धिक कारक भी इस क्रांति के लिए पर्याप्त उत्तरदायी थें। इन विचारकों में रूसो ,वाल्टेयर और मान्टेस्क्यू का नाम प्रमुख है। रूसो स्पष्ट रूप से कहा की मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है किन्तु वह सर्वत्र बन्धनों में जकड़ा हुआ है। फ़्रांस की राज्य क्रांति के निम्न परिणाम हुए ----

  • राजा के दैवीय अधिकार समाप्ति। 
  • पादरी और सामन्तो की सत्ता का नाश और। 
  •  स्वतंत्रता और समानता के अधिकारों की मांग। 
क्रांति के कारण देश में अव्यवस्था व्याप्त हो गयी और अनेक सत्ता में निरन्तर उथल पुथल की स्थिति बनी रही। इस अव्यवस्था ने फ़्रांस में अनेक सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया। कॉम्टे इन समस्याओं से अपने को अछूता नहीं रख सका। उसने इन समस्याओं पर गंभीरता से विचार किया और इन समस्याओं के समाधान के लिए सामाजिक पुनर्निर्माण की योजना प्रस्तुत की।

बेन्जामिन फ्रेंकलिन - बेन्जामिन फ्रेंकलिन अमेरिका का विचारक था। उसका जन्म 17 जनवरी ,1707 में और मृत्यु 1790 में हुई थी। फ्रेंकलिन के प्रमुख सिद्धांत निम्न थे।
  • सभी व्यक्ति सामान है। 
  • सभी व्यक्ति स्वतंत्र है और। 
  • कोई नहीं व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन अधिकार में गतिरोध नहीं डाल सकता 
ऑगस्त कॉम्टे अपने विद्यार्थी जीवन से ही फ्रेंकलिन से अत्यन्त प्रभावित था। फ़्रांस में उस समय फ्रैंकलिन के विचारों की अत्यन्त ही धूम थी और प्रायः सभी दुकानों और होटलों में फ्रैंकलिन के इन विचारों से सम्बन्धित पोस्टर्स दिखाई देते थे। कॉम्टे ने फ्रैंकलिन से प्रभावित होकर उसकी जीवन पद्धति और विचार धारा का अनुसरण करने का प्रयास किया। इससे सम्बन्धित एक पत्र उसने अपने सहपाठी को इस प्रकार लिखा था कि मैं आधुनिक सुकरात सुकरात का अनुसरण करना चाहता हूँ उनके बौद्धिक गुणों का नहीं अपितु उनके जीवन के तरीकों का। तुम जानते हो कि जब वे केवल 25 वर्ष के ही थे ,तभी उन्होंने अपने को पूर्णतया बुद्धिमान व्यक्ति सोच लिया था। मैंने भी उसी विचार को ग्रहण करने का साहस किया है यद्यपि मेरी आयु अभी 20 वर्ष की भी नहीं है।

उपर्युक्त पंक्तियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कॉम्टे फ्रैंकलिन को आधुनिक युग का सुकरात मानता था और स्वयं भी उसका अनुसरण करना चाहता था। यहाँ भी उसकी बौद्धिक प्रखरता के स्पष्ट दर्शन होते है। वह साफ शब्दों में यह कहता है कि उनके बौद्धिक गुणों का वह अनुसरण नहीं करना चाहता था। कुछ भी हो इतना तो स्पष्ट ही है कि कॉम्टे की विचारधारा फ्रैंकलिन से प्रभावित थी।

सन्त साइमन ( Saint Simon ) सन्त साइमन ने कॉम्टे के विचारों को सबसे अधिक प्रभावित किया था। सन्त साइमन को ' सा सिमों ' के नाम से भी जाना जाता है। सन्त साइमन फ़्रांस का सामाजिक विचारक था। उसका जन्म 1760 में हुआ था और मृत्यु 1825 में हुई थी। सन्त साइमन की निम्न वैचारिक विशेषताएं थी -----

वह स्वप्नलोकीय ( Utopian ) सामाजिक विचारक था।
सन्त साइमन जब अपनी युवावस्था पर था उस समय फ़्रांस में राज्य क्रांति हो रही थी
क्रांति के परिणाम स्वरुप फ़्रांस की सामाजिक संरचना में अनेक परिवर्तन हो रहे थे
नवीन ईसाइयत नामक विचारो का प्रतिपादन हो रहा था। इस विचारधारा के दो मूल तत्व थे ----

( i ) - विज्ञान और उद्योग में परस्पर सहयोग होना चाहिए और

( ii ) - वैज्ञानिक और उद्योगपति समाज में सुख शांति और व्यवस्था की स्थापना कर सकते है।

ऑगस्त कॉम्टे ने विश्व कल्याण को ध्यान में रखकर दो प्रकार के संगठनों का निर्माण किया था -
यूरोपीय संसद - इस संगठन का उद्देश्य यूरोपीय देशों में पारस्परिक युद्ध और संघर्ष को रोकना था।
सार्वभौमिक समिति - इस समिति का कार्य क्षेत्र सम्पूर्ण विश्व था। इस समिति की स्थापना का उद्देश्य संसार के प्रत्येक व्यक्ति को कोई न कोई श्रम कार्य देना था।

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