सामाजिक संबंध ही वास्तव में समाजशास्त्र की विषय वस्तु है समीक्षा कीजिए
मैकाइवर एवं पेज का उपर्युक्त कथन की समाजशास्त्र सामाजिक संबंध के विषय में है पूर्णतः सही है । चाहे समाजशास्त्र की विषय वस्तु कोई सूची में कितने ही विषयों को सम्मिलित क्यों ना किया जाए परंतु यह सत्य है कि मूल रूप में समाजशास्त्र में सामाजिक संबंधों का ही अध्ययन किया जाता है । यह बात कुछ विद्वानों के कथनों में स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है । मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो सामाजिक संबंधों एवं सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन करता है । यद्यपि आपने समाजशास्त्र के अंतर्गत सामाजिक क्रिया के अध्ययन पर विशेष जोर दिया है परंतु यहां इस बात पर भी ध्यान देना आवश्यक है कि सामाजिक क्रिया भी सामाजिक संबंधों के संदर्भ में ही हो सकती है । अन्य शब्दों में सामाजिक लिया के संपन्न होने के लिए भी सामाजिक संबंध अत्यंत आवश्यक है । यही कारण है कि समाजशास्त्र के प्रारंभिक काल से लेकर अब तक के सभी प्रमुख समाजशास्त्री सामाजिक संबंधों को ही समाजशास्त्र की विषय वस्तु मानते हैं । वॉन वीज ने सामाजिक संबंधों को ही समाजशास्त्र की विषय वस्तु का आधार माना है । आपके अनुसार सामाजिक संबंध ही समाजशास्त्र की विषय वस्तु का वास्तविक आधार है । क्यूबर ने सामाजिक संबंधों के इसी महत्व को स्वीकार करते हुए लिखा है समाजशास्त्र को मानवीय संबंधों के बारे में वैज्ञानिक ज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । सच तो यह है कि समाजशास्त्र व्यक्ति को सामाजिक प्राणी बनाता है । वास्तव में सामाजिक संबंधों के अभाव में व्यक्ति का सामाजिक विकास संभव नहीं है । वह अन्य के साथ संबंधित रहता हुआ ही उनसे बहुत कुछ सीखता है । इस प्रकार सामाजिक संबंधों केे मध्य ही उसका सामाजिकरण एवं उसके व्यक्तित्व का विकास होता है ।व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के साथ विविध प्रकार के संबंध स्थापित करता है जैसे पारिवारिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि । परंतु इन सभी प्रकार के संबंधों के मूल में सामाजिक संबंध ही है । अन्य शब्दों में सभी प्रकार के संबंध सामाजिक संबंधों की ही विभिन्न रूपों में अभिव्यक्ति है । समाजशास्त्र इन्हीं मानवीय अंतर संबंधों की विवेचना करता है, सामाजिक संबंधों के एक अंग के रूप में व्यक्ति का अध्ययन करता है । मैकइबर एवं पेज ने ठीक ही कहा है कि, " समाजशास्त्री के नाते हमारा संबंध सामाजिक संबंधों से है, इस कारण नहीं की वे आर्थिक या राजनीतिक या धार्मिक है बल्कि इस कारण की वे साथ ही सामाजिक भी हैं । "
प्रो. मैकी ने समाजशास्त्र की विषय वस्तु के रूप में सामाजिक संबंधों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि ऊपरी तौर पर ऐसा मालूम पड़ता है कि सामाजिक प्रक्रियाएं, सामाजिक संस्थाएं तथा समाज आदि समाजशास्त्र की वास्तविक अध्ययन वस्तु है और अधिकतर समाजशास्त्रीय साहित्य इन्हीं सब विषयों से संबंधित अध्ययनों से भरा पड़ा है । परंतु ध्यान से विचार किया जाए तो यह स्पष्टतः पता चलता है कि इन सभी तथ्यों एवं सामाजिक प्रक्रियाओं का निर्माण सामाजिक संबंधों के द्वारा ही होता है, अतः चाहे हम स्थिर सामाजिक तत्वों का या परिवर्तनशील तथ्यों का अध्ययन कर रहे हो, हमारा वास्तविक लक्ष्य तो सामाजिक संबंधों के एक विशेष स्वरूप का अध्ययन करना ही होता है " । स्पष्ट है कि समाजशास्त्र की विषय वस्तु के अंतर्गत विभिन्न विषयों का अध्ययन ही क्यों ना किया जाए परंतु वास्तव में उन सब का आधार सामाजिक संबंध ही है और समाजशास्त्र में इन्हीं का अध्ययन किया जाता है ।
