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PRA (सहभागी ग्रामीण आंकलन) क्या हैं ?


PRA (सहभागी ग्रामीण आंकलन) क्या हैं ?

P.R.A. की परिभाषा व्यापक रूप से की गयी है । यह एक ऐसी एप्रोच विधिया है जिनके द्वारा ग्रामीण लोगो के साथ ,उनके द्वारा तथा उनके ग्रामीण जीवन और परिस्थितियों की जानकारी हासिल की जाती हैं । इसकी विधियों में लचीलापन होता है और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार इनमे परिवर्तन किया जा सकता हैं ।

PRA की विशेषताएं

  • सहभागिता पर आधारित हैं
  • लोगो को समर्थ बनाता है तथा उन्हें सशक्त करता है
  • अनुकूलनीय हैं
  • आविष्कारशील है
  • पुनरावृति -मूलक है
PRA के अंतर्गत हमारे अर्थात आयोजको द्वारा –
  • घनिष्ठता/ सौहार्द स्थापित किया जाता हैं
  • संयोजन किया जाता हैं
  • सुसाध्य किया जाता हैं
  • उत्प्रेरक का कार्य किया जाता हैं
  • पुछताछ की जाती हैं

ग्रामीणों द्वारा –
  • नक़्शे ,माडल चित्र इत्यादि विधियों का प्रयोग किया जाता हैं
  • सुचना दी जाती हैं, स्पष्टीकरण दिए जाते है,
  • विचार विमर्श किया जाता है ।
  • स्थानीय लोग सुनते हैं, ध्यान से देखते हैं और सीखते हैं ।
  • श्रेणीबद्ध करते है ।
  • वाद विवाद करते हैं, प्रभावित करते हैं ।
  • विश्लेषण करते हैं और नियोजन करते है ।

PRA के सिद्धान्त

  1. भूमिका परिवर्तन- समुदाय को देने या सीखाने की मनोवृत्ति बदल कर ग्रामीणों से उनके परिवेश में आमने सामने बातचीत कर उनकी भौतिक ,आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति की जानकारी उनके सुविधानुसार तथा उन्ही के तरीके से प्राप्त करना ।
  2. भागीदारी -सुचना संकलन विश्लेषण कार्यक्रमो के क्रियान्वयन व मूल्यांकन में ग्रामीणों की भागीदारी प्राप्त की जाती हैं । इस क्रम में ग्रामीणों द्वारा बनाये गए नक्शो ,चित्रो तथा बताये गए प्रमुख घटनाओं आदि से तथ्य संकलन में सहयोग मिलता हैं ।
  3. विनम्र व्यवहार – परंपरागत तरीको से हटकर एक सीखने की चेष्ठा रखने वाले जैसा विनम्र व्यवहार करना ,ग्रामीणों को सम्मान देना इसका मौलिक तत्व हैं 
  4. विकास पूर्वाग्रह – पूर्व प्रचलित विकास पूर्वाग्रहों को छोड़कर ग्रामीणों में सहभागिता समन्वय ,जवाबदारी एवं हिस्सेदारी की भावना को विकसित करना । 
  5. शांतिपूर्वक सुनना – ग्रामीणों को सुनना ,न कि स्वयं भाषण देना ।
  6. शीघ्रतापूर्वक निष्कर्ष पर पहुँचने से बचना ।
  7. निर्धनों ,महिलाओं,बच्चों से भी उनकी परिस्थिति ,समस्याओं एवं प्राथमिकता की जानकारी लेना ।
  8. लचीलापन - पूर्वनिर्धारित एवं निश्चित प्रश्नावली अथवा साक्षात्कार जैसी पद्धतियों का प्रयोग न कर ,काल ,परिस्थित एवं स्थान के अनुसार पद्धतियों एवं उनके उपयोग में परिवर्तन किया जाना ।
  9. संवेदनशीलता – समुदाय तथा उनकी समस्याओं के प्रति संवेदनशील होना आवश्यक हैं ।
  10. सृजनात्मकता – इस पद्धति में समुदाय के लोग नक़्शे,चित्र एवं संकेतो में अपनी बात सहजता से कह लेते हैं, जो उनमें सृजनात्मक क्षमताओं को स्पष्ट करता हैं । सहभागी ग्रामीण समीक्षा का यह गुण समुदाय द्वारा समस्याओं को स्वीकार करनेअपनाने एवं इसके समाधान हेतु सामुदायिक सुझाव एवं प्रयास को आसान बना देता हैं ।
  11. स्वयं समीक्षा – जानकारी एकत्रित करने वाला निरंतर अपने व्यवहार और कार्य की समीक्षा करता हैं । इससे उसे अपनी गलतियों को समझने एवं उन्हें स्वीकार करने का अवसर मिलता हैं । जिससे वह भविष्य में और अच्छा करने का प्रयास करता हैं । स्वयं समीक्षा की यह प्रक्रिया प्रत्येक समय सही निर्णय लेने में सहायक होतीं हैं । 
  12. अनावश्यक को छोड़ना – सूचना एकत्रित करने के क्रम में अनेक अनावश्यक एवं अनुपयोगी जानकारियां भी मिलती है ऐसी स्थिति में उनकी सुने जरूर परन्तु आवश्यकतानुसार ही जानकारी उपयोग के लिए संग्रह करे । यहाँ किसी जानकारी का आवश्यक और अनावश्यक होना इस बात पर निर्भर करता हैं कि किस उद्देश्य के लिए जानकारी एकत्र की जा रही हैं । 
  13. त्रिकोणात्मक जाँच – प्रत्येक जानकारी की प्रामाणिकता दो या दो से अधिक व्यक्तियों से जाँच कर लेना आवश्यक होता हैं । 
  14. प्रत्यक्ष अवलोकन – ग्रामीणों से प्राप्त जानकारी के अतिरिक्त सहभागी ग्रामीण समीक्षा की पद्धति अपनाकर जानकारी एकत्रित करने वाला स्वयं भी अवलोकन करता हैं एवं प्रत्यक्ष दर्शन कर जानकारी लेता हैं । ये सभी सिद्धान्त व्यवहारिक हैं क्योंकि ये जानकारी प्राप्त करने वाले द्वारा प्रयोग में लाये जाते हैं । इनमें कुछ ज्ञान के सिद्धान्त पर आधारित है तथा कुछ व्यक्तिगत । अतः इन्हें इसी परिपेक्ष्य में लिया जाना चाहिये ।

पी. आर. ए. की पद्धतियाँ

सहभागी ग्रामीण समीक्षा या पी. आर. ए. के लिए कई तकनीकें काम में लायी जाती हैं । इनमें से किसी भी तकनीक को अकेले अथवा अन्य पद्धतियों के साथ प्रयोग करते हुए सहभागी ग्रामीण समीक्षा की जा सकती है । ये पद्धतियाँ निम्न प्रकार हैं ।

प्राथमिक एवं द्वितीयक तथ्यों का पुनरीक्षण 

P.R.A. प्रक्रिया के सफलता पूर्वक सञ्चालन के लिए आवश्यक है कि विधियों के प्रयोग से पूर्व समूह के विषय में आवश्यक ज्ञान द्वितीयक तथ्यों के श्रोतों अर्थात जनगणना के प्रतिवेदनों ,पूर्व में किये गए सर्वेक्षणों अथवा अन्य उपलब्ध अभिलेखों से प्राप्त कर ले । तत्पश्चात समूह में जाकर प्राथमिक तथ्यों को संकलित कर ले जिससे पी. आर. ए. प्रक्रिया को सुगमता पूर्वक संचालित किया जा सके ।