मैकइबर एवं पेज के अनुसार , " समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में है, संबंधों के इसी जाल को हम समाज कहते हैं ।" अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र समाज का ही व्यवस्थित अध्ययन है । जब इस शास्त्र में सामाजिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है और सामाजिक संबंधों के ताने-बाने या जाल को ही समाज कहा जाता है तो यह अपने आप ही स्पष्ट हो जाता है कि समाजशास्त्र समाज का ही अध्ययन करने वाला विज्ञान है । वास्तव में मनुष्य सर्वप्रथम सामाजिक प्राणी है और उसके बाद ही आर्थिक, राजनीतिक या धार्मिक प्राणी है । सामाजिक संबंधों के बीच ही व्यक्ति का सामाजिक जीवन निर्मित होता है । इनके अभाव में एकाकी व्यक्ति की कल्पना की जा सकती है, सामाजिक प्राणी कि नहीं । सामाजिक रानी के रूप में ही व्यक्ति अन्य के साथ आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संबंध स्थापित करता है । सहयोगपूर्ण या संघर्षमय संबंधों का आधार भी सामाजिक संबंध ही है । कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति सामाजिक संबंधों के बीच ही पलता है तथा जीवन के विभिन्न क्रियाकलापों में भाग लेता है । विविध सामाजिक संबंधों के इस जाल अर्थात समाज का व्यक्ति के जीवन में सर्वोपरि महत्व है और समाजशास्त्र इसी समाज का व्यवस्थित अध्ययन है ।
समाजशास्त्र किस प्रकार सामाजिक संबंधों के विषय में है, इसकी विवेचना मैकइबर एवं पेज ने इस प्रकार भी की है । आपने सामाजिक संबंधों के जाल को समाज कहां है । साथ ही अपने समाज को रीति-रिवाजों और कार्य प्रणालियों की, अधिकार और पारस्परिक सहायता की, अनेक समूहों और उनके विभाजनों की, मानव व्यवहार के नियंत्रणों एवं स्वाधीनताओं की व्यवस्था माना है । स्पष्ट है कि समाज के अंतर्गत रीति रिवाज, अधिकार, सहयोग, नियंत्रण एवं स्वाधीनता आदि तत्व आते हैं । समाज रूपी व्यवस्था के निर्मायक इन सभी तत्वों का आधार सामाजिक संबंध ही है । रीति रिवाज , अधिकार, सहयोग, नियंत्रण तथा स्वाधीनता विभिन्न प्रकार के सामाजिक संबंधों को ही व्यक्त करते हैं । इन सब से मिलकर ही समाज बनता है जिसे सामाजिक संबंधों का जाल कहा गया है । उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में है और क्योंकि सामाजिक संबंधों के इसी जाल को समाज कहा गया है , अतः अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र समाज का व्यवस्थित अध्ययन है ।
1. - समाजशास्त्र मानव समाज की आधारभूत विशेषताओं का अध्ययन करता है ना कि पशु समाज की विशेषताओं का ।
2. - समाजशास्त्र व्यक्ति के सामाजिक व्यवहारों का अध्ययन करता है ना कि सभी प्रकार के व्यवहारों का ।
3. - समाजशास्त्र समाज में व्याप्त सामान्य विशेषताओं एवं सामान्य नियमों का अध्ययन करता है ना की किसी विशेष समाज की विशिष्ट विशेषताओं या दशाओं का ।
4. - समाजशास्त्र का अपना एक पृथक दृष्टिकोण एवं पृथक अध्ययन क्षेत्र है, यद्यपि इसके द्वारा किसी भी घटना को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों, जैसे आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि का अध्ययन किया जाता है।
5. - समाजशास्त्र में यथार्थ तत्वों का अध्ययन किया जाता है । यह वास्तविकता पर जोर देता है, क्या है का अध्ययन करता है, न कि क्या होना चाहिए का । अन्य शब्दों में समाजशास्त्र का कल्पना, दर्शन या आदर्श से कोई संबंध नहीं है । यहां हमें यह भी ध्यान रखना है कि समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों की खिचड़ी मात्र नहीं है । यह एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान है जिसका अपना एक विशिष्ट अध्ययन क्षेत्र और विषय वस्तु है ।