प्रत्यक्ष अवलोकन

प्रत्यक्ष अवलोकन पद्धति में उन सहभागी ग्रामीण आंकलन विधियों को सम्मिलित किया जाता हैं जिनके माध्यम से हम समूह या समुदाय के लोगो की सहभागिता तथा प्रत्यक्ष अवलोकन द्वारा तथ्यों एवं सूचनाओं को संकलित करते है । इन विधियों की संख्या बहुत अधिक है । फिर भी मुख्यतः 16 विधियों का प्रयोग किया जाता हैं । किसी भी समूह या समुदाय की जानकारी प्राप्त करने के लिए इन पद्धतियों में से किसी भी पद्धति को अकेले या अन्य विधियों के साथ कर सकते हैं । ये विधियां निम्नांकित हैं –
  1. सामूहिक बैठक व साक्षात्कार ( Group Discussion and Structured Interview) – सहभागी ग्रामीण समीक्षा का सबसे सीधा और आसान तरीका ग्रामीणों के साथ सामूहिक बैठक आयोजित कर चर्चा करना है । ग्राम में आयोजित सामूहिक बैठकों के माध्यम से ग्राम की मूलभूत जानकारी ,समस्याओं एवं आवश्यकताओं को शीघ्रता से एवं ठीक से समझा जा सकता हैं । सहभागी ग्रामीण समीक्षा के दौरान आयोजित की गयी बैठक में एक साथ बड़े समूह या फिर किसी समस्या विशेष के सम्बन्ध में आठ दस लोगो के समूह के साथ केंद्रित समूह चर्चा की जा सकती है । ऐसी बैठकों में एकतरफा संवाद की बजाय सभी लोगो को खुली चर्चा के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । गांव के छोटे – छोटे विशेष समूहों जैसे बच्चे ,किशोरिया, धात्री एवं गर्भवती महिलाएं ,वृद्ध महिला ,वृद्ध पुरुष ,जनप्रतिनिधियो आदि के साथ अलग से बैठक करना भी लाभप्रद होता है क्योंकि इनकी अभिरुचियाँ ,समस्याएं एवं आवश्यकताएं आपस में एक सामान एवं दूसरे समूहों से अलग हो सकती है । अतः ऐसे छोटे समूहों की बैठको से प्राप्त जानकारी को बड़े समूहों की बैठक में प्रस्तुत कर उन लोगो की आवाज को बल दिया जा सकता है जो बड़े समूहों की बैठकों में बोलने में संकोच करते है ।
  2. स्वयं कर के जानना (Do It Yourself) – इस विधि में ग्रामीणों के साथ उनके कार्यो को उनके साथ कर के जानने का प्रयास किया जाता है । इस विधि के माध्यम से उनकी व्यवहारिक कठिनाइयों को समझने में सहायता प्राप्त होती हैं ।
  3. ग्रामीणों के सहयोग से नक्शा या माडल बनाना (Maps and Model) - इस विधि में ग्रामीणों द्वारा स्थानीय सामग्रियों जैसे – मिट्टी ,खड़िया ,चूना , गेंहू, चना,दाल, भूसा ,रेत, कोयला, पत्थर , गोबर, इत्यादि की मदद से ज़मीन या फर्श पर गांव का नक्शा बनाना जाता हैं । इस नक़्शे की मदद से गांव के महत्त्वपूर्ण विवरण तथा मंदिर ,मकान, खेत, चारागाह, जंगल, आदि का नक्शा बनाया जाता हैं । इस तरह के मानचित्रण के निम्न लाभ हैं – 1. इसे एक साथ कई लोग देख सकते है।  2. यह आसान एवं जल्दी सूचना प्राप्त करने का तरीका हैं 2. गलती को तत्काल सुधारा जा सकता है ।3.यह ग्रामीणों की अभिव्यक्ति प्रदर्शन का सुगम व सस्ता तरीका है। 
  4. अनुप्रस्थ भ्रमण ( Transect Walk ) - जिस गांव की सहभागी समीक्षा की जाती है। उस गांव की अधिकतम सूचनाएं देने वाले व्यक्ति के साथ गांव तथा उसके आस – पास के क्षेत्र का भ्रमण किया जाता है । भ्रमण के समय क्षेत्र का ध्यान से निरीक्षण करते हुए पूछताछ की जाती है ,ग्रामवासियो के विचार सुने जाते है । उनसे विचार विमर्श कर स्थानीय तकनीकों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती हैब। क्षेत्र भ्रमण के संसाधन मानचित्रण में ग्रामवासियो द्वारा दी गयी सूचनाओं की जाँच भी कर ली जाती हैं। अनुप्रस्थ भ्रमण के समय यदि कोई टोली जंगल के इलाके में अध्ययन के लिए गयी हो तो उनमें महिलाओं और भूमिहीनों को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए ।भ्रमण के दौरान देखते हुए तथा चर्चा से ज्ञात हुए सभी विवरण नोट बुक में अंकित करते चले ।
  5. समय रेखा ( Historical Profile or Time Line ) – यह किसी भी गांव की ऐतिहासिक घटनाओं का प्रस्तुतीकरण है ।समय रेखा का अभ्यास गांव की पृष्ठभूमि या स्वास्थ्य ,शिक्षा, कृषि , वन , पशुपालन सामयिक मतभेदों आदि का पता लगाने में किया जाता है। समय रेखा वास्तव में ऐतिहासिक घटनाओं का कैलेण्डर है । जिसमे ग्रामीणों की यादाश्त के आधार पर समय के साथ विभिन्न पद्धतियों में आये बदलाव को समझा जा सकता हैं ।
  6. ट्रेंड विश्लेषण ( Trend Analysis )- ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में किसी भी चीज के उत्तर चढाव को देखना एवं उनका विश्लेषण करना उस बिषय वस्तु के बारे में गहराई तक जाने में तथा उसके आधार पर समझदारी बनाने में पहला कदम है । P.R.A. कार्यकर्त्ता को P.R.A. करते समय उन लोगो की स्थिति काम जीवनयापन और व्यवस्था उनकी खुशहाली और कठिनायों की ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में विश्लेषण के आधार पर तहकीकात करनी चाहिए ।
  7. मौसमी चित्रण (Seasonal Calendar) – जलवायु मौसम और ऋतु के परिवर्तन से मनुष्य का जीवन ,काम,आवागमन, खान-पान ,आदि प्रभावित होता हैं ग्रामीण जीवन मुख्यतः खेती पर निर्भर होने के कारण अलग- अलग परिस्थितियों से गुजरता रहता हैं । मौसमी चित्रण द्वारा माँग, मूल्य ,आपूर्ति,कमी,कठिनाई,अधिकता आदि को महीनो के हिसाब से देखना तथा उसके कारणों का पता लगाना मनुष्य का समय से सम्बंधित जानकारी हासिल करने का तरीका है । मौसमी चित्रण द्वारा महीनो के आधार पर किसी भी चीज की तुलनात्मक मात्रा या फसलो आदि के जीवन चक्र को समझा जा सकता हैं । यह मौसमी चित्रण लोगो के ज्ञान पर आधारित हैं ।
  8. खाद्य पदार्थ चित्रण (Food Calendar ) – इस पद्धति के माध्यम से समुदाय में वर्ष भर प्रचलित भोजन के स्वरुप का पता चलता है कि समुदाय अपने लिए पूरे वर्ष में किस – किस प्रकार की भोजन सामग्री का उपयोग करते है ।इसमें पुरे वर्ष को बारह माह में (अंग्रेजी और हिंदी में ) बाँट लेते है और प्रत्येक माह में समुदाय में प्रचलित भोजन समाग्री के स्रोतों को व्यक्तियों से प्राप्त जानकारी को अंकित करते है ।इससे समुदाय के भोजन एवं स्वास्थ्य के संबंधों को भी मापा जा सकता हैं ।
  9. सामाजिक मानचित्रण - इस तरह के मानचित्रण के अंतर्गत समुदाय की प्राथमिक जानकारियों को प्रदर्शित किया जाता है जैसे –  1. जाति एवं वर्ग के आधार पर बसावट अथवा टोला,पुरवा, मजरा । 2. आवासीय स्थिति कच्चे, पक्के अथवा मिश्रित आवास । 3. सड़को की स्थिति,कच्चा खड़ंजा,अथवा डामर रोड । 3. खेत खलिहान, मंदिर ,मस्जिद,कुआँ, तालाब,बाग बगीचे । 4. प्रधान तथा प्रमुख व्यक्तियों के आवास