मैकइबर एवं पेज के अनुसार , " समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में है, संबंधों के इसी जाल को हम समाज कहते हैं ।" अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र समाज का ही व्यवस्थित अध्ययन है । जब इस शास्त्र में सामाजिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है और सामाजिक संबंधों के ताने-बाने या जाल को ही समाज कहा जाता है तो यह अपने आप ही स्पष्ट हो जाता है कि समाजशास्त्र समाज का ही अध्ययन करने वाला विज्ञान है । वास्तव में मनुष्य सर्वप्रथम सामाजिक प्राणी है और उसके बाद ही आर्थिक, राजनीतिक या धार्मिक प्राणी है । सामाजिक संबंधों के बीच ही व्यक्ति का सामाजिक जीवन निर्मित होता है । इनके अभाव में एकाकी व्यक्ति की कल्पना की जा सकती है, सामाजिक प्राणी कि नहीं । सामाजिक रानी के रूप में ही व्यक्ति अन्य के साथ आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संबंध स्थापित करता है । सहयोगपूर्ण या संघर्षमय संबंधों का आधार भी सामाजिक संबंध ही है । कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति सामाजिक संबंधों के बीच ही पलता है तथा जीवन के विभिन्न क्रियाकलापों में भाग लेता है । विविध सामाजिक संबंधों के इस जाल अर्थात समाज का व्यक्ति के जीवन में सर्वोपरि महत्व है और समाजशास्त्र इसी समाज का व्यवस्थित अध्ययन है ।
समाजशास्त्र किस प्रकार सामाजिक संबंधों के विषय में है, इसकी विवेचना मैकइबर एवं पेज ने इस प्रकार भी की है । आपने सामाजिक संबंधों के जाल को समाज कहां है । साथ ही अपने समाज को रीति-रिवाजों और कार्य प्रणालियों की, अधिकार और पारस्परिक सहायता की, अनेक समूहों और उनके विभाजनों की, मानव व्यवहार के नियंत्रणों एवं स्वाधीनताओं की व्यवस्था माना है । स्पष्ट है कि समाज के अंतर्गत रीति रिवाज, अधिकार, सहयोग, नियंत्रण एवं स्वाधीनता आदि तत्व आते हैं । समाज रूपी व्यवस्था के निर्मायक इन सभी तत्वों का आधार सामाजिक संबंध ही है । रीति रिवाज , अधिकार, सहयोग, नियंत्रण तथा स्वाधीनता विभिन्न प्रकार के सामाजिक संबंधों को ही व्यक्त करते हैं । इन सब से मिलकर ही समाज बनता है जिसे सामाजिक संबंधों का जाल कहा गया है । उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में है और क्योंकि सामाजिक संबंधों के इसी जाल को समाज कहा गया है , अतः अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र समाज का व्यवस्थित अध्ययन है ।
समाज शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र की सीमाएं :-
समाज शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय वस्तु की कुछ प्रमुख सीमाएं निम्नलिखित हैं : -1. - समाजशास्त्र मानव समाज की आधारभूत विशेषताओं का अध्ययन करता है ना कि पशु समाज की विशेषताओं का ।
2. - समाजशास्त्र व्यक्ति के सामाजिक व्यवहारों का अध्ययन करता है ना कि सभी प्रकार के व्यवहारों का ।
3. - समाजशास्त्र समाज में व्याप्त सामान्य विशेषताओं एवं सामान्य नियमों का अध्ययन करता है ना की किसी विशेष समाज की विशिष्ट विशेषताओं या दशाओं का ।
4. - समाजशास्त्र का अपना एक पृथक दृष्टिकोण एवं पृथक अध्ययन क्षेत्र है, यद्यपि इसके द्वारा किसी भी घटना को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों, जैसे आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि का अध्ययन किया जाता है।
5. - समाजशास्त्र में यथार्थ तत्वों का अध्ययन किया जाता है । यह वास्तविकता पर जोर देता है, क्या है का अध्ययन करता है, न कि क्या होना चाहिए का । अन्य शब्दों में समाजशास्त्र का कल्पना, दर्शन या आदर्श से कोई संबंध नहीं है । यहां हमें यह भी ध्यान रखना है कि समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों की खिचड़ी मात्र नहीं है । यह एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान है जिसका अपना एक विशिष्ट अध्ययन क्षेत्र और विषय वस्तु है ।
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