  10. चपाती चित्रण (Institutional Map)- इसे वेन डायग्राम भी कहा जाता है । चपाती चित्रण की पद्धति से विभिन्न संस्थाओं या व्यक्तियों की समुदाय के जीवन से कितना गहरा सम्बन्ध है वे समुदाय के लिए कितना उपयोगी है समुदाय की नजर में वे कितना कारगर है व समुदाय उन्हें अपने लिए कितना उपयोगी मनाता है यह सब जानने के लिए यह एक उपयोगी विधि है । समुदाय की नजर में संस्थाओं की क्षमता और कमजोरी के कारणों का भी पता लगाया जा सकता हैं । इस पद्धति से हमे समुदाय के लोगो के साथ जुड़े हुए ऐसे व्यक्तियों एवं संस्थाओं की जानकारी मिलती है जिन पर उनका विश्वास होता है ।
  11. गतिशीलता चित्रण - इस पद्धति के माध्यम से समुदाय अपने लिए उपयोगी सेवाओं का उपयोग किस प्रकार करता है की जानकारी प्राप्त की जाती है । समुदाय के लोगो को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति गांव के अंदर विद्यमान साधनों से भी होती है और गांव में साधन न होने पर गांव के बाहर जा कर उसे प्राप्त करना पड़ता है । इस अभ्यास में स्पष्ठ पता चलता है कि समुदाय को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु गांव में एवं गांव के बाहर कितनी दूरी पर जाना पड़ता है और उसके लिए कितना समय और धन व्यय करना पड़ता हैं ।
  12. दैनंदिनी कार्य (Daily Routine ) – इसके द्वारा यह जानकारी मिलती है कि ग्रामीण समूह अपने एक दिन के समय का उपयोग किस-किस काम के लिए करते है । साथ ही इससे यह भी जानकारी मिलती है कि अलग -अलग वर्ग / समूह के लोगो को किस – किस तरह का और कितना काम करना पड़ता है । इससे उन पर काम का बोझ व खली समय की जानकारी मिलती है । यह जानकारी योजना निर्माण के लिए आवश्यक होती है
  13. व्यय का स्वरुप (Expenditure Pattern ) - इस पद्धति के माध्यम से समुदाय द्वारा अपने ऊपर व्यय किये धन का स्पष्ट पता चलता हैं । इससे ज्ञात होता है कि समुदाय अपनी किन आवश्यकताओं पर कितना व्यय करता है इनकी कौन सी प्राथमिक आवश्यकताएं है और कितना व्यय है ।
  14. SWOT Analysis – स्वाट विश्लेषण किसी मुददे व समस्या विशेष पर या समूह के द्वारा परीक्षण कर इसमें अन्तर्निहित शक्तियों ,कमजोरियों ,अवसरों, तथा खतरों के बारे में विचार करने की पद्धति है । स्वाट शब्द अंग्रेजी के चार शब्दो Strengths,Weakness,Opportunities and Threats के प्रथम शब्दो के मिलाने से बना संक्षिप्त नाम है इसके तहत किसी समस्या का परीक्षण तथा विश्लेषण करते समय उपरोक्त चार बिंदुओं पर परखा जाता है और समूह के विचार लिख लिए जाते हैं । यह अभ्यास छोटे – छोटे दो – तीन समूहों में कराकर फिर कागज की एक बड़ी सीट पर चार लाइन खीचकर उसे चार स्तंभो में बाँट लेते है, फिर इन स्तंभो में शक्तियों,कमजोरियों,अवसर, तथा खतरे के शीर्षक अंकित कर दिए जाते है । इसके बाद विचाराधीन मुद्दों से जुड़े विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए गांव में उपलब्ध शक्तियों ,कमजोरियों,अवसर तथा खतरों को क्रमसः इनके लिए निर्धारित स्तम्भ में लिख लिया जाता

Comments

  1. इस पर किताब है हिंदी में

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